हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Saturday, 15 July 2023

  1. इंटरनेट युग
  2. न जाने कैसे ये ठोकर लगी
  3. ये बारिश
  4. असहजता की समझदारी
  5. सच्चा दोस्त
  6. जब नज़र तुझ से जुदा हो के पलट आई थी
  7. बेटी
  8. कौन कहता है

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इंटरनेट युग

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Madhu Shubham Pandey
~ मधु शुभम पाण्डे

आज की पोस्ट: 15 July 2023

 

इंटरनेट से जहां एक तरफ हमें जागरूकता और मनोरंजन का साधन प्राप्त हुआ है वही दूसरी ओर हमें एकांत वासी और दिमागविहीन बना रहा है।
प्रगति तो खूब कर रहे हैं हम दुनियां भर की नई नई ख़ोज और आविष्कार पर क्या मानसिकता में सुधार हो रहा है?
बच्चे संस्कारवान बन पा रहे हैं?
आधुनिकता की इतनी धुन सवार है हमारे दिमाग पर कि न चाहते हुए भी हम सब वही कर रहे है जिस ओर जमाना चल रहा है जिस ओर इंटरनेट ले जा रहा है।
पहनावे से लेकर खाना पीना उठना बैठना सब इंटरनेट के सहारे ही चल रहा है।
जिन घर वालों के पास बैठकर पहले घण्टो बात किया करते थे, विचार विमर्श किया करते थे, साथ भोजन किया करते थे।

अब सब समाप्त सा होता जा रहा है। आजकल बस मोबाइल और इंटरनेट ही लोगों की दुनियां बनता जा रहा है।
आपस में प्रेम और अपनत्व धीरे धीरे विलुप्त सा होता जा रहा है।
दिमाग से स्थिरता गायब हो रही है लोगों के स्वभाव में नीरसता आ रही है।
दिमाग की स्थिरता खत्म होने से हीनभावना के शिकार हो रहे है और या तो आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे है या फिर आत्महत्या कर रहे हैं।

अब हम अपने बच्चों को समय नही दे पा रहे हैं इसलिए नही की हम बहुत व्यस्त हैं सिर्फ इसलिए कि हमें अब मोबाईल इंटरनेट की लत लग चुकी है हम बच्चों और परिवार से ज्यादा महत्व मोबाईल को देने लगे हैं।
कुछ नया सीखने की ललक हर दिन बच्चों और वयस्कों को अपराध की और धकेल रही है।
 माँ बाप बच्चों को मोबाईल दे तो देते हैं। छोटे छोटे बच्चे रील्स बना रहे हैं, उन्हें सचमें ज्ञात नही है कि वो क्या कर रहे है लेकिन वो जैसा देखते है वैसा करते है
क्योंकि अब इंटरनेट समाज का दर्पण बन गया है।।
हम सब क्या सचमें कभी गौर करते है कि बच्चे क्या कर रहे हैं  क्या सीख रहे हैं।

Written By Madhu Shubham Pandey, Posted on 11.07.2023

शीशे का था दिल 
जो टूट गया
न जाने कैसे ये ठोकर लगी
ना जाने कैसे..!

करते थे वो,चांद तारों की बातें 
उन्हीं पे तो थे हम मर जो मिटे 
ये दुनिया बेगानी 
यहां कोई न अपना
हम यूं बिखरे किसी को ख़बर ना हुई 
शिशे का था दिल 
जो टूट गया
न जाने कैसे ये ठोकर लगी
ना जाने कैसे..!

टूटे भी वहां,जहां साहिल था अपना
था दर्द इतना कि, लगे सब सपना
यादों के धागों में  कच्ची थी डोरी
आँख खुलने पे जो छूट गई
हम यूं फिसले  किसी को आहट नहीं
शिशे का था दिल 
जो टूट गया
न जाने कैसे ये ठोकर लगी
ना जाने कैसे....!

