नाम तेरे लिखी
मैंने ये ज़िन्दगी
दिल फटे हो गई
एक दीवार सी
हो मुबारक तुझे
जीत भी हार भी
बह रही दिल में है
प्यार की इक नदी
है नशा प्यार का
छा गई बेख़ुदी
उस मुलाक़ात को
हो गई इक सदी
आप जब रूठते
रूठती हर ख़ुशी
क़त्ल तो हो गया
था न क़ातिल कोई
झूट की जीत से
सच को सूली मिली
नाम `आनन्द` का
याद है आज भी
फूल खिले हैं प्यार के
गले मिलो गुलनार के
साये में दीवार के
फूल खिले हैं ……………….
जीतो अपने प्यार को
लक्ष्य करो संसार को
अपना सब कुछ हार के
फूल खिले हैं ……………….
ऐसे डूबो प्यार में
ज्यों डूबे मझधार में
नैया बिन पतवार के
फूल खिले हैं ……………….
ख़ुशी मनाओ झूमकर
धरती-अम्बर चूमकर
सपने देखो यार के
फूल खिले हैं ……………….
दिल से दिल को जोड़िये
प्रेम डोर मत तोड़िये
बोल बड़े हैं प्यार के
फूल खिले हैं ……………….
दिन हो या फिर रात हो
आँखों-आँखों बात हो
बोल नए हों प्यार के
फूल खिले हैं ……………….
भारतीय उपमहाद्वीप में कई हजार वर्ष पूर्व आम के बारे में लोगों को पता चल गया था। और आमों के पेड़ लगाए जाने लगे थे, चौथी से पाँचवीं शताब्दी पूर्व ही यह एशिया के दक्षिण पूर्व तक पहुँच गया। आम खून बढ़ाता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।दिलचस्प बात यह है कि गर्मियों का फ़ल होने के बावजूद यह गर्मियों में होने वाली बीमारियों से हमारी हिफ़ाज़त करता है। कैसी यानी कच्चे आम यकी सब्जी का इस्तेमाल भी लोग अच्छे तरीके से करते हैं. कैरी की सिरप ली से बचाता है। जिसे हम पना भी कहते हैं, साथ ही इसके बेमिसाल स्वाद से कौन परिचित नहीं है. स्वादिष्ट और कुरकुरे अचार महिलाओं द्वारा घरों में व्यापक रूप से बनाए जाते हैं और जार में रखे जाते हैं और इस भोजन के साथ प्रयोग किए जाते हैं। और आम का अधिक से अधिक सेवन व्यक्ति को बढ़ती उम्र से बचाता है। अस्थमा से बचाव करता है। कैंसर को रोकने में मदद करता है। यह हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।यह पाचन तंत्र के लिए उपयोगी है। यह हृदय स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यह हृदय स्वास्थ्य और संक्रमण के खिलाफ भी प्रभावी है। आम का अधिक से अधिक सेवन मानव को वृद्ध होने से रोकता है। कैंसर को रोकने में मदद करता है। हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी, पाचन तंत्र के लिए आवश्यक। यह हृदय स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यह हृदय स्वास्थ्य और संक्रमण के खिलाफ भी प्रभावी है। इस प्रकार अनेक कवियों ने भी अपनी कविताओं में आम का उल्लेख किया है।आम का पौधा वास्तव में छह महीने या एक साल में नहीं बल्कि लगभग पांच साल बाद फल देने लगता है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इन पांच सालों में इस प्लांट को कितना मेंटेनेंस करना होगा। लेकिन इस सब्र का फल बहुत मीठा होता है। देई, कतर, अबू धाबी, कुवैत, आन और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों में हमारे भारतीय आमों की काफी मांग है। जब आमों में मोर आते हैं तो ये निर्यातक और आयातक आम के बागों के मालिकों से संपर्क कर प्रति एकड़ लाखों रुपए अग्रिम देते हैं, इस प्रकार आम भी नकदी फसल