30 मिनट का डेली डोज,
भगाए हमारे सारे रोग।
योग का हमें मिला वरदान,
क्यूं न करें इसका निदान,
सूर्य नमस्कार का करें प्रयोग,
तन-मन स्वस्थ हेतु करें उपयोग,
योग से जीवन होता निरोग,
यही है एक सुंदर संयोग,
शरीर को रखता चुस्त दुरुस्त,
बीमारी को जड़ से करता पस्त,
योग करें, भाई योग करें,
दूर सभी हम रोग करें,
आलस दूर भागता है,
तन स्वस्थ सुखी बनाता है,
चलो आज एक जन संदेश फैलाए,
बिजी लाइफ से कुछ समय बचाएं,
करें 30 मिनट का नित्य डेली डोज,
पास न फटकेगा कोई रोग,
जिसका आज शरीर है निरोग,
वही सुखी, ये जान ले लोग।
योग करें भाई योग करें,
दूर सभी हम रोग करें।।
रहे सदा तन-मन प्रफुल्लित,
आओ नित करें योग हम ।
रहता सदा सुडौल बदन,
दिखाये न ब्लडप्रेशर दम ।।
वात-पित्त कफ़ रहे दूर,
करें जब नित प्राणायाम ।
रहे सदा निरोगी काया,
दौडें जब-जब अविराम ।।
रहते दूर व्याधि -विकार,
करते मन से जब योगा ।
छट जाती नीरसता सारी,
हौंसला बज्रासन सा होगा ।।
योग अद्वितीय -अनुपम
करता स्वास्थ्य का वादा ।
बिना मूल्य हरता संताप,
सहज सरल और ज्यादा ।।
योग से पाई जाती है,
सफलता हर वियोग पर ।
आज विश्व वंदन करता,
मानव हितकारी प्रयोग पर।।
सोचने में चिंता में हर घड़ी बीती जा रही है
पता न चला बस जिंदगी गुज़रे जा रहीं है
सोचता हूं देखता हूं हर रोज नजारा
शायद वक्त बदले कभी हमारा
इसी उम्मीद इसी आशा में जिंदगी बीती जा रही है।।
कौशिक नाकाम हुई पर हारा नहीं
रूके कदम हमको गंवारा नहीं
पर वो संवारा नहीं धडी़ चली जा रही है।।
सांसों की डोर जब तक हिम्मत है
वक्त की सच में न कोई कीमत है
बस गए वो हमे तो बस लूटे जा रही है।।
राधये,सुन ले मेरी भी इसी आश में है
सुख का वो पल मिलें उसकी तलाश में हैं
पतझड़-सा जीवन बहार गुजरे जा रही है।।
मुझे प्रीत है वतन से, मेरी जान है तिरंगा
करूँ प्राण तुझको अर्पित, मेरी शान है तिरंगा
मुझे प्रीत है वतन से…..
मेरी शा’इरी में तू है, मेरे शेर हैं सुहाने
सदा गाऊँ मैं जहाँ में, तेरे प्यार के तराने
मेरे गीत मुझसे बोलें, तेरी आन है तिरंगा
करूँ प्राण तुझको अर्पित, मेरी शान है तिरंगा
मुझे प्रीत है वतन से…..
मुझे दे खुदा तू ताकत, करूँ मुल्क की हिफ़ाज़त
रहूं मैं रहूं न चाहे, रहे देश ये सलामत
कहे रोम-रोम मेरा, तेरी जान है तिरंगा
करूँ प्राण तुझको अर्पित, मेरी शान है तिरंगा
मुझे प्रीत है वतन से…..
मेरे दिल में तू ही तू है, फ़क़त तेरी बन्दगी है
मरुँ मैं लिए तिरंगा, ये हसरत-ए-ज़िन्दगी है
मिले शान से शहादत, ये अरमान है तिरंगा
करूँ प्राण तुझको अर्पित, मेरी शान है तिरंगा
मुझे प्रीत है वतन से…..
किस दुनियां में खोया है तू मुसाफिर,
कभी निकाल वक्त तू खुद के लिए भी।
जा बैठ उस एकांत में
और खुद से दो बातें कर
कुछ बातें हवाओ से कर
दो लफ्ज़ उन घटाओं से कर
दुनिया की भीड़ से दूर होकर
कभी बैठ तू तन्हाई में।
थोड़ा प्यार इस तन्हाई से भी कर
जरा प्रेम तू अपने आप से भी कर
कुछ पल के लिए भूल जा इस दुनिया को
भूल जा तू हर दुःख गम को
और सिर्फ और सिर्फ
तू खुद से प्रेम कर।
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