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Monday, 12 June 2023

  1. मैं अपने हिस्से का खोया तलाश करता हूँ
  2. फिर ना बिखरे हम सा कोई
  3. पर्यावरण बेहतर बनाना होगा
  4. इत्ती सी ख्वाहिश
  5. जैसे मुस्कुराना छूट गया

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मैं अपने हिस्से का खोया तलाश करता हूँ!
मैं ख़ुद में अक्स तुम्हारा तलाश करता हूँ!

फक़त तुम्हें नहीं सारे जहाँ को भा जाए,
मैं जीने का वो सलीक़ा तलाश करता हूँ!

भटक न जाऊँ कहीं ये नई मैं राहों से,
निशाँ तुम्हारे क़दम का तलाश करता हूँ!

हवेलियों से ज़रा भी नहीं मुझे रग़बत,
मैं अपने जैसा घराना तलाश करता हूँ!

अभी भी याद है काग़ज़ की नाव मेले तक,
कम उम्र का वो ज़माना तलाश करता हूँ!

ज़माने वाले इसी नाम से पुकारें तो,
मरीज़े इश्क़ का रुतबा तलाश करता हूँ!

यही जगह है वो शायद के भूल भाल गए, 
चुभा था पाँव में काँटा तलाश करता हूँ!

ये भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी लकी है मिरी,
सुकून से भरा लम्हा तलाश करता हूँ!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 30.01.2022

एक शख्स देखा था ख़्वाब में
जैसे कोई परियों की कहानी लिक्खी होती है
किसी किताब में
सीधे- सादे तो हम भी नहीं थे उस स्कूल में
नाम कई लिक्खे होते थे दिल के फूल में
पटक देते हैं जमाने वाले
जैसे ज़मीदोज हो जाती है इमारत पुरानी
अपनी ही धूल में

एक चेहरा देखा, और उसी का हो गया
सबका चहेता एक शख्स पर खो गया
पूछा और प्रेम का इज़हार किया
उस शख्स ने कई दिनों तक मानने से इनकार किया
सुना था उसकी सखी- सहेलियों से उसके बारे में
लड़की उस सी नहीं है गाँव सारे में
माता- पिता की लाडली, बड़ी बहानों की दुलारी
सीरत साँवली सूरत कितनी प्यारी
पढ़ाई- लिखाई में है होशियार
हर समस्या का समाधान खोजने को रहती है तैयार

सिक्का तो हमारे नाम का भी काफी मशहूर था
पर! उस शख्स को जीतना मेरे बस से दूर था
महीना वो था जुलाई
आख़िर मिल ही गयी उसको समझने की ढिलाई
एक बार नहीं कई बार मनाया
तब जाके खुद को उसके काबिल पाया

घर साथ गए थे बस के एक कोने में बैठकर
मोबाइल नंबर भी मांगा वहाँ से उठकर
बातें चलती गयी
ज़िंदगी बनती गयी
कभी संदेश भेजना तो
कभी बात करना
कभी उजाला घर में देर रात करना

कहाँ सोने देता है ये प्रेम नयाँ
जब बीमार हुआ तो
उसका बताया नुस्खा आज़माया
उसने अपने हिसाब से इलाज़ करवाया
बड़ी तेज़ तरार है जैसे कोई चिकित्सक
कभी पानी उबाला तो कभी लहसुन का भाप किया
शायद उस शख्स ने भी साथ जीने- मरने का था नाप लिया

कई दफ़ा आधी रात को जगाया
पहले दवाई बना लो कहती रहती
उसके बाद मोबाइल नंबर मिलाया
खुश रहे वो शख्स
जिसने था मुझे जीना सिखाया

थके नहीं पूरी रात बात करके
रुको! अभी मम्मी- पापा साथ है
याद वो हरेक बातें
जो हुई थी हमारे- तुम्हारे बीच
दूर खड़े होकर तुम्हारा वो अपनी सहेलियों को
इशारे- इशारों में हमें दिखाना
वो मुझे आधी छुट्टी को मिलने बुलाना
हमें देर हो जाना और आपका रूठकर चले जाना
आख़िर का वो बिना बात के रूठना
आज तक समझ नहीं पाया

याद तो होगी वो सामने वाली बात तुम्हें
वो कैंटीन में बैठना
फ़िर वो कही बात याद आना
लड़ना थोड़ी देर और फ़िर भाग जाना
मुश्क़िल सा लगता है अब मुझे
उन  बीते दिनों से जाग जाना