है।। क्योंकि भारा मात्रा में विदेशों को भेजा जाता है। इसलिए, इसकी मानक पैकेजिंग की जाती है, आम संस्कृत शब्द आम वास्तव में संस्कृत शब्द आम्र से लिया गया है। साहित्य में इसका उल्लेख तानाशाह के नाम से मिलता है और यह 4000 वर्षों से अस्तित्व में है। अंग्रेजी में मैंगो भारतीय तमिल शब्द मंगई से आया है। पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी के बीच, स्पेनिश जहाज फिलीपींस से मेक्सिको में आम की गुठली लाते थे। इस प्रकार, मनीला से लेकर फ़्लोरिडा और वेस्ट इंडीज़ तक प्रशांत क्षेत्र में हर स्पेनिश उपनिवेश में आम आम हो गए, और फिर। अटलांटिक महासागर को पार करते हुए यह स्पेन (ग्रेनेडा और कैनरी द्वीप समूह) और पुर्तगाल तक पहुँच गया। मालाबार के तट से आम का पौधा पुर्तगाली और अरब जहाजों में पूर्वी अफ्रीका पहुंचा। इब्न बतूता ने सोमालिया के मोगादिशु में आम (आम का पुर्तगाली नाम) खाने का आनंद लिया और इसका उल्लेख किया। हिंदू धर्म में पत्ते से लेकर छांव तक हर चरण में आम का महत्व है। आम के पेड़ का उल्लेख कई जगहों पर कल्पवक्रश यानी हर मनोकामना को पूरा करने वाले पेड़ के रूप में किया गया है।इस पेड़ की छाया के अलावा कई धार्मिक मान्यताएं इसके साथ जुड़ी हुई हैं जैसे राधाकृष्ण का नृत्य, शिव और पार्वती का विवाह आदि। भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर को भी आम बहुत पसंद थे और उन्होंने आम पर एक कविता भी लिखी थी। ग़ालिब और आम उर्दू के महान शायर ग़ालिब के आम के आकर्षण से कौन परिचित नहीं है। पुरानी कथाओं के मुताबिक, पहला आम का पेड़ इंडो बर्मा रीजन में करीब एक हज़ार साल पहले उगा था।एक चीनी यात्री सिएन - त्सांग 632 एडी में जब पहली बार भारत आया था, तब उसने आम ( संस्कृत में आम्र ) के बारे में पूरी दुनिया को बताया था। इतना ही नहीं, मुगल बादशाह अकबर ने दरबंघा के बगीचे में करीब एक लाख आम के पेड़ लगवाये थे, जिसका ज़िक्र `आईना-ए-अकबरी` (1590) में भी है। अलाउद्दीन खिलजी आम के पहले खरीदार थे और सिवामा किले में उनके द्वारा आयोजित की गई आम की भव्य दावत काफी प्रसिद्ध हुई। इस दावत के मेन्यु में केवल आम से बने तरह - तरह के व्यंजन थे। इतना ही नहीं, मुगल बादशाह बहादुर शाहज़फर भी आम के दीवाने थे और उन्होंने दिल्ली के लाल किले के अंदर आम के कई पौधे लगना थे।महात्मा कालिदास जी ने इसका गुणगान किया है, सिकंदर ने इसे सराहा और मुग़ल सम्राट अकबर ने दरभंगा में इसके एक लाख पौधे लगाए। उस बाग़ को आज भी लाखी बाग़ के नाम से जाना जाता है। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है। कविताओं में इसका ज़िक्र हुआ और कलाकारों ने इसे अपने कैनवास पर उतारा। भारत में गर्मियों के आरंभ से ही आम पकने का इंतज़ार होने लगता है। आँकड़ों के मुताबिक इस समय भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ टन आम पैदा होता है जो दुनिया के कुल उत्पादन का ५२ प्रतिशत है। आम भारत का राष्ट्रीय फ़ल भी है।
Written By Mushtaque Ahmad Shah, Posted on 23.03.2023देख अचानक उठती मितली,शरमाई होगी मेरी माँ,
पाकर अपने गर्भ में मुझे, इठलाई होगी मेरी माँ !
