कुछ ऐसी ही हैं मेरी कहानी
सपनों में पूरी दुनियां घूम आती हूँ.
मग़र आँखे खुलते ही ख़ुद को सीसे में बंद पाती हूँ.
कुछ ऐसी ही हैं मेरी कहानी
जब भी ख़ुद को जीना चाहती हूँ.
ख़ामोशियों के बंद दरवाजे में
ख़ुद को हर वक़्त गुमनाम पाती हूँ.
कुछ ऐसी ही हैं मेरी कहानी
मैं भी इस खुले आसमां में उड़ना चाहती हूँ,
इन ठंडी हवाओ को महसूस करना चाहती हूँ.
मग़र हर वक़्त ख़ुद को ख़ामोश जंजीरों में बंधक पाती हूँ.
कुछ ऐसी ही हैं मेरी अनकही सी कहानी
एक दिन ऐसा भी आएगा.
जहां मेरी हर `आशाएं` पूरी होंगी.
जब मैं इन जंजीरों को तोड़कर, इन बंद दरवाजो से कहीं दूर,
इन बंद खिड़कियों को खोलकर.
पंक्षी बन उड़ जाऊँगी.
भक्ति का ई गजब व्यापार देखो
ढोंगी बाबाओं का अवतार देखो
अभिनय सीख जाओगे मुफ़्त में
टीवी पे हर दिन बस समाचार देखो
एक शब्द भी इधर उधर नहीं होते है
नेताओं के भेष में मंझें कलाकार देखो
जिन हाथ में होना था कलम कॉपी बस्ता
उन हाथ में जाति धर्म जैसे हथियार देखो
बेरोजगारी, भुखमरी शोषण क्या देखते हो
यार हुकुम की दाढ़ी का कभी विस्तार देखो
लिखने लगोगे हर साँस में कविता नई - नई
प्रिया मल्लिक जैसी सोच ओ अलंकार देखो
कुछ नहीं बदला आजादी के बाद भी साहब
उच्च वर्ग का निम्न वर्ग पर अत्याचार देखो
सिर्फ़ ग़ज़लें कह देने से नहीं मिटती भूख कुनु
अब पेट भरने के लिए तुम कोई रोजगार देखो
लो आज कलम ये कहती है, तुम सुनने को तैयार रहो।
बेहतर जो लगे उन शब्दों को, तुम चुनने को तैयार रहो।।
बहुत कहा था ना तुमने भी, कईयों के लिए लिखते ही हो।
लाखों शब्दों में से कुछ एक, दोस्ती के लिए भी तो दो।।
दोस्त परम और मामूली हो, संभव कैसे सकता है हो।
यह तो भाव है ऐसा जिसका, कभी भी कोई मोल न हो।।
दोस्त शब्द की अवधारणा का, वर्णन मैं ऐसे करता हूं।
सत्य समर्पण भावों के संग, छूटने से जो डरता हूं।।
एक भूल हुई थी शायद उससे, जो सबकी किस्मत लिखता है।
रक्त भाव से छूटे भाई को, संग ऐसे करते दिखता है।।
ऐ ईश्वर अपनी गलती तूने, छुपाने का अभिनय खूब किया।
पर भाव प्रेम के आगे शायद, अभिनय का सफीना डूब गया।।
मेरे लिए इस विमल मेल के, हिय में कैसे भाव भरे हैं।
इन थोड़ी सी पंक्तियों संग, समक्ष तुम्हारे करे हुए हैं।।
मन को स्पर्श थी बातें हुई, अकथित जो मैने थी सुनी।
मन से ही मैं मान फिर बैठा, और फिर आगे खामोशी चुनी।।
तुझ सा तो कोई होगा नहीं फिर, और ना पहले था कोई वैसा।
तुम संग ही मन रहता था, फिर तुझसे होगा शिकवा कैसा।।
नहीं ख़तम ये कारवां यहां, ये बिन धागे के जुड़ा हुआ है।
तेरी ख़ुशी की हर दुआ का, रास्ता तुम तक मुड़ा हुआ है।।
हां और ऐसा नहीं है कि मैं, सच में भुल चुका हूं सबकुछ।
नित ख्याल होता है निर्मल, बातों का मलाल नहीं सचमुच।।
