हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Wednesday, 07 June 2023

  1. घरवाली की मार
  2. सुख किसके पास है
  3. गौतम बुद्ध
  4. फिर ना बिखरे हम सा कोई
  5. जरा बता दो ना

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मार-कुटाई हर समय, रणचण्डी जयघोष
पत्नीजी क्यों आपको, मिले नहीं सन्तोष
मिले नहीं सन्तोष, सजे बेलन हाथों में
चिमटा-थापी राग, सुनाई दे रातों में
महावीर कविराय, न देखो नार पराई
हो ना घर में क्लेश, न होवे मार-कुटाई


घरवाली की मार से, बने साहित्यकार
पत्नी से जो ना पिटे, वो नर है बेकार
वो नर है बेकार, बना दे भक्त किसी को
पत्नी की फटकार, अमर कर दे तुलसी को
महावीर कविराय, रोज़ खा थप्पड़-गाली
पति बने वो महान, जिसे पीटे घरवाली

Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 22.02.2023

सुख किसके पास है

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Bharatlal Gautam
~ भरत लाल गौतम

आज की पोस्ट: 07 June 2023

ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,

इस जहां में सुख, किसके पास है.

ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,

मैंभी उदास हूं, तू भी उदास है,

इस जहां में सुख, किसके पास है.

ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,

मुझे लगता तू खुश है, तुझे लगता मैं खुश हूं,

अपनी खुशी किसी लगती खास है.

ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,

पास है बहुत कुछ,फिर भी चाहे और कुछ,

कोई नहीं है संतुष्ट, सबको प्यास है.

ना मेरे पास है, ना तेरे पास है,

Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.04.2023

देवभूमि लुंबिनी की,जन्मे शुध्दो  कुल सिद्धार्थ,
धन्य गोद महामाया की,हुआ राजभवन कृतार्थ।

छत्रछाया माँ आंचल की,पाई सिर्फ़ दिवस सात,
लिया छीन क्रूर प्रकृति ने, माँ महामया का हाथ।

देख शुभ घड़ी,नक्षत्र,वार,लगा राजभवन दरबार
बड़े-बड़े विद्धवान-ज्योतिषी,रहे देख सुत-संसार।

``माँ`` सी बनकर गौतमी आई,धर ममतामयी रुप,
हुई उम्र जब बर्ष सोलह,बने दाम्पत्य पथ के भूप 

मिली ना मन को महलों में,पल भर  सुख-शांति,
मिथ्या है यह सकल जगत,रिश्ते-नाते सब भ्रांति।

बैशाख पूर्णिमा तिथि पुनीत  ,हुई साधना सफल,
जला ह्रदय में ज्ञान का दीप, छटा अज्ञान सकल।

कहलाए सदा ही अग्रदूत,शांति औऱ सदभाव के
राग-द्वेष,अधर्म-अनीति,नही गुण नर स्वभाव के।

रहकर दशक आठ धरा पर, हरे जन-जन के ताप 
हुए विलीन कुशीनारा रज में,बन गौतम बुद्ध आप।

Written By Govind Sarawat Meena, Posted on 07.05.2023

एक शख्स देखा था ख़्वाब में
जैसे कोई परियों की कहानी लिक्खी होती है
किसी किताब में
सीधे- सादे तो हम भी नहीं थे उस स्कूल में
नाम कई लिक्खे होते थे दिल के फूल में
पटक देते हैं जमाने वाले
जैसे ज़मीदोज हो जाती है इमारत पुरानी
अपनी ही धूल में

एक चेहरा देखा, और उसी का हो गया
सबका चहेता एक शख्स पर खो गया
पूछा और प्रेम का इज़हार किया
उस शख्स ने कई दिनों तक मानने से इनकार किया
सुना था उसकी सखी- सहेलियों से उसके बारे में
लड़की उस सी नहीं है गाँव सारे में
माता- पिता की लाडली, बड़ी बहानों की दुलारी
सीरत साँवली सूरत कितनी प्यारी
पढ़ाई- लिखाई में है होशियार
हर समस्या का समाधान खोजने को रहती है तैयार

सिक्का तो हमारे नाम का भी काफी मशहूर था
पर! उस शख्स को जीतना मेरे बस से दूर था
महीना वो था जुलाई
आख़िर मिल ही गयी उसको समझने की ढिलाई
एक बार नहीं कई बार मनाया
तब जाके खुद को उसके काबिल पाया

