चोट मुझे फ़िर कोई गम्भीर खानी है
बार- बार बदलता रहता है चेहरा ये
इस दिल को मुझे इसकी औकात दिखानी है
कैसे गुज़रेगा बाकी का दौर अब
सब छोड़कर चले गए तुम्हें अकेला
किसके लिए तुम्हें ये ज़िंदगी सजानी है
लगने दो कहीं काम में अब इसको
कुछ काम का नहीं रहा ये
क्यूँ तुम्हें इसकी ज़िंदगी बचानी है
खाली कर दिए हर हिस्से घर के
खाली दिल भी करवा लो
फ़िर किस जश्न के लिए ये कोठी बनानी है
बुला लो उनको जो आए नहीं कभी
अब कब आयेंगे वो
किसको अब ये रस्म निभानी है
उलझ गया था एक रोज़
दिल किसी दिलवाली से
अब फ़िर तुम्हें किसे आवाज़ लगानी है
भीग गए हो आँसुओं में
भीग जाने दो इस दिल को
प्यास कैसी जान लेकर बुझानी है
क्या करोगे रक्खकर हिसाब मोहब्बत का
सब भूल जायेंगे
और तुम्हें सांसें समझानी है
मांगकर भी नहीं मिल रही
कैसे मिलती है
मुझे मौत खुदसे मिलने बुलानी है
उठा लो मेरी लाश को
उसकी गलियों में से ले जाना
मुझे यादें उसके साथ की साथ ही जलानी है
मिले जुले परिवार पर, नहीं गिराओ गाज।
मत बाॅंटो इंसान को, इंसानों से आज।।
सबको करने दीजिए, अपने अपने काम।
मत बाॅंटो इंसान को, जात धर्म के नाम।।
शांति और सद्भावना, रहे प्रेम व्यवहार।
मत बाॅंटो इंसान को, रंगों के अनुसार।।
लहू सभी का एक है, हिल मिल रहिए संग।
मत बाॅंटो इंसान को, कह चमड़ी का रंग।।
सबल निबल के बीच की, खाई है विकराल।
मत बाॅंटो इंसान को, भाषा बोली चाल।।
अपना उल्लू साधने, करते हैं उपभोग।
मत बाॅंटो इंसान को, सभी दलों के लोग।।
बन कठपुतली कर रहे, सब के सब ही नृत्य।
मत बाॅंटो इंसान को, बहुत बुरा ये कृत्य।।
चाल राजनैतिक कुटिल, पाने सत्ता प्यार।
मत बाॅंटो इंसान को, कर नफरत संचार।।
लालच झूठ फरेब के, करके वादे आप।
मत बाॅंटो इंसान को, करो न ऐसा पाप।।
कंंधे पर बंदूक रख, करते हैं वो वार।
मत बाॅंटो इंसान को, आपस में हर बार।।
राधे-कृष्णा नाम जपों थोड़ी कर लो यारों बन्दगी,
जितनें दिन तक जिओंगे उसी को कहतें ज़िंदगी।
क्यों करतें हो व्यर्थ में चिन्ता आनें वालें वक्त की,
जैसे तन को साफ़ रखतें मन की मिटाओ गंदगी।।
माना मंजिल दूर है लेकिन मेहनत अपनें हाथ है,
वक्त पलटतें देर ना लगता रहतें भगवान साथ है।
आतें जातें रहतें है उत्सव त्योंहार और नूतन वर्ष,
जन्म मरण का समय निर्धारित यह सत्य बात है।।
रट ले नाम हरि का यारा कब उठ जायेंगा यें डेरा,
अच्छें कर्म करतें जाना कभी भाग्य खुलेगा तेरा।
ग़रीबी-अमीरी किस्मतों के सोदे श्वासों का खेला,
आसियाना है हमारा सारी दुनियां यह रैन बसेरा।।
यें मानव जीवन है बहुत श्रेष्ठ समझें इसका मोल,
नींद से उठजा अब प्राणी अपनी अंखियां खोल।
सभी से रहें मिलकर एवं बोलें मीठे-मीठे यें बोल,
बातों को सोच समझकर बोलों पहलें करों तोल।।
राधेश्याम जपों सुबह-शाम चाहें बोलों सीताराम,
रिश्वत चोरी ठगी बेइमानी यें सभी है खोटे काम।
संयम क्षमा त्याग अपनत्व सबका पीना तूं जाम,
हे मधुसूदन शरण में हमें रखना करतें है प्रणाम।।
कोयल रानी कोयल रानी,
मीठी गीत सुनाओ ना।
आ गई वसन्त का महीना,
कू-कू का स्वर सुनाओ ना।
कितनी मीठी कितनी अच्छी,
लगती है ये तेरी वाणी।
कोयल रानी कोयल रानी,
मीठी तान सुनीओ ना।
एक पल नहीं दो पल नहीं,
हर पल गीत सुनाओ ना।
कोयल रानी कोयल रानी,
मीठी गीत सुनाओ ना।
Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 11.06.2022हरियाणा का जिला रोहतक के अन्तर्गत आने वाले गांव धौड़ में रहने वाले एक पीढ़ी एक परिवार के बारे में बताने जा रहा हूं।जिस परिवार ने बहुत दिक्कत, परेशानी, कठिनाइयों के वावजूद अपने को समाज के सामने स्थापित करने का साहसपूर्ण कार्य किया, परिवार की लोग मिसाल देते हैं।काम ही ऐसा किया इस परिवार ने जो आनेवाले नवयुवाओं को एक उन्नति, तरक्की का रास्ता दिखाया।बस ज्यादा न कहते हुए विस्तार से उपन्यास के अन्दर चलते है-..
