हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Saturday, 29 July 2023

  1. तुम जागो फिर एक बार
  2. मीठे बोल मौत के हथियार हो गये
  3. महबूब का आँचल
  4. आतिश
  5. मेरे जैसा प्यार तुझ से करेगा कोन
  6. भीड़ की हैवानियत
  7. दिल से वेहशत मिटाओ रब राखा
  8. जंगल में
  9. गर्भ में मार देते हैं
  10. माँ याद आ रही है

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हे भारत माँ के लाल-काल
तुम जागो फिर एक बार। 
सदियों से कश्मीर बिलखता,
अरुणाचल रहा कर विलाप।
शहीदों की चिताएँ सिसकती,
सह-सह स्वार्थी कटु अलाप।
होते शहीद जवान सैंकड़ों,
सीमा लहुँ -लुहान है।
हो चुकी हद सब्रो-करार की,
बाँकी रहा कौन इम्तिहान है।
लूट न जाए मान धरा का,
कहि बेच न खाये देश गद्दार हे।। तुम जागो.... 

पाषाण पिघलते हिमगिरि के,
हल्दी घाँटी करे गुहार।
कलियां कलुषित केशर की 
मेवाड़ रही अपलक निहार।
झांसी का मैदान लूटा है,
झुका शीष विंध्याचल का।
छलनी हुआ बाग़ जलियाँ
घायल अयोध्या रघुकुल का।
बनकर सुभाष-तात्या-भगत,
मिटा डालो द्रोही किरदार।। तुम जागो...... 

रहे खींच निर्लज्ज दुसाशन
बहु-बिटियों के पावन चीर।
माताओं की गोद रौंदते,
कपटी कंश दैत्य ज़मीर।
जड़े धर्म की रहे काट,
अधर्मी करते धर्मांतरण।
वह नही देश की थी आजादी,
सत्ता का था सिर्फ हस्तान्तरण।
कब तक रहेंगे होते यूंही,
स्वपन शिवा के निराधार।। तुम जागो फिर....
 
जाती -ओ-भाषावाद की,
फलती नित नागफनी।
जाफ़र-ओ-जयचंद द्रोही,
बने राष्ट्र रक्षा के धनि।
संस्कृति निर्वस्त्र नाचती,
चटनी बटी सभ्यता की।
न्याय हुआ अंधा धृतराष्ट्,
नही परख सत्यता की।
आततायी-ओ-अत्याचारी,
रहे बना भृष्ट सरक।
हे भारत माँ के लाल-काल
तुम जागो फिर एक बार ।

Written By Govind Sarawat Meena, Posted on 10.05.2023

सत्य और अहिंसा दोनों ही लाचार हों गये,
चोरी ओर झूठ ठगों के पक्के यार हों गये।


नफ़रत ओर दगा ने ऐसा जाल फेंक दिया,
घोसलों से मुहब्बत के... पंछी पार हों गये।

 
अब बेज़ा सुबकने से हाथ कुछ न आयेगा,
वफ़ा के बहुत कम बचने के आसार हों गये।


आंखों से आंसू दिल से आह निकाल कर,
जनाजा ग़म का हम सर-ए-बाज़ार  हों गये। 


दोस्त तमाम दुश्मनों से जा कर गले मिले, 
बाग़ी खंजर दगा के मिरे आर -पार हों गये। 


गोली बारूद तमाम हथियार सब फ़ैल हुए, 
कमब़ख्त मीठे बोल मौत के हथियार हों गये। 

Written By Ajay Poonia, Posted on 09.06.2023

महबूब का आँचल

23SAT08501

Siddharth Yadav
~ सिद्धार्थ यादव

आज की पोस्ट: 29 July 2023

महबूब का आँचल छाया है चाँदनी की तरह,
प्यार और आदर से भरी हुई हर गोदी जैसी नरमियों से भरा।
उसके आँचल की छाँव में मिलती है सुख की राहत,
जिंदगी की गर्मी से हमेशा लबों पर हंसी की मुस्कान तरह देता है तारा।

