गरीब को
अमीर को,
उद्योगपति को
कामगार को,
शिक्षाविद को
कलाकार को,
सबको भाती दिल्ली!
हुनर बाज को
गैर हुनर बाज और को,
बेवकूफ को
समझदार को,
बेईमान को
इमानदार को,
भी रास आती दिल्ली!
बच्चों को
बूढ़े को,
उपभोक्ता को
खरिददार को,
व्यापारी को
बाज़ार को,
भी नेता का तो है ही दिल्ली!
आम को
खास को,
दूर को
पास को,
सारे संसार के
दूतावास को,
भी दिलचस्प लगती दिल्ली!
दशहरा मेला आयेंगे !
माखन, मिश्री, दूध, मलाई,
खूब मजे से खायेंगे।
मुन्ना- मुन्नी और चुन्नीको,
खूब मजे से चिढ़ायेंगे।।
दशहरा मेला आयेंगे,
चिड़ियाघर देखने जायेंगे।
चिड़ियाघर में बंदर और,
भालू चिंपैंजी तोते को
खूब मजे से चिढ़ायेंगे।
दशहरा मेला आयेंगे,
झूला झूलने जायेंगे।
मुन्ना-मुन्नी और चुन्नी के साथ,
खूब मजे से झूलेंगे।
मेले का लुफ्त उठायेंगे।।
दशहरा मेला आयेंगे,
मामी के साथ जायेंगे।
मेले का आनंद फिर तो,
खूब मजे से उठाऐंगे।
बाबा जी- सुना है दादी बन गई है बक्तावरी
बक्तावरी- जी बाबा जी आपकी दया दृष्टि है बस।
बाबा जी- सब मालिक उस प्रभु की इच्छा से है।
बक्तावरी- ये आपका बड़प्पन है बाबाजी।
बाबाजी- वैसे सब ठीक है।
बक्तावरी- हां सब बढ़िया है बस आप अपनी अनुकम्पा हमेशा ऐसे ही बनाए रखना।
बाबा जी- हम तो सदा भक्त के साथ है बच्चा।
बक्तावरी- बाबा कंधों प्रणाम करते हुए। इजाज़त लेते हुए।
बाबा जी- सदा खुश रहो तथास्तु।
बक्तावरी- ये वो प्रसाद ये बाबा जी का आशीर्वाद है सब ले लो।
प्रभाती- मां जा आई मन्दिर।
बक्तावरी- हां बेटा जाकर आई हूं।
प्रभाती- क्या कहा बाबा ने।
बक्तावरी- सब अच्छा कहा कहां सब अच्छा होगा।
प्रभाती- मां मैं सोच रहा था मैं साधु को जमींदार के यहां काम पर रख दूं।
बक्तावरी- बेटा है तो अभी बालक देख लो।अभी इसके खेलने- कूदने के दिन है।
प्रभाती- मां तू कह तो ठीक रही है लेकिन मेरी तबियत ठीक नहीं रहती है तेरो को पता तो है मेरो को सहारे की सख्त जरूरत है।और कोई चारा नहीं है अब।
बक्तावरी- बेटा सब ठीक है जो तेरो को सही लगें कर लो।
प्रभाती- सही है मां सुबह लेकर जाता हूं।इसको थोडा़ वक्त से उठा देना।
बकतावरी- अरे बेटा वो तो अपने- आप 4बजे जग जाता है।तू जब चाहे उसे ले जाना।
प्रभाती- अरे साधु बेटा चल आ मेरे साथ चल।
साधु- ठीक है बाबू चलों।
घर से गांव की गलियों में चलते हुए राम राम जी राम राम भाई के स्वर सुनाई दे रहें थे।
प्रभाती- कितना अच्छा, कितना मन को शांति देंने वाला है ये राम नाम।
साधु- हां ये तो है बाबू।
मांगे- आज सुबह- सुबह बाबू बेटा कहां जा रहें हो।
प्रभाती- राम राम बस जमींदार प्यारेलाल के घर तक जा रहे हैं।इसको काम के लिए छोड़ आता हूं।
मांगे- प्रभाती छौरा तै तेरा बडा़ हठीला पहलवान दिखता है। इसको तू मेरे को दे दे।
प्रभाती- नही मांगे भाई प्यारे से कुछ रोज़ पहले बात हुई थी।अब तो वहीं काम करेगा।
मांगे- क्या बात प्रभाती जमींदार तो हम भी हैं उस जितना नहीं थोड़ा कम सही।
प्रभाती- भाई सारी बात सही है लेकिन अब तो साधु वहीं काम करेगा। बुरा मानने की बात नहीं है।
प्रभाती- प्यारे भाई राम राम
प्यारेलाल- राम राम सुना प्रभाती कैसा है मैं ठीक हूं तुम अपनी बताओं।
प्यारेलाल- हमे क्या होगा तेरे सामने है देख हट्टे- कट्टे।
प्रभाती- साधु को लाया था काम के लिए।
प्यारेलाल- अच्छा ये है साधु अरे - तू कह रहा था दस साल का है ये तो दस का कोन्या।
प्रभाती- मतलब।
प्यारेलाल- मतलब ये ये बडा़ है गाबरू हो चुका है।
प्रभाती- हां गाबरू है पर उम्र दस बरस ही है।
इसको थोडा़ हल्का काम देना अभी।
