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Thursday, 04 May 2023

  1. वो
  2. मुझे अब ये दीवारें खाली मकान भरनी है 
  3. रही न अब वो सभ्यता
  4. अक्षय तृतीया शुभ दिन
  5. तब समझो प्रेम
  6. जब भी याद आए हमारी
  7. उनकी तलाश है
  8. हर शख्स अनजबी था
  9. हिचकियाँ रुकती ही नही
  10. उसकी यादें

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वो

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Manoj Kumar
~ डॉ. मनोज कुमार "मन"

आज की पोस्ट: 04 May 2023

सोचता हूँ घर उसके हो आऊँ।
जन्मदिन की बधाई दे आऊँ।।

इल्म हो उसको मेरे होने का।
क्यूँ न उसके पास हो आऊँ।।

वो  आवाज  दे  जब  मुझको।
मैं उसके अल्फ़ाज़ हो जाऊँ।।

वो बंद  करे  जब-जब आंखें अपनी।
उसकी  पलकों  पे  मैं  ठहर  जाऊँ।।

वो सुने जब-जब अपनी धड़कनों को।
उसकी   सांस-सांस   मैं   हो  जाऊँ।।

वो  करे  जब-जब  मोहब्बत  की बातें।
उसकी बातों में तब-तब मैं खो जाऊँ।।

Written By Manoj Kumar, Posted on 01.02.2022

एक ख़ामोशी और बंद आँखों से  सपने देखने है 
तमाम उम्र भर लड़ते रहे ज़िंदा रहने के लिए 
खुद से, किस्मत से, नसीब से, 
और उस शख़्स से अपने हबीब से 
लाओ आईना मुझे अपनी बदहाली देखनी है 

लड़ता रहूंगा लड़ाने वालों से 
बिखरता रहूंगा और मिल जाऊंगा 
हवा में किसी रोज़ महक बनकर 
फिर मिलना है मुझे 
उन पुराने दिनों से 
जो दुःख भर- भर का लाए थे ज़िन्दगी में 
लाओ कंकड़- पत्थर हाथों में अपने 
मुझे अब ये दीवारें खाली मकान भरनी है 

मेहनत के बलबूते मंज़िल मिलती है 
रातों को भी जागकर परिश्रम की कड़ी सिलती है 
प्रतिभा  को तराशने वालों का हुनर भी देखना 
पतझड़ में भी ज़िन्दगी खिलती है 
लहरों से अब डरना कैसा तुम्हारा 
तूफानों से लड़कर ही 
राह किनारे की देखनी है 

मिलते नहीं है अब ख़रीदार इस बाजार में 
सब अपना मुनाफ़ा देखते हैं 
चश्में भी उत्तर जाते हैं लोगों के देखने के लिए 
जब किसी की खुशियों में इज़ाफ़ा देखते हैं 
किसे बताओगे तुम घाटा अपनी ज़िन्दगी का 
नादान कलम ``खेम`` भी रहा नहीं 
अंदर से टूट चूका होगा वो भी तुमसा 
पर फिर भी तुम्हें उसी हाट में 
अपनी खुशियाँ बेचनी है 

Written By Khem Chand, Posted on 03.04.2022

रही न अब वो सभ्यता, रहा न वो व्यवहार।
जाहिल होते लोग हैं, जाहिल सब संसार।।

रही न अब वो सभ्यता, रहा न अब वो मान।
चकाचौंध में उलझकर, बिखर गया इंसान।।

रही न अब वो सभ्यता, रहे न वो इंसान।
पढ़ें लिखे थे कम मगर, रखते थे सब ज्ञान।।

रही न अब वो सभ्यता, रहे न वैसे लोग।
राह दिखाते थे तथा, करते थे सहयोग।।

रही न अब वो सभ्यता, रही न वैसी सोच।
एक दूसरों को रहे, गिद्धों जैसे नोंच।।

रही न अब वो सभ्यता, रहे न वो इंसान।
बड़े बुजुर्गों का करें, उचित मान सम्मान।।

रही न अब वो सभ्यता, नहीं लोक अरु लाज।
कपड़े रहते कर रहे, अंग प्रदर्शन आज।।

रही न अब वो सभ्यता, वो बरगद से लोग।
जिनकी अपनी छाॅंव में, पाते थे सुख भोग।।

रही न अब वो सभ्यता, रहा न वो ईमान।
बात बिगड़ने पर स्वयं, दे देते थे जान।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 01.05.2022

