उम्मीद छोड़ चुके लोगों में भी
उम्मीद की किरण जगाते हैं
अपनों से भी ज्यादा
मरीजों संग समय बिताते हैं
डॉक्टर धरती के भगवान कहलाते हैं।
चाहे जैसी भी हो बीमारी
तुरंत आराम पहुंचाते हैं
दया-करुणा का भाव
निज उर में समाते हैं
डॉक्टर धरती के भगवान कहलाते हैं।
समर्पण भाव से सेवा कर
मरीजों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाते हैं
नियम संयम से सब काम निपटाते हैं
डॉक्टर धरती के भगवान कहलाते हैं।
चाहे जैसी भी हो परिस्थिति
कभी नहीं घबराते हैं
मरीजों की सेवा में
अपना सारा समय लगाते हैं
डॉक्टर धरती के भगवान कहलाते हैं।
दिन-रात करते ये सेवा
पर धैर्य कभी न गंवाते हैं
स्वस्थ देख मरीजों को परमानंद पाते हैं
डॉक्टर धरती के भगवान कहलाते हैं।
वो पूछेंगी
जरुर
तुमने कुछ नहीं कहा।
जब वो सताई जा रहीं थी।
तुम खामोश
क्यो थे
बोला क्यो नही
कुछ।
क्या तुम्हारी
आत्मा मर चुकी थी
उस समय
जब ये सब हो रहा था
क्या सचमुच तुम्हरा
ज़मीर सो रहा था
Written By Abhishek Jain, Posted on 23.07.2023फूल और कांटे
रहते तो हैं संग संग पर
स्वभाव उनके हैं
अलग-अलग
फूल यदि हमें
मुस्कुराने कि अवसर
प्रदान करते हैं तो
कांटे चुभने से हमें
कुछ कष्ट भी सहने पड़ते हैं
परंतु कांटे सर्वभाव से
कैसे भी हो पर
वो अपने साथ खिलने वाले
फूलों की हिफाजत भी
बहुत चिंता से करते हैं
तभी तो हम जब
फूलों को तोड़ते हैं तो
वो हमें चुभ जाते हैं
मानों वो हमें चुभते नहीं है
हमसे कुछ कहना चाहते हैं
कि लोग हमें एक-दूसरे से
जुदा क्यों करते हैं।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 12.05.2021मैं शिवाला नहीं मैं न दरगाह हूँ
अपनी धुन में मगन एक मैं शाह हूँ
इक मुसाफ़िर के दिल की फ़क़त चाह हूँ
चल के मंज़िल मिले जिस पे वो राह हूँ
कितनी गहराइयां हैं अतल प्यार की
कोई पाया नहीं मैं वही थाह हूँ
रौशनी के बिना कैसे देखे कोई
मैं अंधेरे की मानिन्द ही स्याह हूँ
ज़ीस्त में मुफ़लिसों की मैं शामिल रही
दिल से निकली हुई उनके मैं आह हूँ
पार भगवान को भी कराया कभी
नाम केवट मेरा एक मल्लाह हूँ
जिसको `आनन्द` तरसा सदा ज़ीस्त में
कोई बोला नहीं मैं वही वाह हूँ
स्तब्ध हु सुनकर मणिपुर की घटना,
आखिर कब तक है ये सब देखना।।
ये है सभ्य समाज की तस्वीर,
शर्मसार हो गई नारी की तकदीर।।
दो समुदाय के बीच का था मामला,
नारी का हुआ हैवानियत से सामना।।
कैसी हो गई लोगो की मानसिकता,
कहा गई आज की मानवता।।
भुल गए लोग लाज शर्म,
कलयुग के है ये सब कुकर्म।।
संविधान दे गया महिलाओं को ऊंचा दर्जा,
और यहां पुरूष महिलाओ पर दिखा रहे अपनी ऊर्जा।।
जल्द हो पाए अपराधी दण्डित,
जिन्होंने किया नारियों को प्रतांण्डित।।
कब सुधरेगा ये समाज
कब हो पाएगी नारी जाति आजाद ।।
चीख़ता है तो कभी चुप की सज़ा देता है!
इश्क़ मिट्टी में मेरा शौक़ मिला देता है!
दिन गुज़रता है मेरा हँस के ही और फिर हर शब,
इश्क़ पहलू में तेरा हिज्र सुला देता है!
तुम ज़ुलैख़ा की तरह रब से गुज़ारिश तो करो,
इश्क़ सच्चा हो तो फिर 'यार' ख़ुदा देता है!
भूल कर इश्क़ का कलमा जो मैं हँस पड़ती हूँ,
दिल के ज़ख्मों में कोई ख़ार चुभा देता है!
दर्द वैसे तो कोई ख़ास नहीं मुझको पर,
इश्क़ राज़िक़ है ग़मों का सो रुला देता है!
'ज़ोया' महबूब भी सिगरेट की तरह मुझको मिला,
होंठ चूमूँ तो मेरे होंठ जला देता है!
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