हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Saturday, 10 June 2023

  1. कमज़ोर पिंजरे की मज़बूत परिधि
  2. अपना आसमान भूल मत जाना
  3. हर वर्ष ऐसे ही आता है नया साल
  4. ये सफेद जोंक
  5. बचपन

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हल्के सामाजिक रिश्तों की वज़्नी मर्यादाएँ
सदियों से चलती आ रहीं
परम्पराओं के अटूट बन्धन
खोखली रीतियों और बेकार की रस्मों के असीमित दायरे
अर्थहीन रिवाजों के सुदृढ़ घेरे
मानव के आक्रोशित मस्तिष्क की व्याकुलता पर
स्वछन्द मनन-चिन्तन पर
लगा देते हैं एक प्रश्न-चिन्ह 
तब अपने चारों ओर महसूस होती है किसी
कमज़ोर पिंजरे की मज़बूत परिधि 
क्योंकि 
नादान समझ लिया जाता है
हमारे परिपक्व व्यक्तित्व को
नकारा जाता है हमारे छोटे से अस्तित्व को
सीमाएं जितनी अच्छी हैं
घेरे उतने ही घिनौने
पंख बहुत सुन्दर दिये हैं परन्तु
पहरे उतने ही कठोर
सिसकते हैं, छटपटाते हैं
फट पड़ने को 
आज़ाद होने को जी चाहता है
यही मनन 
हमें दे सकता है एक सार्थक दिशा
यही चिन्तन
जवाब होता है हमारी मौन तृष्णा का
हमारे उस प्रश्न-चिन्ह का
जो बना हुआ है
एक कमज़ोर पिंजरे की मज़बूत परिधि।

 

Written By Anand Kishore, Posted on 19.05.2021

चिकनी चुपड़ी बातो से फिसल मत जाना
तेरी उम्र है डूबने की, डूब मत जाना।

बातों ही बातों में लोग चाँद तारे तोडेंगे
तुम अपना आसमान भूल मत जाना।

हर पल दूर के ढोल लुभाएंगे तुमको
लक्ष्मण रेखा के तुम पार मत जाना।

तेरे सपनो पे ही, अपनो को मान होगा
अपने सपनो से तुम दूर मत जाना।

अगर ज़िद है तुम्हे दुनिया जीतने की तो
शहर की चकाचौंध में गुम मत जाना।

Written By Kamal Rathore, Posted on 07.01.2022

कभी जून की गर्मी कभी दिसंबर की ठंड
हर वर्ष ऐसे ही आता है नया साल
कहीं खुशियों का डेरा कहीं गम ने है घेरा
कहीं शांति है छाई कहीं मचा है बबाल


कभी पतझड़ है आता कभी आती है बहार
कभी बरसते मेघ कभी गर्मी से हाहाकार
दिसंबर की सर्दी में जम जाता तन बदन
यह सब कुछ ही तो होता है हर बार


कुछ अच्छा करने का संकल्प दोहराते हैं
लेकिन फिर उसी रास्ते पर चलते जाते हैं
दिनचर्या नहीं बदलती पूरा साल निकल जाता है
नए साल के आगमन पर फिर जश्न मनाते हैं


सुबह वैसे ही उठते हैं रात को वैसे ही सो जाते हैं
दिन भर करते हैं काम शाम को घर लौट आते हैं
मेहनत की कमाएंगे तभी तो पेट भर पाएंगे
साल दर साल आते है और गुज़र जाते हैं


इस वर्ष ऐसा क्या होगा जो पहले नहीं हुआ है
सूरज वैसे ही निकलेगा चांद वैसे ही मुस्कुराएगा
अमीर के जनाजे में तो लोग होंगे दुनियाँ भर के
गरीब बेचारे को तो कोई कांधा देने भी नहीं आएगा

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 28.01.2022

ये आदि हो चकी हैं, 
सत्ता सुख की,
जैसे आदि हो जाता है,
कोई शराबी, शराब का,
कोई व्यभिचारी, वेश्या का,
कोई अफीमची, अफीम का,
कुछ-कुछ वैसे ही,
ये भी हो चली हैं।

लाल और मखमली कारपेट 
पर चलते-चलते,
ये कपड़े, शरीर और रक्त का 
भेद भूल चुकी हैं।

ये भोगती हैं 
जनता की ताकत को
एक परजीवी की भाँति।
जीती हैं बड़ी ही शान से
जैसे जोंक जीती है,
किसी अन्य जीव के रक्त पर।

ये सफेद जोंक भी 
मेहनतकशों के खून पर ही 
जिंदा रहती हैं।

ये जोंक समय के बहाव में 
अपना तालाब, 
अक्सर बदलती रहती हैं।

Written By Manoj Kumar, Posted on 20.03.2022

आज पता चल रहा है ,
सब कुछ था उस दौर में
कुछ था ही नहीं,
जिस दौर में ऐसा लगता था |
बेहतर हासिल करेंगे,
सोचतें थे दोस्तों के साथ
रेत सी फिसल रही जिंदगी,
लग नहीं रहा कुछ हाथ ||

Written By Yogendra Kumar Vishwakarma, Posted on 10.06.2023

Disclaimer

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