प्यारेलाल- हल्का मैं तो कहता हूं ये सब से कठिन काम करेगा।देख नहीं रहा इसके शरीर को। बाकि तूने बोल ही दिया तो इसको बेलारूस ट्रैक्टर खडा़ है वो सिखा दे।चलाता रहेगा।
प्रभाती- बडी़ मेहरबानी।
प्यारेलाल- मेहरबानी कुछ नहीं काम करेगा तन्खाह पाएगा मुफ़्त कुछ नहीं मिलेगा।
प्रभाती- आज से या भिर कल ले आऊं।
प्यारेलाल- कल किसने देखा अभी ले जाओ सिखाना चालू करो। कितने दिन में सीख जाएगा।
प्रभाती- दो- तीन दिन लग जाएंगे।
प्यारेलाल- काम चलाऊं सिखा दे चलाएगा हाथ साफ होता रहेगा।
प्रभाती- ऐसा ही होगा।
प्यारेलाल- तेरो को पता है काम का कितना दवाब बना रहता है।
प्रभाती- ठीक है तेरो को शिकायत का मौक़ा नहीं देंगे।
प्यारेलाल- अरे भाई प्रभाती जो सही लगें करो मेरो को तो काम से मतलब है बस।
प्रभाती- ट्रैक्टर की तरफ इशारा करते हुए चल बेटा संभाल स्टेरिंग।
साधु- बाबू मैं चला लूंगा।
प्रभाती- हां रे ऐसा क्या हवाई जहाज है चला लेगा चल गीयर डाल क्लच छौड़ धीरे धीरे रेस दे चलने दे।
साधु- चलाने में मजा आ रहा है बाबू।
प्रभाती- मै न कहता था कुछ ना है।
Written By Vijender Singh Satwal, Posted on 29.10.2022विज्ञान विज्ञान विज्ञान,
आओ कराऊं इससे पहचान,
क्यों कहते हैं इसे विज्ञान,
क्या है इसमें विशेष ज्ञान,
हर काम चल रहा विज्ञान से,
हर असंभव आज संभव है विज्ञान से,
कौन है अनजान आज इस नाम से,
कल की कल्पना आज है साकार विज्ञान से,
कोई सुने तो विज्ञान, कोई बोले तो विज्ञान,
डायल करो मोबाइल अपना लगाके कान,
कोई देखे तो विज्ञान,कोई दिखाए तो विज्ञान,
दूर की वस्तु को पास से कराती पहचान,
घंटों का काम मिनटों में होता विज्ञान से,
सैकड़ों का काम एक मशीन करता विज्ञान से,
आज कौन है अनजान इस नाम से,
सुई से तलवार तक होता है निर्माण
साइकिल मोटरसाइकिल रेल गाड़ी वायुयान,
हर पग पग पर पड़ता है जिसका काम.
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 20.04.2023जो रखते है न्याय व्यवस्था।
को एकदम अपडेट।।
लोग उन्हें प्यार से कहते।
वो हैं एडवोकेट।।
मजलूमों मजबूरों की।
फरियाद सुने बड़े ध्यान से।।
उनके न्याय की गुहार लगाते।
वो न्यायालय श्रीमान से।।
फरियादी को न्याय मिले जब।
उनका चेहरा खुशी से खिल जाता।।
तब वकील साहब को माना।
पड़ा हुआ धन मिल जाता।।
लेकिन इसमें भी कुछ।
श्रीमान दगेबाज है।।
धन खींचे फरियादी से ज्यों।
दांव मारकर बैठा कोई बाज है।।
एक बात राजू मानो।
प्यारे एडवोकेट जी।।
है न्याय व्यवस्था हाथ तुम्हारे।
अब करो सही एडवोकेट जी।।
बदल जाते है लोगो के रंग
जब आपसे उनका मतलब के
दिन निकल जाते है,
जिस छतरी ने बरसात में काम आये
लोग उसी छतरी को
बाद बरसात के भूल जाते है।
बनाता रहा खुद को पानी जैसा
ढलता रहा हर किसी के रंग तैसा,
फिर भी रास ना आ सका
फितरत देख लोगों की
शायद अब कुछ समझ रहा,
मृदुभाषी लोगो के गुण भी निराले होते है
जगह बनाकर दिल में अक्सर
बीच मझदार में ही अक्सर छोड़ जाते है।
बदल जाते है लोगों के रंग
जब अनुकूल ना हो परिस्थिति आपकी,
तब गूंगे बोलने लग जाते है,
बहरे भी सुनने लग जाते हैं
सगे-संबंधी, दोस्त, रिस्तेदार
सब के सब किनारे कर जाते है।
भरोसा जिसपर ज्यादा होता है
दुख भी बड़े दे जाते है वे लोग,
गर्मी भर जिस पेड़ ने छाया दिया
अक्सर बाद गर्मी के उन्ही का
सौदा कर जाते है लोग।
बदल जाते है लोगों के रंग
जब मिल जाते उन्हें कोई आपसे बेहत्तर,
ताख पर रख कर सारे
रिश्ते-नाते, वादे-कसमें
परिचय खुद का
गिरगिट ही बताते है लोग!
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।