घर साथ गए थे बस के एक कोने में बैठकर
मोबाइल नंबर भी मांगा वहाँ से उठकर
बातें चलती गयी
ज़िंदगी बनती गयी
कभी संदेश भेजना तो
कभी बात करना
कभी उजाला घर में देर रात करना

कहाँ सोने देता है ये प्रेम नयाँ
जब बीमार हुआ तो
उसका बताया नुस्खा आज़माया
उसने अपने हिसाब से इलाज़ करवाया
बड़ी तेज़ तरार है जैसे कोई चिकित्सक
कभी पानी उबाला तो कभी लहसुन का भाप किया
शायद उस शख्स ने भी साथ जीने- मरने का था नाप लिया

कई दफ़ा आधी रात को जगाया
पहले दवाई बना लो कहती रहती
उसके बाद मोबाइल नंबर मिलाया
खुश रहे वो शख्स
जिसने था मुझे जीना सिखाया

थके नहीं पूरी रात बात करके
रुको! अभी मम्मी- पापा साथ है
याद वो हरेक बातें
जो हुई थी हमारे- तुम्हारे बीच
दूर खड़े होकर तुम्हारा वो अपनी सहेलियों को
इशारे- इशारों में हमें दिखाना
वो मुझे आधी छुट्टी को मिलने बुलाना
हमें देर हो जाना और आपका रूठकर चले जाना
आख़िर का वो बिना बात के रूठना
आज तक समझ नहीं पाया

याद तो होगी वो सामने वाली बात तुम्हें
वो कैंटीन में बैठना
फ़िर वो कही बात याद आना
लड़ना थोड़ी देर और फ़िर भाग जाना
मुश्क़िल सा लगता है अब मुझे
उन  बीते दिनों से जाग जाना

थके नहीं बात करके कहा था ना तुमने?
तो सुनो
ना थका हूँ और ना ही हारा हूँ
थोड़ा ज़िद्दी हूँ थोड़ा नसीब का मारा हूँ
बिखरे बहुत हैं हम- तुम भीड़ में
जैसे ठुकराकर जौहरी ने हीरे से चमक को उतारा हो
फ़िर बैठें एक कश्ती
फ़िर तूफ़ाँ आये सफ़र में
पर इस बार मंज़िल हमारी दूर कोई किनारा हो

छात्र संसद में आपकी बेबाक छवि
जैसे कल्पनाएँ लिख रहा हो कोई कवि
हुनर आज भी वैसा ही
बातें करती बार मंद- मंद मुस्कान का जादू
कैसे टूटे, बिखरे हम- तुम
कैसे करें इस बिखराव को
अब काबू

भूले नहीं थे तुम्हें और ना ही भुलाया था
वक़्त बड़ा बदलता देखा तुमने भी
जिंदगी के थपेडों ने राह से भटकाया था
मुमकिन तो नहीं लगता मुझे
पर कोशिश करके देखा भी जा सकता है
फ़िर उसी जगह से
हाँ.... हाँ उसी जगह से शुरू करके
इन बिखरे हुए ख्वाबों को मंज़िल तक पहुंचाया जा सकता है

Written By Khem Chand, Posted on 19.04.2022

जरा बता दो ना

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Dumar Kumar Singh
~ डुमर कुमार सिंह

आज की पोस्ट: 07 June 2023

अपनी यारी भी कमाल की थी
आज ज़माने को बता दो ना
आपकी तारीफ में चाँद की खूबसूरती को भी
कम आंकना जरा बता दो ना।

मिलन हमारा भी कुछ इत्तेफ़ाक़ से कम नहीं
मगर उसमे कितना प्यार था बता दो ना
वो इम्तिहान के दिन याद तो आते होंगे
किताबों से ज्यादा आपसे यारी होना बता दो ना।

नन्ही परी सी नखरे आपकी
रूठना तो जैसे जरुरत हो आपकी
सबकुछ सह कर आपको सही ठहराना
याद तो होगा आपको जरा ये भी बता दो ना।

कहते है प्यार में वर्ष भी महीने से लगता है
कैसे बिताये वर्षो की कतार प्यार में
इस रिश्ते में कितने लीप वर्ष आये
आज जरा सा गणित कर ये भी बता दो ना।

कोई शिकायत थी आपको हमसे या नाराजगी
बताना कुछ भी मुनासिब ना समझा हमको
वो धीरे धीरे आपका गैर होना
मजबूरी थी या होशियारी आज सबकुछ बता दो ना।

Written By Dumar Kumar Singh, Posted on 07.06.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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