आये यह नव वर्ष खुशियां लेकर
सबके जीवन में हो उजियारा
छट जाएं बादल आफ़तों के सारे
महक उठे फिर यह चमन हमारा
महामारी ने ऐसा भयानक रूप दिखलाया
बहुत देखी पिछले वर्ष हमने तबाही
अपने पराये का भेद सारा मिट गया
लिख गई इतिहास में जो काली स्याही
टिम टिम करते थे सितारों की तरह
वो दीपक बुझा दिए इसने सारे
दिल की व्यथा कोई सुनने वाला नहीं
जाएं कहाँ वो सब आफत के मारे
सबक लें कुछ अतीत से अपने
पर्यावरण को अपना शत्रु न बनाएं
धरा की रक्षा में जुट जाएं तन मन से
पेड़ों को न काटें नए पेड़ लगाएं
समझें हम इशारे उससे न बड़ा कोई
फिर क्यों हम प्रकृति को झिंझोड़ रहे हैं
मुकाबला करना नामुमकिन है उससे
फिर क्यों सारे नियम तोड़ रहे हैं
दुआ करो उस दाता से सब मिलकर
नया साल लेकर आये खुशियों की बहार
रोजगार मिल जाये सबको महंगाई हो जाये कम
अमन चैन हो हर तरफ किसी से न हो तकरार
हर भारतबासी का एक हो सपना
देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाये
सब को मिल जाये दो वक्त का खाना
कोई रात को भूखा न सोने पाए
इतना तो याद करो आज,
उनके सपनों पर करो नाज़,
उनके रागों का बजे साज,
उनके अस्तित्व का शर्म-लाज.
उनका आजाद हिन्द फौज,
उनका निराला नेतृत्व भाव,
उनके आजादी का संकल्प,
उनके सर्वस्व का लगा दांव.
भारत हो सशक्त और स्वतन्त्र,
भारत का हो भविष्य उज्जवल,
भारत में हो सच्चा समाजवाद,
भारत का सदा उत्थित हो भाल.
वो थे लक्ष्य के प्रति समर्पित,
वो थे आजादी के दीवाने,
वो थे उसूलों के दृढ़ संकल्पी,
वो थे सुराजी और परवाने.
हृदय हाथ रख कुछ सोचो,
अपने मनुजत्व के पानी का .
सीख दिये थे नेताजी,
साहस और बलिदानी का.
Written By Lalan Singh, Posted on 30.05.2022
माता की उदर करी से,
चित्कार रही है बिटिया प्यारी।
मत! माता का कोख उजाड़ो,
सुन लो! बापू हमारी।
कैसे निर्मोही बने तुम बापू,
क्या अपराध किया है मैंने।
बस! बेटी आने का संदेशा सुन,
माँ का कोख उजड़वाने चल पड़े।
मत कोस मुझे तुम बेटी,
तुम भी मेरी दुलारी है।
जब तुम जवां होने को होती,
होती बलत्कारी के शिकार है।
यही तो डर सताये मुझको,
जो सबसे बड़ी लचारी है।
जो सबसे बड़ी लचारी है।।
मत! बन निर्मोही बापू,
मुझे भी जीने का अवसर दे।
अपनी छोटी सी आँगन में,
अटखेलियो खेलने का अवसर दे।
गर आयी तेरे आंगन बापू,
नाम रोशन कर जाऊँगी।
चाहे बनूँ मैं पी०टी० उषा,
या फिर सावित्री(बाई) बन जाऊँगी।
गर आये मेरी राह में दरिंदे,
फूलन भी बन जाऊँगी।
खुली छूट देकर देखना,
कल्पना सी उड़नपुरी भी बन जाऊँगी।
और तो और मैं बापू.
काजल सैनी सी शूटर भी बन जाऊँगी।
मत माता का कोख उजाड़ो,
सुनलो अरज हमारी।
सुनलो अरज हमारी।।
हठी छोड़ बिटिया तू अपनी,
मेरी और भी लचारी है।
समाज में बैठे वर पक्ष भी,
फैलाये दहेज की झोली है।
कैसे तेरे जवां होने पर,
विवाह तेरी रचायेंगे।
वर पक्ष के खाली होली को,
कहाँ से धन ला भर पायेंगे।
बस कर! बापू अपनी बहाने,
मुझे भी जीने का अवसर दे।
नहीं चाहिए महल- अहारी,
और ना ही मेवे मलाई।
कर देना तू शादी मेरी,
जो नून-रोटी खाता हो।
पर! दहेज का ना भूखा हो।।
और स्वाभिमान से जीता हो।।
बस! बापू एक अहसान कर दो,
मत माता का कोख उजाड़ो।
मत माता का कोख उजाड़ो।।
मत माता का कोख उजाड़ो।।।
Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 09.06.2022खुशबू से महकता वो दामन आज भी है
आज जाओ तुम बरसता सावन आज भी है
मैं क्या कहते ये सब है
होंठों पर आज भी तलब है
चरित्र पवित्र पावन आज भी है।।।
राह तकते आज भी है
तुझ पर नाज़ आज भी है
इंतजार की शह जानम आज भी है।।।
दिल्लगी है या तेरा प्यार
आज भी है ऐतबार
समझे नहीं नादान आज भी है।।
राधये जान अब तो मेरे मन की
पैरों में पायल भिर है छनकी
मुंह न फेर हिम्मत हाथ थामन आज भी है
खत आया है उसका मैं भी जवाब लिख दूंगा,
