बेमौत मर जाते हैं रिश्ते
जब विश्वास टूट जाता है
रिश्तों की नींव उखड़ जाती है
जब स्वार्थ बीच में आता है
रिश्तों में यदि समझदारी से काम लें
तो रिश्ते ज़िन्दगी भर साथ निभाते हैं
अहंकार स्वार्थ पैसा जब आ जाये बीच में
तो रिश्ते चुपचाप कहीं खो जाते हैं
रिश्ते तो फूल की तरह होते है
फैलाते हैं सुगंध अपनी चारों ओर
प्यार और विश्वास की खुराक मिलती रहे
तो कभी कमज़ोर नहीं होती इनकी डोर
रिश्तों की कद्र कीजिये
जितना हो सके इनको बचाइए
मनमुटाव कोई हो जाये तो दूर कीजिये
खुद झुकने से मत घबराइए
रिश्ते ही हैं जो ताउम्र काम आएंगे
सुख दुख में सभी का साथ निभाएंगे
रिश्तों के बिना यह संसार अधूरा है
रिश्तों के बिना सब अकेले रह जाएंगे
अपनी मौत कभी नहीं मरते रिश्ते
रिश्तों को अहंकार और स्वार्थ मिटाता है
ठोकरें ज़माने में जब लगती हैं बहुत
रिश्तों की कीमत कोई तभी समझ पाता है
एक सुरमई शाम में
हम बैठे चाय पी रहे थे
उसने आहिस्ता से कहा था
चलो घूम कर आते हैं
मैं तो हूँ ही घुमक्कड़
सालों से घूम हो तो रहा हूँ
मैंने मन ही मन सोचा था
वो फिर बोली नहीं चलना है क्या..?
मैंने कहा चाय खत्म करो
फिर चलते हैं
उसने कहा ठीक है
चाय की गर्मी को बदन में समेटे
हम स्कूटी पर ठंडी हवा में तैर रहे थे
मुझे अपनी कमर के कुछ हिस्से में
कुछ गर्मी का एहसास हो रहा था
उसी एहसास से साथ
मैं शहर का चक्कर लगा रहा था
और सोच भी रहा था
काश! ये शाम यूँ ही ठहर जाए
फक़ीर रहा उम्रभर
ना कुछ दे सका अपनों को
ना ही कुछ ले सका ज़िन्दगी से
बेचे हैं जमाने में मैंने
ख़्वाब अपने
रूठे ना कोई मुझसे
मुझसे कुछ गलत ना हो जाये
सबको खुश रखते- रखते
पता ना लगा
कि कब और कैसे ?
मैं खुद को भी
भुला बैठा
कि
मैं भी एक इंसान हूँ
मेरे खुदके भी
कुछ सपने हैं
हाज़िर रक्खा खुद को
सबके लिए
जब भी किसी ने कुछ काम दिया
या किसी को कुछ ज़रूरत पड़ी
सबकी ज़रूरतों का ख़्याल रक्खा
कभी अपने सपने बेचे
तो कभी अपने ख़्वाब बेचे
इतना बेबस किया है ज़िन्दगी ने मुझे
कि
कभी अपने जवाब बेचे हैं
दुखता नहीं है घाव अब नयाँ भी
अब, मरहम कि ज़रूरत नहीं
खिलने पर भी लौटते नहीं हैं
भंवरें अब मेरे बागों में
मैंने महक बिखेरने वाले
बागों के गुलाब बेचे हैं
पड़ने दो सूखा अब
मेरी ज़िन्दगी में भी
खुशियों का
तुम ये सब देखकर
जश्न का माहौल बनाओ
क्यूंकि?
मैंने ज़िन्दगी में
खुशियों के तालाब बेचे हैं
कैसे बदलती है ये ज़िन्दगी
कैसे बदलते होंगे लोग यहाँ
मुझे तुम्हारे साथ देखना है
वीरान राह को रोशन होते हुए
कड़ी धूप में, बिन छाते के
देखते हैं पहचानते कितनों को अब हम
हमने भी कुछ आफ़ताब बेचे हैं
खुद को बेचा, अपने ज़मीर को बेचा
किसकी खुशियों के लिए
हमने वो
ख़्वाब बेचे हैं ?
Written By Khem Chand, Posted on 20.04.2022
मशक़्क़तों से भरे इम्तिहान मिलते हैं!
बड़े बुज़ुर्गों की बातों से ज्ञान मिलते हैं!
ज़मीं पे जैसे उगे कंकरीट के जंगल,
हर एक शह्र में ऐसे मकान मिलते हैं!
ज़मीं में दफ्न है तहज़ीब अपने पुरखों की,
किताबों में लिखे सारे निशान मिलते हैं!
ख़रीद पाने की अपनी तो हैसियत ही नहीं,
ज़मीन मँहगी व मँहगे मकान मिलते हैं!
मैं उनके ज़र्फ की यूँ दिल से दाद हूँ देता,
जो हो के मुझ से सदा मेह्रबान मिलते है!
ये इत्तेफाक़ भी अपनी समझ से बाहर है,
हमें तो दुनियाँ में सब बेइमान मिलते हैं!
सफेद पोश ग़रीबों की बात मत पूछो,
भिखारियों की तरह उनको दान मिलते हैं!
लकी अकेला नहीं सबकी बात है करता,
नदी किनारे कई नौजवान मिलते हैं!
कैसी यह मुहब्बत है दोस्तो
कट रही रोज टुकडों में दोस्तों
जब प्यार था तब घर वार छोड़ दिया
आज उस ने ही यार प्यार छोड़ दिया
दिल से उतार फैंक दो उसे तुम
जिसने तुझे दिल से निकाल दिया
सौ टुकड़ो में कटने से अच्छा है
कि अकेले जिंदा रह लेना दोस्तों
जिंदगी जीने की सौ वजह ढूंढ लेना दोस्तों
तुम्हारे साथ जो हो रहा उस से उबर कर
दूसरों के लिए थोड़ा जी लेना दोस्तों
गम न करना मुहब्बत गवाने का जरा भी
मिलती नही यह जिंदगी दुबारा तो
कुछ अपनी फिक्र कर लेना दोस्तों
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।