अरसे से नहीं मिला हूँ खुद से
उतार-चढ़ाव बहुत आ रहे हैं
खामोशी से बस सहे जा रहे हैं
कितना बेबस होता है आदमी
ये दिन यही सब सीखा रहे हैं
दुनियादारी सिखाती है दुनिया ही
कुछ अजनबी हैं जो बेहद काम आ रहे हैं
जिंदगी की आपाधापी में दौड़ रहा हूँ इधर-उधर
जो बिल्कुल अपनों हैं उनसे हाथ छूटे जा रहे हैं
खुश नसीब हूँ, बेनसीबी रह-रह कर डरा रही है
बहला रहा हूँ खुद को कविता के सहारे
उस पार के सारे रास्ते बंद नजर आ रहे हैं
देश सेवा का जज्बा बदल गया है
अग्निपथ पर
जिनको चुना है नेता अपना
वो बैठे हैं युवाओं के सपनों के रथ पर
क्या बन पाएंगे स्थायी अग्निवीर
उठा हथियार जवानी में जाकर दुश्मनों का सीना चीर
चार साल बाद कुछ वापिस भेजे जायेंगे
कुछ फ़िर स्थायी योध्दा लगाए जायेंगे
सपने हमारे तुम्हारे ऐसे ही
मिट्टी में मिलाये जायेंगे
पंद्रह लाख का लालच देकर
सत्ता में लौट आये थे
जब नोट बंदी हुई तो
काला धन वापिस आयेगा
ये कहकर ठगाये थे
क्या सोचते हैं और क्या रखते होंगे ये विचार
किसानों से लेकर आज देखो
हर युवा है लाचार
कहाँ गयी वो बातें सारी
बता दो सत्ताधिशों तुम बारी बारी
ना देंगें रोजगार
ना होगा व्यवस्था का उपचार
खुद के पेंशन भत्ते बढ़ाएंगे
सुख सुविधाओं के लिए नारे लगाएंगे
देख लो अपनी आँखों से संसद में बैठने वालों
और कितना राष्ट्र को जलायेंगे
उठो युवा साथियों और हुंकार भरो
अपने हक के लिए मिलकर लड़ो
खुद राजनैतिक सुख सतर- अस्सी साल तक भोगेंगे
और युवाओं को स्थायी रोजगार के लिए आपस में लड़ाएंगे
बड़बोले हो गए हैं राजनीति के बोल
घोटाले होते रहेंगे याद रखना
टेबल लगाकर गोल
जाग निद्रा से युवा प्रहरी
कर सवेर और आँखें अपनी खोल
खुद के बच्चे इनके विदेशों में मौज उड़ाएंगे
गरीबों के लिए ये निक्कमे क्या योजना बनाएंगे
बस जुमलेबाज़ी गजब की होगी चुनावों में
याद रखना बातें सारी
पंद्रह लाख ख्वाबों में ही ये लौटायेंगे
हक़ ना मांगना इनसे
देशद्रोही ठहराए जायेंगे
जब बात करोगे रोजगार और सुशासन की
डंडों से दौड़ा- दौड़ा के भगायेंगे
समझ जाओ देशवासियों अच्छे दिन कभी नही आयेंगे
अच्छे दिन कभी नहीं आयेंगे
मन के भाव समझ लो,
अब तो जान लो,
मैं वहीं हूं गौर से पहचान लो,
होली त्यौहार अकेले कैसे मन बहलायें।
मतभेद है जो क्यों न आज मिटाएं,
खुशी का माहौल,
क्यों न एक-दूजे को खुशियों के रंग लगायें।।
गल्ती तेरी न मेरी थी,
बस थोड़ी समझ की देरी थी,
मन मुटाव भुला क्यों न त्यौहार संग बनाएं।।
मिले एक हो भाई-चारा,
मंहगाई है अलग-अलग न हो गुजारा,
मस्ती में झूमे आज क्यों न भंग पिलाएं।।
भूल गया क्यों मैं नहीं भूला,
जल्ता था यही इक्ट्ठा चूल्हा,
राधये, देवर-भाभी को क्यों न होली संग खिलाएं।।
Written By Vijender Singh Satwal, Posted on 09.03.2023एक कण से दूसरे कण तक….
एक प्राण से दूसरे प्राण तक….
पुरातन चेतन से नवचेतन तक….
न टूटने वाली निरन्तर सतत प्रक्रिया है
आदि सृष्टि से …. भविष्य के गर्त तक……
आत्मा रूपी अंश व्याप्त है….
विलीन है…. तल्लीन है…..
उस परमपिता के अंश में
इस समस्त प्रयोजन में
जिसने कहीं न कहीं पिरो रखा है
समस्त प्राण को एक सूत्र में
अर्थात
वह आत्मा रूपी अंश
जो सम्प्रेषित करता है
हमारे हृदय के तारों को….
मनोभावों को….
जो युगों-युगों से
बाँधे हुए है
हमारे मृत्यु चक्र को
एक शरीर से दूसरे शरीर तक….
एक प्राण से दूसरे प्राण तक….
जैसे भगवद्गीता में
केशव का कथन —
“अजर-अमर आत्मा,
शरीर रूपी चादर को,
निरन्तर बदलती रहती है….”
जैसे काँशी के जुलाहे
कबीर का अविस्मरणीय कथन—
“चदरिया झीनी रे झीनी…. ”
भजनस्वरुप गूंज रहा है
अनेक सदियों से वसुंधरा पर
विचित्र अलौकिक शांति के साथ।
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Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 10.03.2023छुआ शबनम से भीगी जब एक कली।
याद तेरी जो आई आंख नम हो चली।।
तू इस निर्मम निर्दय संसार में।
ना रह यहां पर सकी और निकल तू चली।।
सूर्य थे तव पिता और धरा प्यारी मां।
मिलकर जल हवा मीत बनते सभी।।
दुष्टों के कांटो से घबरा कर क्यों।
पुष्प बनती तुम पर क्यों मुरझा चली।।
पुष्प बनकर न उपवन को महका सकी।
रूप सुंदर दिखा न मन को बहला सकी।।
साथियों से न तुम अपने कुछ कह सकी।
बस उनके नयनों से अश्क बहाकर चली।।
प्यारी धरती है फिर भी संजोये तुम्हें।
आसरा इक लिए वो है जोहे तुम्हें।।
शायद अब भी प्रभु कृपा हो चले।
श्वांस लौटे तुम्हारी बन सको तुम कली।।
आया आया 15 अगस्त,खुशियां मनाएं हम,
आज के दिन आजाद हुआ,ये हमारा वतन
यूं ही नहीं मिला है हमें ये आजादी,
इसे पाने को बहुतों ने जान गवादी,
उन शहीदों को आज चढ़ाएं श्रद्धा सुमन
कर्ज है हम सबपे उन वीरों का,
फर्ज चुकायें हम उन हीरों का,
आओं आज करें हमसब उनको नमन
मां भारती के वीर संतान को,
बड़े शूरवीर नौजवान को,
सम्मान सहित करें हमसब पूजन
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 22.04.2023कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।