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Monday, 28 August 2023

  1. कठिन पचाना ज्ञान
  2. खो रहा है गाँव पहचान
  3. माँ की यादें
  4. लेख्य त्रास
  5. फिजा में ज़हर भरा है
  6. सुप्रभात

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पता नहीं किस राह पर, जायेगा इंसान।
दर्शन नैतिक सत्य का, कठिन पचाना ज्ञान।।

लम्बी लम्बी फेंकते, भरते ऊंची तान।
देते रहना है सरल, कठिन पचाना ज्ञान।।

सारे सोशल मीडिया, पर बनते विद्वान।
मगर दूसरे से मिला, कठिन पचाना ज्ञान।।

अपने कद से भी अधिक, दिखलाते अभिमान।
कितना भी समझाइये, कठिन पचाना ज्ञान।।

लगे स्वयं को मानने, बहुत बड़ा भगवान।
ऐसे लोगों के लिए, कठिन पचाना ज्ञान।।

नफरत हिंसा झूठ की, खोले हुए दुकान।
सुने न अपने बाप की, कठिन पचाना ज्ञान।।

माने अपने आप को, ब्रह्मा की संतान।
आदत से मजबूर हैं, कठिन पचाना ज्ञान।।

नहीं अघाते हैं दिखा, अपनी झूठी शान।
स्वयं समझते शूरमां, कठिन पचाना ज्ञान।।

अपने मुॅंह मिट्ठू मियां, बनते हैं श्रीमान।
समझाएं भगवान भी, कठिन पचाना ज्ञान।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 21.05.2022

बात करना बंद कर दिया किसने 
रिश्तों ने रिश्ते से 
फिर रूठे फिर मनाने आया हूँ 
फिर कोई बनकर फरिश्ता 
रिश्ते बचाने आया हूँ 

विलुप्त हो रही है सभ्यताएं 
खो रहा है गाँव पहचान 
खत्म हो गए है पौराणिक अन्न 
जबसे पैसों के लिए लगा लिया है युवाओं ने 
महानगरों में अपना मन 

गाँव के गाँव उजड़ रहे हैं 
हम ही हम बिगड़ रहे है 
ना संस्कार रहे ना मेल- मिलाप की प्रथा 
गाँव की है अपनी व्यथा 
गाये बैल बेचकर आ गई  हैं मशीनें 
आग लग रही है वसुधा के सीने 

गोबर उठाने के लिए पहन रहे हैं ग्लव्स 
देख सभ्यता कैसे पहचानेंगे 
आज के युवा रिश्तों की नब्ज़ 
गाये- बैल, भेड़- बकरी के लिए अलग घर 
दिखावे के चक्कर में पड़े हैं 
नहीं रहा अतीत का डर

मक्की की रोटी आज के बच्चों के लिए पीली हो गयी 
घी- दूध के लिए जेब सबकी ढीली हो गयी है 
खेतों से गायब हो गए हैं हल 
वाबड़ी से पिने के लिए लाता नहीं अब कोई नीर 
घर में किचन हो गए हैं, साथ में लगा लिया है नल 
देख सभ्यता कैसे चलता है बदलाव का तीर 

चूल्हे की राख से चमकते थे बर्तन सारे 
राख तो रही नहीं चूल्हे कर लिए हैं किनारे 
कांसा- पीतल, मिटटी के बर्तनों का बना व्यंजन 
स्टील, ऐलुमिनियम की रौनक ने छीन ली हैं काठ की दंतमंजन 
कोई कहानी, कथा नहीं सुनना चाहते हैं बुजुर्गों से 
टेलीविज़न, कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन हो गए हैं साधन मनोरंजन 

देख! लिया ना विज्ञान का चमत्कार 
पढता नहीं कोई अब अखबार 
गाँव का चौराहा बन गया है बाज़ार 
बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी की जगह आ गयी मोटर कार 
गाँव करते रहेंगे हम तेरे लौट आने का इंतज़ार हाँ लौट आने का इंतज़ार 

 

Written By Khem Chand, Posted on 09.06.2022

जो बीत गई सो बात गई.
जीवन की तू ही एक सहारा थी।
माना तू बेहद प्यारा थी।।

दिल टूट गया तो टूट गया,
मेरी दशा को तू देख।
कितने मेरी आँसू बिखड़े,
कितने तेरी प्यार छूटे।
जो छूट गए फिर मिले कहाँ,
बोलो इन बिखडे आंसू पर,
अब तेरी शोक मनाता हूँ।
हर विकट परिस्थिति में,
अश्रु नित बहाता हूँ।
तेरी याद दोहराता हूँ।।

