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Tuesday, 18 July 2023

  1. हथेली पर लिए फिरता था अपनी जान लिख देना
  2. महामंडलेश्वर ऑफ व्हाट्सएप अखाड़ा 
  3. तन उजला मन कोयला
  4. बदरा अब तो बरसों रे
  5. झूठी तसल्ली
  6. नफ़ा

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हथेली पर लिए फिरता था अपनी जान लिख देना!
वतन के वास्ते जो हो गया क़ुर्बान लिख देना!

मैं अपने ख़ून का हर एक क़तरा दान कर दूँगा,
वतन अपना सजाना है न कुछ एहसान लिख देना!

अगर राहे अमल से मैं ज़रा सा भी भटक जाऊँ,
तो सच्चे इश्क़ का थोड़ा बहुत नुक़सान लिख देना!

कभी ग़ालिब कभी मग़लूब होते हैं लकी अक्सर, 
ये मंशाए फलक है क़ुदरती फरमान लिख देना!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 18.02.2022

                21 वीं सदी का यह समय वैश्विक स्तर पर डिजिटल युग का दौर है। विश्व में डिजिटल क्रांति अपने पूरे  यौवन पर है। विश्व के महान देशों के साथ भारतवर्ष भी इस दौड़ का प्रबल दावेदार है। भारत के विषय में सोशल मीडिया पर प्रचारित किया जा रहा है कि,`` भारत का भविष्य सड़कों पर भूखा सो रहा है, सुना है भारत डिजिटल हो रहा है।`` यहाँ पर किसी की आलोचन करना मेरा औचित्य नहीं है, पर इस बात में काफी हद तक सच्चाई है और आप भी मेरी इस बात से काफी हद तक सहमत होंगे। आज जनसाधारण (गाँव का आदमी) बुनियादी जरूरतों से महरूम है, जिसके लिए काफी हद तक वह स्वयं ही जिम्मेदार है। जनसाधारण (गाँव के आदमी) को यह बात समझ लेनी चाहिए कि, कोई भी सरकार जनसाधारण का उद्धार नहीं कर सकती। हरेक को अपना भाग्यविधाता स्वयं ही बनना होता है, यह जान लीजिये और जितना जल्दी जान लेंगे उतना ही अच्छा है और उतना ही जल्दी आपका भला भी होगा। देरी में आपका ही नुकसान है। चुनावों ने जनसाधारण का उपभोग भर किया जाता है। अभी भारत में स्वस्थ राजनीति आने में काफी समय है, शायद ये पूरी सदी। 22 सदी तक कौन-कौन चलेगा यह कोई नहीं जानता है।
                 खैर, राजनीति की बात से हट कर सोशल मीडिया की बात करते हैं। आज सोशल मीडिया में अनेक अखाड़े हैं जैसे, फेसबुक, ट्विटर, इनस्टाग्राम, कू, व्हाट्सएप आदि। इनमें से पहले  चार व्यक्तिगत हैं, पर अंतिम व्हाट्सअप्प अखाड़ा (ग्रुप) व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों है। आज व्हाट्सएप अखाड़ा लोकप्रियता के शिखर पर है। इस अखाड़े में प्राय: एक या एक से अधिक महामंडलेश्वर (एडमिन) पाये जाते हैं। एक प्रमुख महामंडलेश्वर अपने अखाड़े में अन्य व्हाट्सएप सन्तों को जोड़ता है और व्हाट्सएप अखाड़े का स्वरूप एवं प्रभामंडल बढ़ता  जाता है। कुछ संत अखाड़े में नियमित प्रवचन करते हैं और कुछ साप्ताहिक प्रवचन देते हैं। कुछों को मौन रहना ज्यादा पसंद है। कुछ अखाड़ों में महिला संत भी शामिल होती हैं। जहाँ अखाड़े के पुरुष संतों द्वारा शालीनता का परिचय दिया जाता है और नैतिक मर्यादाओं का ख्याल रखा जाता है, परन्तु जिस अखाड़े में सिर्फ पुरुष संतों का समागम है, वहाँ पर सात्विक-असात्विक (वेज-नानवेज) सब परोसा जाता  है। अखाड़े के कुछ संत फोकट में भोग लागते हैं और खा-पीकर (संदेशों का सेवन कर) मस्ती में दिन काटते हैं, ऐसे मस्त सन्तों की फेहरिस्त भी लम्बी है। मैं, भी कई अखाड़ों से तालुक रखता हूँ और यदि आपके पास व्हाट्सएप अखाड़ा की भव्य इमारत के निर्माण में सहयोगी स्मार्ट फोन है तो, लाज़मी है आप भी कई अखाड़ों से जुड़े होंगे और डिजिटल दुनिया में रोमांच ले रहे होंगे। 

खैर, आज के डिजिटल अखाड़ों की दुनिया में गरीब आदमी भी जद्दोजहद कर रहा है आशा है वह भी वास्तविक जीवनकाल में कुछ भोग कर सकेगा। इसी कमाना के साथ...!

