ये कैसी घड़ी आई है,
सुखदाई है या दुखदाई है,
आज कन्या की विदाई है,
मां ने जिसे जन्म दिया पिता ने जिसे पाला,
भाई ने जिसे प्यार दिया वो कर रही पराया,
अपनी थी आज तक जो अब वो पराई है,
अभी-अभी खुशी थी सबके होठों पर हंसी थी,
जाने कहां से आया दुख गुम हो गया सारा सुख,
सुख को गम में बदल दे ये कैसी जुदाई है,
मां रोवे बाहर-बाहर बाप रोवे भीतर-भीतर,
भाई रोवे सिर को धर बहन रोवे अंदर-अंदर,
जिसे देख सब की आंख भर आई है,
वधू के घर रुलाई है वर के घर बधाई है,
कहीं पराई अपनी तो कहीं अपनी पराई है,
किस बाग की कली किस बाग को महकाई है.
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.03.2023एक दिन गुजरा, दो दिन गुजरा,
गुजरा गया जवानी का दिन।
क्या खोया और क्या पाया,
गुजर गया ये सोचने वाला दिन।
अब जिन्दगी गुजर रही है,
गोलियों से एक एक दिन,
डाक्टर साहब बोले हैं,
दो खाने से पहले, दो खाने के बाद,
दो सोने से पहले लिया तो चलती रहेगी सांस।
जवानी में बिन खाए, जो गुजार देते थे,
दो दिन और एक रात।
आज के समय में तरस गए,
वो खाने को मिठाई और मसालेदार।
जो दहाड़ते थे दिन में, कई कई बार,
आज वो ऊंची आवाज, में बोलने से कतराते हैं हज़ार बार,
जीवन का मंत्र जब पता चला,
तब तक परिंदा देह त्याग कर उड़ चला।
प्यार से रहो,प्यार से खाओ,
चार दिन की जिंदगी में,
क्यों लड़ते हो तुम हजार बार।।
Written By Siddharth Yadav, Posted on 26.03.2023प्रेम भाव सद्भावना, हो बंधन सम प्रीत
नियमित बनकर सारथी, सदा सिखाये नीत।।
परिणय प्रेम उदारता, दया दीप सम दान।
कुशल क्षेम है जिंदगी, आन बान अरु शान।।
बंधन रिश्तों के बंधे, तरह-तरह के मीत।
सरल भावना से बनें, बंधन शोभित गीत।।
सारे रिश्ते हैं बंधे, बंधन ही अधिकार।
बंधन में ही एकता, प्रेम भरा परिवार।।
बंधन सबको जोड़ता, बंधन बड़ा अजीब।
बंधन के आगे विजय, बंधन रखें करीब।।
सबको बंधन जोड़ता, बंधन से सरकार।
बंधन से छूटे अगर, खोये जन दरबार।।
ईश्वर खुद ही लेखता, परिणय बंधन जोड़।
देकर सारी सिध्दियां, करनी कथनी मोड़।।
शुभदायक हो कुंडली, बंधन गुण का लेख।
तिथि वार का शुभ मिलन, करते पत्रा देख।।
बंधन के अनुसार ही, कदम चले गर रोज।
बंधन के उल्लेख ही, सफल रखेंगे खोज।।
भगवन बंधन में बंधे, नियम यही आधार।
कीरत फैली चहुं दिशा, हो जीवन साकार।।
बंधन प्रण सम सूत्र है, बंधन जीवन सार।
देवतुल्य यह आत्मा, बंधन बढ़ता प्यार।।
बंधन दिल को जोड़ता, करता मरहम काम।
बंधन को ऐसे भला, हम कर डाले आम।।
प्रेम सदा होता मधुर, जब हो बंधन मीत।
मीठेपन एहसास के, स्वयं सुनाते गीत।।
बंधन की कीरत बड़ी, परिभाषा उल्लेख।
करनी के सम बांधती, नीर जानकर देख।।
एहसासों से जीतिए, बंधन बड़े उदार।
आकर थोड़ा सामने, लेना प्रेम उतार।।
