हो जहाँ, जहां हर साज से परे,
होगी मोहोब्बत वहां, आगाज से परे,
निश्चित ही अलग समय होगा वो
और वो होगा उस आकाश से परे....।
सीमा वहाँ नहीं ही होगी,
बंदिशें बेतरतीब न होंगी,
रूकावटें हृदय में न बनेंगी,
निर्मलता के बोल होंगें वहां खरे,
निश्चित ही अलग समय होगा वो
और वो होगा उस आकाश से परे....।
चाहतों के शहर होंगें,
अपनेपन के गाँव होंगें,
दिलों में लगाव होंगें,
मन प्यार से होंगें पूर्णतया भरे,
निश्चित ही अलग समय होगा वो
और वो होगा उस आकाश से परे....।
देव-देवी सब वहीं होंगें,
हूर,परी के बजूद भी होंगें,
मानवता के अक्स बाकी होंगें,
जिसको यहां हम खत्म कर चुके,
निश्चित ही अलग समय होगा वो
और वो होगा उस आकाश से परे....।
दुनिया अलग होगी,यही सपना है,
वैमनस्यता नहीं होगी,यही सोचना है,
विचारों का मिलन शायद वहीं होना है,
क्यों व्यर्थ की चिन्ता अब करें?
निश्चित ही अलग समय होगा वो
और वो होगा उस आकाश से परे....।
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 03.08.2021
यहाँ पे ऐसे भी इंसान पाए जाते हैं!
नज़र के तीर जिगर पे चलाए जाते हैं!
किसी के साथ यहाँ हँसके बात करना भी,
नए ज़माने के तेवर बताए जाते हैं!
रवायतें हैं यहां की बहुत पुरानी ये,
पलक झपकते ही खंजर चलाए जाते हैं!
ये अपनी दुनिया का दस्तूर है जहाँ पर लोग,
बुलंदियों पे बिठा कर गिराए जाते हैं!
अमीर लोगों की देखी है खा़सियत ये भी,
फज़ूल ख़र्ची में पैसे उड़ाए जाते हैं!
न पूछो हाल मिरे दोस्त मेरी क़िस्मत का,
अकेले बोझ गमों के उठाए जाते हैं!
अब आदमी में नहीं बाक़ी क़ूव्वते बर्दाश्त,
ज़रा सी बात पे वो तिलमिलाए जाते हैं!
मिटा सको गे तवारीख़ दिल से कैसे लकी,
निशान माज़ी के क़सदन मिटाए जाते हैं!
कभी गौर से पढना तुम्हें एक बिखरा हुआ इंसान मिलेगा
जिंदा है किसके लिए और क्यूँ मालूम करना
तुम्हें आईने के सामने भी तुम्हारा ही नाम मिलेगा
ज़रूरत जब होगी उस रब की महफ़िल में हमारी चले जायेंगे
बचा कर रखना मेरे शरीर की राख़ को
वरना एक और खेम महक बनकर श्मशान में खिलेगा
किस्से हमारी मोहब्बत के भी बेशुमार रहे
कभी वो ना आ सके मिलने और कभी हम बीमार रहे
चर्चे तो नादान कलम के भी सारे शहर और बाज़ार रहे
चंचल थे स्पंद थे बिना इश्क के हम भी कैसे कलाकार रहे
बीते दिन की यादें उसके काम तो आती होगी
कोई हवा कोई बारिश की बूंद तेरी गली गुमनाम होकर तो जाती होगी
तुम भी याद करते होंगे हमें हर लम्हों में
तुम्हारी जिन्दगी में कोई ``नादान कलम `` की शाम तो आती होगी
गालिब क्या कहेंगे हम तेरी फनकारी पर
इश्क मोहब्बत करके दिल रख आये हैं तेज़ आरी पर
किसी ने पता पुछा था नादान कलम के सिपाही का
वो घर गिरवी रक्ख़ आये हैं प्रेम दरबारी पर
कभी खुद को तो कभी वक़्त को रुलाऊँगा
मैं जैसा भी हूँ ज़िंदगी अकेले ही बिताऊंगा
खैर छोड़ दो ये रूठना- मनाना अब नादाँ कलम
एक दफा खुद की खुशियों को मारकर देखना है
फ़िर खुद के लिए,, तुम्हारी गली मैं लौट आऊंगा,,,,
एक नज़र उस नज़र पे जिस नजर को नज़र ना लगे इस नज़र की
दिनभर की थकान को,
पल में तरोताज़ा कर जाती है।
जब एक कप चाय मिल जाती है।
बातों का सिलसिला,
शुरू हो जाता है।
कई यादों का सिलसिला
शुरू हो जाता है।
जब एक कप चाय मिल जाती है।
थकावट को पलों में दूर कर,
नई स्फूर्ती भर जाती है।
नये काम शुरू करने की,
हिम्मत दे जाती है।
जब एक कप चाय मिल जाती है।
सम्मान को बढाती है,
रिश्तों में मिठास गोल ,
अपना बनाती है।
जब एक कप चाय पिलाई जाती है।
जब एक कप चाय मिल जाती है।
किसने कहा तुमसे ऐ जिंदगी में व्यस्त हूं।
आज कल मैं भी उस उगते और अस्त होते
सूर्य की तरह ही मस्त हूं।
इन व्यवस्था में मैं भी वक्त दे देती हूं।
उन अनखिले फूलों को खिलखिलाने का मौका,
जिन्हें कभी तेज हवाओं ने था रोका,
दे देती हूं उन बूढ़ी हड्डियों को मजबूती,
जो अब मेरे ही सहारे से चलती है
और कभी झांक आती हूं,
उन पुश्तैनी घरों के बंद पड़े किबाड़ो में,
खोल आती हूं उन झरोखों को जो खुलते ही
बड़ी आहट करते हैं ।
किसने कहा तुमसे ऐ जिंदगी में व्यस्त हूं ।
आजकल मैं भी उस उगते और अस्त होते
सूर्य की तरह ही मस्त हूं।
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