दूर रहने का निर्णय तुम्हारा है
तो हम भी ये निर्णय मान लेते हैं
निभाना नहीं है साथ ये साँसों का
ताउम्र तो हम भी दूर रहने की ठान लेते हैं
किसको क्या फर्क पड़ेगा हमारी तन्हाइयों से
छोड़ो! तुम भी अब जीने पर ध्यान देते हैं
कोई नहीं है साथी हमारा अब लड़ने- झगड़ने वाला
चलो हम भी खो देते अब अपनी पहचान है
बदल गए हैं अब मौसम के दिन भी
पेड़ भी कहाँ राह के छाँव देते हैं
जले ना इस गर्मी में रेतीली मिट्टी के घर हमारे
अब कौन बचाने के लिए अपने पाँव देते हैं
नज़र भी नहीं आऊंगा तुम्हें तस्वीरें भी जला लेना
छोड़ अब अपना ये प्यारा गाँव देते हैं
घर को घर बनाकर रखना ये फर्ज़ तुम्हारा है
किसी की यादों के लिए कौन भुला देते मकान है
अब और नहीं चला जायेगा और ना जिया जायेगा मुझसे पागल
यादों के जमाने मुझे अब बड़ी थकान देते हैं
पिंजरों में कैद ना करना परवाजों को
फ़िर कहाँ ये ऊँची उड़ान लेते है
बैठना साथ कभी जब भी तुम्हें मौका मिले
अब हम बैठने के लिए तुम्हें अपना स्थान देते हैं
उब गए हो तुम ये रिश्ता निभाते- निभाते
कौन पुष्प बोने के लिए अपना बाग़ान देते हैं
बड़े सीधे- साधे थे वादे तुम्हारे जो किये थे तुमने
अब मुकर जाने पे वो मुझे कर देते हैरान है
फैसला तुम्हारा है, तुम्हें ही मालूम होती बातें सारी
हम तो हरपल तुम्हें करते बड़े परेशान थे
तुम्हें ज़रूरी लगा ये दूरी बनाना तो बना लो
मेरी बातें सुनने के लिए नज़दीक करते तुम अपने कान थे
खुश रहो अगर खुशी मिलती है तुम्हें मुझसे दूर रहकर
कभी तो हम तुम्हारी बेशकीमती जान थे
फैसला तुम्हारा, इंतज़ार ना करना अब हमारा
पंछी और पवन
ये कुदरत के संदेशवाहक हैं,
जो सदा विचरते रहते हैं
यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ
इनका अपना कोई देश नहीं है
इनका अपना कोई प्रदेश नहीं है
इनका अपना कोई शासक नहीं है
इनका अपना कोई शासन नहीं है
ये सबके हैं, सब इनके हैं
इनके बिना खूबसूरत नहीं है ये दुनिया
ये पंछी और पवन जो संदेश लाते हैं
इन्हें केवल पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ ही बाँच पाते हैं
हम और आप तो केवल अनुमान लगते हैं
जैसे मौसम विज्ञानी अनुमान लगता है
हम देशों के समहू महादेश में रहते हैं
एक देश की धरती
दूसरे देश की धरती को
अपना संदेह और अपनी महक भेजती है इनके जरिये
और ये पंछी अपने पंखों के सहारे हवा में तैरते हुए
बस यही संदेश देते नजर आते हैं कि
जीवन में सदा उमंग से भरे रहे
और भेजते रहो संदेशों को और महकों को देश-देश तक
अपने पास रखकर कर क्या करोगे उनका
संदेश पुराने हो जाएंगे और महक बासी हो जाएगी
इससे पहले ये भाप बनकर उड़ जायें इन्हें पहुँचा दो
पंछियों के पंखों के सहारे पवन के जरिये
किसी एक मुक्कमल मुकाम तक
जो दिया उसने दिया,जो किया उसने किया खुद से बगावत क्या।
जैसी भी है तू बहोत अच्छी है अब, जिंदगी से शिकायत क्या।।
मुश्किलों, बाधाओं से न घबराया,
अब जीना सीख गया।
दर्द गैरों ने क्या अपनों ने दिया,
सब पीना सीख गया।।
कंधों के बोझ की अब थकावट क्या.
ज़र्रे-ज़र्रे से वाकिफ हूं,
और क्या दिखाएंगी।
हालाते-सितम सब जानते,
अब किसको बताएंगी।।
दूर है अपने करूं किस से मुलाकात क्या.
इतना होने पर भी मैं खुश हूं,
तेरी इस रज़ा में।
राधये, झूठ न सच मानिए,
घर के अपने राजा मैं।।
रहा मैं मजे में मांगू और शौहरत क्या.
आग-पानी भावना इन्सान सी है
इसलिए सागर उफ़नता है हमेशा
देवता वो बन न पाया क्या करें
भावना में बह गया इन्सान था
भावना ही मिट गई तो क्या रहा
देवता पत्थर हुआ फिर टूटकर
भावनाओं के असर में जो रहा
अस्ल में वो ज़िन्दगी जी भर जिया
सुंदर कपोलों के कमल खिल उठे हैं,
अधरों की लाली से भ्रमर जग उठे हैं.
है उर के अंदर प्रेमामृत धारा,
प्रगतिशील उज्जवल है यौवन तुम्हारा.
उस विधाता की तुम एक सुंदर कृति हो,
जैसे मनोज की स्वयं तुम रति हो.
बड़ी फुर्सत से है रब ने तुमको संवारा,
प्रगतिशील उज्जवल है यौवन तुम्हारा.
भोर की अरुणिमा है तुमने समाई,
रूप तेरा ज्यों रात चांदनी से नहाई.
चांद जैसा निष्कलंक है करेक्टर तुम्हारा,
प्रगतिशील उज्जवल है यौवन तुम्हारा.
कोयल सी वाणी है लगती तुम्हारी,
ज्यों स्वयं हो समायी मां शारदा हमारी.
ये वाणी है तेरी या कोई जादू तुम्हारा,
प्रगतिशील उज्जवल है यौवन तुम्हारा.
चाल हिरनी के जैसी है लगती तुम्हारी,
पृष्ठ पर केस लहराते ज्यों हों नीरधारी.
देख मन मोर हुआ है दीवाना तुम्हारा,
प्रगतिशील उज्जवल है यौवन तुम्हारा.
क्या पानी उतर आया है
निषाद के दरबार में
सफेद भूमि हरी हो गई आई
इन किरणों के बजार में
क्या बोए तरूओ को उनके
फुल लाल अंगारे है
मन के मंदिर भिखारी है
वसुधा मे हाथ पसारे है
पानी उतर गया है बेलों
की अलमस्त जवानी का
युद्ध ठना मोती की लड़कियों से
निषाद के पानी का.
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