जैसा कि ऊपर कहा गया है गांव धौड़ के एक परिवार के सन्दर्भ में ही ये उपन्यास है।गांव धौड़ जो झज्जर-बेरी के मध्य बसा है। पहले ये रोहतक जिले में आता था लेकिन आजकल झज्जर में पड़ता है झज्जर जिला बनाने से,बेरी पास का क़स्बा है। उपतहसील हल्का बेरी ही पड़ता है।अब गांव में चलते हैं।गांव आने के लिए आप बेरी से आओ या झज्जर से दोनों ओर से संसाधन मिल जाते हैं क्योंकि गांव मध्य स्थित है।
गांव धौड़ पहूंच जाते हैं।गांव में एक भीखूराम का परिवार रहता है जिसकी आज बहुत ही दयनीय हालत है भीखू के तीन बेटे-तीन बेटियां हैं।बेटे-प्रभातीराम, इन्द्र सिंह, ईश्वर सिंह है। बेटियां-बरहो,धरमो, बसन्ती है।भीखू को छह बच्चों के लालन-पालन में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।गांव में जमींदारी प्रथा प्रचलित थी। जमींदारों के यहां काम कर जैसे-तैसे पेट भर बच्चों को पाला।छह संतानों में पढाई-लिखाई के मामले में सब शून्य थे। किसी ने चार किसी ने पांच बस इतना ही पढ़ा।उस जमाने में 12-13 साल में शादी हो जाता करती। इसलिए भीखू को भी बच्चों के ब्याह की चिंता सताने लगी। बच्चों के काम की बात करें तो प्रभाती ने जूते बनाने का काम सीख लिया वो एक बढ़िया कारीगर हो गया। इन्द्र ने सरकंडे से मूंढे़ (एक तरह की देशी कुर्सी) बनाने का काम कर लिया और ईश्वर तो अच्छा गाने-बजाने लगा।भीखू एक तरह से बच्चों की परवरिश से खुश था कि मेरे बच्चों की शादी आराम से हो जाएगी इतना तो हूनर है मेरे बच्चों में।और छह संतानों की शादी भी भीखू राम ने बिना किसी रूकावट से आराम से कर दी।
अब मैं आपको तीनों बेटों के वैहाविक जीवन की ओर ले चलता हूं।बड़ें लड़के प्रभाती राम की शादी मंगलेश्वर माजरी (रिवाडी़ ) में हुआ। जिनकी पत्नी का नाम मूर्ति देवी था। मूर्ति देवी बड़ें शांत स्वभाव, सुशील, सुन्दर और मिलनसार प्रवृति की औरत है जो एक पत्नी के कर्तव्य को, फ़र्ज़ से भलीभांति परिचित हैं इस मामले में उसको कुछ कहना मतलब मुंह की खाना है। मूर्ति देवी ने आते ही घर की सारी जिम्मेदारी को अपने कंधों पर ले लिया है।उसको महसूस ही नहीं हुआ कि वो मायके है या ससुराल में।हो भी क्यों न भाई जैसे दो देवर जो एक इशारे पर दौड़े आते हैं। सांस का तो कहना क्या जैसे एक मां को छौडा़ दूसरी मिल गई।बक्तावरी देवी ने बहूं को बेटी मानकर रखा उनका कहना यही है बहूएं बेटी तो है। बेटी से अलग थोड़ी है। जिंदगी अच्छी तरह से चल रही थी कुछ खुशी परिवार में आई। मूर्ति देवी ने एक लड़के को जन्म दिया। जन्म से कुछ अलग तेज था लड़कें में। छह दिन का हुआ लड़का नामकरण के लिए पंडित को बुलाया गया। पंडित ने भी लड़कें के तेज़ की प्रशंसा कीऔर कहा प्रभाती ये तेरा नाम रोशन करेगा तेरे हर काम में तेरे संग खड़ा रहेगा 15 साल का होते-होते तेरी सारी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले लेगा।ये बडा़ दयालु,धर्मार्थी और मिलनसार, समर्पण की भावना वाला होगा और ऐसा स्वभाव तो किसी साधु-संत का होता है इसलिए इसका नाम साधुराम रखना है। पंडित की बातें सुनकर प्रभाती फूला नहीं समा रहा था।जो आपकी इच्छा पंडित जी जो आपको ठीक लगे वहीं रख दीजिए। लेकिन एक बात जो इसकी भलाई को बुराई में प्रवर्तित कर देगा।वो इसका गुस्सा है ये अपने गुस्से के कारण भलाई को खो देगा।
