सर पर किसी दीवार का साया न रहेगा,
आपस में लड़ोगे तो कोई तुम्हारा न रहेगा,
अब आ भी जाओ ज़िन्दगी ये ही तो नहीं है,
ख़्वाब मेरा भी फिर कोई परेशां न रहेगा,
फरिश्ता बनने की चाहत में इंसान लगा है,
हुआ करिश्मा कोई तो कोई इंसां न रहेगा,
मान जाएंगे हम अभी भी मना लो हमको,
चले जो गए लौट आने का इरादा न रहेगा,
बुजुर्ग माँ बाप हैं लेलो दुआएं अभी भी इनकी,
ये न रहे तो फिर दूसरा कोई भी सहारा न रहेगा,
सावन का महिना है हंसीं आ जाओ न तुम भी,
तुम न आये तो मौसम सुहाना सुहाना न रहेगा,
सियासतदां हैं ये इनकी मीठी बातों में न आना,
वोट ले लिया `` मुश्ताक`` इनका काफ़िया न रहेगा
महॅंगी होते जा रही, हॅंसी खुशी मुस्कान।
प्रेम दया करुणा सहित, दुआ दवा ईमान।।
महॅंगी होते जा रही, न्याय व्यवस्था आज।
हर गरीब है पिस रहा, रह रह गिरती गाज।।
महॅंगी होते जा रही, हर आवश्यक चीज।
बिजली पानी बोबनी, खाद उर्वरक बीज।।
महॅंगी होते जा रहे, शिक्षा न्याय इलाज।
भटक रहा है दरबदर, अपना सर्व समाज।।
महॅंगी होते जा रहे, अन्न वसन आवास।
ईंधन आवागमन अरु, दिन प्रतिदिन ये श्वांस।।
किसी भी विभाग में जब कोई नवांकुर पैर रखता है मतलब जन्म लेता है अर्थात् नयी नौकरी पाता है तो वो अपने आपको परिपूर्ण होने के बाद भी असहज ही महसूस करता है। वो देखता है, समझता है, हर रोज सीखता है और खुद को सुधारने में व विभाग की कार्यशैली को समझने में ठीक-ठीक वक्त लगा देता है। इस सीखने के उपक्रम में उसका सामना होता है अपने ही विभाग के पुराने महारथियों से। ये लोग उसे बताते हैं कि नौकरी कैसे करनी है? किस परिस्थिति का कैसे सामना करना है? कैसे बचते हुये काम करना है। कहने का मतलब है कि ये वास्तविक योद्धा ही उस अंकुर को इस बात का एहसास दिलाते हैं कि ``बच्चा बीस लगे हैं इसे पाने में, अब चालीस साल लगेंगें बचाने में।`` यही वो लोग हैं जो किसी भी विभाग की आत्मा होते हैं, इसीलिए इन्हें यहाँ ``चेतन`` कहा गया है।
अगर आपमें लोगों को सुनने का हुनर नहीं है तो निश्चित ही आप लोगों से बहुत सी बातें जानने में नाकामयाब ही रहेंगें और ये सुनने का हुनर एक दिन में नहीं आ जाता। इसके लिये धैर्य को पालना सीखना होता है, थोड़ा वक्त देना होता है। हाँ तो बात हो रही थी कि कैसे अंकुर के जीवन पर चेतन का प्रभाव पड़ता है? अंकुर जब विभाग में पैदा होने के बाद पनप रहा ही होता है कि उसकी मुलाकात एक दस साल पुराने चेतन से होती है। अब ये अंकुर के भाग्य पर निर्भर होता है कि ये जो चेतन उसे मिला है ये नौकरी करना सिखायेगा या अपनी प्रतिभा को छिपाने का हुनर अंकुर में उड़ेल देगा। चार हफ्ते की साथ की नौकरी के बाद ये दस साल पुराना चेतन, अंकुर में अपने ही विभाग को लेकर बुराई भर चुका होता है। ये चेतन खुद के निजी उदाहरण और अलग-अलग जिलों के साक्षात् प्रमाण व दण्ड का एक ऐसा माहौल बनाता है कि अंकुर जो इन हसीं वादियों में लहलहाने घर से निकला था, वो अब हल्की आँधी-बारिश से भी छिपने लगता है। उसे लगता है ये मैं कहाँ फँस गया? बाहर से तो ये उपवन बहुत सुन्दर लग रहा था, यहाँ तो नागफनी के ही पौधे हैं, कभी भी मेरी कोमल पत्तियाँ खुरचन में बदल जायेंगी। बेचारा अंकुर फिर भी डटकर खड़ा रहता है।
