सुंदर श्वेत सूरत उसकी
चांद सी चमकती है।
कभी–कभी वो क्रोध में
दामिनी सी दमकती है
कभी गरजती बादल सी
कभी शान्त समीर– सी
कभी अश्रु की सरिता से
वो नयनों के सर को भरती है।
कभी खिल जाती फूलों सी
कभी रूखी सूखी झाड़ी सी
कभी मदमस्त पवन सी है
कभी अल्हड़ अनाड़ी सी।
प्रियतमे तुम प्रकृति की
सहचरी सी लगती हो
क्योंकि तुम भी अहर्निश
कितने ही रंग बदलती हो।
Written By ShivkumarSharma, Posted on 18.06.2023गर्मी से बेहाल हैं
सबका बुरा हाल है
बारिश के इंतजार में
सबकी आँखें हुई लाल-लाल है।
प्रकृति का कहर अब बरस रहा है
वातावरण गर्म अब लग रहा है
44° तापमान में
अब प्रकृति का रौद्र रूप भी बेमिसाल है।
सुबह 8 बजे तक चलना
शाम को 5 बजे से चलना
लगता सभी को थोड़ा आसान है
सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे के बीच में चलना
जीवन को मौत से खेलने का इम्तिहान है।
गर्मी से बेहाल हैं
सबका बुराहाल है
बारिश के इंतजार में
सबकी आँखें हुई लाल-लाल है।
अब प्रकृति से ही यह गुहार है
बिखरा दो अपनी मदमस्त और शीतल हवाऐं
बरसा दो अपनी घनघोर काली घटाएँ
दिखला दो इंद्रधनुष की अर्द्धवृताकार रेखायें
काली घटा और ओस की बूंदों का
अब सभी को इंतजार हैं।
हाँ अब सभी को
सच में बारिश का इंतजार है।
गर्मी से बेहाल हैं
सबका बुरा हाल है
बारिश के इंतजार में
सबकी आँखें हुई लाल-लाल है।
अभिमान का संग्राम, शक्ति का प्रदर्शन,
मान-सम्मान की जीवनरेखा, यह है दहेज़ का नाम।
अभिभावकों की उत्कंठा, अभिजात मानसिकता,
कन्याओं की चिर स्वातंत्र्य, बंधनों में आसक्ति।
पिता के दिल की आरज़ू, बेटी का विवाहोत्सव,
पर दहेज़ की नौकरी में, बिखरती रह जीवन कोसों।
दहेज़ की मांग करती, समाज में छलावा,
प्रेम के बांधनों को, सीमित कर देती इवा।
बहुत सी लड़कियाँ, अभाव में दीप्ति खो चुकी,
मानवता के रंग में, रंगने का सब रो चुकी।
हमेशा कहते थे राष्ट्रीय कवि द्वारा,
``बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ`` यही दावा।
पर कौन सुने वे बोलते, और ये सोचते हीं,
दहेज़ के व्यापार में, बेटी को लड़ने को भेजें।
अब तो उठो और जागो, नारी को सम्मान दो,
दहेज़ के बांधनों से, उसे मुक्ति अब तक पाओ।
दहेज़ को छोड़कर, नए विचारों में बदलो,
मानवता के चर्चे में, खुद को पहचान बढ़ाओ।
बेटियों को शिक्षा दो, समानता बना लो,
दहेज़ की रोकथाम को, नयी दिशा दे जा तुम।
जब तक नहीं होगा दहेज़, नष्ट समाज से हमारा,
कविताओं में हीं रहेगा, दहेज़ का विलाप-ध्वनिः।
आओ बैठो कभी यमुना के तट पर,
फिर रहा इधर उधर पद प्रतिष्ठा को लिए |
मन को रमाकर राम पर,
लिखो एक गीत जिंदगी के लिए ||
बैठ तुलसी ने इसी घाट पर,
लिख दिया जगत का महाकाव्य |
तू भी है तुलसी`राम` का अंश,
लिख एक गीत जिंदगी के लिए||
सुन नदी के धारा की निःश्चलता का शोर,
बही जा रही खुद को अर्पण करने की ओर|
चिंता,परेशानी,धन सब त्यागना होगा,
लिखना पड़ेगा एक गीत जिंदगी के लिए ||
सच में वह गीत अमर होगा,
जिसे राग द्वेष ने छुआ न होगा |
कठिन बहुत है खुद को खुदसे अलग कर,
लिखना एक गीत जिंदगी के लिए ||
शाम है शांत है यमुना का घाट है,
लोगों का पाप धुल,खुद है पवित्रता लिए|
देखोगे जब कवि की नजर से घाट को,
लिखोगे एक गीत जिंदगी के लिए ||
Written By Yogendra Kumar Vishwakarma, Posted on 25.06.2023मेरी आंखें कभी धोखा खा नहीं सकती,
तुमको मुझसे प्यार है ये बात तुम ठुकरा नहीं सकती।
किस बात से बना रखी हो तुम हमसे दूरी
क्या वह बात हमे बतला नहीं सकती?
बात हममें कमी की होगी तो वादा है उसे सुधार लेंगे,
बात तुममें कमी की होगी तो तुझे उसी रूप में स्वीकार लेंगे।
अगर बात तुम्हारी इज्जत और मर्यादा की आई
तो दिल के दर्द और आंसुओं को अंदर ही छिपा लेंगे।
तुमसे किया हर वादा हम जरूर निभाएंगे
तुम्हारे सिवा किसी और को न दिल में बसा पाएंगे
माफ करना एक गलती बार-बार कर जाएंगे
अक्सर तुम्हारे सपनों में आकर तुम्हें सता जाएंगे।
शायद तुम्हे भुलने लगा हुॅ मैं
इसलिए तुम्हे लिखने लगा हुॅ मैं।
रातों का मेरी, मुझे पता नही
आजकल दिन में तुम्हे सोचने लगा ।
आजकल बेवजह मुस्कुराते है वो
शायद उनके जहन में आने लगा हुॅ मैं।
एक मुद्दत बाद दिल को सुकून आ गया
अब जा के कहीं ठिकाने लगा हुं मैं।
दोस्त कहते है,उदास चेहरा अच्छा नहीं लगता
उनको खबर दो, मुस्कूराने लगा हुं मैं।
कौन है,जो ज़माने को खबर देता है
राज अब सारे छिपाने लगा हुं मैं।
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