आँचल में छुपी बचपन की खुशियाँ लेकर वो आती है,
हर मुसीबत में सहारा बनकर दिल को बहुत सुकून देती है।
महबूब के आँचल की महक से महकती है ये दुनिया,
संगीत के सुर में निगाहें झुकाकर खुद को खो जाती हैं हर तरफ खुशियाँ।

जैसे मौसम की बादलों की छांव बहार लाती है सबको,
महबूब का आँचल भी हमेशा देता है वो आशा का उजाला सबको।
उसकी गोदी में बसी सारी चाहतें पाएं मंजिल को,
संगीत के स्वरों में नचाएं जीवन के सभी खुशहालों को।

महबूब का आँचल बनकर सुनहरी रोशनी फैलता है,
सभी चिंताओं को भगाकर खुशियों का संगीत गाता है।
विश्वास की बांधने उसकी मदद से लोग जीते हैं,
महबूब का आँचल  हर दिल में खुशियों की बारिश कराता हैं।

चलो आओ, इस महबूब के आँचल में हम सब मिलकर बसें,
जीवन की राहों में खुद को खोलें और खुशियों को पेश करें।
महबूब का आँचल सदैव हमारी सुरक्षा करेगा,
इसकी छांव में खोकर हम हमेशा सुखी और समृद्ध रहेंगे, यह आशा है बस।

Written By Siddharth Yadav, Posted on 23.06.2023

आतिश

23SAT08589

Priti Sharma
~ प्रीति शर्मा- मधु

आज की पोस्ट: 29 July 2023

जरूरी था रास्ते बदलना
मगर चाहता कौन था
गुजारिश थी समय की
जो कहीं लूट गई
बार हृदय पर कर
ख्वाब को कांच का बना कर
चकनाचूर कर गई।

लाचार सा मानो वक्त हो गया
मुंह को सिले कहीं सो गया
दर्द था नदिया की लहरों में
दूर किनारे पर वो भी रूठ गया।

हूक लगा लगा कर थक गए
ढलती शामों के द्वार भी फीके पड़ गए
दीदार की तलब थी
रोज़ खिड़की पर बैठ
कुछ शामें याद करना
मगर कुछ भ्रम अभी और बाकी था।

ख़ाली ख़ाली सा सब लग रहा था
हर दर्द बेदर्द बन रहा था
कहां से लाते वो सुकून
जो उड़ती धूल में कहीं खो गया
मानो मेरे वजूद को भी उसमें डूबो दिया।

Written By Priti Sharma, Posted on 07.07.2023

मेरे जैसा प्यार तुझ से करेगा कोन.!!

सपना झूठा ही सही तुझे दिखाए गा कोन.!

तेरे लिए दूसरा जहर फिर खाएगा कोन!

जरा मुझे भी मिलवा दे वो सक्स है कोन..!!

मेरे जैसा प्यार....!

 

में भी तो देखू हम से बड़ा आशिक है कोन.!!

तेरे लिए शहर घर वार मेरे जैसा छोरे गा कोन.!

जरा में भी तो देखू वो दूसरा सक्स है कोन.!

मुझ से अच्छा प्यार तुझ से करता है कोन..!!

मेरे जैसा प्यार....!

 

मेरे जैसे पीजा बर्गर तुझे खिलाता है कोन..!!

तेरे साथ मंदिर दूसरा सक्स जाता है कोन.!

मेरे जैसा तोफा दूसरा लेकर देता है कोन.!

मेरे जैसा खिड़की से दूसरा देखता है कोन.!!

मेरे जैसा प्यार....!

 

तेरे लिए अब कविता दूसरा लिखता है कोन..!!

मेरे जैसे सब्दों में तुझे दूसरा सजाता है कोन..!

रात में तुझ से मिलने नलके पे आता है कोन.!

तेरी सहेली के द्वारा तुझे गिफ्ट अब भेजता है कोन..!!