जितना भी मैं मानना चाहूं, खुशनसीब हूं उससे ज्यादा।
ऐ देने वाले ईश्वर उसको, देते हुए ना तू करना आधा।।
वो जो किताबें थी ना यहां, खामोशी से भरी हुई हैं।
जितनी बार भी खोली हैं, बस तेरे ही आगे करी हुई है।।
अपने हर बयान को मैने, बस तुम्हीं को तो बतलाया था।
इस कागज की कश्ती पर जो, ये काला बादल मंडराया था।।
समेटा हुआ है हर बात को, उसी ढंग से जिस से पाया था।
हर बार बस तेरे कहने पर, बस तुझको ही दिखलाया था।।
बस एक वादा ही तो चाहिए, मुझको तुमसे हक के साथ।
आभ्यंतर के शोर में बस, कभी नहीं छोड़ना बस तू हाथ।।
मुझको नहीं मतलब औरों से, बस तेरा ही तो साथ कहूं।
और कभी कोई आ भी गया, तो आभ्यंतर से शुन्य रहुं।।
हां देख नहीं सकता हूं मैं, औरों के संग वो भावों को।
परख चुका हूं कुछ हद तक, जैसे शायद स्वभावों को।।
हां स्वार्थी हो जाता हूं मैं, अपने भाव बचाने में।
मात स्वीकार भी करता फिर, ऐसे फिर समझाने में।।
पर वो वक्त मेरे कृत भी तो, हो न सका जो होना था।
बात बताई अपनी जिनको, बन साधन गए तो खोना था।।
पर इसमें मेरी गलती क्या, मैं तो भाव निभाना चाहता हूं।
और किसी के साथ नहीं, पल तुम संग बिताना चाहता हूं।।
और आगे अगर कोई गलती मैं, गलती से भी कर जाऊंगा।
प्रश्न के हल के साथ हमेशा, रस्ते में खड़ा तुम्हें पाऊंगा।।
मुझमें साहस है ही नहीं की, मैं इसके बारे कुछ लिख सकता।
पर मालूम है पराकाष्ठा का, चरण तुम्हें इससे ही दिख सकता।।
एक काल के दोस्त की यह, बस छोटी सी भेट तुम्हारे लिए।
पन्ना कम पड़ गया इसलिए, कुछ इन भावों को आवाज दिए।।
चाहते हैं उनको उनपे मरते हैं हम,
देख छुप छुप के आहें भरते हैं हम।
मैं कह न सका तुम समझ न सके,
बहुत प्यार उनको तो करते हैं हम।।
कब बातों ही बातों में प्यार हो गया,
देखते देखते इश्क बेशुमार हो गया।
कभी सोचता हूं मैं कि बता दूं उन्हें,
मैं पलकों की छांव में बिठा लूं उन्हें।।
मगर उनको खोने से डरते हैं हम,
बहुत प्यार उनको तो करते हैं हम।
साथ रहकर भी मेरे वो साथ नहीं है,
उनकी जुबां पर मेरा तो नाम नहीं है।
कैसे बताऊं उनको वो मेरी जिंदगी है,
इबादत है मेरी वो तो वो मेरी बंदगी है।।
सदा खुश रहो दुआ यही करते हैं हम,
बहुत प्यार उनको तो करते हैं हम।
मुझे भूलता नहीं वो सख्श मुझको वो मेरी दुनिया दिखा।
शिव के बहाने शिव उसने मेरा नाम जो हर जगह लिखा।।
इक बार देख क्या लिया था उसको मुस्कुराते हुए
उसके बाद कोई दूसरा मेरी इन आँखों को हसीन न दिखा।
बारिश अगर न हो सावन में मौसम रूखे रूखे लगते है जैसे
मन बेचैन, और छाई उदासी जब वो मेरी आँखों में न दिखा।
इक दिन आया सैलाब उसकी यादों का, मे गया उसमे डूब।
मुझे वर्षों हो गए हैं मगर अभी तक मुझे निकलने का रास्ता न दिखा।
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