अपनें नाम के अनुरूप अक्षय तृतीया शुभ दिन,
सूर्य-चंद्रमा उच्च राशि में रहतें अपनी इस दिन।
विवाह गृहप्रवेश व व्यापार आरंभ करें इस दिन,
है अबूझ मुहूर्त और पुण्य फल वाला यहीं दिन।।

महत्वपूर्ण है इसदिन का किया दान और स्नान,
प्रभु विष्णु लक्ष्मी का पूजन होता विधि विधान।
हरवर्ष बैसाख माह शुक्ल पक्ष तृतीया में आता,
इसी दिन अवतार लिया परशुराम जी भगवान।।

है भगवन विष्णु के एक छठे आप ऐसे अवतार,
अष्टजीवित महापुरुषों में परशुरामजी भगवान।
अक्षय तृतीया पे करतें जो किसी चीज का दान,
चार धाम तीर्थ स्थल जैसा मिलता फल समान।।

शास्त्रों ने भी इसदिन को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना,
मंगलमय होता वह कार्य जिसनें ‌इसदिन ठाना।
24 रूपों में लिया धरा पर देवताओं ने अवतार, 
इसदिन पवित्र नदियों में स्नान को महत्व माना।।

अनजानों में पापों का दान से बोझ हल्का होता,
इसीदिन मिला आशीष बेहद फलदायक होता।
चार-धाम उल्लेखनीय बद्रीनारायण पट खुलता,
वृंदावन में बिहारी जी के दर्शन सभी को ‌होता।।

Written By Ganpat Lal, Posted on 04.05.2022

उत्कृष्ट चिरौरी को
मैं और वो दोनों ही
प्रेम का आदर्श मान
भ्रम में जीने लगे.
तब से प्रेम
मृग मरीचिका बन गई.

प्रेमी हो,ओहदेदार हो,
शासक हो,मालिक हो,
मित्र हो या चरित्र हो,
स्वार्थ की बू आने लगी.
समझो अब प्रेम
मृग मरीचिका बन गई.

मन की कलुषता,
एक दूसरे से क्षणिक,
आत्महित का छल,
प्रभाव में लेने लगे.
निस्संदेह अब प्रेम
मृग मरीचिका बन गई.

प्रेमी रंग में रंगे
फरेबी बुनियाद,
नहीं होती स्थिर,
जब संदेह लगने लगे.
तब समझो प्रेम
मृग मरीचिका बन गई.

Written By Lalan Singh, Posted on 24.05.2022

जिंदगी में गर आए-

गम ए उल्फत फिर भी,

गमों का पहाड़ खड़ा मत करना।

हम बिछड़ जाए आपसे फिर भी,

मेरी फिक्र कभी ना करना।

मेरी याद हमेशा-

जहन में आए जब भी,

सदा ही आप संजोए रखना।

इश्क ए मोहब्बत, 

हुस्न ए सादगी-

जग को सदा दिखाए जाना।

जब भी याद आए हमारी,

खुद को मायूस कभी ना समझना।

धीरे-धीरे तुम तो सनम,

वक्त यूं ही बिताए जाना।

जब भी याद आए हमारी,

मायूसी की बादल हटाए जाना।

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 03.06.2022

अंधियारी रात उजाले की आश है
सितमगर मिले कहीं उनकी तलाश है।

माना वक्त बुरा है अच्छा भी तो होगा
सत्य के पुजारी हमदर्द सच्चा भी तो होगा
महक है चारो ओर शब्दों में मिठास है।।

