आज के ज़माने में,
बिलकुल एक-सा है सबका जीवन
नकली ज़िंदगी, असली गम
बिलकुल एक-सा ही सबका मन.
मर रहा है अंदर से,
पर ऊपर से नाटक जारी है
आज मेरी तो कल तुम्हारी बारी है
लगा है हर कोई छुपाने की जुगत में
बनावटी मुस्कुराहट के पीछे
नहीं पता कितने राज है दफ़न.
बुरी यादों का पिटारा
खोला नहीं जा सकता, हर किसी के सामने
क्यूंकि आज जो अपना हैं,
वह कब किसी और का अपना हो जाये
कुछ कहा नहीं जा सकता-
सहा नही जा सकता,
इसीलिए समेटकर खुद तक ही
खुद की बातों को
गढ़ा जा रहा एक बनावटी जीवन.
किसके दिल में क्या चल रहा
जाना नहीं जा सकता
यह नकली मुस्कराहट के फूलों का गुच्छा
कौन सी यादों की कब्र पे ऊगा है
पहचाना नहीं जा सकता
कितने आँसुओं से
सींचा गया होगा यह उपवन.
Written By Rashmi Pandey, Posted on 05.06.2023अरे ! राधिका के पापा जल्दी- जल्दी हाथ चलाओ ना।बहुत काम बाकी है यह सब करके मुझे बहुत खाना भी बनाना हैं।आखिरकार हमारी बिटिया को देखने आ रहे हैं। पिछली बार की तरह ना नहीं होनी चाहिए।
रमा बोले जा रही थी। पिछली दफा तो आपके सच की वजह से हमारी बेटी का रिश्ता नहीं हुआ अबकी बार आप बस चुप रहना
सारी बातें मैं करूंगी।मैंने तो सोच रखा है,राधिका को पूरी दसवीं पास ही बताऊंगी।अरे ! राधिका की मां, कुछ तो भगवान से डरो।इतनी भी झूठ मत बोलो कि आगे बात संभालनी मुश्किल हो जाए।बाद में पछताना पड़े।
तुम चुप रहो जी, रमा चिल्लाते हुए बोली। हम लड़के का मुंह पैसे से भर देंगे। भले ही शहर में पढ़ कर आया हो। हमारा सब कुछ राधिका का ही है।राधिका इकलौती औलाद जो ठहरी हमारी।
लाड_ दुलार से पाला है हमने इसे।मेरा काम तुम्हें समझाना था बाकी तुम्हारी मर्जी।
राजू -मालकिन, साहब सही बोल रहे है।झूठ के दम पर रिश्ता ज्यादा नहीं चलता।चुप रह ! साहब के चमचे।
जल्दी -जल्दी हाथ चलाओ।राजू चुप हो गया और काम करने लगा।
आखिरकार वह घड़ी आ ही गई जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार था।रोहन -राधिका को देखने आ गया, उसे मेहमान कक्ष में बिठा दिया गया और 50 तरह के पकवान रख दिए।परंतु वह समझदार लड़का था। उसने कुछ नहीं खाया।
आप कुछ खा लो यह सब राधिका ने बड़े प्यार से बनाया है। राधिका की मां ने कहा।उधर सुरेश(राधिका के पापा )को खांसी आ गई।मन ही मन बुदबुदा रहा था।इतनी झूठ राम-राम! कितना झूठ बोलोगी भाग्यवान? रमा- राधिका को लेने अंदर चली गई और राधिका को बोली ; जैसे मैंने बोला है वैसे ही करना।
हां के लिए सिर्फ सिर हिलाना।मुंह से कुछ नहीं बोलना। हां -हां; बस भी करो मां और कितनी बार बताओगी ? कल से 50 बार बता चुकी हो। चुप रह पागल फालतू बोलती रहती है। बस एक बार तेरी इस लड़के से शादी हो जाए।
राधिका को रोहन के पास बिठा दिया।
रोहन जो भी सवाल करता राधिका की मां खुद उत्तर देती।
जी मैं शहर में रहता हूं शादी के बाद राधिका को भी साथ में लेकर जाऊंगा।
हां- हां बेटा ले जाना राधिका दशवी तक पढ़ी है।सिलाई,कढ़ाई -बुनाई,खाना बनाना आता है।पर मां मुझे तो खा खा तू चुप रह। मैं बात कर रहीं हूं ना। रोहन ने कहा ; क्या में राधिका से कुछ बात कर सकता हूं? हां पूछो, राधिका बताओ अगर मुझे महीने में ₹5000 मिले और हमारा खर्चा 4000 का हो तो तुम बाकी के ₹1000 का क्या करोगी?
मैं तो सभी का सामान लेकर पूरे एक दिन में खत्म कर दूंगी राधिका ने कहा।मान लो मैं तुम्हें 5000 दे दूं और सामान आए 3000 का तो तुम्हारे पास कितने बचेंगे ?