बंधन रक्षक भी बने, बंधन बने निशान।
बंधन प्रेम उदारता, बंधन बंधे विधान।।
बंधन से होते सभी, सुख दुःख सारी रीत।
बंधन ही मझधार है, सुरभित स्वर संगीत।।
सुमिरन मन से कीजिए, बंधन रखिए मान।
बंधन की नियमावली, करता नित अरमान।।
बंधन के अनुसार ही, उचित लगे सब काज।
चाहे उनका राज हो, चाहें अपना राज।।।
छोड़ो माया मोह को, भजन करो श्री राम।
बंधन प्रेम उदारता, अभिनंदन हित काम।।
बंधन के अनुसार ही, मनन करें गर लोग।
तू तू मैं की भावना, स्वयं खात्मा रोग।।
प्रेम जगाता देह में, कर चिंतन को दूर।
बंधन ही आधार है, बंधन बिना अधूर।।
बंधन से ही यश मिले, बंधन कीरति गान।
बंधन के अनुसार ही, मिले मान सम्मान।।
सारे गुण को जोड़ता, सदा दिलाए जीत।
बंधन रूपी सार का, गौरवशाली नीत।।
जीत हार के है बने, अजब गजब के खेल।
बंधन के अनुसार ही, सदा कराते मेल।।
नफ़रत पाले देह पर, सारे बंधन तोड़।
मीठेपन एहसास का, कहां मिलेगा मोड़।।
ये है कोरोना का प्रहार
झकझोर कर रख दिया संसार
त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा
देखो आज यहाँ सब बलवान।
लाशों की ढ़ेर जब लगने लगी
सरकार की बेचैनी बढ़ने लगी
कोरोना की नई-नई वैक्सीन भी
सरकार ने ईजाद करने लगी।
ये है कोरोना का प्रहार
झकझोर कर रख दिया संसार
त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा
देखो आज यहाँ सब बलवान।
कोरोना का कहर कुछ ऐसा बरपा
हर घर लग रहा हो जैसे मातम पसरा
घरों में कैद हुए सब ऐसे
पिंजड़ों में बंद पशु-पक्षी हो जैसे।
ये है कोरोना का प्रहार
झकझोर कर रख दिया संसार
त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा
देखो आज यहाँ सब बलवान।
खाने के लाले पड़े जब
मौत को याद कर रोने लगे सब
आँखों के सामने वीरान होता
देखा हूं वो सब मंजर
जैसे चुपके से आकर घोप दिया
हो किसी ने खंजर।
ये है कोरोना का प्रहार
झकझोर कर रख दिया संसार
त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा
देखो आज यहाँ सब बलवान।
जब घर से निकलना मुश्किल हुआ
काम धंधा को चलाना भी मुश्किल हुआ
बेरोजगारी ने ढाहा कुछ ऐसा आलम
घर में कैद हो गया यह बालम।
ये है कोरोना का प्रहार
झकझोर कर रख दिया संसार
त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा
देखो आज यहाँ सब बलवान।
बीमारी कभी पूछकर नहीं आती।।
नहीं लेती है वो तुमसे इजाजत।
बस धीरे धीरे आ जाती है।
कमजोर बना जाती है।
कर देती है अकेला सबको।
काट देती है दुनिया से।
छीन लेती चैन सुकून को।
शायद यहीं बद्दुआ है
किसी की।
जो तुमको बीमारी के
रूप में मिली है।
किसी ने दुःखी होकर।
दिल से कहा होगा।
उसी का असर
हैं ये रोग
ये बीमारी।
जिसने तुमको
बना दिया है
लाचार।
इतना
छीन ली
तुमसे तुम्हारी ताकत को।
