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Saturday, 26 August 2023

  1. चाय प्रेमियों के लिये
  2. आजकल कहाँ खो गया वो आम आदमी
  3. वो जिस में बंद होता है हर इक शैतान कहते हैं
  4. पिताजी कहते थे
  5. मुस्कुराने वाले पल
  6. बिटिया तू हो गई है अब स्यानी
  7. नख़रे हमारे हँस के सहा कीजिए जनाब
  8. बही-खाता
  9. अघोरी हूं
  10. अपनो की बात

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सर्दियों की धूप,
सुलगते अलाव,
चटकती मूँगफली और
एक प्याली चाय.....

अनकहे कहकहे,
पुराने दोस्त,
बिसरी यादें और
एक प्याली चाय.....

शारीरिक थकावट,
वक्त का गुजारना,
जायकेदार स्वाद और
एक प्याली चाय.....

सुस्ती से फुर्ती,
जुबां में मिठास,
अदरक,तुलसी की महक और
एक प्याली चाय.....

नुक्कड़ का खोखा,
दस रुपये का संसार,
दिल ने कहा फिर से हो जाए 
एक प्याली चाय.....

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 16.12.2021

आजकल कहाँ खो गया वो आम आदमी
गुम सा कहीं हो गया वो आम आदमी

माचिस की तिली हाथों से ढक कर जलाता था
उससे फिर अपनी बीड़ी सुलगाता था
घास की गठरी सिर पर उठाता था
फ्री का लेने से बहुत घबराता था

कहीं भी आना जाना होता था
पैदल ही निकल जाता था
पांव में होती थी टायर की बनी चप्पल
पैबंद लगे कपड़ों में दूर से नज़र आता था

भगवान से जो बहुत डरता था
रिश्तों की बहुत कद्र करता था
खेत में पसीना जो बहाता था
अपने भाईयों के लिए जो मरता था

सुबह से शाम तक जो हल चलाता था
थकाहारा शाम को जब घर आता था
साहूकार से पैसे लेकर चलाता था घर बेशक
तब भी जीने का मजा बहुत आता था

बैंकों से लोन लेने में घबराता था

लिया कर्ज़ समय पर चुकाता था
शर्म हया खुद्दारी दौलत थी उसके पास
सभी के सामने सिर झुकाता था

जितनी चद्दर होती थी उसकी
उतने ही वह पांव फैलाता था
रूखी सूखी खाकर करता था गुज़ारा
अपनी झूठी शान नहीं दिखाता था

बहुमंजिली इमारतें हो गई हर तरफ
इनके आगे अपने आप को बौना समझता है
घास के बिछौने पर आ जाती थी नींद
आज मखमली गद्दों पर नींद को तरसता है

लालच नहीं था उसके मन में 
उसी में जीता था जो था उसके पास
छल कपट से दूर साफ मन था उसका
तंगी में भी नहीं होता था उदास

चाहता है सब कुछ फ्री उसे मिले
कितना बदल गया है अब आम आदमी
आजकल कहाँ खो गया वो आम आदमी
गुम सा कहां हो गया वो आम आदमी 

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 30.01.2022

वो जिसमें बंद होता है हर इक शैतान कहते हैं!
वो रहमत का महीना है उसे रमज़ान कहते हैं!

जो अपनी क़ौम अपने देश का ऊँचा करे सर तो,
ज़माने वाले ऐसे लोगों को इंसान कहते हैं!

सितम इतना हुआ के फर्क़ करना भूल बैठे हम,
इसे हम घर नहीं कहते इसे ज़िंन्दान कहते हैं!

है बढ़ जाता जो भाई चारा तो ऐसा भी है होता,
मिरी पहचान को वो अपनी ही पहचान कहते हैं!

लगे गर चोट तुमको तो निकल जाए ये जान अपनी,
हाँ ऐसे प्यार करने वालों को यकजान कहते हैं!

हर इक की सोच जब होती जुदा है दोस्त कुनबे की,
घरों को जंग का कुछ लोग तो मैदान कहते हैं!

बहादुर आदमी की यूँ लकी पहचान है होती,
जो तूफानों से लड़ जाए उसे चट्टान कहते हैं!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 19.02.2022

पिताजी कहते थे 
राह हो कठिन
विपरीत हो वक़्त
चाहे काली अंधेरी रात हो
सुबह की उम्मीद रख
तू हौसला रख, हौसला रख।

पिताजी कहते थे
इस रंग बदलती दुनिया मे
तू भी अपना एक रंग रख
आवेश के घोड़ो की लगाम
अपने हाथों में रख 
वक़्त ही तो है बदल जायेगा
तू हौसला रख, हौसला रख।

पिताजी कहते थे 
नाज़ुक रिश्तों को 
तिजोरी में रख
रूट जाए अगर अपने तो
मनाने का दम रख
तेरे अपने ही तेरे 
जीवन की दौलत है
इन से ना कभी फ़ासला रख
तू हौसला रख, हौसला रख।

पिताजी कहते थे
अपने कर्मो को इबादत की
तरह पवित्र  रख
बंजर भूमि में भी हरियाली आयेगी
ऊपर वाले पे भरोसा रख
तू हौसला रख, हौसला रख।

पिताजी एक दिन
काली अंधियारी रात में 
छोड़ कर चले गए
यादों में रहैंगे ज़िन्दगी भर
सफर तू निरन्तर जारी रख
तू हौसला रख, हौसला रख।