थके नहीं बात करके कहा था ना तुमने?
तो सुनो
ना थका हूँ और ना ही हारा हूँ
थोड़ा ज़िद्दी हूँ थोड़ा नसीब का मारा हूँ
बिखरे बहुत हैं हम- तुम भीड़ में
जैसे ठुकराकर जौहरी ने हीरे से चमक को उतारा हो
फ़िर बैठें एक कश्ती
फ़िर तूफ़ाँ आये सफ़र में
पर इस बार मंज़िल हमारी दूर कोई किनारा हो

छात्र संसद में आपकी बेबाक छवि
जैसे कल्पनाएँ लिख रहा हो कोई कवि
हुनर आज भी वैसा ही
बातें करती बार मंद- मंद मुस्कान का जादू
कैसे टूटे, बिखरे हम- तुम
कैसे करें इस बिखराव को
अब काबू

भूले नहीं थे तुम्हें और ना ही भुलाया था
वक़्त बड़ा बदलता देखा तुमने भी
जिंदगी के थपेडों ने राह से भटकाया था
मुमकिन तो नहीं लगता मुझे
पर कोशिश करके देखा भी जा सकता है
फ़िर उसी जगह से
हाँ.... हाँ उसी जगह से शुरू करके
इन बिखरे हुए ख्वाबों को मंज़िल तक पहुंचाया जा सकता है

Written By Khem Chand, Posted on 19.04.2022

संजीव जगत की रक्षा हेतु,

पर्यावरण बेहतर बनाना होगा।

हर मानव को निः स्वार्थ भाव से,

एक-एक पेड़ लगाना होगा।

गर आज पेड़ ना लगाए तो,

कल हर मानव को पछताना होगा।

इसलिए तो कहते हैं सबसे,

बंजर भू पर पेड़ लगाना होगा।

और तो और-

सड़क-रेल के किनारे में भी,

बहुसंख्य पेड़ लगाना होगा।

पर्यावरण बेहतर बनाना होगा।।

गर ऐसा ना कर पायें तो,

हर मानव को पछताना होगा।

हमें पर्यावरण की रक्षा हेतु,

पॉलीथीन-प्लास्टिक बन्द करना होगा।

वरना! हमें पछताना होगा।

हमें स्वजीवन की रक्षा हेतु,

जल संरक्षण भी करना होगा।

वरना ! तीन दशक बाद सबको,

बिन दो घूंट पानी के ही-

सहर्ष परलोक को जाना होगा।

इसलिए तो कहते हैं सबसे,

हमें व्यर्थ पानी ना बहाना होगा।

चलो! सब मिलकर एक विचार बनायें,

जीवन के इस त्रिरत्न बिन्दु पर -

सब कोई दूढ़ संकल्पित हो जायें।

सब अपने- अपने नाम एक-एक पेड़,

जरूर लगायें! जरूर लगायें!! जरूर लगायें !!!

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 09.06.2022

ख्वाहिश है ऊंचाई पर जाने की
अपने सपने को पाने की , आसमान में उड़ जाने की

हर रोज ये कोशिश जारी है
हर अगला दिन पिछले पर भारी है

जब मंजिल पास नजर आती है
अंदर ही अंदर अतिरिक्त जोश भर जाती है

दिन भर की थकावट तब महसूस नहीं होती
लक्ष्य को पाने की जिद में आंखे भी नहीं सोती

विश्वास अब खुद पर इतना
इसे एक जंग समझ कर जितना है


एक दिन मंजिल को पाऊंगा
सपने को साकार कर के दिखलाऊंगा

इंतजार है अवसर के आने की
करतब कर के दिखलाने की

ख्वाहिश है ऊंचाई पर जाने की
अपने सपने को पाने की, आसमान में उड़ जाने की

Written By Mohd. Irfan Ansari, Posted on 12.06.2023

ना जाने कहाँ उसका साथ छूट गया
अब तो जैसे मुस्कुराना छूट गया
कहाँ गया वो रूठना मनाना
और वो हँसी ठिठोली करना

जिम्मेदारियों के बोझ में दिखता नहीं
वजह कोई मुस्कुराने की
बचपन में जवानी की चाह
आज ना जाने क्यों फिर से
बचपन याद आ रहा

उलझनों का आना जाना तो अब
जैसे किशोरावस्था में
ख्वाबों का आना जाना जैसा हो गया
अब तो जैसे मुस्कुराना छूट गया

वर्ष की वो पहली बारिस गिरता
जब बंजर जमीन में
कुछ ऐसा ही हो जाये, काश:
अपनी भी जिंदगी में।।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 12.06.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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