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Saturday, 01 July 2023

  1. जीने की आशा
  2. किसी को फ़ूल मिला तो किसी को खार मिला
  3. वो सोता भी है की नहीं ?
  4. ये दोस्ती
  5. ब्यंग बाण
  6. मै खुद बदल गया

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जीने की आशा

21FRI02028

Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 01 July 2023

ताकतें नयन

अपने मन में

बेपनाह

स्वप्न पाले हुए

देख रहे हैं

उनकी राह 

जो दे सकें

ताकतें नयनों को

जीने के लिए

जरा सा सहारा

और फिर

खिल जाए

ताकतें नयनों में

नई जिंदगी

जीने की आशा।।

Written By Manoj Bathre , Posted on 13.05.2021

किसी को फूल मिला तो किसी को खार मिला
मैं खुशनसीब था सो मुझको माँ का प्यार मिला

तुम्हारी फोटो जो देखी तो मैं चला आया 
तुम्हारा जैसे ही मुझको ये इश्तहार मिला

ये इत्तेफाक़ था या चाल थी कोई उसकी
मैं जब भी गुज़रा वो रस्ते में बार बार मिला

हसीन वादी की चाहत मैं लेके निकला था 
मैं बद नसीब कि ता उम्र रेगज़ार मिला

खुशी में साथ हमारे तो बेशुमार दिखे
मगर न दोस्त कोई अपना ग़म गुसार मिला

वतन परस्ती की जब जब भी बात आई है 
वतन के वास्ते हर कोई जाँ निसार मिला

वह सोचता रहा कासा गदाई भर देगा
किसी ग़रीब को कब कोई माल दार मिला

मैं आँख मूँद के जिसका यक़ीन करता रहा 
तमाम ज़िन्दगी धोखा उसी से यार मिला

ये बात आज बताता हूँ मैं लकी सुन लो
तुम्हारे साथ हर इक लम्हा याद गार मिला

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 18.02.2022

वो सोता भी है की नहीं
अब कौन कहता होगा उसे सो जा
रात बहुत हो गयी है
बाकि काम कल कर लेना
कोई नहीं

माँ थी तो किसी बात की फिकर नहीं थी
आज सुविधाएं होने के बावजूद भी
एक बेचैनी सी रहती है
मन में खुद के लिए
आने वाले कल के लिए

देखा था एक शख्स मैंने बचपन में
हुबहु खुद जैसा
हँसता- खिलखिलाता चेहरा
हर दम चेहरे पर एक भावुक सी मुस्कान
जिसे देखकर भूल जाते थे
माँ- बाप अपनी थकान

क्या बनाती है वक़्त की सुई ?
रहता नहीं फिर वो जैसा था
वैसे वाला इंसान
भूल जाता है खुद को
और खो देता है अपनी
पहचान
शायद उस जैसा होना भी नहीं है
इतना आसान

मालूम नहीं जिसे क्या होता है
एक पिता का जीवन में होना
मालूम नहीं उसे क्या होता है
जीवन में एक पिता का कहीं
खोना
मालूम है तो बस! वो है
एक विदुषी माँ का प्रेम
बच्चों के लिए

माँ को तपते देखा है जेठ की गर्मी में
माँ को भीगते देखा है बरसात में
किसके लिए
अपने बच्चों के लिए उनके
भविष्य के लिए
एक माँ को रोते देखा है
बच्चों के सो जाने के बाद
एक माँ को रोते देखा है
बच्चों को डाँटने के बाद

फ़िर भी समझ नहीं सकते
एक स्त्री को हम
जो समाज के लाखों ताने
सुनने के बाद भी
डटी रहती है अपने
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए
उनका जीवन संवारने के लिए
बिगड़े ना बच्चे समय के साथ
डर लगा रहता है
वो माँ लगी रहती है
उनके लिए कंटीली राह को सुधारने में

बड़े होकर छीन लेती है
काल की देवी हमसे
हमारे शौक, हमारा बचपना
बहुत ज्यादा संघर्ष भी नहीं
करता है, हाँ थोड़ा बहुत
जो दिखता है उस आईने को
जिसे खुद भी आज तक नहीं देखा है

मैंने देखा है एक शख्स को
शिद्दत से हर वो काम करते हुए
जो उसे दिया गया या उससे
कभी करवाया गया
कैसे रक्खता होगा वो खुद को
जिंदगी के इस मेले में
जिसमें खुद की साँसों का भी
भरोसा नहीं

मैंने लड़ते देखा है उसे
किस्मत से उस रब से
जिसने हम सबको बनाया है

मैंने देखा है उसे
देर रात को सोते हुए
मैंने देखा है उसे
ब्रह्म माहुर्त से पहले उठते हुए
उन पक्षियों की तरह जो
अपना घौंसला सवेर होने से पहले ही
छोड़ देते हैं
मैंने देखा है उसे रोते हुए
अकेले में, बिस्तर में, बारिश में
पर किसके लिए?
इन सब सवालों का जवाब ढूँढना है
मुझे उससे मिलके

उसके चेहरे पर कभी कोई
किसी प्रकार की शिकन नहीं देखी है
देखा है तो बस उसको
हँसते- मुस्कुराते देखा है
उसकी आँखों को पढ़ना है मुझे
उसके उस दर्द को जानना है
जो वो हमसे कभी
बयाँ ही नहीं कर पाया
अपने किये वादों पर
उसे खुद की जान लुटाते देखा है

