बेमौसम बरसात से फ़सल नष्ट खेत-खलिहान की,
किस कर्म की सजा मिली,कैसी ख़ता किसान की।
खोकर नीदें रातों की,फ़सलों में पानी छोड़ता है,
हाड़ कपाती सर्दियों में भी,पल-पल प्रवाह मोड़ता है।
खुशियां बन मुस्काए दर्द,देख लहलहाती हुई सरसों,
निगली बेमौसम बरसात,सजाए थे जो सपने बर्षों।
धूल धूसरित धनिया हुई, बट गई चटनी चनी की,
गेहूं गोबर से हो गए,नही रही आस आमदनी की।
कैसे मान लें होता होगा,फल मेहनत का मीठा,
गिरता नही वक़्त ज़रूरत,कभी बारिश का छींटा।
मुश्किल हुआ चुका पाना,उधारी खाद-बीज की,
बेंच जमीन भरनी ही होगी,कीमत अब लीज की।
आंधी ओले बारिश ने,अप्रत्याशित कहर ढहाया है,
पतझड़ के मौसम ही,मौसम बरसात का आया है।
Written By Govind Sarawat Meena, Posted on 03.04.2023``आप हर परिस्थिति में इतने शांत, धीर-गंभीर कैसे रहते हैं?`` उसने आश्चर्य से कहा.
``मैं जीवन के रहस्य को समझ गया हूँ बेटा,`` वृद्ध व्यक्ति ने अपनी उम्र से आधे उस जिज्ञासु युवा से कहा, ``क्या मैं तुम्हें बेटा कहने का अधिकार रखता हूँ.``
``हाँ-हाँ क्यों नहीं, आप मेरे पिता की आयु के हैं,`` उसने मुस्कुराते हुए कहा, ``मुझे कुछ ज्ञान दीजिये.``
``बचपन क्या है?`` यूँ ही पूछ लिया वृद्ध ने.
``मूर्खतापूर्ण खेलों, अज्ञानता भरे प्रश्नों और हँसी-मज़ाक़ का समय बचपन है,`` उसने ठहाका लगाते हुए कहा.
``नहीं वत्स, बाल्यावस्था जीवन का स्वर्णकाल है, जिज्ञासा भरे प्रश्नों, निस्वार्थ सच्ची हँसी का समय,`` वृद्ध ने गंभीरता से जवाब दिया. फिर पुन: नया प्रश्न किया, ``और जवानी?``
``मौज-मस्ती, भोग-विलास और एशो-आराम का दूसरा नाम जवानी है,`` युवा तरुण उसी बिंदास स्वर में बोला.
``दायित्वों को पूर्ण गंभीरता से निभाने, उत्साह और स्फूर्ति से हर मुश्किल पर विजय पाने, नए स्वप्न सँजोने और सम्पूर्ण विश्व को नव दृष्टिकोण देने का नाम युवावस्था है,`` वृद्ध ने उसी धैर्य के साथ कहा.
``लेकिन वृद्धावस्था तो मृत्यु की थका देने वाली प्रतीक्षा का नाम है,`` वह तपाक से बोला. शायद वह बुढ़ापे पर भी वृद्ध के विचारों को जानना चाहता था, ``जहाँ न ऊर्जा का संचार है, न स्वप्न देखने की ज़रूरत. बीमारी और दुःख-तकलीफ़ का दूसरा नाम जीवन संध्या. क्यों आपका क्या विचार है?`` उसने मानो वृद्ध पर ही कटाक्ष किया हो.
``वत्स, तुम फिर ग़लत हो. जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखो.`` वृद्ध ने अपना दृष्टिकोण रखा, ``वृद्धावस्था उन सपनों को साकार करने की अवस्था है, जो तुम बचपन और जवानी में पूर्ण नहीं कर सके. अपने अनुभव बच्चों और युवाओं को बाँटने की उम्र है यह. रही बात मृत्यु की तो किसी भी क्षण और किसी भी अवस्था में आ सकती है, उसके लिए प्रतीक्षा कैसी?``
``आप यदि मेरे गुरु बन जाएँ तो संभव है मुझे नई दिशा-मार्गदर्शन मिल जाये,`` नतमस्तक होकर वह वृद्ध शिक्षक के चरणों में गिर पड़ा.
Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 20.02.2023आई आँधी चुनाव की
तो फ़िर डर गए नेता।
गहरी थी नींद घबरा
के देखिए उठ गए नेता।
कब तलक और आराम
गाहों में पड़े रहते।
रोजी रोटी का था सवाल
गलयों में आ गए नेता।
अपनी - अपनी ही हांकते
नजर आए नेताजी।
मांग कर वोट जनता को
कंगाल कर गए नेता।
जिनको जानते भी नहीं,
पहचान भी झूठी - झूठी।
दिलों में उनके वादों का
मीठा जहर घोल गए नेता।
जिनके घर ऑलीशान थे,
नींवों पर ककत वोटों की।
पल भर में ताश के पत्तों की
तरह बिखर गए नेता।
नेताओं का मुकद्दर रेत
की मानिन्द हुआ करता है।
नया दौर है मुश्ताक सहम गए,
समझ गए नेता।।
आट्टा नमक तेल की कढ़ाई मार गई
खरीद लिया कपड़ा या सिलाई मार गई
गरीब न बच्चों की पढ़ाई मार गई
बाक़ी कुछ बचा तो मंहगाई मार गई।।
पढ़ें-लिखे बेरोजगार हो गए
कारीगर के औजार खो गए
धंधे हुऐ खत्म हर कोई रो गए
खरीद ली जमीन तो बनाईं मार गई।।।
दाखिले खातिर आज चैक चाहिए
नेता मंत्री की बैक चाहिए
गले मोटा-सा टैंक चाहिए
अंगूठा लगाकर ले ले शाहूकार की कमाई मार गई।।
सब्जी तरकारी छोड़ चटनी की आदत डाल लें
नौकर नौकर है जितना जल्दी हो मान ले
मानसिक गुलाम आज भी तू जान ले
कहै रैदास,चले गए ना समझाई मार गई।।
मन बोझ हल्का हो कौन सुनता बोल तेरे
बजा सारी उम्र कौन सुनता ढ़ोल तेरे
खुद ही न जागा कौन जानता मोल तेरे
राधये समझ लें अब या कविताई मार गई।।
मातृभूमि के हर नारी के,
उदर हरी से-
एक चित्कार सुनाई पड़ती है।
मत बेटी बनाकर पैदा करना,
कुख्यात जमाने से डर लगती है।
पहले तू दहेज के डर से मैया,
मुझे जमीं पर नहीं लाती थी।
आज खुद कह रही हूँ मैया,
इस जमीं पर-
मुझे कभी भी मत लाना तू।
इस रहम दुनिया में,
जन्म लेना-
मुझे गंवारा लगती है।
मत बेटी बनाकर पैदा करना,
कुख्यात जमाने से डर लगती है।
जो कर ना सके,
एक अवला की रक्षा-
उस मुल्क में,
जन्म लेना मुझे गवारा लगती है।
मत बेटी बनाकर पैदा करना,
कुख्यात जमाने से डर लगती है।
Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 07.06.2022कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।