जुल्फों को घटा होंठ को गुलाब लिख दूंगा।
उसने कई सवाल लिख कर जवाब मांगा है,
मैं भी हर जवाब में एक-एक सवाल लिख दूंगा।
सवाने हयात, मैं जब भी अपनी लिख दूंगा,
हर गमों का अपने हिसाब साफ - साफ लिख दूंगा।
कई चेहरे कई जलवे आंखों ने मेरी देखे हैं,
झील सी आंखे हैं उसकी और शबाब लिख दूंगा।
पहली नजर उसकी मुझे मदहोश कर गई मुश्ताक,
मैं तो उसकी आंखों को यारों, हां शराब लिख दूंगा।
माँ की वो ममता रही, और पिता का प्यार
दोनों से मिलता रहा, हरदम प्यार-दुलार
हरदम प्यार-दुलार, बहन-भाई संस्कारी
इक-दूजे के प्राण, सभी हैं आज्ञाकारी
महावीर कविराय, नहीं है चिन्ता जां की
सदा हमारे साथ, रही है ममता माँ की
ममता ने संसार को, दिया प्रेम का रूप
माँ के आँचल में खिली, सदा नेह की धूप
सदा नेह की धूप, प्यार का ढंग निराला
भूखी रहती और, बाँटती सदा निवाला
महावीर कविराय, दिया जब दुःख दुनिया ने
सिर पर हाथ सदैव, रखा माँ की ममता ने
मात-पिता को मानिये, रब का ही अवतार
मोल न कोई कर सके, इतने हैं उपकार
इतने हैं उपकार, चुकेगा ये ऋण कैसे
मोल चुकेगा ये न, कमा लो कितने पैसे
महावीर कविराय, पूज चाहे गीता को
रामायण या वेद, मान ले मात-पिता को
इस वक्त सुहाना मौसम है
कुछ सर्दी है कुछ गरमी है.
वैसे ही तुम्हारे भावों में
कुछ सख्ती है कुछ नरमी है.
है खता जरूर हमसे हुई
तो साहेब न यूं बेरुख होवो.
कुछ मेरे भावों को भी समझो
थोङा हम पर भी खुश होवो.
था कुछ भाव मिलन का जगा हुआ
तो मन मेरा अकुलाया था.
ना मिल सकोगे तुम मुझको
मन को मैने समझाया था.
पर मन ये निठुर नही माना
तब दौङा आया पास तेरे.
बस मुख चन्द्र के दर्शन हो जाये
यही ख्वाहिश खींचे पास तेरे.
जिसने अपनी जवानी लगा दी दांव पर,
देश खातिर मर मिटे डर बिना अंजाम के,
बलिवेदी पर चढ़ने वालों का आज वंदन,
कर रहे हैं सिर झुकाकर उनका अभिनंदन,
फांसी को वरमाला कहते ऐसे थे जांबाज़,
शहीदों के बलिदानों से देश हुआ आजाद,
आज अमन के गीत है गाते धरती आकाश,
इनकी कुर्बानी का लेकर हम सब प्रकाश,
नव भारत निर्माण करें,नया बनाए इतिहास,
देख जमाना याद करें, वीरों की यह सौतान,
आज शहीदी दिवस पर छेड़े मधुर यह तान,
भगतसिंह बिस्मिल राजगुरु की गाये गान,
Written By Kanhaiyalal Gupta, Posted on 24.03.2023भक्ति के लिए, शक्ति के लिए,
जीवन की मुक्ति के लिए,प्रार्थना जरूरी है,,
शिक्षा के लिए,परीक्षा के लिए,
जीवन की सुरक्षा के लिए, प्रार्थना जरूरी है,,
सदाचार के लिए, संस्कार के लिए,
अपने खुद की सुधार के लिए,प्रार्थना जरूरी है,,
शांति के लिए,क्रांति के लिए,
जीवन में कांति के लिए,प्रार्थना जरूरी है,,
साधना के लिए, उपासना के लिए,
अपने मन की कामना के लिए,प्रार्थना जरूरी है,
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.04.2023चंचल मन अब स्थिर
होने को चला है!
मानस अब उत्तरदायित्व का
पर्वत उठाने को चला है!
कल तक थे जो नन्हें पैर
अब पायल से बंधने को चला है!
मासूमियत भरी आखों में
झिलमिल सपनें सजने को चला है!
होटों की खिलखिलाहट भरी हंसी
अब मुस्कुराहट बनने को चला है!
सुनहरे बालों की दो लंबी चोटियां
अब पुष्प से सजने को चला है!
माथे पे थी न अब तक कोई सिकंज
अब रिश्तों का टीका लगने को चला है!
सर पर थी अब तक दुलारों की छाया
अब घूंगट से सजने को चला है!
एक बेटी अब
एक बहु बनने को चली है!
पिता की राजकुमारी
अब पति की रानी बनने को चली है!
मां की परछाई अब
सासू मां की दुलारी बनने को चली है!
एक लड़की अब अपने कल्पनाओं को
यथार्थ में जीने को चली है!
इस घर की सम्मान अब उस घर की
प्रतिष्ठा बनने को चली है!
अपने साथ अपने असंख्य सपनों को
बसते में भरकर ले जाने को चली है!
एक बेटी अब एक बहु बनने को चली है!
Written By Mili Kumari, Posted on 04.05.2023कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।