जिस पर तुम्हें घमंड था बहुत।
तोड़ दिया है
शरीर को।
उसी की करनी है
जो तुम भर रहे हो।
आज तुम
उसी के खौफ से डर रहें हों।
देखता हूँ,
इन
नन्हें बच्चों को,
जिन्हें
नहीं पता होता,
न कोई कपट, न कोई मक्कारी
न कोई बदला, न कोई होशियारी
वो मासूमियत भरी,
कोमल कोमल हाथों से,
निभाते हैं साथ दोस्तों का।
जिन्हें
नहीं पता होता,
न कोई उड़ान,न कोई बंदिश
न कोई भार, न कोई ख्वाहिश
वो उल्फ़त भरे,
अपने चंचल मनों से,
लेतें है आनंद जिंदगी का।
और वही जिंदगी
जो है,
शहर की चमचमाती
सड़क की भाँति,
जिस पर
तेजी से गुज़रता दिन।
जहाँ
किसी को मिलता नहीं,
न कोई सुकून,
न कोई आराम,
सिर्फ तनाव ही तनाव।
जहाँ,
भरा जाता है अपनों में ही,
अपनों के प्रति,
धूर्त,छल
द्वेष और बेईमानी
जहाँ,
ऊंची उड़ान उड़ाकर,
उन्मुक्त गगन में छोड़कर
फिर करता है,
मानव को मानव से अलग।
अब
सोचता हूँ,
कितना अच्छा था वो बचपन,
जहाँ थे सब साथ
सारे दोस्त और सारी खुशियां।
अगर
बदलाव देता है,
इतना कष्ट और आंसू,
करता है हमें अपनों से दूर,
तो,
मैं प्रकृति से कहूंगा,
मुझे नहीं चाहिये,
ये बदलाव,
मुझे मेरा बचपन हमेशा चाहिये।
इंग्लिश से जुड़ी कहानी,
सुनाता हूं मैं अपनी जुबानी,
सरकारी स्कूल का टीचर हूं,
बच्चों के प्रति समर्पित हूं,
अच्छे बुरे का रखता ध्यान,
देता उनको हरपल ज्ञान,
खेल खेल में पढ़ते बच्चे,
होते दिल के एकदम सच्चे,
पढ़ना - पढ़ाना मेरा काम,
सम्मान है इन सब का ईनाम,
बच्चों का सदा करता गुणगान,
शायद इसीलिए इंग्लिश की मुझे मिली कमान,
लगा पढ़ाने, बड़े जतन से,
समय बिता किया एहसास दिल से,
बच्चे इसमें नहीं लेते थे रुचि,
मैने सुधार हेतु बनाई सूची,
मगर नतीजा निकला फिसड्डी,
सहसा जुड़ा lfw से, लगा बड्डी बड्डी,
सबसे पहले मैंने अंबुज मैम से सीखी टेक्निक,
लगा बड़ी ही रोचक एवं नीक,
मिली सीख से ऊर्जा का हुआ संचार,
मेरे अंदर आया एक विचार,
मिले टेक्निक को दिया नया रूप,
बच्चों को परोसा जैसे दिया हो सूप,
पहली क्लास में ही हुआ चमत्कार,
नीरस बच्चों का उत्साह हुआ चार,
जो कल तक रटकर भूल जा रहे थे,
आज टेक्निक समझ आसानी से पढ़ रहे थे,
अल्फाबेट से हुई शुरुआत,
Vowel ने बढ़ाई बात,
मैंने पांच के पंच का दिया नाम,
VCC एवं VCV ने वर्ड का किया काम तमाम,
अब बच्चे इंग्लिश क्लास में न रहते मौन,
गाते lfw ऑन इंग्लिश टेंशन गॉन।
इस कार्यक्रम के लिए निहार शांति पाठशाला सह एससीईआरटी का तहे दिल से करता आभार,
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मड़वन से मैं विवेक कुमार।
खामोश सिसकियां
सुन लेता हूं पर
कहता नहीं।
भरोसा नहीं है कि
तुम अपना समझते होगे।
यकीन मानो
जिन दिन यकीन हो जाएगा,
कि तुम्हें यकीन है मुझ पर
उस दिन
