श्यामा कैसी है रुत आई
तेरी बंसी पे नाचे हर कोई
तेरी धुन में बने हैं दीवाने
इस प्रेम को जग क्या जाने
वही जाना है जिसने लग्न लगाई
तेरी बंसी पे नाचे हर कोई
श्यामा कैसी है रुत आई
तेरी बंसी पे नाचे हर कोई.....
तेरे नाम की प्रीत जो लगाए
दुनिया को वो भूल जाए
सांसों पे तेरी माला सजाई
तेरी बंसी पे नाचे हर कोई
श्यामा कैसी है रुत आई
तेरी बंसी पे नाचे हर कोई.....
अब सहना मेरे बस की बात नही,
तुम अब मेरे साथ नही,
तुम हो खुश मुझे एतराज नहीं..!
कविता में तेरा कहीं अब जिक्र नहीं,
तुम हो गुमशुदा_गुमशुदा ही सही,
तुम्हे खोज ने की मेरी अब तलाश नही..!
ना उम्मीद तुझ से ना आस रखा हूं,
खुद पर बहुत विश्वास रखा हूं,
तुम खुश होगा बहुत ये उम्मीद जरूर रखा हूं.!
तुम हर पल हमेसा मुस्कुराते रहो,
इतना तो प्यार तुझ से आज भी करता हूं..!
इसी लिए में उदास होकर बैठा हूं..!
तेरे शहर में अब में रहता नही,
पर दिल उसी शहर में छोर आया हूं.
में कहीं रहूं तेरे तसबीर अपने दिल में रखा हूं..!
वो पत्थर पड़ा था राह पर, जिसपर पैर रखकर सभी निकल निकल गये
वो पत्थर तो जरा उठाओ, और उसको हृदय से लगाओ।।
सुना है कि पत्थर मे भी भगवान होता है
जो पत्थर राह पर पड़ा, उसे उठाकर शिव का रूप दिया।।
उठाकर उस पत्थर को जब पेड़ के नीचे रखा।
देखा गजब नजारा वो पत्थर भगवान बना।।
अजब नजारा दुनियां का उसके लिए फिर मंदीर बना।
कल तक था जो पैरों के निचे पड़ा, आज उसके लिए एक मंदिर खड़ा।।
पूजा उसकी फिर हुई विशेष, दुनियां की फिर भीड़ बढ़ी।
कोई उसपर पैसे लुटाता, कोई लुटाता फूल।।
कोई उतारे आरती, कोई मांगे माफ़ी हो जाये कोई भूल।
वाह री दुनियां तेरा नज़रिया, देखने का तेरा दस्तूर।।
आज ये समझ में आता है, भगवान किसे कहा जाता है ।
भाव में बैठा है वो, कल्पना में रहता है वो, हृदय मंदिर में है विराजमान।
और गरीबो की दुवाओं में समाया है वो।।
कण - कण में भगवान है, आज ये जान लिया।
राह पर पड़ा पत्थर भी भगवान है, ये मान लिया।।
कहा जाता है की लड़को को दर्द नहीं होता,
सच्चाई है की बिना दर्द के कोई मर्द नही होता|
लड़को की भावनाओ की नही होती है कद्र,
अपनी भावनाओं को मारकर ही बनते है मर्द|
लड़को को अपनी आसुओं को पड़ता है पीना,
बहुत आसान नही है यहां लड़का बनकर भी जीना|
लड़कों के सिर पर होती है जिम्मेदारियों का बोझ,
बाहर से हंसता अंदर से खत्म होती है उसकी मौज|
इच्छाओं को मारकर करना चाहता सबको संतुष्ट,
फिर क्यों समाज लड़कों को ही समझता है दुष्ट|
ए दुनिया लड़कों का भी दिल है दुखता,
हर लड़कों के मन में इसका सबूत है पुख्ता.
मेरी ग़ज़लों की बेबसी समझो!
मेरी नज़्मों की तिश्नगी समझो!
ज़िन्दगी आख़री डगर पर है,
तुम मेरा इश्क़ मुल्तवी समझो!
इतनी वहशत है की तुम अब मेरा,
आख़री वार खुदकशी समझो!
मेरी चीख़ों में दर्द पैहम है,
मैं न कहती थी ख़ामशी समझो!
इश्क़ होता नहीँ मयस्सर अब,
चन्द लम्हों को दाएमी समझो!
बेबसी हिज्र का नतीजा है?
इस मुहब्बत को आख़री समझो!
जिस्म को कर्ब का 'दिया' मुझको,
दोस्त वहशत की रोशनी समझो!
तुम को 'ज़ोया' को गर समझना है,
मीरो ग़ालिब की शायरी समझो!
इतनी चुप क्यों हो
जैसे रीति नदियाँ
तुम्हारी खिलखिलाहट
होती थी कभी
झरनों जैसी कलकल
रूठना तो कोई तुमसे सीखे
जैसे नदियाँ रूठती बादलों से
मै बादल तुम बनी नदियों सी
स्वप्न में
सूरज की किरणें झांक रही
बादलों के पर्दे से
संग इंद्रधनुष का तोहफा लिए
नदियाँ सूखी रहे
तो नदियाँ कहाँ से
बिन पानी भला उसकी क्या पहचान
वैसे तुम औऱ में हूँ
रीति नदियों में
पानी भरने को बेताब बादल
सौतन हवाओं से होता
परेशान
नदी से प्रेम है तो
बरसेगा जरूर
नही बरसेगा तो
नदियां कहाँ से गुनगुनाए
औऱ बादल सौतन हवाओं के
चक्कर मे
फिजूल गर्जन के गीत गाए
जो गरजते क्या वो बरसते नही
यदि प्यार सच्चा हो तो बरसते जरूर।
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