 

Written By Deepak Jha, Posted on 16.07.2023

भीड़ की हैवानियत

SWARACHIT6005

Monu Mallick
~ मोनू मल्लिक

आज की पोस्ट: 29 July 2023

एक बार फिर से भीड़ ने
इंसानियत को कुचल डाली
हैवानियत की शक्ल में
रक्त रंजित कर मानवता की हत्या कर डाली.
वो आँखे और दर्द भरी रूह हर पल
लाठियों के आघात से सिसक रही थी
और पुलिस की मदद की आस लगाए बैठी थी
कौन थे ये हैवान रूपी भीड़
जिनके हाथो पर थी अपवाहों की लाठियाँ
क्या भीड़ के नाम कर खुद ही न्यायपालिका बन बैठी थी.
आखिर कब तक ये अपवाहों का तंत्र इस तरह फैलता जायेगा
भीड़ के नाम पर खुद न्याय कर इंसानियत को कुचलता जायेगा
आखिर कब तक ये भीड़ तंत्र भेड़िया तंत्र बन
इंसान को इंसान न समझ
उसे पीट-पीट मौत के घाट उतार दिया जायेगा ।

Written By Monu Mallick, Posted on 29.07.2023

दिल से वेहशत मिटाओ रब राखा!
जा रहे हो तो जाओ रब राखा!

दिल का दर खोलती हूँ जाओ तुम,
जश्ने रेहलत मनाओ रब राखा!

कर के मुझको हवाले लहरों के,
कह रही है ये नाव रब राखा!

क़ल्ब से अपने मेरे नक़्शे पा,
है मिटाना मिटाओ रब राखा!

जिस्म की वेहशतें मिटानी हैं,
ज़ोया दिल को जलाओ रब राखा!

पीठ पीछे रक़ीब से मेरे,
प्यार, यारी निभाओ रब राखा!

मौत आई है सो उसे सीने,
'ज़ोया' हँस के लगाओ रब राखा!

Written By Zoya Sheikh, Posted on 29.07.2023

जंगल में

SWARACHIT6007

Kundan Singh
~ डॉ. कुन्दन सिंह

आज की पोस्ट: 29 July 2023

इक बस्ती बनी है जंगल में
इक ख्वाब़ उगा है जंगल में

हाल ऐसा है शहर का अपने
हम शहर में या कि जंगल में

झूठ जितना दहाड़ ले लेकिन
शोर गूंजेगा सच का जंगल में

मेरी आदत है सच बयानी का
मैं घर रहूँ या रहूँ मैं जंगल में

अब कहां महफूज हैं ये जंगल
आदमी घुस गया है जंगल में

Written By Kundan Singh, Posted on 29.07.2023

जो कन्या-भ्रूण गर्भ में मार देते हैं!
वे नवरात्रों में मां को उपहार देते हैं!
जो पुत्र की प्राप्ति को प्रसार देते हैं!
वे नवरात्रों में मां को उपहार देते हैं!

जो बेटी को ही दोषी करार देते हैं!
वे नवरात्रों में मां को उपहार देते हैं!
जो शब्दों से अस्मिता उतार देते हैं!
वे नवरात्रों में मां को उपहार देते हैं!

जो बहु के हिस्से में तकरार देते हैं!
वे नवरात्रों में मां को उपहार देते हैं!
जो समानता को घोर प्रहार देते हैं!
वे नवरात्रों में मां को उपहार देते हैं!

Written By Himanshu Badoni, Posted on 29.07.2023

माँ याद आ रही है

SWARACHIT6009

Hareram Singh
~ डॉ. हरेराम सिंह

आज की पोस्ट: 29 July 2023

मैं रो रहा हूँ
ताकि मेरे आँसू गिर सकें
जब मेरे आँसू मिट्टी में मिल जाएँगे
यह धरती पूरी तरह मेरी हो जाएगी

सपना
कुछ कह रहा है
वह आँसू बन गया है
गाल पर वह लुढ़क रहा है
कभी खुशी तो कभी विछोह बनकर

अँधेरा हो रहा है
समंदर का पानी बिल्कुल काला
नारियल के पत्ते हिलोरे ले रहे हैं
वे अब सोएँगे नहीं

सुबह सूरज निकला है
बहुत ही धीरे
श्वेत शंख को चूमने की कोशिश
किरणों ने की है

दूर हूँ
गाँव याद आ रहा है
माँ याद आ रही है
उसकी बीमारी मुझे हँसने नहीं दे रही है
वह कबतक मेरे साथ है
रेत से पूछ रहा हूँ!

Written By Hareram Singh, Posted on 29.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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