ताकतें नयन
अपने मन में
बेपनाह
स्वप्न पाले हुए
देख रहे हैं
उनकी राह
जो दे सकें
ताकतें नयनों को
जीने के लिए
जरा सा सहारा
और फिर
खिल जाए
ताकतें नयनों में
नई जिंदगी
जीने की आशा।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 13.05.2021किसी को फूल मिला तो किसी को खार मिला
मैं खुशनसीब था सो मुझको माँ का प्यार मिला
तुम्हारी फोटो जो देखी तो मैं चला आया
तुम्हारा जैसे ही मुझको ये इश्तहार मिला
ये इत्तेफाक़ था या चाल थी कोई उसकी
मैं जब भी गुज़रा वो रस्ते में बार बार मिला
हसीन वादी की चाहत मैं लेके निकला था
मैं बद नसीब कि ता उम्र रेगज़ार मिला
खुशी में साथ हमारे तो बेशुमार दिखे
मगर न दोस्त कोई अपना ग़म गुसार मिला
वतन परस्ती की जब जब भी बात आई है
वतन के वास्ते हर कोई जाँ निसार मिला
वह सोचता रहा कासा गदाई भर देगा
किसी ग़रीब को कब कोई माल दार मिला
मैं आँख मूँद के जिसका यक़ीन करता रहा
तमाम ज़िन्दगी धोखा उसी से यार मिला
ये बात आज बताता हूँ मैं लकी सुन लो
तुम्हारे साथ हर इक लम्हा याद गार मिला
वो सोता भी है की नहीं
अब कौन कहता होगा उसे सो जा
रात बहुत हो गयी है
बाकि काम कल कर लेना
कोई नहीं
माँ थी तो किसी बात की फिकर नहीं थी
आज सुविधाएं होने के बावजूद भी
एक बेचैनी सी रहती है
मन में खुद के लिए
आने वाले कल के लिए
देखा था एक शख्स मैंने बचपन में
हुबहु खुद जैसा
हँसता- खिलखिलाता चेहरा
हर दम चेहरे पर एक भावुक सी मुस्कान
जिसे देखकर भूल जाते थे
माँ- बाप अपनी थकान
क्या बनाती है वक़्त की सुई ?
रहता नहीं फिर वो जैसा था
वैसे वाला इंसान
भूल जाता है खुद को
और खो देता है अपनी
पहचान
शायद उस जैसा होना भी नहीं है
इतना आसान
मालूम नहीं जिसे क्या होता है
एक पिता का जीवन में होना
मालूम नहीं उसे क्या होता है
जीवन में एक पिता का कहीं
खोना
मालूम है तो बस! वो है
एक विदुषी माँ का प्रेम
बच्चों के लिए
माँ को तपते देखा है जेठ की गर्मी में
माँ को भीगते देखा है बरसात में
किसके लिए
अपने बच्चों के लिए उनके
भविष्य के लिए
एक माँ को रोते देखा है
बच्चों के सो जाने के बाद
एक माँ को रोते देखा है
बच्चों को डाँटने के बाद
फ़िर भी समझ नहीं सकते
एक स्त्री को हम
जो समाज के लाखों ताने
सुनने के बाद भी
डटी रहती है अपने
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए
उनका जीवन संवारने के लिए
बिगड़े ना बच्चे समय के साथ
डर लगा रहता है
वो माँ लगी रहती है
उनके लिए कंटीली राह को सुधारने में
बड़े होकर छीन लेती है
काल की देवी हमसे
हमारे शौक, हमारा बचपना
बहुत ज्यादा संघर्ष भी नहीं
करता है, हाँ थोड़ा बहुत
जो दिखता है उस आईने को
जिसे खुद भी आज तक नहीं देखा है
मैंने देखा है एक शख्स को
शिद्दत से हर वो काम करते हुए
जो उसे दिया गया या उससे
कभी करवाया गया
कैसे रक्खता होगा वो खुद को
जिंदगी के इस मेले में
जिसमें खुद की साँसों का भी
भरोसा नहीं
मैंने लड़ते देखा है उसे
किस्मत से उस रब से
जिसने हम सबको बनाया है
मैंने देखा है उसे
देर रात को सोते हुए
मैंने देखा है उसे
ब्रह्म माहुर्त से पहले उठते हुए
उन पक्षियों की तरह जो
अपना घौंसला सवेर होने से पहले ही
छोड़ देते हैं
मैंने देखा है उसे रोते हुए
अकेले में, बिस्तर में, बारिश में
पर किसके लिए?
