हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Friday, 29 September 2023

  1. विद्यार्थी जीवन
  2. जिम्मेदारियां और सपनों की दुनिया
  3. बेटी कुदरत का वरदान
  4. तकदीर और मेहनत
  5. कितना अकेला होगा वो मेरे होते हुए भी
  6. अश्क बहाने का शुक्रिया

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विद्यार्थी जीवन होता नही आसान
हर दिन होता एक नया इम्तिहान।

जीवन का होता यह स्वर्णिम काल
पढ़-लिखकर उन्नति करता इंसान।

माता-पिता-गुरु से मिलता सदा ज्ञान
दर्जा इनका होता ईश्वर से भी महान।

नियम- संयम  का  रखता जो ध्यान
मंजिल उसी की हो जाती है गुलाम।

लक्ष्य साध कर जो करता संधान
जीवन पथ पर बढ़ता वह इंसान।

सीखने में सदा लगाता जो ध्यान 
ज्ञान के मोती पाता वही इंसान।

हर पल लुटाता जो ज्ञान का भंडार 
यश-कीर्ति पाकर बनता वो महान।

Written By Sunil Kumar, Posted on 21.07.2023

एक दिन सितारों के शहर में
मेरा भी एक छोटा सा आशियाना होगा
सुना है खूब मैंने सींचता जो बीज मेहनत के
हो जाता आभामय जीवन उनका।

सजाना सपना भी हो जाता
मुश्किल अंकिचन में
दब जाता, खो सा जाता
जिम्मेदारियों के बोझ में
होता पल पल अनुभूति दिखता
छुटता जाता सबकुछ

दिखता जगमगाता हमारा
सपनों की सुनहरी दुनियां
जूनून इतना भरा डूब जाऊँ पाने को इसे
पड़ जाये मिटना भी तो
शिकवा-गिला नहीं कोई
ख्वाहिश ही नहीं सिर्फ जरुरत भी है पाना इन्हें
मुश्किल है, अक्षम भी हूँ मानता हूँ
पर नामुमकिन नहीं
बेहत्तर है बिताना पीढ़ी दर पीढ़ी अंकिचन में
मिट कर गवां कर सबकुछ अपना
पहुँच पाऊँ गर सितारों की दुनिया में
सजा लूँ एक छोटा सा आशियाना अपना

जिम्मेदारियां घर की होती ही ऐसी
जो कर देती फीकी
बड़ी हो या छोटी व्यक्तिगत उलझन कोई भी
बिठाना सामंजस्य भी होता मुश्किल डुमर
जब एक पहलू जिम्मेदारियां
दूसरी पहलू हो सपनों की दुनियां।
सही क्या, गलत क्या, पाना कैसे,
और पहुँचना कैसे है,
वहाँ जहाँ हमारा आशियाना होगा।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 12.09.2023

बेटी कुदरत का वरदान

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Vivek Kumar
~ विवेक कुमार

आज की पोस्ट: 29 September 2023

बेटी है वरदान,
करें न इनका अपमान,
बेटी होती सबसे खास,
छीना जाता क्यूं इनकी सांस,
कुदरत का अनमोल रतन,
जीवन देने का करो जतन,
दुनियां की दौलत उसने पाई,
जिसके घर बेटी है आई,
घर की रौनक होती बेटी,
हर बगिया महकाती बेटी,
मान सम्मान दिलाती बेटी,
त्याग और बलिदान की मूरत होती,
हर मुश्किल घड़ी में साथ निभाती,
कभी नहीं वो घबड़ाती,
चंचलता से वो भरी पड़ी,
विकट पल में भी रहती खड़ी,
लक्ष्मी का वो होती रूप,
समय देख हो जाती चुप,
21 वीं सदी की नई सोंच,
बेटा बेटी में न कोई खोंच,
बेटा-बेटी जब एक समान,
क्यूं न करें इनपर अभिमान,
इनके पक्के इरादे का जोड़ नहीं,
हिला दे इन्हें ऐसा कोई तोड़ नहीं,
बेटी ही मान, बेटी ही सम्मान,
बेटी है कुदरत का अनूठा वरदान।।
      