सुन मेरी आवाज रोने की,फूले नही समाई होगी,
सहकर हर पीड़ा मुझे धरा पर लाई होगी मेरी माँ !
खोकर सारा शुकून,पल-पल मुझे निहारती होगी,
सुनकर अंजानी हर आहट, घबराई होगी मेरी माँ !
देकर लहुँ जिगर का सृजा,स्वरूप स्वयं का कमाल,
सुन छम-छम पैजनिया धुन, हरसाई होगी मेरी माँ !
लुटा के सारे स्वप्न-सिंदूरी, चाहा सन्तति हित केबल,
भटक न जायें पथ से कहीं,देती दुहाई होगी मेरी माँ !
चुका सका न मोल कोई माँ के अदभुत त्याग का,
जो आई गम की धूप, बदली बन छाई होगी मेरी माँ !
हो नही दुःखी ह्रदय माँ का,रखना यही ख़याल सदा,
होंगी खुशियां ही खुशियां जब मुस्काई होगी मेरी माँ !
आज डा. नविता की गिनती बहुत अच्छी स्त्री विशेषज्ञों में की जाती है। जब एक मैडीकल सेमिनार में मंच पर उसका नाम बोला वह मंच पर पहुँची आज मैडीकल एसोसिएशन ने कोरोना काल में उसके काम की लगन व गम्भीरता को देखते हुये उसे सम्मानित करने का निर्णय लिया था ।
नविता ने अपने फ्लैट पर आकर अपनी माँ और पापा की फोटो पर वह सम्मान रख दिया और मां और पापा आपका यह प्यार भरा ऋण में कभी नहीं उतार पाऊंगी कितनी विकट परिस्थितियों में आपने मेरे को डा. बनाया ।
नविता पुरानी यादों में खो गयी । उसके पापा की बस यही इच्छा थी कि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा लें क्योंकि वह स्वयं एक अध्यापक थे । वह हमेशा कहते थे कि हमारे पास लक्ष्मी नहीं है पर सरस्वती हमारे साथ हमेशा रहेगी । वह नविता को डा. के रूप में ही देखना चाहते थे । नविता ने भी उनकी इच्छा को सर्वोपरि माना । दोनों भाई इंजीनियरिंग लाइन पसंद करते थे ।वह उससे छोटे थे इसलिए मां और पापा दोनों का पूरा ध्यान नविता पर था ।
आज नविता का मैडीकल एन्ट्रेस का रिजल्ट आने वाला था । वह और मां पापा सुबह से ही इन्तजार कर रहे थे । रात भर पता लगाते रहे कि रिजल्ट आया कि नहीं क्योंकि उस समय मोबाइल सुविधा नहीं थी । अखबार में ही रिजल्ट आते थे पूरे दिन और रात भर इन्तजार करके सुबह जैसे ही अखाबार आया पापा ने खोला वह बोले नविता अपना नं. बता । उस नं को देख कर खुशी से उछल पड़े बोले बेटा तेरी मेहनत सफल हो गयी ।
पापा ने तुरन्त उसके दादाजी को खबर दी बैसे पापा के भाई बहन हमेशा पापा की अवेहलना करते थे क्योंकि व्यापार करते थे और आर्थिक स्थिती बहुत मजबूत थी । सुनकर चाचा लोग घर आये । उनके चेहरों से पता चल रहा था कि इस खबर से जलन के कारण उनकी छाती पर सांप लोट रहे हैं। आकर बोले कहीं गलती से दूसरा नं. अपना तो नहीं समझ लिया । पापा बिलकुल चुप रहे पर नविता ने तुरन्त अपना रोल नं कार्ड और अखबार चाचा को दिया और कहा तसल्ली से देख लीजिये । नं. देखकर बस खिसयानी हंसी हंसने लगे ।
Written By Madhu Andhiwal, Posted on 06.07.2023कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।