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Tuesday, 11 July 2023

  1. पर्वत से बहते नाले सुन
  2. भ्रम
  3. खेल अजब इस जीवन के
  4. गरीब की सर्दी
  5. अनुभूतियां
  6. बीती हुई बातें

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पर्वत से बहते नाले सुन,

क्यों इतना शोर मचाता है?

तुझ जैसे लाखों धरती पर,

क्यों व्यर्थ ही राग सुनाता है?

 

सरिता में जाकर तेरा स्वर,

नितान्त शान्त हो जाएगा।

सां सां करती सरिता का भी,

सागर में अन्त हो जाएगा।

 

हां, है ऋतु ये वर्षा की,

तो तू अहम में चूर है।

क्योंकि निर्झर बहते जल से,

तू भरा हुआ भरपूर है।

 

आएगा जो जल अंबर से,

उसने तो बह ही जाना है। 

बीतेगा वर्षाकाल और 

तूने सूखे रह जाना है।

 

तो एक सीख लो सागर से,

जो लाखों रत्नों का स्वामी है।

ना शोर मचाता व्यर्थ कभी

ना ही वो अभिमानी है। 

 

सुख–दु:ख में सम–स्वभाव रहे,

सिद्धान्त यही अपनाना है।

बीतेगा वर्षाकाल और 

तूने सूखे रह जाना है।

Written By ShivkumarSharma, Posted on 08.07.2023

भ्रम

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Dumar Kumar Singh
~ डुमर कुमार सिंह

आज की पोस्ट: 11 July 2023

 हर कोई पीछा छुड़ाना चाहता है भ्रम से,

आश्चर्य यहाँ सब जी रहा है भ्रम में।

 

दूध पिलाना सांप को गलत नहीं,

जितना पालना गलत है भ्रम को।

 

सुखमय जीवन तब होगा

वास्तविकता जब स्वीकार्य होगा,

तब पीड़ा होगी, दुःख होगा

इनका समय अल्प होगा,

देखेंगे जो भी हम वो बहुत ही स्पष्ट होगा।

 

चले गए कुछ लोग हमें छोड़कर,

खास जिन्हें समझते थे हम भ्रम में।

 

साथ रखो तो जीवन नाश

ना रखो तो मन उदास,

भ्रम का खेल भी निराला है

निकलना चाहता तो सब है

पर सब जी रहा है भ्रम में।

 

जानता है सब यहाँ पर जीवन हमारा नश्वर है,

पर मरने से सब कतराते है

बस जिना चाहते है भ्रम में।

 

मानता हूँ कि विपरीत जाना मुश्किल है

खुद के विचारों के, ख्यालों के,

पर तर्क वितर्क कर

निकलना ही मुनासिब है भ्रम से।

 

हर कोई पीछा छुड़ाना चाहता है भ्रम से,

आश्चर्य यहाँ सब जी रहा है भ्रम में।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 09.07.2023

खेल अजब इस जीवन के,
सवाल गजब हैं भीषण से,
नित नयी महाभारत बनती यहाँ
हम बस तैयार रहते भीष्म से......

खेल अजब इस जीवन के,
बदलते हम बहारी उपवन से,
वक्त की बहुत अहमियत है यहाँ
बाकी सीखते दुनिया के चलन से....

खेल अजब इस जीवन के,
आशा की ज्योति बहती नयन से,
टोकरें खाते और आगे बढते रहते,
रूकते नहीं जो किसी बन्धन से....

खेल अजब इस जीवन के,
ख्वाहिशें बाहर झांकती स्वप्न से,
मजबूर खुद को फिर महसूस करते
विकल्प नही है,सिवाय क्रन्दन के....

खेल अजब इस जीवन के,
राह नहीं कोई बिना लगन के,
अंधाधुंध दौड़ रहे सब यहाँ
तृष्णा न निकली बैचेन मन से....

खेल अजब इस जीवन के,
सब निर्भर होता हमारे चयन से,
विश्वास और धैर्य ही मंजिल है
सकारात्मकता रखो बस गगन पे,
खेल अजब इस जीवन.....

 

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 12.09.2021

सर्दी गर्मी सभी को लगती है
चाहे अमीर है या है गरीब
कौन कैसे झेलता है इसको
यह सबका अपना है नसीब

किसी के पास तन ढकने को कपड़े नहीं हैं
बोरी से ही बदन ढक कर काम चलाता है
पांव में पड़े हैं छाले नहीं हैं जूते
नंगे पांव ही आगे बढ़ता जाता है

किसी को मिलता है गर्म विस्तर सोने को
ठंडे फर्श पर ही कोई सो जाता है 
मुश्किल से मिलता है गरीब को निवाला
अमीर अपने कुतों को भरपेट खिलाता है

गरीब को आदमी यहां समझता कौन है
दिल में किसी के कोई नहीं हमदर्दी
छत के नाम पर टूटी झोंपड़ी है उसकी
बीत जाती है उसी में गर्मी हो या सर्दी

फुटपाथ पर सोते हैं अभी भी लोग
फिर भी कहते हैं हम समृद्ध हैं
खाने को मिलती है मुश्किल से रोटी
दृष्टि बिछाए बैठे चारों तरफ गिद्ध हैं

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 29.01.2022

अनुभूतियां

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Mili Kumari
~ मिली कुमारी

आज की पोस्ट: 11 July 2023

क्या अब मुझे 
अनुभूतियां नहीं होती...
या फिर अब मैं वह 
अनुभव ही नहीं करना चाहती!

क्या अब लोग 
बिच्छू सा डंक नहीं मारते...
या फिर अब उस डंक का 
कोई प्रभाव ही नहीं मुझ पर!

क्या अब आत्मविश्वास
मंद नहीं पड़ती...
या फिर अब अत्यधिक विश्वास 
हो चुका है स्व पर!

क्या अब पथ पर
काटें नहीं बिछते मेरे...
या फिर अब काटें भी 
फूलों सा स्पर्श देने लगे है!

क्या अब कठिनाइयां
अपना ठिकाना नहीं ढूंढती जीवन में...
या फिर अब कठिनाइयों को भी 
मात दे दिया है साहस ने!

जीवन की हर परिस्थिति को
अपनाना सीखा है मैंने...
अब परिस्थितियां मुझ पर
अपना प्रभाव नहीं डाल सकती!

आश्रय स्वयं पर हो तो...
दुर्बोध क्षण भी
सुबोध क्षण में बदल सकते है!
दुर्बोध क्षण भी सुबोध क्षण में बदल सकते है!

Written By Mili Kumari, Posted on 19.06.2023

बीती हुई बातें

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Prakash Pant
~ प्रकाश पंत

आज की पोस्ट: 11 July 2023

वक़्त के मुताबिक ढल जाने को जी चाहता है
बीती हुई बातें भूल जाने को जी चाहता है।
एक अरसा हुआ आपको हमसे कटे हुए
आज दरमियाँ के फासले मिटाने को जी चाहता है।
दिल नही लगता तेरे अजनबी शहर में
आज अपने घर जाने को जी चाहता है।
एक उम्र से उसने कुछ शिकायत नहीं की
आज फिर से उन्हें सताने को जी चाहता है।
अब तो इन्तहा कर अपने सितम की ऐ खुदा
इंनसा है हम, हमारा भी मुस्कुराने को जी चाहता है।

Written By Prakash Pant, Posted on 11.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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