देवभूमि लुंबिनी की,जन्मे शुध्दो कुल सिद्धार्थ,
धन्य गोद महामाया की,हुआ राजभवन कृतार्थ।
छत्रछाया माँ आंचल की,पाई सिर्फ़ दिवस सात,
लिया छीन क्रूर प्रकृति ने, माँ महामया का हाथ।
देख शुभ घड़ी,नक्षत्र,वार,लगा राजभवन दरबार
बड़े-बड़े विद्धवान-ज्योतिषी,रहे देख सुत-संसार।
``माँ`` सी बनकर गौतमी आई,धर ममतामयी रुप,
हुई उम्र जब बर्ष सोलह,बने दाम्पत्य पथ के भूप
मिली ना मन को महलों में,पल भर सुख-शांति,
मिथ्या है यह सकल जगत,रिश्ते-नाते सब भ्रांति।
बैशाख पूर्णिमा तिथि पुनीत ,हुई साधना सफल,
जला ह्रदय में ज्ञान का दीप, छटा अज्ञान सकल।
कहलाए सदा ही अग्रदूत,शांति औऱ सदभाव के
राग-द्वेष,अधर्म-अनीति,नही गुण नर स्वभाव के।
रहकर दशक आठ धरा पर, हरे जन-जन के ताप
हुए विलीन कुशीनारा रज में,बन गौतम बुद्ध आप।
ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,
इस जहां में सुख, किसके पास है.
ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,
मैंभी उदास हूं, तू भी उदास है,
इस जहां में सुख, किसके पास है.
ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,
मुझे लगता तू खुश है, तुझे लगता मैं खुश हूं,
अपनी खुशी किसी लगती खास है.
ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,
पास है बहुत कुछ,फिर भी चाहे और कुछ,
कोई नहीं है संतुष्ट, सबको प्यास है.
ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.04.2023छल- छल बहती धारा के
कुछ बूंदों को समेट कर
रखना है परिंडो में भरकर
थोड़ा उनपर दया कर!
प्यास सभी को लगती है
चाहे हो पक्षी, कीट या इंसान
हम अपना ख्याल रख सकते है
उनका कौन रखेगा ध्यान!
कई तालाबों को तबाह कर
हमने इमारते है बनाया!
अब हमारा भी फर्ज़ बनता है
प्रकृति का संरक्षण करना!
समय आ गया अब
मानवता दिखलाने का!
ज्यादा कुछ नहीं बस
थोड़ा धूप में तप कर
परिंडा भर पानी रखने का!
समय आ गया अब
मानवता दिखलाने का!
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* परिंडा -पक्षियों के लिए पानी रखने वाला मिट्टी का बर्तन
तव मुख की छवि कान्तिमय,
लखि चन्द्र भी लज्जित हुआ.
सुन्दरता कमनीयता तेरी निराली निरखिकर,
मदन प्रिया का भी सब गर्व है खण्डित हुआ.
अरुण वसन तेरे प्रिये,
भानूदय ज्यों लग रहे.
नयन तिरछे और चंचल,
मीन-ए-तङाग लग रहे.
तव अधर अरुन मनु पंकज,
लखि भ्रमर मारग भूले है.
झूले मनिमय तव कर्णपुष्प,
ज्यो पदुम वात से झूले है.
बदतमीज मैं नही बदतमीज हैं
आप सबकी टोली
जो हमेसा से मुझसे
झूठ पर झूठ बोली
मेरे सामने मिठा और पीठ पीछे जहर की गोली
इसी कारणों से मैंने आप जैसे झूठे को नकारा
क्योकि ना मैं झूठ बोलती ना मुझे लगता हैं गवारा
मैं जो भी बात बोली तेरे सामने बोली
क्योकि मैं तुझे भी मान बैठी थी अपने समान भोली
मुझे क्या ?पता तेरे अंदर इर्ष्या की ज्वाला हैं
तेरी त्वचा तो गोरी, किन्तु तेरा मन काला हैं
मैं अकेले रह ली, तुझसे सहारा मांगा क्या ?
तु मेरी कितनी शिकायते की, मेरे अंदर का क्रोध जागा क्या?
क्योकि मैं जब तक सहती हूँ, चुप चाप सहती हूँ
लेकिन जब कहती हूँ, तो बिना रुके कहती हूँ
इसलिए बेहतर हैं तु मुझसे दूर रह
अगर हैं कोई दुबिधा तो आकर मेरे सामने कह
ऐसे इधर उधर बातें करके स्वयं को मेरी नजरों में और न गिरा
अगर हैं तुझमें इतनी हिम्मत तो सामने आकर नजरे मिला
मैं जानती हूँ झूठ बोलना तेरा तकियाकलाम हैं
ये बात मुझे हैरान नही करेगी,, क्योकि ये बात तो आम (सामान्य) हैं
तु एकलौती नही तुझ जैसे को मैंने बहुत देखा हैं
तेरी हर बातों का मेरे पास भी लेखा हैं
इसलिए बेहतर हैं आप अपना काम कीजिए
यूँ ऐसे चुगली करके मुझे मत बदनाम कीजिए
क्योकि जिस दिन मैं सामने आई
उस दिन आपकी खैर नही
कभी दोस्त थी तुम्हारी, कोई गैर नही
अभी शांत हूँ शांत रहने दीजिए
सोच रही आपसे न उलझूँ इसलिए मौन रहने दीजिए
क्योकि सत्य के सामने मिथ्या की औकात नही
ये एक चेतावनी हैं आपको कोई अभिशाप नही
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