कभी नहीं ये हारी पृथ्वी।
ममता सागर वारी पृथ्वी।
कोमल हृदय प्रेम निर्मल,
माता सबकी प्यारी पृथ्वी।।
हर दोषों को ये माफ करे।
गौरव शाली सारी पृथ्वी।।
माता तो माता होती बस,
है कितनी बलिहारी पृथ्वी।।
मानव बस उपदेश है देता।
जबकी इनसे भारी पृथ्वी।।
``नीर`` धरा को दोष न देना।
हम सबको यह तारी पृथ्वी।।
इतना परेशान क्यों कर रहे हो `कोरोना`,
हमें चैन से जीने दो ना...
क्यों छीन रहे हो `आजादी` हमारी,
फिर से इस खुले आसमां में उड़ने दो ना...
क्यों जकड़ रहे हो हमें जंजीरों में,
हम तो नाजुक सी कलियाँ हैं,
तोड़ इन जंजीरों को हमें फिर से फूलों की तरह खिलने दो ना...!!
क्यों छीनते हो महक हमारी, तरस जायेंगे भँवरे सारे
मत रखों यूं पिंजरे में, फिर से हमें महकने दो ना..
यूं बूंद ना बरसाओ हमारी पंखों पर,
मत रोको हमारी `उड़ान` को
फिर से पंक्षी बन चहकने दो ना,
इस खुले आसमां में उड़ने दो ना...!!
मौत बनकर आए तुम फ्रोम चाईना,
छोटा सा तो कद हैं तुम्हारा
मगर सबको दिखाया तुमने `भविष्य का आईना`
मर जायेंगे हम `वायु` के बिना,
दो-चार `पेड़` और लगाने दो ना...
डर लगता हैं अब बाहर निकलने से,
बम के गिरने से, कोरोना के `दहशत` से...
क्यों आए तुम फ्रोम चाईना...??
बस! अब यहीं रूक जाओ ना, कहीं और मत जाना...
जहाँ से आए हो ना, वहीं जाके मर जाओ ना,
वहीं जाके मर जाओ ना...!!
समय की रफ्तार के संग,
हमारा गॉंव बदल गया।
पहले सा कुछ भी नहीं,
लगता जिससे यह नया।
पाश्चात्य संस्कृति की दौड़ में।
सबसे आगे बढ़ने की होड़ में।
कमाया कितना कुछ आज में।
बस व्यस्त सभी इसी काज में।
दिखती न अपनों बीच वह हया।
घर मकानों में गहरा बदलाव।
भाइयों में भी हुआ अलगाव।
निर्जन होती चौपालें बदहाल।
विकास का उन्माद नौनिहाल।
मिलें जो कहीं भाव जीव दया।
कटे पेड़ तो श्वासों पर पहरा लगा।
पगडंडियों पर सड़क जाल बिछा।
गॉंव गुवाड़ में अब वे मैदान कहॉं।
बड़ी-बड़ी इमारतें हैं खड़ी जहॉं।
रहन-सहन पहनावा बदल गया।
मानवीय संवेदनाओं को
अपनी अतृप्त लेखनी से
व्यक्त कर समेटता हूं
ढेर सारी शाबाशी
खुश होता हूं
पाकर प्रशस्ति-पत्र
गड़गड़ाहट सुन तालियों की
प्रफुल्लित होता हूं
लेकिन
कोई नहीं सोचता
सोता था
रचना पात्र जिस जगह पर
उसी जगह पर क्यों सोता है.
रात घर के आंगन में
खाट पर लेट के,
आसमां में टहलता
उदास चांद देखा।
वो भी मेरी तरह
अपनों से
बेज़ा परेशा देखा।
हां हां.....
