हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Wednesday, 12 July 2023

  1. खीर और खिचड़ी
  2. क्या ये मुमकिन है मन?
  3. कुछ पल
  4. बेमिसाल काया
  5. बहु किरण
  6. उसूलों का भरम

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वो नफरत की खेती करते हैं।
जहरीले फल उगाते हैं।

अलग-अलग रंग का 
चौला ओढ़कर,
अपना हो घर जलाते हैं।

कोढ़ी सरीखे 
अपने ही घावों को
खुजलाते हैं।

कभी मजहब, 
कभी जाति,
कभी बेरोजगारी,
कभी शोषण
की चक्की में 
पीसे जाते हैं।

समर्थ हैं जो वो 
अपनी खीर पकाते हैं।
हर तरह के 
हथकंडे अपनाते हैं।

सच तो यही है कि,
कमजोर को तो
खिचड़ी के भी 
लाले पड़ जाते हैं।

Written By Manoj Kumar, Posted on 13.04.2022

कभी ज़िंदा ना मिलूँ तो खुद को रुलाना मत
वो आना चाहेगी मुझे देखने, उसे तुम बुलाना मत?
मरुँ किसी रोज़ तो मेरे अपनों के कान्धों का सहारा मिले
मेरे कुटुंब को शख्स कोई मुझसे भी प्यारा मिले
थोड़ा सा ज़िद्दी हूँ अपनों के लिए, भाई- बहनों के लिए बुजुर्गों के लिए
फ़िर कोई इस रूह को किनारा मिले


मालूम नहीं है पिता की डांट कैसी होती है, पर छोटे पापा का साया हो
बहनों की आँखों में ख़ुशी और भाइयों की आँखों में प्यार झलके
कोई अपना ना सही तो कोई पराया ना हो
कैसे ना कहूँ वो चाहते नहीं मुझे
मुझे किसी ने समझाया- बुझाया ना हो
हँसता रहता हूँ पीकर अक्सर नादान कलम
ऐसा कभी हुआ नहीं मैंने अकेले में खुद को रुलाया ना हो


देख लो एक झलक इस तस्वीर को
फिर देखने से गुज़ारा ना होगा
याद रखना घर की दीवारों हमें ज़िंदा रखना अपना समझकर
हम जैसे बच्चों का जन्म दोबारा ना होगा
कई हुए हैं हमसे पहले भी कुटुंब में सम्भालने वाले
पर अब उस जमाने जैसा नज़ारा ना होगा
बताने नहीं आते हैं मुझे दर्द, दर्द की तरह
लिखूँ कोई शायरी उसके नाम पर, वोही मेरा इशारा होगा

किसी शाम को किसी शाम की नज़र ना लगे
हम- तुम मिले ताउम्र भर के लिए और जमाने को हमारे एक होने की खबर ना लगे
             एक रोज़ हो ऐसा उम्रभर के लिए 


हो ऐसा ज़िंदगी में हमारी कि?
उपहार तुम्हें पायल दूँ
तुम पहनें पाँव में और कोई खनक ना हो
हम तुम्हें और तुम हमें मिले आखिरी सांस तक के लिए
क्या ये मुमकिन है मन?
और हमारे घर वालों को इसकी भनक ना हो
      फ़िर मिले तो क्यूँ मिले

Written By Khem Chand, Posted on 25.05.2022

कुछ पल

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Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 12 July 2023

कुछ पल

तेरे संग

मन में लिए

उमंग

जीना चाहता हूं

नन्ही आशाएं

यही भावना लिए

कुछ पल मैं

तुम्हारे संग

गुजारना चाहता हूं

शायद मिल जाए

मुझे अनमोल खुशियां

ऐसी ही आशा लिए

कुछ पल मैं

बिताना चाहता हूं।।

 

Written By Manoj Bathre , Posted on 12.05.2021

बेमिसाल काया

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Lalan Singh
~ ललन प्रसाद सिंह

आज की पोस्ट: 12 July 2023

उसे तब से देख रहा हूं,
जब वह उम्र के 
उस दहलीज पर था
जहां आदमी
सब वारे न्यारे 
कर देता था.

आज सब कुछ बदला.
पर उसके परिस्थैतिक स्वास्थ्य की
अपरिवर्तनीय स्थिति
काल को चुनौती देता है.
सुखद अनुभूति का मिसाल 
बन बैठा है.

Written By Lalan Singh, Posted on 02.06.2022

चाँदी जैसी हँसती खिलती,

व्योम से आई बहु किरण।

पुष्प-पुष्प को मधुर-मधुर,

खुशियाँ लाई बहु किरण।

पड़ी फूस की कुछ झोपड़ियां,

रहती अंधकार से भरी।

उनमें जाकर-

चाँदी जैसी दीप जलाकर,

ज्यों मुस्काई बहु किरण।

चाँदी जैसी थाली सा,

आया है पूर्णमास में।

फिर चाँदी के तारों जैसी,

नभ से आई बहु किरण।

बहु किरण से बदल गया जग,

पंछी गाती गीत चली।

नया-नया मन ताजा जीवन,

ज्यों मुस्काई बहु किरण।

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 12.06.2022

उसूलों का भरम

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Zoya Sheikh
~ ज़ोया शेख़

आज की पोस्ट: 12 July 2023

मुझ को गाँव के उसूलों का भरम रखना था!
यअ्नी हँसते हुए ख़ारों पे क़दम रखना था!

परवरिश मेरी उदासी में हुई थी सो मुझे,
हर घड़ी ऊँचा उदासी का अलम रखना था!

क्या कहूँ कैसी अज़ीयत थी कि वक़्ते फ़ुरक़त,
होंठ को हँसता हुआ, आँख को नम रखना था!

गर उसे रोकती, रुक जाता मगर यार मुझे,
अपनी ख़ुद्दार तबीयत का भरम रखना था!

उसको दामन में मेरे रखना था कुछ पल सुख के,
और बदले में मुझे अपना क़लम रखना था!

आप जब जानते थे पहले से फ़ितरत अपनी,
आप को उस से ज़रा राब्ता कम रखना था!

एक दिन ग़ुस्से में माई से ये मैं चीख़ पड़ी,
नाम 'ज़ोया' की जगह आप को ग़म रखना था!

Written By Zoya Sheikh, Posted on 12.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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