एक भी नहीं; मैं तो तुझे वापिस दूंगी ही नहीं।
चलो ठीक है! तुम्हारा पसंदीदा विषय कौन सा है?
मैं तो एक ही दिन स्कूल गई थी और उसी दिन अध्यापक को मार कर आ गई थी।राधिका की मां ने कहा ; ये क्या बोल रही है? तूने ही तो कहा था; ठीक किया जो मास्टर को मार कर आ गई।
रोहन को समझते देर न लगी कि राधिका अनपढ़ है।
रोहन हाथ जोड़कर बोला; जी मैं जा रहा हूं।तो बेटा क्या हम रिश्ता पक्का समझे? आप पहले इसे पढ़ाएं। शिक्षा के बिना जीवन कैसे निर्वाह करेगी? बोल कर चला जाता है। सुरेश को भी बोलने का मौका मिल गया।अब समझी भाग्यवान!लड़कों में खराबी नहीं। बस अपनी बिटिया को सब कुछ दिया पर जो देना चाहिए था ; शिक्षा, वह नहीं दी।
शिक्षा ही असली सम्पत्ति है।
चंचल मन अब स्थिर
होने को चला है!
मानस अब उत्तरदायित्व का
पर्वत उठाने को चला है!
कल तक थे जो नन्हें पैर
अब पायल से बंधने को चला है!
मासूमियत भरी आखों में
झिलमिल सपनें सजने को चला है!
होटों की खिलखिलाहट भरी हंसी
अब मुस्कुराहट बनने को चला है!
सुनहरे बालों की दो लंबी चोटियां
अब पुष्प से सजने को चला है!
माथे पे थी न अब तक कोई सिकंज
अब रिश्तों का टीका लगने को चला है!
सर पर थी अब तक दुलारों की छाया
अब घूंगट से सजने को चला है!
एक बेटी अब
एक बहु बनने को चली है!
पिता की राजकुमारी
अब पति की रानी बनने को चली है!
मां की परछाई अब
सासू मां की दुलारी बनने को चली है!
एक लड़की अब
अपने कल्पनाओं को
यथार्थ में जीने को चली है!
इस घर की सम्मान अब उस घर की
प्रतिष्ठा बनने को चली है!
अपने साथ अपने असंख्य सपनों को
बसते में भरकर ले जाने को चली है!
एक बेटी अब एक बहु बनने को चली है!
Written By Mili Kumari, Posted on 15.05.2023एक छोटे से परिवार में एक नन्ही सी परी आई
आँखे खुली तो माँ को सामने पाया
जुबां से पहला शब्द पापा ही आया
भैया की गोद में गुड़िया बन खेली
मामा की दुलारी और सबका प्यार पाया
मग़र फिर भी कुछ कमी सी थी...
ख़ैर मैंने तो गर्भ में भी दुःख पाया
मग़र मेरी माँ ने मुझे बचाया...
पापा ने कांधे पर बिठाया
तो माँ ने डटकर जीना सिखाया...
माँ ने नाम दिया तो पापा से पहचान पाया
मासूम सा चेहरा और थोड़ी नादान थी मैं..
दुनियां-दारी की कहां समझ...
ईन सबसे अंजान थी मैं...
पापा ने राह दिखाया तो माँ ने उसपर चलना सिखाया
पापा से उम्मीद मिली..
तो माँ ने मेरा हौसला बढ़ाया...
और हम सबकी जान एक छोटा भाई भी पाया
समझदार हुई तो समय को बदलता देखा
और बहुत कुछ बिखरते पाया...
फिर ईन नन्ही सी आँखों ने एक सपना संजोया
हक़ीक़त में वो सपना नहीं एक शपथ था..
जो एक `जुनूनियत` बन कर निखरता आया...
वृक्ष हमारा होते संगी-साथी,बसेरा
जिसमें बसते सदा ही प्राण हमारे
अपनी चंद सुविधा हेतु मानव आज
क्यों प्राणदायिनी का कत्ल कर रहा...
जो अपना - पराया, जेष्ठ - कनिष्ठ का
ना करता कभी भेदभाव आजीवन भर
उसके प्रयासों का मुनाफा तो ले लेते हम
फिर भी क्यों ना करते शुक्रगुजार उनका...
जो सदा ही अडल रहने का भव में
झुक झुक कर उठने का, संदेशा देते
हमें और हमारे साथ कई प्राणियों को
वो यथा संभव खुशी देने का करते यत्न...
जिसकी हम सब पूजा अर्चना भी करते
और उसे ही हम काट गिराया भी करते
हे मानव ! ऐसी पूजा पाठ का क्या फ़ायदा ?
जब हमारा, आगामी कल ही सुरक्षित न रहे...
चलो चले आज का दिवस है कुछ विशेष
एक वृक्ष खुद लगाए निज आगामी कल हेतु
और कुछ गैरों को प्रेरित करें एक वृक्ष लगाने को
ताकि आज और आगामी कल हमारा सुरक्षित रहे...
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।