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Saturday, 24 June 2023

  1. कुत्सित वासना
  2. वो एहसास
  3. अखबार वाला
  4. मैं अनभिज्ञ हूँ
  5. दर्द सभी का एक
  6. ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

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कुत्सित वासना

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Anand Kishore
~ डॉ आनन्द किशोर

आज की पोस्ट: 24 June 2023

 

इतने बड़े संसार में
जहाँ निराशा का अँधेरा अपने यौवन पर हो
वहाँ उम्मीद की एक छोटी सी किरण 
की भी अहमियत होती है 
जैसे
किसी कोरे काले काग़ज़ पर
यदि एक भी सफेद बिन्दु हो
तो वही बन जाता है
मनुष्य की आशाओं का दर्पण
समस्त इच्छाओं के उज्जवल प्रतिबिम्ब के लिए
समझना है
मरने से बेहतर है जीना
और जीने के लिए
रेत के घरोंदे भी कम महत्वपूर्ण नहीं होते
तब हम कुत्सित वासना को ही
क्यों प्रमुखता दें
इन्सानियत को समझें
छोटे से इन्सान के विकसित मस्तिष्क को जानें
अपेक्षा उम्र से की जाती है कि
सभी अनुभवों को प्रयोग करना
और निकलता है क्या परिणाम
ये जानना 
कोई अप्रायोगित अनुभव भी ला सकता है
विचारात्मक आन्दोलन 
लेकिन
दर्द और पीड़ा से दूर
जहाँ एक क्षितिज है दोस्ती का, प्यार का
वफ़ा का, विश्वास का
यह मन की आँखों से साफ 
दिखाई दे जाता है
महसूस कर लिया जाता है
परन्तु
घृणित वासना के आते ही
क्षितिज ग़ायब हो जाता है
सभी कुछ बनावटी सा लगने लगता है
हँसी-ख़ुशी, कस्मे-वादे, 
गिले-शिकवे, नेक इरादे 
एक सच ही सामने होता है
और वो है धोखा।

 

Written By Anand Kishore, Posted on 21.05.2021

वो एहसास

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Manoj Kumar
~ डॉ. मनोज कुमार "मन"

आज की पोस्ट: 24 June 2023

तुम्हारी याद को 
ले आती है,
हर शाम 
जब कुछ गहरा जाती है।

मैं अकेला 
दूर परिधि पर,
एक अकेली रेखा-सा 
खड़ा रह जाता हूँ।

बढ़ना चाहता हूँ,
केंद्र की ओर
पर परिधि अपनी 
और खींचती रहती है।

उस गर्म एहसास को 
भुल जाना, ठीक
अपने को भूल 
जाने जैसा ही है।

जैसे बादल ने 
घेरा हो चाँद को
तुम्हारी वो रंगत
मुझे आकर्षित 
और बेईमान 
करती रहती है।

सच-सच कहूँ तो 
ओस की बूंदों की तरह
चमकती तुम्हारी आँखें
``मन`` को सुकून देती हैं।

Written By Manoj Kumar, Posted on 13.04.2022

अखबार वाला

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Lalan Singh
~ ललन प्रसाद सिंह

आज की पोस्ट: 24 June 2023

धुंध भरी अदृश्य सड़कें,
चर्र-चूं का यांत्रिक स्वर,
बनते-बिगड़ते उसके अक्स,
ट्रीं-ट्रीं टुन-टुन बजते स्वर.

भूत की तरह गतिमान,
उस अक्स का रहबर,
जाने इन सड़कों-गलियों,
का ये परिचित अनुचर.

धारित अधूरे-पुराने वस्त्र,
निश्छल मार्ग पर ले तरंग
गुण्डे मवाली से बेपरवाह,
ठंढा-वर्षा से अमर्त्य जंग.

ठिठुरा तन हुआ ऊर्जस्वित,
गरम चाय की प्याली से.
मन की उर्जा भरी उड़ान,
ख्वाबों की फूली लाली से

सारी खुशियां रख ताक पर
पेट हुआ अब मुख्य लक्ष्य
मृत इच्छाओं को दे आयाम
अपनी विधा में हुआ दक्ष।

पौ फटते बालकॉनी में नज़र,
धुंधलके का पसरा था कहर.
झट दरवाजा बंद,आया अंदर,
तभी उछला अखबार ऊपर.