आपका शुभेच्छु,
कई अखाड़ों का महामंडलेश्वर एवं संत

Written By Manoj Kumar, Posted on 13.04.2022

तन उजला मन कोयला, करते छुपकर घात।
बातों से टपके शहद, सुबह शाम दिन रात।।

तन उजला मन कोयला, नहीं किसी का मित्र।
विवादास्पद आचरण, सच्चा नहीं चरित्र।।

तन उजला मन कोयला, चलें कुटिलतम चाल।
घूम रहा ज्यों भेड़िया, पहन गाय की खाल।।

तन उजला मन कोयला, करता उल्टे काम।
खोंस छुरी को बगल में, एवं मुॅंह में राम।।

तन उजला मन कोयला, झूठ कपट की खान।
बनते ये बगुला भगत, झाड़ें झूठी शान।।

तन उजला मन कोयला, मन में भरा विषाद।
ऊपर से बगुला भगत, अंदर से जल्लाद।।

तन उजला मन कोयला, मन में पालें खार।
मक्कारी झलके बहुत, बातों से हर बार।।

तन उजला मन कोयला, करते खूब घमंड।
समय समय पर ये सभी, पाते रहते दंड।।

तन उजला मन कोयला, हर नेता की जात।
दिखला देती है उन्हें, जनता फिर औकात।।

तन उजला मन कोयला,आस्तीनों के सांप।
डस  लेते  हैं  ये  उन्हें,  जो ना लेता भांप।।

तन उजला मन कोयला, बोलें मीठे बोल।
तिलक लगाकर घूमते, करते बातें गोल।।

तन उजला मन कोयला, चेहरे पर मुस्कान।
करतूतें काली करे, बनते फिरें महान।।

तन उजला मन कोयला, बातों में उस्ताद।।
श्वेत वस्त्र धारण करें, विषधर की औलाद।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 09.05.2022

प्यारे बदरा अब तो बरसों रे
काले बदरा यू नहीं तरसा रे।
तरस रही हमारी अंखियां रे
झमा झम करते बरस जा रे।।

तुझे पूजे सारी यह दुनियां रे
अब बरसों  मेघों के राजा रे।
नहीं करो अब कल परसों रे
तुमसे जीवन हम सब का रे।।

ये सावन निकल रहा ऐसे रे
सूखे सारे खेत- खलिहान रे।
तेरे बिन प्यासे हम इंसान रे
यह धरती बन रही बंजर  रे।।

हमारी आशाएं पूरी करदे रे
ऐसा आज कुछ तू कर दे रे।
नदियां तालाब सारे भरदे रे
प्यारे बदरा अब तो बरसों रे।।

तेरे बिना कोई खुशी नहीं रे
बाग - बगीचे भी हरें नहीं रे।
अब बरसो बदरा - बदरी रे
करो सबको ‌सुख-सम्पन्न रे।।

Written By Ganpat Lal, Posted on 14.05.2022

झूठी तसल्ली

SWARACHIT5076

Rehan Raza Shah
~ रेहान रज़ा शाह

आज की पोस्ट: 18 July 2023

झूठी तसल्ली दिलाइए मत
जाना ही है तो फिर आइए मत

ओ हसीना, खूबसूरत आंखों वाली
आप इतना मुस्कुराइए मत

सुना है कुम्हार के हाथ कांपते है
आप दुकान में जाइए मत

खुदा ने नवाज़ा है तो क़द्र कीजिए
आप ज्यादा इतराइए मत

मज़दूरी उसकी मजबूरी है
आप उसे और दबाइए मत

रेहान धोखा उसकी फितरत है
आप उसे गले से लगाइए मत

Written By Rehan Raza Shah , Posted on 18.07.2023

नफ़ा

SWARACHIT5077

Sakshi Matur
~ साक्षी माथुर

आज की पोस्ट: 18 July 2023

रोते मुल्क के अश्कों वाली
बारिश में बेखौफ़ घूमता है
छिछली सियासत की आँच पर
गरीब का गोश्त भूनता है।

मुफ़लिसी की तस्वीरों का कायल
उसे अपने तरीके से भुनाता है
शहर का ज़र्रा-ज़र्रा जानता है
मगर अपने रास्तों पर घुमाता है

अफ़वाहों के गर्म बाज़ार में
वो अपनी दुकान चलाता है
बेच कर रोज़ खबरें रंगीन
ज़बरदस्त मुनाफा कमाता है

सच में झूठ की स्याही मिला कर
बड़ी दिलचस्प कहानियाँ गढ़ता है
मंज़िल का जुनूँ सवार है उसपर,
लाशों की सीढ़ियाँ चढ़ता है।

Written By Sakshi Matur, Posted on 18.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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