इन सब सवालों का जवाब ढूँढना है
मुझे उससे मिलके
उसके चेहरे पर कभी कोई
किसी प्रकार की शिकन नहीं देखी है
देखा है तो बस उसको
हँसते- मुस्कुराते देखा है
उसकी आँखों को पढ़ना है मुझे
उसके उस दर्द को जानना है
जो वो हमसे कभी
बयाँ ही नहीं कर पाया
अपने किये वादों पर
उसे खुद की जान लुटाते देखा है
कितना अकेला होगा वो शख्स
खुद से इस ढोंगी समाज से
अपने काम- काज से
कितने ज़ख़्मों पर मरहम लगाया होगा
पर खुद के ज़ख़्मों को उसने
ज़रूर सबसे छुपाया होगा
ये वक़्त भी एक सा कहाँ रहता है
और रहे भी फिर
वो सब कहाँ पास रहते हैं
जिनके लिए हम जीते हैं
मुझे मिलना है खुद से मुझे मिलना है
उस शख्स से जो खुद के बारे में
झूठ बताता है खुद को आईने को
खुश रहे जिंदगी और खुश रहे ये जमाना
आज जिंदा है हम, कल हमें भी ये चकाचौंध छोड़कर है जाना
लिख दूँ बिन सोचे कुछ भी
ऐसी जिसकी हस्ती है,
भंवर से भरे समुन्दर में चल जाये
ऐसी उसकी कश्ती है,
मुस्कुराकर बस साथ रहती है जो
बिन सोचे कुछ भी,
हर रिश्ते से नायाब बन्धन है वो
जिसका नाम दोस्ती है.....
मोहोब्बत जहाँ खत्म होती
वहाँ ये खड़ी मिलती,
रिश्तों में जहाँ मिलावट होती
वहाँ शुद्ध बस यही होती,
सपनों की टूटन जब-जब होती,
यही मरहम में बस मिलती,
कीमती होंगें बहुत लोग आपके
ये आज भी सस्ती है
हर रिश्ते से नायाब बन्धन है वो
जिसका नाम दोस्ती है.....
समझ न पाये बहुत कुछ
फिर भी समझदार है,
साथ निभाने को न कुछ हो
फिर भी वफादार है,
इसके बिना अधूरा हर पल
अधूरी हर बहार है,
मिले होंगी बहुत सी चाहतें आपको
ये भी अपनेपन की बस्ती है
हर रिश्ते से नायाब बन्धन है वो
जिसका नाम दोस्ती है...।
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 07.09.2021
मुझको बदला नहीं किसी ने
मै खुद बदल गया।
ख़ुद ही फिसल गया था
मै अब खुद ही सम्हल गया।
कोई मुझे समझे न समझे
अब मैं खुदको समझ गया।
न ही रहा सहारा कोई अब
खुद का मैं हमदर्द बन गया।
किया था जिन पर भरोसा
आँख बंद करके न रहा मुझको
अब उनपर नाज़।
कैसे कह दूँ मिला नहीं था मुझको
प्यार हुआ था एक साथ दो इजहार।
मैं तो समझ गया था पर
कोई मुझे ऐसा समझा गया।
मुझको बदला नहीं किसी ने
मै खुद बदल गया।
ख़ुद ही फिसल गया था
मै अब खुद ही सम्हल गया।
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