परिवार है हमारे जीवन का हार,
भगवान ने दिया हमे अनमोल उपहार|
परिवार के सभी सदस्य है हार के मोती,
मिलकर रहने से जलेगी विकास की ज्योति|
एक एक मोती जुड़कर बनती हार की माला,
परिवार में रहने की शिक्षा नही देती पाठशाला|
आखिर क्यों बिखर रहे अब बहुत सारे परिवार,
क्यों तोड़ रहे हम अपना बहुमूल्य सुंदर सा हार|
मिलकर लड़ने से खत्म हो जाती बड़ी बड़ी कठिनाई,
परिवार टूटने से हमारे जीवन में नई नई समस्याएं आई|
बहुत सही हमारे पूर्वजों ने की थी परिवार रूपी संरचना,
पश्चिम के प्रभाव के कारण इसपर मडराने लगा काला घना|
बहुत आवश्यक है इस पारिवारिक संरचना को बचाना,
क्योंकि अनेक सदस्य से मिलकर बनता परिवार रूपी गाना|
Written By Avinash Rai, Posted on 24.05.2023आप नेक हैं या के बद में हैं
आप भी आग की ज़द में हैं
आप रजा है या रद्द में है
आप भी आग की ज़द में है
कामिल है आप या अद में है
आप भी आग की ज़द में है
आप मैं है या के तद में है
आप भी आग की ज़द में है
होश में है या की मद में है
आप भी आग की ज़द में है
सबसे बाहर हैं या कि हद में हैं
आप भी आग की ज़द में हैं
समर है आप या के ख़द में है
आप भी आग की ज़द में है
गुजरा कल है या की ग़द में है
आप भी आग की ज़द में है
आप बे ख़ुद हैं या ख़ुद में हैं
आप भी आग की ज़द में हैं
शर्फ़े आग़ाज़ ख़त्मे शुद में हैं
आप भी आग की ज़द में हैं
ग़म-ए-हयात है या ईद में है
आप भी आग की ज़द में है
सहराये रेत है या नद में है
आप भी आग की ज़द में है
बू के रूत है या के ऊद में है
आप भी आग की ज़द में है
उलूल जुलूल है या छंद में है
आप भी आग की ज़द में है
मुस्कुरा कुनु मसनद में हैं
आप भी आग की ज़द में हैं
Written By Kunal Kanth, Posted on 27.05.2023हजारों बाग वाली फूल हो तुम
बेमिसाल है तेरा सुगंध
तुम हो सबसे अनोखा फूल
क्योंकि मेरी पहली पसंद है तुम
तुम बागो की सौंदर्य हो
मान हो सम्मान हो
सबसे अलग एक पहचान हो तुम
क्योंकि मेरी पहली पसंद है तुम
थोड़ा सा व्यायाम कर लें,
दिल करे या न करे।
पर थोड़ा सा तेज चल लें,
दिल करे आराम करने को।
पर थोड़ा सा व्यायाम कर ले।।
सुबह उठें सूर्योदय से पहले,
नित्य प्रतिदिन थोड़ा व्यायाम कीजिए।
मन में उमड़ते विचारों को एक बार,
विवेक के तराजू पर तौल लीजिए।
नित्य प्रतिदिन थोड़ा दौड़ लीजिए।।
मन में पड़ी गाँठ को खोल लीजिए,
दिल उदास हो, मन परेशान हो फिर भी।
चेहरे पर मुस्कान भरके दो शब्द बोल दीजिए,
आपका भी जीवन खुशहाल हो जाएगा।
नित्य प्रतिदिन थोड़ा दौड़ लीजिए।।
बीमारी से दूर, शक्ति से भरपूर रहिएगा,
समय भी आपके अनुरूप रहेगा।
दिनभर के क्रियाकालापों का मूल्यांकन कीजिए,
स्वास्थ्य तंदुरुस्त, डॉक्टर से दूर रहिएगा।
नित्य प्रतिदिन थोड़ा दौड़ लीजिए।।
लगने लगी पल-पल यह कश्मकश-ए-जिंदगी,
बामुश्किल से कर पातें, लोग `मत्स्य` की वंदगी।
एक पूरा होते ही आ धमकते ढेरों नए ख्बाव,
भर रहीं सांसें सिसकियाँ सुन भयभीत जबाब।
जिस औऱ उठी नज़रें, आया ना विश्वास नज़र,
बात-बात पर झूमा-झटकी,मचा हुआ है गदर।
शेष रहा ना सब्र ह्रदयों में,कैसी ये कशमकश,
कदम-कदम पर साया स्वंय का,लगता वेबस।
नही यक़ी क्षणभर का,जारी फिर भी दौड़-धूप,
कब राजा बन जाए रंक, कब बन जाए रंक भूप।
छेड़े हुए है हर आदमी,मुश्किलातों से अब जंग,
बदल रहा वक़्त बेवक़्त, ज्यों बदले गिरगिट रंग।
कभी हंसा देती है
कभी रुला देती है
माँ है मेरी काली
जो खुद से ही
मोहब्बत करवा देती है।
कभी जीवन जीना सिखा देती है
कभी मेरे गुनाहों को दफना देती है
माँ है मेरी काली
जो काबिल-ऐ-तारीफ
शख्स मुझे बना देती है।
कभी आदि से अंत तक ले जाती है
कभी अंतिम चरण में भी
नया आरंभ कर देती है
माँ है मेरी काली
जो हर संकट में मुझे
अपनी गोद में उठा लेती है।
कभी धर्म का राह दिखा देती है
कभी कर्म को ही धर्म बना देती है
माँ है मेरी काली
जो नादान बालक समझकर
मेरे हर गुनाह को भूलाकर
सीने से मुझे अपने लगा लेती है।
सुनो दिकु!