Written By Vivek Kumar, Posted on 24.09.2023

ये तकदीर भी क्या-क्या रंग दिखाती है। 
जीती बाज़ी भी कई बार हारी जाती है।।

वक़्त की उंगलियों पर नचाता हैं सभी बंदर सरीखे।
उस मदारी  से  ना  कोई  भी बात  छुपाई जाती है।।

और  कितने  भी शिकवे  रहे  हों जिंदगी  में  तेरी।
तुजुर्बा यही कहता है ज़िंदगी यूँ ही बिताई जाती है।।

झील, झरना और झुमकों को तो देखते हैं सभी।
कुदरत  की सारी  बातें यूँ ही नहीं बताई जाती हैं।।

कुछ तो सबक ले सकें, किसी के अनुभवों से।
कुछ घटनाएँ बस यूँ ही नहीं सुनाई जाती हैं।।

चौकन्ना हो सके कोई किसी की  आहट सुनकर।
और यूँ ही नहीं मंदिरों की घंटियाँ बजाई जाती हैं।।

जीत-हार और हार-जीत का है ये खेल सारा।
शेरों द्वारा शावकों को यही कला सिखाई जाती है।।

मेहनत की कमाई यूँ नहीं किसी पर लुटाई जाती है।
और होती हैं कुछ बातें जो ``मन`` में छुपाई जाती हैं।।

Written By Manoj Kumar, Posted on 11.09.2022

ज़िंदगी में कैसे- कैसे दौर आते हैं
जब अपने समझते नहीं तभी लोग और आते हैं

कहने को तो ज़िंदगी है गुज़ार लेंगे 
जो बिगड़ा है वक़्त आज उसको सुधार देंगे 

भीड़ बहुत है विचारों की मन में, पर प्यार नहीं
ज़ुबान पे लब्ज़ नहीं, और आँखों से इनकार नहीं

बड़ी हो गयी है अक्ल, जबसे फोन सम्भाला है 
पर क्यूँ लगता है मुझे, मैं समझदार नहीं

सुनता हूँ और कभी- कभी सुनाता भी हूँ
रोज़ आईने के सामने खुदको को बेवकूफ भी खूब बनाता हूँ

रोता नहीं है मन इसको रुलाना पड़ता है 
कौन समझेगा वेदनाओं को, इसे ये भी समझाना पड़ता है 

नींद जाती नहीं मेरी, सूरज चढ़ आता है 
जिम्मेदारियों का बोझ है, ख़ुद ही उठाना पड़ता है

एक शख्स है अपना मेरा खूब मुझसे लड़ता है 
लिक्खा भी क्या- क्या है, कौन किस्मत को पढ़ता है 

जब अकेला होता हूँ सबके होते हुए भी 
एक वही मेरी परेशानियों के आगे खड़ता है 

है मालूम मुझे भी, अब वो दीपक बुझ जायेगा
मेरी बिगड़ी ज़िंदगी कौन सुलझायेगा

कितना अकेला होगा वो, मेरे होते हुए भी 
एक बार फ़िर वो आँखों को रुलायेगा

रक्खा है हौसला मैंने भी जैसे- तैसे ``खेम``
वो शख्स ज़रूर वापिस लौट कर आयेगा 



Written By Khem Chand, Posted on 21.07.2022

आँखों से मेरी अश्क बहाने का शुक्रिया!
दिल को मेरे जनाब दुखाने का शुक्रिया!

तेरी अता है मेरी जो ग़ज़लों में दर्द है,
ज़र्रा को माहताब बनाने का शुक्रिया!

महफ़िल में मुझको अपनी बुलाके ज़लील कर,
औक़ात मेरी मुझको दिखाने का शुक्रिया!

तकलीफ़, दर्द, कर्ब, अज़ीयत की राह पर,
मुझको मेरे हबीब चलाने का शुक्रिया!

जज़्बों में मेरे इश्क़ मुहब्बत को पाल कर,
नज़रों से मुझको अपनी गिराने का शुक्रिया!

तेरी नहीं हूँ मैं न ही क़ाबिल हूँ मैं तेरे,
लफ़्ज़ों के ऐसे तीर चलाने का शुक्रिया!

'ज़ोया' की जिंदगी से सुकूँ को निकाल कर,
वहशत का अपनी रंग चढ़ाने का शुक्रिया!

Written By Zoya Sheikh, Posted on 29.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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