कितना अकेला होगा वो शख्स
खुद से इस ढोंगी समाज से
अपने काम- काज से
कितने ज़ख़्मों पर मरहम लगाया होगा
पर खुद के ज़ख़्मों को उसने
ज़रूर सबसे छुपाया होगा

ये वक़्त भी एक सा कहाँ रहता है
और रहे भी फिर
वो सब कहाँ पास रहते हैं
जिनके लिए हम जीते हैं
मुझे मिलना है खुद से मुझे मिलना है
उस शख्स से जो खुद के बारे में
झूठ बताता है खुद को आईने को

खुश रहे जिंदगी और खुश रहे ये जमाना
आज जिंदा है हम, कल हमें भी ये चकाचौंध छोड़कर है जाना

Written By Khem Chand, Posted on 02.05.2022

 

लिख दूँ बिन सोचे कुछ भी
ऐसी जिसकी हस्ती है,
भंवर से भरे समुन्दर में चल जाये
ऐसी उसकी कश्ती है,
मुस्कुराकर बस साथ रहती है जो
बिन सोचे कुछ भी,
हर रिश्ते से नायाब बन्धन है वो
जिसका नाम दोस्ती है.....

मोहोब्बत जहाँ खत्म होती
वहाँ ये खड़ी मिलती,
रिश्तों में जहाँ मिलावट होती
वहाँ शुद्ध बस यही होती,
सपनों की टूटन जब-जब होती,
यही मरहम में बस मिलती,
कीमती होंगें बहुत लोग आपके
ये आज भी सस्ती है
हर रिश्ते से नायाब बन्धन है वो
जिसका नाम दोस्ती है.....

समझ न पाये बहुत कुछ
फिर भी समझदार है,
साथ निभाने को न कुछ हो
फिर भी वफादार है,
इसके बिना अधूरा हर पल
अधूरी हर बहार है,
मिले होंगी बहुत सी चाहतें आपको
ये भी अपनेपन की बस्ती है
हर रिश्ते से नायाब बन्धन है वो
जिसका नाम दोस्ती है...।

 

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 07.09.2021

ब्यंग बाण

SWARACHIT5050

Madhu Andhiwal
~ डा. मधु आंधीवाल

आज की पोस्ट: 01 July 2023
कभी कभी कुछ शब्द हम किसी के लिये यूं ही बोल देते हैं और वही शब्द दूसरे के लिये बिष बुझे तीर की तरह हो जाते हैं । मेरी बहुत अच्छी मित्र सुखदा एक शिक्षित समझदार महिला थी । दो बेटियों और एक बेटे की मां । पति शलभ बहुत ही सज्जन व एक कालिज में लेक्चरार थे । वह जितने अच्छे स्वभाव के थे उतने ही उनके छोटे भाई बहन शातिर । वह शहर में सर्विस करते थे । उनके भाई और बहनों को लगता कि इतनी जायदाद आदि है इस पर हमारा हक है। शलभ और उनके परिवार को कुछ भी नहीं देना और सबने मिल कर मां बाप को भी यह समझा दिया कि भैया तो सर्विस कर रहे हैं उनको कोई हिस्सा नहीं मिलेगा । सुखदा ने शलभ से कह दिया हमें कुछ नहीं चाहिये बस मेरे मायके का सामान दिला दो जो मेरे मां बाप ने दिया था । काफी कहने सुनने के बाद कुछ भी नहीं मिला । बस सुनने को मिले देवर देवरानी और छोटी ननदों से यह शब्द कि ' दो दो लड़कियाँ हैं शादी कैसे करोगे भीख मांगनी पड़ेगी ' सुखदा मुझे मिली बहुत दुखी थी मैने उसे समझाया कि दोनों बेटियाँ बहुत होशियार हैं क्यों चिन्ता करती है । उसी समय बड़ी बेटी का एम.बी.बी. एस में सलैक्शन हो गया । जब उसके देवरों को पता लगा तब बोले अरे सही तरह से रिजल्ट देख लिया कहीं और किसी का रोल नं. तो नहीं ।

आज सुखदा की दोनों बेटियाँ डाक्टर इंजीनियर हैं और बहुत अच्छे परिवार में हैं।बेटा भी इंजीनियर है। दोनों दामाद डा. इंजीनियर हैं। बस वह बिषैले शब्द आजतक वह बेटियाँ नहीं भूली और ना उन्होंने अपने चाचा बुआ से सम्बन्ध रखा । हमेशा कहती हैं मौसी हमारे मां पापा ने ना शादी के लिये भीख मांगी ना हमने फ्राड करके डिग्रियाँ ली । Written By Madhu Andhiwal, Posted on 01.07.2023

मै खुद बदल गया

SWARACHIT5051

Shiv Pandey
~ शिव पांडेय (शिवम)

आज की पोस्ट: 01 July 2023

मुझको बदला नहीं किसी ने
मै खुद बदल गया।
ख़ुद ही फिसल गया था
मै अब खुद ही सम्हल गया।
कोई मुझे समझे न समझे
अब मैं खुदको समझ गया।
न ही रहा सहारा कोई अब
खुद का मैं हमदर्द बन गया।
किया था जिन पर भरोसा
आँख बंद करके न रहा मुझको
अब उनपर नाज़।
कैसे कह दूँ मिला नहीं था मुझको
प्यार हुआ था एक साथ दो इजहार।
मैं तो समझ गया था पर
कोई मुझे ऐसा समझा गया।
मुझको बदला नहीं किसी ने
मै खुद बदल गया।
ख़ुद ही फिसल गया था
मै अब खुद ही सम्हल गया।

Written By Shiv Pandey, Posted on 01.07.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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