जो बीत गई सो बात गई,
जीवन की तू ही एक सहारा थी।।
माना बेहद प्यारा थी।।
दिल टूट गया तो टूट गया,
मेरी दशा को तू देख।
दिल के दर्द को तू समझ,
प्यासी कितनी मेरी अंखियाँ,
मुर्झाया कितना मेरा दिल,
जो मुर्झाया फिर खिले कहाँ,
पर बोलो मुर्झाये सुमनों पर,
कब भंवरे सोर मचाता है।
कौन सा यतीन इस जहाँ में,
मनमौजी जी पाता है।

जो बीत गई सो बात गई,
जीवन की तू ही एक सहारा थी।
वास्तव में बेहद प्यारा थी।।

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 14.06.2022

लेख्य त्रास

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Lalan Singh
~ ललन प्रसाद सिंह

आज की पोस्ट: 28 August 2023

डायरी मैंने उन्हीं दिनों लिखना शुरू कर दिया था जब मैं दसवीं कक्षा का छात्र था। उन दिनों नैतिक, वैचारिक मनोभाव की बातें कहाँ थीं?; अभ्यास हेतु दैनिक कार्यक्रम हीं लिख लिया करता था। धीरे-धीरे वर्षों बाद जब लेखन की परिपक्वता के साथ कुछ जीवन-परिवर्तन शुरू हुआ तो उसमें शिक्षण, दर्शन और राजनैतिक बातों का भी अंकन शुरू हो गया। यहाँ तक कि एक प्रेम-प्रसंग की चर्चा मैंने उसमें बखूबी की थी। प्रेम-प्रसंग किसी और का नहीं, शिवानी की छोटी बहन अर्चना का हीं था। अर्चना के साथ-साथ कहीं कहीं शिवानी की भी चर्चा वैसे मेरी डायरी में थी। उसकी कुछ विशेष आदतों की चर्चा। उस चर्चा में ही एक दिन अर्चना ने बताया था, 

“दीदी अमृतलाल नगर की ‘मानस का हंस’ जैसी मोटी-मोटी पुस्तकें एक ही सांस में पढ़ जाती है”। 

तत्पश्चात उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक सक्षम व्यक्तित्व लिए जीवन की दहलीज पर पाँव रखना शुरू किया। तब घर में मेरी शादी की जोरदार चर्चा हुई थी, मेरी अनचाही स्वीकृति, रिश्ते में बदल जायेगी यह मुझे विश्वास न था। शिवानी घर में पत्नी बनकर आ चुकी थी। मैं अंदर-ही-अंदर घुल-पच रहा था। सोच-समझ कर समझौता की कोशिश कर रहा था। 

रैक पर पड़े पुराने किताबों के साथ दबे उन डायरियों पर ध्यान चल ही जाता था, और मैं अनायास उनके अतीत में जाकर बेचैनी महसूस करता। अर्चना द्वारा बतायी गई बातें बार-बार मन को भारी कर रहीं थीं, मुझे लग रहा था, “अगर शिवानी को यह ……”

तब उन्हें छिपाने की कोशिश भर करता था। आज इस कोशिश में सफलता पाया हूँ, इन अतीत के पांडुलिपियों को दीये की लौ में देकर। 

सामने पड़े काले-काले टुकड़ों को देख, भविष्य के प्रति निश्चिंत हो गया हूँ। 

Written By Lalan Singh, Posted on 05.06.2022

फिजा में ज़हर भरा है जरा संभलकर चलना

फुर्सत के पल कहां जल्दबाजी में ना फिसलना

गैरों से कहां आज अपनों से खतरा है

राम कहां हर जगह रावण ठहरा है

परिस्थिति के साथ खुद को सीख ढा़लना।।

 

बन्दूक-पिस्तौल न तलवार से

आज लोग मारते हैं प्यार से

हर किसी पर छौड़ यूं ऐतबार को करना।।

राधये,सच ज़माना मतलबी है

जिसे देखो हर दूसरा फरेबी है

जो करीबी हैं उससे भी है संभलना।।

Written By Vijender Singh Satwal, Posted on 25.02.2023

सुप्रभात

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Hareram Singh
~ डॉ. हरेराम सिंह

आज की पोस्ट: 28 August 2023

चलें हम प्राची दिश् की ओर
सूर्य की नव किरण तैयार है
स्वागत के लिए सज-धजकर
विजयी दिलाने हेतु
बदलाव का मुखमंडल चुमने हेतु

चलें हम आँखों में ज्योति लेकर
नीले गगन का विस्तार
बुला रहा है कब से
रक्ताभ बादल नए संकेत दे रहे हैं कब से

पीपल के पत्ते डोल रहे हैं
प्रभात से हर्षित मन मेरा
जीवन को बदलते देख रहा है
शत्रु मेरा अंधेरा
बादलों के उस पार, नील जल के पीछे
सूर्य को देख छुप रहा है!

Written By Hareram Singh, Posted on 28.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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