हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Saturday, 20 May 2023

  1. प्यारी गौरैया
  2. अनंत इच्छा
  3. प्रतिक्रिया
  4. क्यो उदास हो
  5. कलुआ
  6. विश्वास के बादल
  7. जिव्हा
  8. आंखें
  9. बदलते आयाम : बदलते परिवेश
  10. बिन पंखों के

Read other posts

फुदक-फुदककर मन,
हर्षित करती चिरैया।
जाने क्यों? आंगन से,
फुर्र हो रही प्यारी गौरैया।

दुनियाभर में पाईं जाती,
भाँति-भाँति की प्रजाति।
चावल दाल शौक से खाती,
पंख फैला मिट्टी में नहाती।
बालमन को भाती चिरैया,
फुदक फुदककर........।

है घटती तादाद की वजह,
खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव।
आदम रिहाइशी गृहों में बदलाव,
गाँवों में भी शहरों सा बिखराव।
होगा आँगन सूना बिन गौरैया,
फुदक फुदककर मन......।

रखे दानापानी आंगन मुंडेर,
आश्रय देने में करें न परहेज़।
मिल हेल्प हाउस स्पैरो बनाएं,
जीवदया आस्थावान कहाएं।
बनें जीवन संवर्धक प्रिय गौरैया,
फुदक फुदककर मन....।

Written By Mahendra Singh Katariya, Posted on 07.05.2023

अनंत इच्छा

23THU08045

Bharatlal Gautam
~ भरत लाल गौतम

आज की पोस्ट: 20 May 2023

जिंदगी जब तक रहेगी,

कुछ ना कुछ कमी रहेगी,

तुम्हारी ही नहीं हमारी भी,

कुछ ना कुछ इच्छा अधूरी रहेगी.... जिंदगी

कोई कर ले चाहे लाख जतन,

कोई जूटा ले चाहे लाख धन,

हमेशा लगता है कम ही कम,

ये कमी आखिर कब पूरी होगी.... जिंदगी

अमीर लोगों को भी सुख नहीं है,

फकीर लोगों को भी सुख नहीं है,

अपने सुख से कोई खुश नहीं है,

न जाने कब ये भूख मिटेगी.... जिंदगी

Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.04.2023

टेम्स नदी के तट पर बैठे गोरे आदमी ने काले व्यक्ति से अति गंभीर स्वर में कहा, ``काला, ग़ुलामी और शोषित होने का प्रतीक है। जबकि गोरा, आज़ादी और शासकवर्ग का पर्याय! इस पर तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है?``

काले ने गोरे को ध्यान से देखा। उसकी संकीर्ण मनोदशा को भाँपते हुए शांत स्वर में काले ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, ``जिस दिन काला बग़ावत कर देगा, उस दिन गोरे की आज़ादी ख़तरे में पड़ जाएगी और काला खुद शासन करना सीख जाएगा।``

``कैसे?`` उत्तर से असंतुष्ट गोरे ने पूछा। उसकी हँसी में छिछोरापन साफ़ झलक रहा था। 

``देखो,`` अपनी उंगली से काले ने एक और इशारा किया, ``वो सामने सफ़ेद रंग का कुत्ता देख रहे हो!``

``हाँ, देख रहा हूँ।`` गोरे व्यक्ति ने उत्सुक होकर कहा।

``उसे गोरा मान लो,`` काले ने बिंदास हँसी हँसते हुए कहा।

``ठीक है,`` अब गोरा असमंजस में था।

``जब तक वह शांत बैठा है, हम उसे बर्दाश्त कर रहे हैं। ज्यों ही वह हम पर भौंकना शुरू करेगा या हमें काटना चाहेगा, हम उसका सर फोड़ देंगे,`` इतना कहकर काले ने खा जाने वाली दृष्टि से गोरे की तरफ़ देखा। इस बीच कुछ देर की ख़ामोशी के बाद काला पुनः बोला, ``फिर दो बातें होंगी?``

``क्या?`` कुछ भयभीत स्वर में गोरा बोला।

``या तो वह मर जायेगा! या फिर भाग जायेगा!`` इतना कहकर काले ने गोरे को घूरा, ``तुम्हें और भी कुछ पूछना है?``

``नहीं,`` गोरे ने डरते हुए कहा और वहाँ से उठकर चल देने में अपनी भलाई समझी।

Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 20.02.2023

क्यो उदास हो

23TUE08113

Abhishek Jain
~ अभिषेक जैन

आज की पोस्ट: 20 May 2023

आज क्यो उदास हो

आज दिन खास है।

आज लम्हा है ये

उसको जी लो तुम

कुछ खुशियां तो है

जो तेरे पास है

वक्त बदलेगा जरुर

ऐसा विश्वास है।

ये जन्मदिन है तेरा

और तू उदास है।

केक बनाया है

तो खा लो तुम

जन्मदिन का उत्सव

मना लो तुम

Written By Abhishek Jain, Posted on 25.04.2023

कलुआ

23THU08086

Ajay Mourya
~ अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

आज की पोस्ट: 20 May 2023

कल कलुआ पर लिखी कविता 
आज छपी थी जिस अखबार में 
दिनभर की थकान मिटाने के लिए 
दो पैक पीने के बाद 
खाने वाले चने बंधे थे
कलुआ के हाथ में उसी अखबार में 
क्षितिज के पार तक 
कोई संबंध नहीं था कलुआ का 
उस कविता से 
कल कलुआ पर नहीं लिखूंगा
फिर कोई कविता
उसके लिए संघर्ष करूंगा. 