उसके आस पास
मैंने सैकड़ों मतलबी
टिमटिमाते,
तारों का हुजूम देखा।
मैं धरती पर
दो पैरों वाले
धोखेबाजों से,
जितना तंग
उससे लाख
गुना ज्यादा
मैंने उस चांदनी के
चांद को तंग देखा।
धरती से आसामा के
बीच कोई किसी का
होता नहीं है,
``बाग़ी`` ने तन्हा रात में
बेशर्म अंधेरे को
चांदनी के नाज़ुक
कान में
ये कठोर सच
धीरे से फुसफुसाते देखा।।
चमकेंगी गलियाँ
अब चमकेगी राहें,
न भरनी पड़ेंगी
मायूसी की आहें,
लपक करके नेता
ये वोटर से बोले,
मुझे देखकर यूँ न
फेरो निगाहें।
दीवारों,गली,खम्भे,राहों में नेता,
चहुंओर सबकी निगाहों में नेता,
चुनावी समय में सदा दीखते हैं,
वोटर के पैरों और बाहों में नेता।
नहीं बहाना कभी पसीना नेताओं की आदत है,
यार दोहरा जीवन जीना नेताओं की आदत है,
बिना सुन्न घावों को सीना नेताओं की आदत है,
गाली दे गंगाजल पीना नेताओं की आदत है।
सजा चुनावी दंगल
दीखें द्वारे द्वारे नेताजी,
पकड़ पकड़कर हर वोटर के
पाँव पखारें नेताजी,
ये कर दूंगा,वो कर दूंगा,
सब कर दूंगा कहते हैं,
बना के उल्लू जनता को खुद
दाँत चियारें नेताजी।
भ्रष्टाचार की गोद में बैठा स्वार्थ के अण्डे सेता है।
वोट के बदले जो जनता को आश्वासन बस देता है।
सारी बाजी हार के भी जो रहता सदा विजेता है।
दुनिया का अद्भुत प्राणी वह कहलाता जो नेता है।
फिर से सज रहे हैं चुनावी
अखाड़े।
नेता सोचें जनता को कैसे
लताड़े,
महंगाई, गरीबी, राम नाम की लूट है,
लोकतंत्र में इनको भुनाने की छूट है।
सबके बस की बात नहीं जो इश्क नजर पढ़ ले
पढ़े वही जिसके दिल में किसी और का दिल धड़के।
प्यार में कभी न करना बेइमानी आखों में न देना पानी
कीमत भले चुकानी पड़ जाये शूली पर चढ़ के।
जिस्म की चाहत रखने वाले सच्चा प्यार नहीं करते
सच्ची चाहत रखने वाले निभाते हैं वादा करके।
इश्क में पागलपन तक जाना कोई अच्छी बात नहीं
करिये इश्क मगर कदमों को रखिये जरा संभल के।
अप्सरा सा रूप है तेरा, दीद की चाहत हर कोई रखे
हर कोई तुझको ही देखे जब तू निकले संवर के।
प्यार के ढोंगी बैठे हैं हर गली और चौराहों पर
बच के रहना इनसे तुम बातें करते हैं बढ़ चढ़ के।
काले दिल वाले भी देखो सफेद पोशाक में बैठे हैं
झांसे में न आना इनके कितना भी रहें बन ठन के।
माँ ने सब कह दिया
मैने सब सुन लिया
ये है माँ की ये ममता
मैने धारण कर लिया।
झुकने दूंगा न सर कभी
आज मैने ये प्रण कर लिया
लाकर रख दूंगा
अमृत भरी तेरी चरणों में
एक नई और प्यारी
सबसे सुंदर और अनोखी कंगना।
माँ ने सब कह दिया
मैने सब सुन लिया
ये है माँ की ये ममता
मैने धारण कर लिया।
खिल जायेगा एक दिन
इस धरा पर तेरा प्यारा ललना
तेरी आंखों से आँसू न निकले कभी
ये है मेरा अपना प्यारा सपना।
माँ ने सब कह दिया
मैने सब सुन लिया
ये है माँ की ये ममता
मैने धारण कर लिया।
पाला है जिस माँ ने
झुलाकर और खेलाकर
अपने गोद में अपना प्यारा ललना
नमन है उस प्यारी माँ को
बारंबार सर झुकाकर अपना।
माँ ने सब कह दिया
मैने सब सुन लिया
ये है माँ की ये ममता
मैने धारण कर लिया।
भूलकर दुखाया न करो दिल किसी का।
अपनें शब्दों से।
अपनी बातों से।
अपनें व्यवहार से।
जीवन जीयो न तुम
प्यार से।
किसी को दुःखी न करना तुम।
यह करने से पहले डरना तुम।
वरना पचताना पड़ जाएगा।
खुद पर बीतेगी तो
घबराना पड़ जाएगा।
Written By Abhishek Jain, Posted on 18.04.2023पेड़ों से ही
चलता है
हमारा जीवन
इनके बिन
अधूरा है
हमारा जीवन
करों कोई
ऐसा काम
जिससे बचें
पेड़ों का जीवन
और
मिलें हमें धरा पर
सुखद जीवन।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 10.05.2021कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।