ख़ुदा करे उसी ज़ालिम से बात हो जाए!
ये भाग दौड़ से या रब निजात हो जाए!
हाँ दुख तो होता है ये देख कर यक़ीनन जब,
किसी ग़रीब का बच्चा अनाथ हो जाए!
ज़बाँ पे जारी रहे ला इलाह का कलमा,
मुकर्रर उसमें हमारी ममात हो जाए!
जो एक बार ही दिख जाएँ आप चिलमन से,
समझ लें हुस्न का सदका़ ज़कात हो जाए!
मैं चाहता हूँ उसे दिलरुबा है वो मेरी,
कुछ ऐसी होनी हो तो मेरे साथ हो जाए!
हमें तो हर घड़ी खुद्शा लगा ये रहता है,
मुआमला न कहीं वाहियात हो जाए!
बेरोज़गारी है इतनी बढ़ी हुई लोगों,
जो दिन को ढ़ूँढ़ने निकलें तो रात हो जाए!
अदा मैं शुक्र हर इक हाल में करूँगा लकी,
किसी तरह से बसर कायनात हो जाए!
अरे ओ आब तुम जैसे भी हो,
यूँ तो बस मेरे ही हो।
ये मैं भी अच्छे से जानती हूँ और तुम भी।
पर अब मैं तुम्हें छोड़ने को बड़ी बेताब हूँ।
आखिर मेरे साथ तुम कब तक रहोगे।
मैं नादान-सी, अलबेली नद,
और अधिक लम्बे समय तक,
नहीं सहेज सकूंगी तुम्हें।
मैं, सम्पूर्ण मुक्त करती हूँ तुम्हें।
तुम जा सकते हो,
किसी अनंत सागर की गेह में।
मैंने एक पतिव्रता की तरह,
पल-पल तुम्हारा साथ निभाया है।
अब तुम ठीक से संन्यास को प्रवृत हो जाओ।
मुझे भूल केवल और केवल उस सागर में खो जाओ।।
बैठ जाने को कहता हूँ
तो चले जाते हैं
ज़ख़्म भरने का नाम नहीं लेते
मरहम लगाने को कहता हूँ तो
तो चले जाते हैं
किसको बिठाएँ पास अपने
दर्द जुबाँ पर आते हैं
तो चले जाते हैं
बैठो! आज पास हमारे
कुछ बातों का हिसाब करते हैं
जिंदगी तो समझती रही जिंदगी को
चलो कुछ लम्हें यूँ ही खराब करते हैं
तुम काग़ज़ लेकर आना
हम लफ़्ज़ों की पोटली लाएंगे
कुछ ना कहना
बस खामोश रहना
हमें उभरने देना सदमे से
फ़िर कोई ख़्वाब बुन लेंगे
लौट आये फ़िर राह में
तो उजियारा करना
जो पसंद ना हो बातों का दरिया
तो तूफानों से किनारा करना
क्या करोगे इंतज़ार करके इंतज़ार का
चलो नंबर डायल पुराने वाला
तुम दोबारा करना
बरसों बाद मिले, भीड़ में
बोझा उठाये मिले भीड़ में
दूर से देखा तो नजदीक जाने का मन किया
एक जमाना मिला आज मुझे भीड़ में
चेहरे में मुस्कान, लब्ज़ों में थकान
एक अज़ीज़ किस्सा ज़िंदगी का सम्भाले
एक मुस्कुराता हुआ इंसान मिला भीड़ में
हाथ बढ़ाए, हाथ मिलाए
काँपता हुआ दिखा आज मैं
उस शख्स को मुस्कुराते देखना अच्छा लगता है
सफ़र जिंदगी का सफ़र में वो
हाँफ़ता हुआ दिखा आज मैं
फटे- पुराने नोटों सा हो गया हूँ
कीमत घटती ही जा रही है
पुराने रिश्ते को नयाँ बनाने के लिए
टाँकता हुआ दिखा आज मैं
साथ- साथ बैठना था इस सफ़र में
धीरे- धीरे सुनना था उसकी बातों को
पर वक़्त को साथ बैठना मंज़ूर नहीं था
आगे बैठे थे, आईने में देखता रहा
टटोलता रहा खुद में उसमें
उस गुज़रे हुए कल को
जो कभी सफ़र में साथ बैठकर
तय किया था घर के लिए इसी बस की तरह
किसी इसी नाम की बस में शायद!