Written By Kamal Rathore, Posted on 25.02.2022

बात बस इतनी भर-सी थी
उनको मुस्कुराना था
और हमें जिंदा हो जाना था
वो मुस्कुराए 
पल भर के लिए
हम भी जिंदा हुए 
पल भर के लिए 
और फिर मर गए 
उनके अगले 
मुस्कराने तक के लिए
और इसी ख्वाहिश में 
मरे ही रह गए के
वो मुस्कुरायेंगे कभी तो
और हम जिंदा हो जायेंगे कभी तो
पर फिर ना तो वो मुस्कुराए 
और ना ही हम जिंदा हो सके
हम बस सोते ही रह गए
इंतजार है आज भी हमें
उनके मुस्कुराने वाले पल का

Written By Manoj Kumar, Posted on 08.05.2022

मेरी प्यारी बिटिया रानी तू हो गई है अब स्यानी,
मेरे कलेजे के टुकड़े अब न करों कोई मनमानी।
समझा रहें है आपको आज आपकें नाना-नानी,
हर लड़की की विधाता ऐसी लिखता है कहानी।।

आपकें विवाह के खातिर मैं देकर आया ज़ुबान,
निपुणता-कर्मठता से बनाना अब वहाॅं पहचान।
मान-सम्मान करना सभी का रखना स्वयं ध्यान,
मुसीबतों का करकें सामना बनकें रहना चट्टान।।

यह जीवन है ऐसी यात्रा जो स्त्री बिना निराधार,
वंश बढ़ाकर पालन करतीं भरा है त्याग अपार।
बिटियाॅं अपना साथ था बस इतनें ही समय का,
जुदाई का कहर सहना आप हो गई समझदार।।

मेरी प्यारी लाड़ली ना करना सोच फ़िक्र हमारी,
यहीं दस्तूर है ज़मानें का व मेरी भी ज़िम्मेदारी।
बस कर दूॅं पीलेंं हाथ तुम्हारें और कर दूॅं विदाई,
दो परिवार को जोड़कर रखतीं समझदार नारी।।

अपनों से बिछुडनें का तुम दुख कभी ना करना,
नूतन‌ नयें रिश्तों में मिश्री जैसें घुल-मिल जाना।
विदाई समारोह के समय तुम ऑंसू नहीं बहाना,
ख़ुश होकर ससुराल जाना सुध-बुध लेंते रहना।।

Written By Ganpat Lal, Posted on 17.05.2022

नख़रे हमारे हँस के सहा कीजिए जनाब!
या फिर हमें ही दिल से जुदा कीजिए जनाब!

ख़ुद सर हूँ सरफिरी हूँ बड़ी बत्तमीज़ हूँ,
सो मुझसे थोड़ा दूर रहा कीजिए जनाब!

तनक़ीद लाख़ कीजिए मुझपर असर नहीं,
अपने हसद में ख़ुद ही जला कीजिए जनाब!

बाइल्म, बाअदब हूँ या के हूँ मैं बद लिहाज़,
जाकर मेरे मुहिब से पता कीजिए जनाब!

'ज़ोया' के गर मिज़ाज से शिकवा है आपको,
रब के हुज़ूर जाके गिला कीजिए जनाब!

Written By Zoya Sheikh, Posted on 26.08.2023

भले को भला न कहना व बुरे को भी बुरा न कहना।
ये दुनिया खफ़ा हो जायेगी, सोम को सुरा न कहना।
है खाने का सलीका बदला, कांटे को छुरा न कहना।
यहां रास्ते हैं मखमली, कभी इन्हें खुरदुरा न कहना।

पर्यावरण भूरा हो चला है, भूल से भी हरा न कहना।
माया जाप करते हम व आप, धरा को मां न कहना।
बदला ये मौसम, सम है विषम, कभी ना न कहना।
ऊपर काले साए दिखते हैं, खुला आसमां न कहना।

ख़ाली है मन, ख़ूब है धन, ये हमने बताया न कहना।
वो अनदेखा सच तुम्हें, जो उसने दिखाया न कहना।
मौका संग लाए धोखा, वक्त ने समझाया न कहना।
बही-खाता वही बनाता, क्या खोया-पाया न कहना।

Written By Himanshu Badoni, Posted on 26.08.2023

अघोरी हूं

SWARACHIT6083

Rajiv Dogra
~ राजीव डोगरा 'विमल'

आज की पोस्ट: 26 August 2023

हार है न जीत है
मौत है न कोई ख़ौफ़ है
अघोरी हूं.

ह्रास है न प्रहास है
ख़ास है न कोई आम है
अघोरी हूं.

काम है न आराम है
मान है न कोई अपमान है
अघोरी हूं.

जीवन है न मृत्यु है
पाप है न कोई पुण्य है
अघोरी हूं.

आदि है न अंत है
अंत है न कोई आदि है
अघोरी हूं.

Written By Rajiv Dogra, Posted on 26.08.2023

अपनो की बात

SWARACHIT6084

Neeta Bisht
~ नीता बिष्ट (जौनपुरी)

आज की पोस्ट: 26 August 2023

किसी के लिए काम जरूरी है
तो किसी के लिए अपना नाम
किसी के लिए परिवार जरूरी है
तो किसी को समाज
कर गई गलती सबको समझ के खास
बहुत जलील हो गई अब तो बात को जान
मेरी अच्छाई ने घटा दिया आज मेरा मान
सोचते सोचते बीत गई सारी रात
छूट गया है अब सबका साथ
थामे तो थामे अब किसका हाथ
ये थी मेरे अपनो की बात।।

Written By Neeta Bisht, Posted on 26.08.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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