पुरानी सिसकियों से छुड़ा लूंगा
नई सिसकियों से बचा लूंगा।
तब तक
जो कह रही हैं आंखें
वह सुनने की कोशिश करो
इस तरह सिसकियों से बची रहोगी।
एक अकेली वो खड़ी थी, लिये रूप विकराल सी
दुश्मन भी भयभीत हुआ, वो बेटी थी महाकाल की
कमर बांधे शिशु अपना,घोड़े पर सवार थी
एक हाथ में ढाल दूसरे, चमकती तलवार थी
प्यास बुझाने खड़क की उसने, धरती फिर यूँ लाल की
गाजर मूली ज्यों काट डाली, अग्रिम पंक्ति काल की
त्राहि त्राहि मचने लगी, देख आँखे उसकी लाल सी
चुंधियायी आंखे दुश्मन की, देख चमक उसके भाल की
सन सत्तावन के अंधकार में,वो ज्योति बेमिसाल थी
सिंहनी सी विचर रही थी,दुश्मन का वो काल थी
वीरांगना वो झाँसी की,भारत की वो शान थी
रानी लक्ष्मी बाई थी वो,वीरता की पहचान थी
एक अकेली वो खड़ी थी, लिये रूप विकराल सी
दुश्मन भी भयभीत हुआ, वो बेटी थी महाकाल की
आज़ भीलवाड़ा जाते समय गंगापुर_गणेशपुरा के बीच एक राहगीर मिल गए, मैने दूर से देखा वो कई लोगो से लिफ्ट मांग रहे थे, कोई गाड़ी रोक ही नही रहा था, मैंने गाड़ी स्लॉव की उनके हाथ में एक कपड़े की थैली जिसमें कुछ था शायद #रतनपूरा तक कुछ नहीं बोले फिर सहसा बोल उठे कटे तक जा रिया मैने कुछ सोचा जाना भीलवाड़ा था पर ऐसे बोला #गुरला तक फिर वो बोले भीलवाड़ा कितना दूर है मेने का 15/20 किलोमीटर फिर मैने पूछा कहा जाओगे उन्होंने बोला बिजोलिया फिर अपनी दासता सुनाई, किस तरह उनके गांव का कोई व्यक्ति उन्हें झांसे में डाल कर ट्रक ड्राइवर था अपने साथ मोरवी_अहमदाबाद ले गया और रास्ते में शराब के नसे में मोरवी के पास झगड़ा कर उतार दिया, पूछने पर बताया उसको बहला कर लाने वाला कोई रावत समुदाय से था, मेने उनका नाम पूछा तो बताया घासी_राम_भील है बोला ना किराया है और ना ही खाना खाया 4 दिन से फिर मेने बोला आप अपने परिवार के किसी व्यक्ति के नंबर दीजिए में फोन लगाकर आपकी बात करवा देता हूं। तो बोले मेरी डायरी उस ट्रक ट्राइवर ने लेली उसके पास कपड़े की थैली में अपने फटे एक कपड़े की जोड़ी के अलावा कुछ नही था,
उनके चेहरे की मासूमियत बता रही थी वह जो कह रहा है, सच है मैंने भीलवाड़ा पहुंचते ही नास्ते की एक दुकान पर कुम्भा सरिकल के तरह रास्ता घूमता वही मेने दुकानदार से एक ही दोने में तीन कचोरी कड़ी चटनी व रायते के साथ ली और इन्हे दे दी, नाश्ता भी मेरे बहुत आग्रह पर किया। मैं कचोरी वाले का Payment करने गया तब तक वह अपनी कपड़ो थैली लेकर जाने लगा।
मेने उन्हें आवाज दी और #200_रूपए दिए और कहा यह बिजोलिया जाने के लिए टिकट ले लेना।
उन्होंने अपनी मासूम नजरों से मेरी तरफ़ देखा और अपने कपड़े की थैली को कंधो पर रख दुआए देता हुआ चले गए।
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।