आज चिंता -फिक्र में गुजरते दिन -रात है
अपने घमण्ड में चूर समझते न जज्बात है
बदलते मौसम के साथ ढ़लगे इतना विश्वास है।।

बुरे हैं हम बुराई झलकने तो दो
बीज दबा कर छोडा़ पनपने तो दो
थोड़ा समझने दो लम्बा हिसाब है।।।


राधये,मैं क्या लोग कहने लगे है
और कुछ नहीं उनकी यादों में रहने लगे है
फूल महकने लगे है कुछ तो उनमें खास है।।।

Written By Vijender Singh Satwal, Posted on 13.08.2022

बाद जाने के तेरे, 
और बता क्या करता। 
अश्क अपने नबहाता, 
तो बता क्या करता।
हर शख्स अनजबी था, 
मेरा तेरे  इस शहर में।
तस्वीर तेरी ये न दिखाता
तो बता क्या करता। 
कौन है ऐसा जो रखता,
जख्म पर मेरे मरहम।
चौखट पे तेरी सर रखने, 
के सिवा क्या करता।
बेवफाई का इल्जाम दे 
तुम्हें दम नहीं, नहीं।
तकदीर तो है तकदीर
तू भी भला क्या करता। 
गमे जुदाई दिल की न देखी, 
गई हमसे मुश्ताक। 
आजाद रूह को अपनी न, 
करता तो बता क्या करता।

Written By Mushtaque Ahmad Shah, Posted on 18.01.2023

इतना न करो याद,हिचकियाँ रुकती ही नही 

हों जाएं ना हम पागल,तेरी मोहब्बत में कहीं।

दिल के कोरे कागज़ पर,तेरा ही लिखा नाम

तुम्ही मेरी सुहानी सुबह,तुम्ही हो मीठी शाम।

है चाहत कि-तेरी  ही  पनाहों  में दम निकले

आए ना पल वो कभी कि बचके हम निकले।

पाके तुम्हे पायी हमने खुशियां जमाने भर की

हो जाएं आंखें अंधी,रखे चाह जो ग़ैर नज़र की।

मांगा हमने मत्स्य से,हर मीणजा में तुम्हें प्रिय,

बन दिल की धड़कन करना धक-धक मेरे हिय।

रहक़र दिल में एक-दूजे क़े जीवन यह जिएंगे

होके जुदा ना हम कभी ज़हर-ए-जुदाई पिएंगे।

जीना नही होकर एक पल भी अब कभी दूर

रहने शोभित मांग में  बनके ``गोविमी`` ग़ुरूर।

Written By Govind Sarawat Meena, Posted on 19.01.2023

उसकी यादें

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Dumar Kumar Singh
~ डुमर कुमार सिंह

आज की पोस्ट: 04 May 2023

उसकी यादों का बसेरा
ऐसे जैसे जीवन के लिए सांसो का
क्या होती है दिन और राते
कैसे कैसे गुजरती है सर्दी और बरसाते
जब महसूस होता है उसके साथ होने का
अपने आप खिल उठता है होंठो में मुस्कुराहटें
पता नहीं ये यादों का बसेरा
क्या हक़ रखता है उसके जीवन पर
कभी कभी तो उसे भी महसूस होता होगा
कैसे मै उसे मनाता था उसके रूठ जाने पर
क्या उसे भी आती होगी हरपल मेरी यादें
उसकी वो शरारते और वो प्यार की बातें
खामोश तो उसे भी कर देता होगा वो मेरा आदतें
भुला कैसे पाऊँगी वो रात रात भर जागकर
तारें गिनना और वो प्यार की बातें
अब तो किनारों की तरह हो गए है अपने प्यार के रिश्ते
जो नीर जैसी बहती है उसकी यादें और वो बातें।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 04.05.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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