लड़ा कर इश्क गैरों से वो अब ठुकरा दिया मुझको!
मेरी औकात क्या है उसने ये बतला दिया मुझको!
उठा कर आस्माँ से जब गिराना था तेरा मक़सद,
बता फिर ख़ाक से क्यों अर्श पर बैठा दिया मुझको!
कभी पूरी नही करनी थी मेरे दिल की ख्वाहिश को,
दिलासा आपने फिर किस लिए झूठा दिया मुझको!
गिला शिकवा किसी से करके यारों फायदा क्या है,
मरासिम तोड़ के जब ग़ैर ही ठहरा दिया मुझको!
दुआएँ अर्श से टकरा के मेरी लौट आई हैं,
तुम्हारे दर ने खाली हाथ फिर लौटा दिया मुझको!
ये कैसी ज़िन्दगी तूने अता की है मेरे मौला,
चले तो हर क़दम पे इक नया खुद्शा दिया मुझको!
मुझे शायद कभी खुशियाँ लकी हासिल नहीं होंगी,
दुबारा दिल के बदले उसने दिल टूटा दिया मुझको!
चंदा मामा सबसे प्यारे,
चंदनी रात में छलकाते।
होंठों पर हंसी लाते,
दिल में खुशियों की बाराते।
उठो बच्चो, बोलो जोर से,
चंदा मामा चाँद पर हैं दौड़े।
सुबह-सुबह जगाते हैं हमें,
प्यार से हमको बुलाते।
क्या क्या सुनाएं हम तुम्हें पुरानी बातें
किस संघर्ष से निकल कर मिली हैं सांसे
सर भी कटे थे सूली भी चढ़े थे
उन्हीं की रहमत स्वतंत्र हैं हुए
था भारत भी तब रोया
जब सीने पर लहू के दाग़ थे मिले
फूलों के मौसम में शहीदों के लगे थे मेले
आज उनको कैसे न याद करें
कैसे हमारे लिए उन्होंने सर थे कटाए।
लाठी लिए, धोती पहने
एक बापू ने बड़ा कुछ है किया।
21की उम्र में एक मां का लाल,
छोड़ कर सब ख्वाईशें
शहीद भगत सिंह कहलाया
राजगुरु, सुखदेव को भी अपने साथ था मिलाया
रानी थी एक महलों की
साज श्रृंगार छोड़ उसने
तलवार थी उठाई
पीठ पर उठा बेटे को....
रण युद्ध में थी आई
ऐसी महान स्त्री मेरे देश की थी, लक्ष्मीबाई।
फौजों के नायक थे सुभाष चंद्रबोस
हाथ से हाथ मिला कर सेना की माला थी बनाई
अंग्रेजों पर पड़ी थी जो भारी
और भी बहुत थे,किया जिन्होंने बड़ा जतन
याद में उनकी मेरा सर करता है नमन
उन्हीं की वजह से,तो हम है स्वतंत्र ....
है स्वतंत्र...।
कैसे हो अपना मेल प्रिये
ये तुम हमको बतला दो
कैसे मै लगूं तुम्हारे जैसा
ये तुम हमको समझा दो
तुम लाल टमाटर जैसी महंगी
मै हूं देसी आम प्रिये
तुम हो गेहूं का गोडाउन
मै सस्ते गल्ले की दुकान प्रिये
तुम फरचुनर की आदी हो
मै रखता हीरो होंडा हूं
तुम खाती पिज्जा बर्गर हो
मै खाता चावल दाल प्रिये
तुम रखती कई शौक न्यारे
मै लगता एकदम झझ्झण हूं
तुम शहर की रहने वाली हो
और मै देहाती खुझ्झण हूं
तुम जींस टाप में लगती प्यारी
मै जो मिलता वही पहनता हूं
तुम चाहती मैं पहनू सूट बूट
किंतु मै सूट बूट न रखता हूं
कैसे हो अपना मेल प्रिये
ये तुम हमको बतला दो
कैसे मै लगूं तुम्हारे जैसा
ये तुम हमको समझा दो
मेरा दर्द
सिर्फ और सिर्फ
मेरा दर्द है
इसको कोई भी नहीं
बांट सकता
क्योंकि
ये तो मेरे संग
अठखेलियां करता है
और
मेरे ही संग
वो हर वक्त
कदम दर कदम
मेरे संग ही चलता है
और
चलता ही रहेगा।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 12.05.2021लो आज फिर आ गई बारिश
जैसे कर रही हो कोई हमसे साजिश
भीग रहा है सारा जहां,
हो रही है प्रकृति भी मगन,
लेकर कोई अपने में कशिश।
फिर आया सावन का मौसम,
याद आया गुजरा ज़माना ,
भीग रहे है सभी बारिश में,
लेकर हर कोई अपना गम ।
दिल फिर है उदास आज,
हो नहीं रहा कोई जख्म कम।
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