बहुत कोशिश की पर दिल नही समझ रहा है
बार बार यह तुम्हें ही देखने की जिद्द कर रहा है
क्यों चली गयी छोड़कर
आज भी वह फरियाद करता है
हाथ जोड़ता है, गिड़गिड़ाता है, हरपल रोता है
जब कुछ नही होता फिर ऊपरवाले से लड़ता है
अब तो आजाओ एकबार
यह ज़िंदा शरीर तुम्हारे लिए दिकु
एक दिन में न जाने कितनी बार मरता है
कितना सुकून देता है माँ का आँचल,
उसमें बहती ममता, करती छल छल,
दिल को चैन देता, हर दम - हर पल,
न मिले छाया आँचल की तो दिल जाता मचल।
दिल कहता रहे मेरे संग माँ का आँचल ,
मैं कभी ना चलूँ अकेले,
माँ तू हर दम मेरे साथ चल।
कितना सुकून देता माँ का आँचल।
एक अभ्यर्थी रोज सबेरे चिड़ियों के जगने
से पहले ही जग जाता है,
फिर दिन भर पागलो की तरह
किताबों में ही खो जाता है
भूख प्यास, दोस्ती यारी
सब कुछ भूल जाता है
ना जाने कितने ही वर्ष एक छोटे
कमरे में ही बीत जाता है
फिर भी नहीं समझना चाहता
कोई भी इनके दर्द को
जो भी मिलते है इनसे हाल चाल
नहीं पूछता कोई
नौकरी लगी की नहीं अभी तक
यही पूछते है हर कोई
मन में एक डर सा
बना रहता है इनके
क्या होगा माँ बाप के आशाओं का
रिश्तेदारों और समाज के
तानोबानो का
क्या क्या सहना पड़ता है
यहाँ एक अभ्यार्थी को
कोई निकम्मा कहता है
तो कोई बेकार समझता है
अभ्यार्थी कर देता है किनारा
इन सब बातों का
सब कुछ भूलकर लगा रहता है
अपनी ही तैयारी में
इनके हौशला जूनून के आगे
कहाँ टिक पाता है कोई
सफल होना होगा हमकों
बस यही बात वो जनता है।
दुनिया को कुछ देने की ताकत ही तो
मानव को पूज्यनीय बनाती इस जग में
वरना भव में डांगर भी आते और जाते
करना है तो कुछ अलग करो, जिससे
देश ही न बल्कि दुनिया तुम पे गर्व करें...
तुम वो कर सकते जो तुम सोच सकते
तुम्हारे अंतरतन में है एक अलग उमंग
जो और किसी गैर मनुज में है कहां
अपने अंदर की ताकत को मरने न दो
अन्यथा दुनिया तुम्हें फेलियर कहेगी ही...
उद्भव हुआ तो एक दिवा जाना तय ही है
क्यों न जाने से पहले कुछ ऐसा कर जाय
जिससे सदियों तक दुनिया हमें याद रखें
न कुछ कर जाने से दो दिन की होगी गम
फिर धीरे धीरे जग हमें विस्मृत कर ही देगी...
कोई किसी का साथ न देता इस जहां में
लोग अपना लाभ देखकर सहयोग करते
किसी मानव पर इतना विश्वास ना ही करें
जिससे की उसे पृथक होने पर हमें गम हो
आत्मविश्वास ही हमें शीर्ष पर है पहुंचाती...
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