Written By Priti Sharma, Posted on 27.06.2023

ये बारिश

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Mili Kumari
~ मिली कुमारी

आज की पोस्ट: 15 July 2023

 

ये बारिश किसी के लिए आनंद है

तो किसी के लिए वेदना!

किसी के लिए सुहाना मौसम है 
तो किसी के लिए संकट की स्थिति!

कोई झूम उठता है 
तो किसी के आखों से भी 
आँसुओं की बारिश होती है!

कोई रात भर पानी की बूंदों की
टपकती हुई आवाज को समाहित कर
सुकून की नींद सोता है!

तो कोई रात भर छत से टपकते हुए 
पानी की बूंदों को पात्रों में भर-भर कर
संघर्ष करता है!

कोई सुबह उठकर तरोताजा महसुस करता है।
तो कोई थकान, पीड़ा और 
अपनी किस्मत को कोसता है!

किसी के लिए चाय- पौकड़े की स्वाद लाती है
तो किसी के पत्तल में आकाश का अछूता बूंद!

कोई सहमा हुआ है बारिश की खौफ से
तो कोई बारिश होने की आरज़ू रखता है!-२

 

Written By Mili Kumari, Posted on 30.06.2023

प्रतिपल बढ़ती समझ कहीं में, नासमझी से खो गया था।
शायद इसी समझदारी में, मन कहीं व्यथित तो हो गया था।।

बढ़ आगे मिलाकर भावों को, न मैंने भी तब दिखलाया था।
शायद समझ के इस जहान में, कहीं नासमझ सा खो गया था।।

एक पल दुनिया की भीड़ भाड़ में, बच्चे संग उसकी रक्षक देखी।
पर साथ ही निकलते अश्रुओं से, मेरा मन विचलित सा हो गया था।।

उसे रोता देख कर कारण पूछें, मन में भाव भी जागा था।
पर इन कदमों पर अदृश्य बेड़ियों, जैसे असर सा हो गया था।।

ये जो दुनियादारी में समझ की, बुनियादी की दीवारें थी ना।
कहीं इन्हीं की नींव के नीचे, सादा वो भाव सा सो गया था।।

उन आंखों से गिरते हुए मोती, का न जाने क्यों मोल न जाना।
फिर शांति से पूछने का मौका, भीड़ में दफन सा हो गया था।।

दुनियादारी की चलती हुई इस, अंधी दौड़ में मेरा कब जैसे।
शायद सहज सरलता से यूं ही, कुछ वैर गहन सा हो गया था।।

सामर्थ्यवान तब होते हुए भी, क्यों सरलता आई न जानें।
जो यूं भावनाओं पर रोक लगाने, को मैं विवश सा हो गया था।।

हृदयाघात के साथ ही खुद से, कुछ घिन्न भाव महसूस किया।
कुछ क्षण तक यह अन्तर्मन भी, ज्यों दुश्मन सा हो गया था।।

मन तो था पूछें आगे बढ़ कर, क्या हुआ गिरे क्यों अश्रु हैं।
फिर भी जानें असहजता संग, मैं क्यों अग्रिम सा हो गया था।।

उन अश्रुओं को गिरते गिरते, क्यों तब मैंने यूं रोका नहीं।
और क्यों भीड़ के शोर में भी, अश्रुत सन्नाटा सा हो गया था।।

बढ़ते अश्रु से अधीर हुआ मन, व्यथित रहा है काफी पल।
बढ़े पग से चित्र कुछ और होता, न होता जैसा हो गया था।।

क्यों अपनी सहजता सरलता से, कर दिया था मैंने धोखा कहीं।
गर होता आगे मन उस क्षण, तो लगता धीर सा हो गया था।।

Written By Abhishek Sharma, Posted on 12.07.2023

सच्चा दोस्त

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Suraj Mahato
~ सूरज महतो

आज की पोस्ट: 15 July 2023

वह जो मुंह मोड़ ले
समय पर साथ छोड़ दे,
सच्चा दोस्त उसे कभी ना कहना
उसके यादों में कभी ना रहना,
सच्चा दोस्त वही होता है,
जो समय पर साथ निभाता है,
दूर होकर भी जो
अपने दोस्तो को
अपने होने का,
अहसास दिलाता है,
सच्चा दोस्त वही होता हैं।

Written By Suraj Mahato, Posted on 15.07.2023

जब नज़र तुझ से जुदा हो के पलट आई थी!
इक अज़ीयत मेरी आँखों में सिमट आई थी!