Written By Ajay Mourya, Posted on 20.04.2023

हां!

अब अकेला नहीं है,
जब था,तब था !
एक बड़ा जन समूह है उसके साथ।
सकारात्मक विचारधारा का पोषक है वो,
अत: बड़ी संभावना है,
पतझड़ के बाद।।

वह!
जीवन की मुश्किलों,
झंझावातों को झेलते
थका नहीं था,
मात्र ठगा सा महसूस
कर रहा था।
उसे विश्वास था,
तभी वह
प्रतीक्षारत्त था।
आज भी अपने संकल्पों
पर अडिग है,
अनेको अन्याय के बाद।।

यही जन समूह एक दिन,
क्रांति को मूर्त रुप देगी।
भारत को अन्याय मुक्त कर,
न्याय से श्रृंगारित करेगी,
तय काल के बाद।।

और

वह !
एक मानित-सम्मानित
जीवन जी सकेगा......!
मां भारती का भाल उॅ॑चा
कर सकेगा !!
निराशा और अविश्वास
के काले बादल
छंटने के बाद।।

Written By Lalan Singh, Posted on 25.05.2022

जिव्हा

21SAT03681

Ravinder Kumar Sharma
~ रवींद्र कुमार शर्मा

आज की पोस्ट: 20 May 2023

आदमी जब खाता है खट्टा मीठा कड़वा या नमकीन
तो जिव्हा से ही पता चलता है उसका स्वाद
लेकिन कड़वा बोल अगर निकल जाए जिव्हा से
तो हो जाता है बना बनाया खेल बर्बाद

जिव्हा से निकले अगर मीठे बोल
तो दुश्मन भी अपने दोस्त बन जाते हैं
कड़वे बोलों से आग लग जाती है तन बदन में
अपने भी दूर चले जाते हैं

अगर जिव्हा पर नियंत्रण है
तो कई बीमारियों से भी रहते हैं दूर
स्वाद के चक्कर में खाना उल्टा सीधा
दवाई खाने को कर देता हैं मजबूर

जिव्हा में अगर हो शहद सी मिठास 
तो होती है हर जगह बड़ाई
जिव्हा अगर कम बोले बड़ों की हो इज़्ज़त

तो नहीं होती भाईयों में लड़ाई
दुख में यदि सबके साथ रहे
दूसरों का दुख कम कर देती है
सांत्वना के दो बोल जो निकल जाएँ
तो दूसरों में एक नया जोश भर देती है

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 18.12.2021

आंखें

21WED02004

Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 20 May 2023

आंखें तलाश रही है

सुनहरे स्वप्न 

जो दे सकें हमें

और

सबको

कोमल पंखुड़ियों का

एहसास

और

बना रहे

हम सब में

हर दम

हर क्षण

एक अटूट विश्वास

ऐसी आशाएं लिए

ये आंखें

रखती है विश्वास पर।।

 

Written By Manoj Bathre , Posted on 11.05.2021

 

कभी अक्लमंद लोग समझाया करते थे
मुझ नादान को 
फिर एक नया दौर आया
उस पुराने दौर के जाने के बाद
कि
वो ही होशियार लोग मुझे समझने की
या मुझसे समझने की
करने लगे एक असफल कोशिश
क्योंकि
तब मुझमें समावेश हो चुका था
कुछ आड़ी-तिरछी कुछ उल्टी-सीधी दुर्घटनाओं का
एक रहस्य बन चुका था मेरा अस्तित्व
समा चुका था
मुझमें न जाने
कितने मीठे और कडुवे ज़हरों का तीखापन 
अब एक बार फिर दौर बदला है
किस्मत मज़ाक कर रही है मेरे साथ
मेरी आत्मा अचल है
केन्द्र बन चुका हूँ मैं अब दूसरों के लिए
लोग खेल समझकर हंस रहे हैं
अब समझा रहा हूँ मैं उनको
आयाम अब वो नहीं रहे
परिवेश बदल रहे हैं
कब तक ये दौर
और यूँ ही बदलते रहेंगे 
साथ मेरे वक़्त के ये खेले 
और कब तक चलते रहेंगे 
पी रहा हूँ निरंतर गरल
सह रहा हूँ लोगों की वज़्नी आवाज़
लिए दिल में विश्वास और प्यार
जिए जा रहा हूँ
बस 
अब यहीं अपने होंठों को
सीकर विराम ले रहा हूँ।

 

Written By Anand Kishore, Posted on 15.05.2021

बिन पंखों के सुबह सवेरे मैं उड़ने लग जाऊं
मन करता है बच्चा बनकर मैं पढ़ने लग जाऊं

छुप जाऊं मां के आंचल में अपनी आंखें मींचे
मां पुचकारे मुझे दुलारे मैं डरने लग जाऊं

मन के आंसू माथे की ड्योरी और पलकें कुछ भारी
मां बाबू के दुखड़े सारे मैं हरने लग जाऊं

दुआ मिली है अन गिन तोहफ़े और तक़दीर सलामत
कोई ग़ैबी शय थामे जब मैं गिरने लग जाऊं

उछलूं कूदूं शोर मचाऊं बिन बात हंसू मैं गाऊं
मन करता है बच्चा बनकर मैं उड़ने लग जाऊं

Written By Shahab Uddin, Posted on 20.05.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

×

केवल सब्सक्राइबर सदस्यों के लिए


CLOSE

यदि आप सब्सक्राइबर हैं तो ईमेल टाइप कर रचनाएँ पढ़ें। सब्सक्राइब करना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।