Written By Lalan Singh, Posted on 31.05.2022

मैं अनभिज्ञ हूँ
कब, कहाँ किस परिस्थिति में
मेरी कविता का जन्म होगा।

मैं अनभिज्ञ हूँ
वो सूर्य उदय होगा
 या सूर्यास्त होगा
वो पल खुशी का होगा
या दुख का होगा
जब मेरी कविता का जन्म होगा।

मैं अनभिज्ञ हूँ
मेरे लेखनी उठाने से 
उसका जन्म होगा
या कोई मुहूर्त में
 वो कागज पे उतरेगी
या किस्तो में कई पन्ने 
कचरे दान में डालकर
उसका मुल स्वरूप पूरा होगा।

मैं अनभिज्ञ हूँ
मेरी कविता रोते हुए आएगी
 या मुस्कुराते हुए आएगी।
कविता के जन्म के उपरांत
 वह लोगों को हंसाएगी
 या रुलाएगी,या सोये हुए को जगायगी
 या कोई क्रांति लायेगी।

मैं अनभिज्ञ हूँ
मेरी कविता के कारण 
कब में आलोचना का 
शिकार बन जाऊंगा
कब लोगो की नज़रों में 
खटकने लगूँगा।
कब मेरी कविता से लोगो मे
बदलाव आ पायेगा।

मैं अनभिज्ञ हूँ

Written By Kamal Rathore, Posted on 07.01.2022

इस दुनिया में कोई रोया,
क्यों पीर सभी की एक—सी,
क्यों दर्द सभी का एक—सा…..
प्यार में टूटा दिल किसी का
क्यों हीर सभी की एक—सी,
क्यों दर्द सभी का एक—सा…..

भाग मेरा हाय रे फूटा
तू जो रूठा, रब रूठा
कोई मुझे न और प्यारा,
साथ तेरा हाय रे छूटा
खोया जिसने भी साथी,
तक़दीर सभी की एक—सी
क्यों दर्द सभी का एक—सा…..

मुझको खुदसे यार गिला
साथ मिला ना प्यार मिला
है रब से यही शिकायत,
जीवन क्यों बेकार मिला
चोट लगी अश्क़ बहाये,
क्यों पीर सभी की एक—सी,
क्यों दर्द सभी का एक—सा…..

मजनू को लैला न मिली
और फरहाद को शीरी
कहते कहते क्यों डूबे,
वो महिवाल, वो सोहनी
क्यों राँझा जोगी बना है,
क्यों हीर सभी की एक—सी,
क्यों दर्द सभी का एक—सा…..

Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 27.02.2023

कोई बांट रहा फ्री की बिजली
फ्री स्कूटी बेटियों को कोई दिला रहा है
चौबीस घंटे पानी दे रहा कोई
कोई निशुल्क लैपटॉप के सपने दिखा रहा है
बुजुर्गों ने जो कमाया जैसे उसको लुटा रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

एक दूसरे पर चल रहे कटु शब्दों के बाण
कहीं सीबीआई ईडी का चल रहा डंडा
असली मुद्दों को भूल चुके हैं सारे
सत्ता को हड़पने का यह है नया फंडा
सत्ता से बेदखल होने का डर सता रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

महंगाई बेरोजगारी अब बीती बातें हो गई
इन पर नहीं अब किसी का ध्यान
खुद कर रहे रैलियों में भीड़ इक्कठी
दूसरों को बांट रहे फालतू का ज्ञान
कानून की धज्जियां कानून का रखवाला उड़ा रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

इतर वालों की खुशबू सीबीआई ले गई
नोट जो निकले थे किसके यह पहेली रह गई
चुनाव जब आते हैं तभी पड़ते हैं छापे
यू पी नहीं यह बंगाल की जनता कह गई
जनता को फिर झूठे सपने दिखा रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

राजनीति को घटिया बना दिया इन नेताओं ने
आदर्शों और संस्कारों को दे दी तिलांजलि
सत्ता का सुख भोगने के लिए
आदर्श और ईमानदारी की दे दी बली
सच्चाई को झूठ से कोई दबा रहा है
ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

कोई अपनी जाति की दुहाई दे रहा
कोई मज़हब के नाम पर लड़ा रहा
साजिशें हो रही देश बांटने की हर तरफ
अपने स्वार्थ की खातिर देश की बलि चढ़ा रहा
भाईचारे के बीच में मज़हब क्यों लाया जा रहा
ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 28.01.2022

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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