मुझको बतलाओ गे क्या कर्ब का मतलब तुम सब,
माँ की गोदी से ही ये लफ़्ज़ मैं रट आई थी!

इक तेरा रंग बदलना ही मुझे मार गया,
वर्ना मैं कितने हवादिस से निमट आई थी!

आज गुस्से में उसे सर से जुदा कर डाला,
दरमियाँ होंटों के जो बाल की लट आई थी !

वर्ना ख़ुशियों को तो लम्हे की भी फुर्सत नहीं थी,
वो उदासी थी बुलाने पे जो झट आई थी!

उस के पहलू में कोई और था और मैं 'ज़ोया',
मुस्कुराते हुए किरदार से हट आई थी!

Written By Zoya Sheikh, Posted on 15.07.2023

बेटी

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Neeta Bisht
~ नीता बिष्ट (जौनपुरी)

आज की पोस्ट: 15 July 2023

बेटी है डरपोक मत समझो उसे ,
छोटी सोच वालों अपनी सोच से मत आंको उसे।।

सबकी खुशियों के लिए अपनी खुशियां भूल जाती है ,
और यह समाज उसे घुट घुट कर जीना सिखा देती है।।

बेटी जब बेड़ियों में बंध जाती हैं,
वह नादान अपनी पहचान भूल जाती है।।

उसके संस्कार जब उस पर हावी हो जाते हैं ,
बेटी होना गुनाह है यह साबित हो जाता है।।

बड़ों का आदर छोटो को प्यार करना जाना है,
बदले में तुमने उसे पराया ही तो माना है।।

सबकी खुशी चाहती है बेटी,
सबकी खुशी में ही खुश रहना है ये मानती है बेटी।।

कभी ना हार मानने वाली बेटी तब हार जाती है,
बदनामी शब्द को जब वह जान जाती है।।

मत करो किसी की बेटी का बदनाम,
सब्र करो किसी दिन मिलेगा तुम्हें भी इसका इनाम।।

छोटी सोच वालों सोच बदलो ,
बेटी को धरती पर बोझ मत समझो।।

बेटी है तो क्या वह इंसान नहीं
छोटी सोच वालों तुम इंसान हो तो इंसानियत कहां गई?

उद्देश्य
मैं लिख रही हूं क्योंकि लिखना जानती हूं
मैं पढ़ रही हूं क्योंकि पढ़ना जानती हूं
छोटी सोच वालों तुम्हें सुधारना चाहती हूं

Written By Neeta Bisht, Posted on 15.07.2023

कौन कहता है

SWARACHIT5072

Deepak Singh Bhandari
~ दीपक सिंह भण्डारी

आज की पोस्ट: 15 July 2023

कौन कहता है
हम रोते नहीं
यूं तो थोड़ा सीख लिया है
हमने अपने दर्द को छुपाना
वरना हम भी कभी कभी
रात रात भर सोते नहीं
कौन कहता है?

दर्द से गला भर आता है
पर हम हर दम
इन आंसुओं का बोझ रूकसार पर ढोते नहीं
बेशक रो लेते हैं कभी अकेले में
पर इन नाकामयाबियों से
हम अपनी मंजिल से दर बदर कभी होते नहीं
कौन कहता है?

हां बेशक घाव देती हैं ये गलतियां
चेहरे पर हमारे ये ले आती हैं सिसकियां
पर आगे बढ़ने से ये हमें रोकते नहीं
दर्द में मन को कुरेदती हैं ये बार बार
पर हर बार हमसे ये जीतते नहीं
कौन कहता है?

Written By Deepak Singh Bhandari, Posted on 15.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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