क्यों वृथा करे अभिमान रे,
छोटी-सी तेरी ये पहचान रे।
एक दिन सब माटी होना है,
तुम इससे नहीं अनजान रे।
सबसे हिल-मिल प्रेम रखना,
सहयोग का फल भी चखना।
यह जीवन सफ़ल हो जायेगा,
बस मन अपना साफ़ रखना।
शामियाने शाम के गहराने लगे हैं
बचपन वाले दिन याद आने लगे हैं
दादी की बातें वो दादा के किस्से
नानी और नाना भी याद आने लगे हैं।
स्कूल से आकर बस्ता फेंकना
घर में झांकना, यहां-वहां देखना
गेंद-बल्ला उठाकर भागे थे तब
गाल के थप्पड़ याद आने लगे हैं।
परीक्षा का मौसम, पढ़ाई की चिंता
सालभर घूमा अब काम नहीं बनता
अच्छा रहा परिणाम तो सब ठीक
पिटाई वाले दिन याद आने लग हैं।
होते ही परीक्षा ननिहाल को जाना
मामा को सताना, मामी को पकाना
तरबूज-खरबूज, आम रस मीठा
कुल्फी-फू्रटी भी याद आने लगे हैं।
``मां ``शब्द में ब्रह्मांड समाया है।
मां की कीमत को जो नहीं समझ पाया है।
वह जीवन को सार्थक करने का मूल मंत्र कहाँ समझ पाया है।
मां ``शब्द में ब्रह्मांड समाया है।
ईश्वर से भी पहले मां ने स्थान पाया है।
जीवन की उर्जा का बिंब प्रकृति ने मां रूप से ही पाया है।
``मां ``शब्द में ब्रह्मांड समाया है।
सम्मान करें मां का तुम्हारे लिए जिसने,
अटूट स्नेह धारा को बहाया है।
तुम्हारे शब्दों को पूरा करने के लिए,
जिसने अपने दिन -रात को लगाया है।
``मां ``शब्द में ब्रह्मांड समाया है।
जो नहीं समझ पाते इस शब्द को,
उन्होंने अपने व्यक्तित्व को भी, एहसासों से खाली हो निःशब्द बनाया है।
Written By Preeti Sharma, Posted on 26.03.2023धरती पर यौवनता उमड़ी मदहोश हुआ दिग्दिगंत
कली-कली कौमार्य दहके,छाया पतझड़ में बसंत
नैन मिलाक़े खोया चैन,उड़ गई निदियां रातों की
तन-वदन में लगी आग,पुलकित बगिया बातों की
मन-मधुकर मदहोश हुआ पा पावन स्नेह मकरंद
हो उठा प्रण पूर्ण प्रियतम जुड़ा ह्रदय का अनुबंध
बदल ना जाना मौसम-सा रहना बन परछाई तुम
बहल ना जाना कलियों संग बनकर हरजाई तुम
परिमल से पल प्यार के कर रहे प्रमुदित पोर-पोर
तेरी यादों में कटती शामें तेरे ख्वाबों में होती भोर
भाए ना सिवा तेरे कोई,ये सांसें तेरे ही नाम की
स्वीकार ख़ुशी-ओ-ग़म, नही फिक्र अंजाम की।
गुजरे जिंदगी सारी प्रिय, अब तेरी ही पनाहों में
होना ना दूर आंखों से,मांगा है हमने दुआओं में।
Written By Govind Sarawat Meena, Posted on 04.03.2023शीतलता सिर्फ पेड़ पौधों में ही नहीं वाणी में भी होनी चाहिए,
समाज के प्रदूषण को समाप्त करने का कार्य मधुर वचन है।
आज समाज का प्रत्येक प्राणी कठोरता कर्कशता से व्याकुल है,
आवश्यकता है मधुर शीतलता के प्रचार प्रसार करने की,
तप्त दग्ध हृदय के तारों को जोड़ने की झंकृत करने की,
जैसे शीतलता संसार को आकर्षित करती रहती है,
शीतलता पूर्ण वाणी मन मयूर को थिरकाती रहती हैं,
शीतलता से तन मन वातावरण सभी आकर्षित है।।
प्यारा सावन आया हैं
मन सभी का भाया है,
कही डाल पर कोयल गाती,
मन सभी का यह लुभाती।
पेड़ो से फल छूटे है,
मन सभी के लूटे है।
भौरा भी गुनगुनाता है,
अपनी प्यास बुझाता है।
जीवन हुआ हे रंग बिरंगा,
मन भी सभी का हुआ चंगा।
कितना प्यारा कितना सुहावना
यह जो सावन आया है,
मन सभी का भाया है।
मृत्यु फिर अट्हास करेगी
बनकर काल
तुझ पर वार करेगी,
मत सोच तू
बच जाएगा इस बार ,
बचेगा वही
जिसके कर्म होंगे सही।
मृत्यु का दूत
जब अट्हास करेगा
चुन-चुन कर
तेरे अपनों का नाश करेगा।
न तुझे सोचने का वक्त देगा
न विचारने का समय।
बस हर एक पापी का
विनाश करेगा।
जब कर्म होंगे सही
तभी वक्त आएगा
तेरा भी सही।
सुप्रभात बतलाते
तालाबो-झीलों को
अलविदा करते
काली रातों को
जब खिलते कमल
सूरज की किरणों की लालिमा
लगती ग़ुलाबी चुनर पहनी हो
फिजाओं ने।
खिलते कमल लगते
तालाब के नीर ने
लगाई हो जैसे
पैरों में महावार।
भोर का तारा
छूप गया उषा के आँचल
पंछी कलरव ,
माँ की मीठी पुकार
सच अब तो सुबह हो गई
श्रम के पांव चलने लगे
अपने निर्धारित लक्ष्य
और हर दिन की तरह
सूरज देता गया
धरा पर ऊर्जा।
सवेरे की चाह मे,
कहीं देर न हो जाए ।
समय का कहीं,
सवेर ना हो जाए,
वो रात नहीं दिन होगा ।
पल-पल लम्हें गुजारेगे,
अधेरे मे, अधेरी जीवन को ।
रोशनी मे उज्जवल कराएगें,
वो रात नहीं दिन होगा ।
सपनों की याद में,
बेचेनी की घात में ।
रात भी गुजारेगे,
पलके नहीं झपकाएगे ।
सफलता की चाह में,
रातों-रात गुजारेगे ।
वो इसान नहीं,
एक दिन वह सफल निशाचर होगा ।
वो रात नहीं, वो दिन होगा ।
वो पल भी एक पल में ही बीत गया
जाने कहा वो एक पल में ही खो गया।
इंतज़ार था जिस पल का मुझे वर्षो से
वो आया भी तो बस कुछ पल के लिए।
काश की वो पल बस यही रुक जाता
मगर वो रुका भी तो कुछ पल के लिए।
गुजरता हु जब वो जाने पहचाने रहो से तो
खुश तो होता हूँ लकिन कुछ पल के लिए।
भर ना पाया कभी दिल का वो खाली जगह
जहाँ उसे मैं रखता था हर पल के लिए।
जब भी मैंने उसे आवाज लगाया दिल से
वो आयी भी तो बस कुछ पल के लिए।
सीजन भर कई मौसम आते जाते है
पर जिस मौसम की मुझे आस है
वो मौसम आया भी तो कुछ पल के लिए।
जिसने कसमे खायी थी सदा साथ निभाने की
वो निभा पायी भी तो बस कुछ पल के लिए।
मेरे एक एक ख़ुशी की हकदार आज भी वो है
जिसने भले ही दिया हो गम सदा के लिए।।
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