पंडित इसका कोई हल तो होगा। रहने दें प्रभाती मैं कोई भगवान थोड़े न हूं जो इसका अगत कर्म लिखूं। प्रभाती तू चिंता न कर जो मालिक करेगा अच्छा ही करेगा।इस इजाजज्त दे।ठीक है पंडित आते रहा करो। 5 रूपये भेंट देते हुए प्रभाती ने कहा। भाई जैसा वक्त लगेगा आ जाऊंगा अब विदा दे।ठीक है पंडित राम-राम।।सुना पंडित का कहकर गया है प्रभाती अपनी पत्नी को सुनाते कहता है हमारा पुत्र निष्ठावान, गौरवशाली होगा। बहुत अच्छी बात है जी मां-बाप को ओर क्या चाहिए बस संतान से पत्नी ने खुशी जाहिर करते कहा।
ला खाना ले आओ क्या बनाया है आज। पूरी-सब्जी है जी ले आओ मैं काम पर जाता हूं भिर। खाना तो अच्छा बना है क्यों झूठी तारीफ करते हो आज से पहले तो कभी अच्छा नहीं बताया।अब अच्छा है तो अच्छा ही कहूंगा न।मुंह बनाते प्रभाती ने कहा। चलों ठीक है ये लो चलता हूं ध्यान रखना शाम को देर हो जायेगी मां को बोल देना। वैसे मां है कहा दिखाईं नहीं दे रही। पोते की खुशी में पागल है चाची के पास गई है।ठीक है चलता हूं।गांव में चलते हुए धनीराम आगे से-ओर भाई प्रभाती ठीक है सुना है तू बाप बन गया।हां भाई ठीक सुना है आप ताऊं बन गए।हां भाई ये तोहै ताऊं तो बन गया। मैंने सोचा था तू मिलेगा नहीं। नहीं भाई ऐसी बात नहीं काम का दवाब है मैं शाम को आपके पास आता। अच्छा मुबारक हो,बधाई हो। आपको भी।ये वही धनीराम वैद्य है जिसको गांव में कोई पूछता नहीं लेकिन बाहर के लोगों का दवाई के लिए तांता लगा रहता है। अपने समय के पढ़-लिखे शिष्टाचार,गुणीवान व्यक्ति हैं। छुट्टी वाले दिन तो लोगों की अचछी-खाशी भीड़ लग जाती है अब सीधी बात यही है किसी को आराम होता है तभी तो आते हैं ऐसे किसके पास समय है कहते हैं बड़े-बडे़ रोग ठीक किए हैं देशी वैद्य है लेकिन सुना है कहीं से वैद्य की शिक्षा भी ली है।
साधु की बहूं -कहा है ला मेरे को थोड़ा प्रसाद दें पोते के हिस्से का बाबा बावलियां पर चढ़ा आती हूं सांसू मां कहती हैं।गांव में एक मन्दिर है जिसमें बावलियां बाबा रहते हैं ले अपनी तपस्या से गांव में खुशहाली, शांति, भाईचारे का माहौल बनाएं रखते हैं।ऐसी लोगों की मान्यता है।
Written By Vijender Singh Satwal, Posted on 29.10.2022पिता से ज्ञान पाकर के |
वह मुझे ज्ञान देता है ||
पिता का प्रेम केवल |
एक भाई ही करता है ||
भाई ही है बस |
जो कंधे को मिलाते हैं ||
खाने से पहले वह |
मुझे जबरन खिलाते हैं ||
कभी निकले गलत रास्तें |
वह मुझको खींच लेते हैं ||
सदमार्ग की दिशा |
मुझे बता रहे हैं ||
कभी गुमसुम सा हो जाऊं |
तो क्या हुआ `राजू` ||
खुशी के पल मिल कर |
वो मेरे साथ कह रहे हैं ||
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।