ये दुनिया खेल-तमाशा है
ये ड्रामा अच्छा-खासा है
गूगल सी कोई भाषा है
ये इसरो भी क्या नासा है
ये दुनिया खेल……
ये गोरख धन्धे वो जाने
जो खुद को भी ना पहचाने
बेकार गढ़े हैं अफ़साने
फिरते सब नाहक दीवाने
क्यों दिल में पाले आशा है
सिर्फ़ चहुँ ओर निराशा है
ये दुनिया खेल……
संत बड़े है झांसा राम जी
जैसे लगते झण्डू बाम जी
आते भक्तों के बड़े काम जी
खूब कमाया उसने नाम जी
व्यापार ये अच्छा खासा है
खाने को खील-बताशा है
ये दुनिया खेल……
दाम मिले कुछ भी ना भइया
डॉलर आगे फ़ैल रुपइया
दिन-रात करे ता ता थइया
याद दिला दी सबको मइया
खेल मदारी का झांसा है
सबको जनतन्त्र ने फांसा है
ये दुनिया खेल……
चलें आओं कन्हैया अब नदियाॅं के पार,
सुन लो सावरियाॅं आज मेरी यह पुकार।
देकर आवाज़ ढूॅंढ रहीं राधे सारे जहान,
इस राधा पर करों कान्हा आप उपकार।।
कहाॅं पर छुपे हो माता यशोदा के लाल,
खोजते-खोजते क्या हो गया मेरा हाल।
आ जाओं तुमको आज राधा में बना दूॅं,
कहा था तुमने अब करदो मुझे निहाल।।
कितनी परीक्षा अब और लोगें बनवारी,
कहतें है कण-कण में आप बसे मुरारी।
फिर इतना हमें क्यों तड़पाते हो कान्हा,
मैं सुधबुध खो रही नैन थक गई हमारी।।
अब बालगोपाल तड़पाओ नहीं ज्यादा,
तुमने किया जो वादा रहा आज आधा।
अधूरी रहीं मैं अधूरा रहा तुम्हारा वादा,
मुझको बनाओगे कृष्ण और तुम राधा।।
नहीं दिख रहीं तुम्हारी गायें और ग्वालें,
आकर अब मुझको अपना हमें बनालें।
ऐसी करो कृपा की ये झोली भर जाऍं,
मिटा दो अंधियारे और कर दो उजालें।।
रात है चांदनी कुछ
बात हो जाय
मुलाकात दिल की
दिल से हो जाय,
गुन्चा गुन्चा चमन का
अब महक जाए
सारे गुलशन में
आज धूम हो जाय,
बात कहना है जो
कहो तुम भी,
मेरा दिल मुरली की
तान हो जाय,
अब ऐसे शर्माओ
तुम हमसे ए जानां,
मेरे चेहरे पर पलकों
की छओं हो जाय,
रात बरसात की और
मौसम भी सुहाना है,
नशा बढ़ कर क्यों न,
मेरा सुरूर हो जाए,
वो भी चुप हैं,
और मेरी भी जुबां
बन्द मुश्ताक,
वल्लाह आंखों आँखों
से ही बात हो जाय।
कुसंग का संग ने छोड़ा,
सत्संग का संग छोड़ दिया,
आज के इस इंसानों ने,
अच्छाई का संग छोड़ दिया,
मात पिता ने जो सिखलाई,
सीख वो अच्छाई की,
आज वो अपने सुख की खातिर,
राह चला बुराई की,
गुटखा तंबाकू की लत में आकर,
मुख की शोभा भुला दिया,,,, कुसंग
वो क्या सभ्य वो क्या शिक्षित हैं,
जिसके हर अंग में नशा भरा है,
नशे की इस आदत ने सबको,
नशीला बना दिया,,,,,,, कुसंग
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 20.04.2023युवा बैठे हैं बेरोजगार,
ढूंढते ही रह गए रोजगार
घर में बैठे मां बाप,
लगाए हुए नौकरी की आस।
देहरादुन जाकर कोचिंग लगाई,
फिर भी मेहनत हाथ ना आए।
पैसे देकर बनते रहे लोग कर्मचारी,
हम भरते ही रह गए फॉर्म सरकारी।
कई सालों से कर रहें मेहनत,
पेपर लीक से नही हम सहमत।
घर वाले चाहे खूब करो पढ़ाई,
रिश्तेदार पूछ रहे कब कर रहें हो सगाई।
लड़ रहे अपने हक की लड़ाई बेरोजगार,
सड़को पर उतर रहे जो बारम्बार।
मै लेखिका करती हु उनका सम्मान,
लाठी चार्ज से हो रहा जिनका अपमान।
कौन हु मै आधा सी
क्यू कृष्ण की लगती राधा सी
स्त्री रूप मे जन्मी मै
जन्म मेरी लगे बाधा सी
प्रगति के पथ पर चल नही पाती
बदनामी है परिभाषा मेरी
सोचु बैठी मै अकेली
कौन हु मै आधा सी।
सम्पूर्णता कैसे हासिल होगी
कैसे पुरी स्त्री की परिभाषा होगी
कैसे जीवन पथ पर चल कर
पूर्ण करु अभिलाषा सभी
अब तु ही बता ए मेरी सखी
कौन हु मै आधा सी
क्यू कृष्ण की लगती राधा सी ।
प्रेम हुआ न पूर्ण हमारा
आधी अधूरी मै राधा सी
मीरा की भक्ति पा न सकी
समाज बन गयी बाधा सी
कौन हु मै आधा सी
क्यू कृष्ण की लगती राधा सी
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