बातें बस होठों पर आकर
मौन सी होकर रह गयी
इंतज़ार रहेगा अगले सफ़र का
इसी दिन की तरह मृदुल सी मुस्कान
को फ़िर देखूँ, फ़िर मौका मिले
तुमसे बात करने का
फ़िर साथ बैठें एक पंक्ति में
और सफ़र बातों- बातों में निकले
फ़िर इंतज़ार रहेगा...... इंतज़ार रहेगा तुम्हारा
सच्चाई की आजकल, राह नहीं आसान।
करना पड़ता है हमें, जगह जगह विषपान।।
रोजगार मिलता नहीं, चलती नहीं दुकान।
कदम कदम पर दिक्कतें, राह नहीं आसान।।
नफरत ही नफरत भरीं, नफरत ही भगवान।
इस दुनिया में प्रेम की, राह नहीं आसान।।
झूठे करते शान से, झूठ़ों का गुणगान।
जग झूठे में सत्य की, राह नहीं आसान।।
जीव जंतुओं को पचा, करते मदिरा पान।
जगत सात्त्विक सोच की, राह नहीं आसान।।
धर्म सुरक्षा के ख़ातिर,
जीवन कर दिया न्यौंछावर।
हिन्द की चादर कहलाएँ,
आज आप गुरू जी तेग बहादुर।।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी पिता,
और नानकी जी थी माता।
नाम बचपन त्यागमल था इनका,
अमृतसर में जन्म हुआ गुरुवर का।।
स्वभाव इनका संत समान,
लेकिन तलवार बाजी में थे महान।
अडोल चित और निर्भय था भाव,
कई-कई घंटो तक करतें भक्ति भाव।।
प्रेम भाईचारा और एकता,
शांति क्षमा और सहनशीलता।
इनका दिया था इन्होने बहुत सन्देश,
प्रथम दर्शन धर्म एवं सत्य ही विजय।।
जौहर दिखाएँ खूब तलवार से,
अपने पिता के साथ मिलकर के।
गुरु नानक वचनों का अनुसरण किऐ,
सिखों के यह नवें गुरू हुऐ।।
सप्तसुरों से
सुरीली तानों से
अपने आने की
आहट देती
भोर की सुहानी
बहारें
बहुत ही आनंददायक
होती है
क्योंकि यही
बहारें
हमारे जीवन को
एक नई आशा
और दिलासा
देती है आने वाले
कल के लिए।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 11.05.2021
अँधेरों को बुलाया जा रहा है
यक़ीं को आज़माया जा रहा है
मगर क्यूँ करके चर्चा रोशनी की
हमें यूँ बरगलाया जा रहा है
न जाने क्यूँ दोबारा से हमारे
चरागों को बुझाया जा रहा है
कहीं सदियों में गुम जो हो चुका था
वही पल दोहराया जा रहा है
मुहब्बत के शजर कितने हैं फिर भी
शजर नफ़रत का लाया जा रहा है
हमारे जो रहे दुश्मन सदा से
उन्हें साथी बताया जा रहा है
हमेशा नेकियाँ की हैं जिन्होंने
उन्हीं का दिल दुखाया जा रहा है
छिपाना राज़ है `आनन्द` कोई
तभी तो मुंह छिपाया जा रहा है
कितनी बातें पनपी सपनों के पीछे,
राह अपने शहर की अपनी ओर खींचें,
चला हूँ बहुत देर तेज दोपहरी में
और आज भी गुजरती हैं रातें तारों के नीचे....
मोहोब्बत सी है इस तन्हाई से,
लगाव बहुत है अपनी परछाई से,
सीखा बहुत है वक्त की बेवफाई से,
दौड़ रहा हूँ फिर भी पुरजोर मुट्ठी भींचे
चला हूँ बहुत देर तेज दोपहरी में
और आज भी गुजरती हैं रातें तारों के नीचे....
दूर रोशनी, आसरा सी लगती है,
गुजरती हवा, चाहत सी लगती है,
खुशी अपरिचितों की, राहत सी देती है,
फिर अक्सर भोर मुझे,अतीत में खीचे
चला हूँ बहुत देर तेज दोपहरी में
और आज भी गुजरती हैं रातें तारों के नीचे....
चार दोस्त और बहुत सी बातें,
कहकहे और नयी बनती यादें,
याद आते, खुद से किये वादे,
भविष्य का अंकुर,अक्सर भूत ही सीचें
चला हूँ बहुत देर तेज दोपहरी में
और आज भी गुजरती हैं रातें तारों के नीचे....
खत्म होती फिर एक और रात,
सकुशल गुजरती कस्बे के साथ,
आराम लेकर आती नयी प्रभात,
पकड़ते हम भी बिस्तर बिना कुछ सोचे
चला हूँ बहुत देर तेज दोपहरी में
और आज भी गुजरती हैं रातें तारों के नीचे....
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 11.08.2021
इलाहाबाद के घाट पे
कुम्भ के मेले से दूर
एक शाम शांति से संगम किनारे
दूर आसमान में परिन्दों के
अनगिनत झुंड
विचित्र विचित्र आकृतियों से
मन को मोह रहे थे।
में एक टक उन पंछियों को
निहारे जा रहा था।
सारे जहाँ की संस्कृतियो
का संगम मैने देखा,
ओर मेले में अपने पापों से
मुक्ति पाने को अनगिनत चेहरे
आपा-धापी में अपने गंतव्य को
जाने को आतुर दिखे।
मगर पंछियों के झुंड
उन्मुक्त आसमान में
अपने पाप पुण्य से कोसो दूर
उड़ उड़ कर
जीने का सबक दे रहे थे।
अपने कर्म निस्वार्थ मन से
घोंसलों में लौटकर
बच्चों के मुँह में दाना डालकर
प्रेम का सबक सीखा रहे थे।
दिल मे आज भी
कुछ बातें ऐसी गई जो
कह न सकी तुमसे
तुम्हारी अमानत बन
आज भी पड़ी है
वह अनकही और
अनसुनी बाते
बोझ न जाने
कब तक ढोती रहूं
कब तुम आओगे
कि मैं सुकून से
बैठकर तुम्हें सारी
बातें बोल कर
भार मुक्त हो जाऊं
और भूल जाऊं
तुम मेरे लिए क्या हो
और मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।