अब उस अंकुर का पाला पड़ता है पन्द्रह से बीस पुराने चेतन से। इनके साथ का महत्व ये होता है कि ये न तो बहुत गहरे होते हैं और न बहुत उथले। ये अंकुर से तभी बात करेंगें जब अंकुर इनसे बात करेगा। वरना ये पूरा दिन चुपचाप ही गुजार देंगें। इन चेतन के सामने जब अंकुर बोलना प्रारंभ करता है तो ये उसको सुनते हैं और उसकी छवि को अपने पिछले पन्द्रह साल के अनुभव के आधार पर मूल्यांकन करते हैं। फिर ये निर्णय लेते हैं कि ये अंकुर मजबूत तना बनेगा या बस विभाग रूपी उपवन में झूलता ही रहेगा। जब इनको लगता है कि अरे ये तो मजबूत अंकुर है तब इनकी घनिष्टता अंकुर से बढ़ती है और इनके साथ रहकर ही अंकुर की जड़े मजबूत होती है व उसमें थोड़ा साहस आता है कि वो भी इस उपवन में लम्बे समय तक आँधी,बारिश,धूप झेल सकता है।
अब खुद को निखारने व उपवन में रहने लायक बनाने की प्रक्रिया में अंकुर का सामना होता है, पच्चीस से तीस साल पुराने मजबूत चेतन अर्थात् तरूओं से। इन तरूओं के अपने अंकुर भी, अंकुर की उम्र के होते हैं। ये चेतन अनुभव की खान होते हैं और उपवन में चंद आखिरी साल गुजार रहे होते हैं। इनके साथ अंकुर जीवन का असल रहस्य समझता है। ये परिपक्व चेतन अंकुर को बताते हैं कि जिन्दगी कैसे जी जाती है। ये चेतन ही बताते हैं कि यूँ ही कट जायेगा वक्त, पता भी नहीं चलेगा। ये चेतन ही अंकुर के धैर्य को और गहरा करते हैं। इन चेतनों का सम्मान करते हुये, अंकुर उपवन में अपनी जगह बना ही लेता है और इतना कुछ सीखते हुये वो भी विभाग रूपी उपवन में लहलहा उठता है।
अंकुर से चेतन का ये सफर बस धैर्य का ही है। आपसी समझ और व्यक्तिगत निर्णय का भी है क्योंकि चेतन हर तरह के मिलते है, सकारात्मक भी और नकारात्मक भी। उपवन की तारीफ भी करते हैं और उपवन की जमीन की बुराई भी। मगर ये अंकुर पर ही निर्भर करता है कि वो लचीला तरू बनता है या एक मजबूत चेतन जो नये अंकुरों को मजबूत बनाता है।
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 25.08.2021
जब हमारी
जिंदगी में
बहारों की आमद
होने लगती है तो
मानों
हमारी जिंदगी में
एक नयापन आ जाता है
हम फिर बिना किसी
संकोच के
और
एक बेहतरीन तरीके से
अपनी जिंदगी
जीने लगते हैं
Written By Manoj Bathre , Posted on 13.05.2021
सुनो दिकु!
में अब उदास रहने लगा हूँ
तन्हाइयों के पास रहने लगा हूँ
अपने प्यार से जुदा होकर
न जाने लोग कैसे जी लेते है खुश होकर
बस अब सांसे चल रही है तुम्हारे इंतज़ार में
वैसे तो में अब ज़िंदा लाश रहने लगा हूँ
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