अगर वृक्ष सब
खामोश हो जाएं
तो क्या होगा
कभी सोचा है
हमने इस विषय पर
नहीं
हम तो सिर्फ
स्वयं की सोच में ही
निरंतर चलायमान है
पर हम जिस
प्राणवायु के दम पर
चल रहें हैं
उसके लिए भी हमें
कुछ करना होगा
जन सामान्य में
जागरूकता लाना होगी
जिससे जीवन दायिनी
प्राणवायु को बचाया जा सके
इसके लिए हमें
एक संकल्प लेना होगा
कि हम अपने जीवन में
अनेक वृक्ष अवश्य लगाएंगे।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 11.05.2021उत्सवों को में अब नकारने लगा हु
कोई भी उत्सव से
मन मे कोई दीप नही जलता।
कोई रंग असर नही करता।
मैंने बहुत प्रयास किया
बहुत गहरे तक मे
अपने अंदर तक लौटा।
मगर कोई उमंग
कोई उत्साह मुझे
स्वयं में नहीं दिखा।
कुछ जख़्म हरे नजर आए
कुछ खामोशियाँ गुनगुनाती दिखी
मगर उत्साह, उमंग
नदारद ही मिले।
अब उत्सवों से डर सा लगता है।
काश मेरे पास
हाथी की तरह दांत होते
तो में भी भीड़ की तरह
दुसरो को दिखाने के लिए
झूठा ही चेहरे पे नकाब
पहन लेता मगर अफसोस
में जमाने के साथ
नही चल पाया
अब हर उत्सव से डर लगता है।
कहाँ तक अपने जख़्म छुपाऊ।
दुनियाँ में कौन कोई हमेशा रह पाता है
गिनती की सांसें पूरी कर अलविदा कह जाता है
रह जाती हैं केवल यादें जो हमेशा तड़फाती हैं
इंसान अकेला आया था अकेला चला जाता है
रहें न रहें यह कोई बड़ी बात नहीं
काम ऐसा करे जिसे लोग याद करें
भलाई के कामों में अर्पित कर दें तन मन
व्यर्थ में अपना समय यूं न बर्बाद करें
गठरी में बांध के रख लो बेशक
पैसा कभी साथ नहीं जाएगा
खाली हाथ आया था इस जहां में
वक्त आने पर तुझे कोई नहीँ रोक पायेगा
आना जाना तो लगा रहता है
जानेवाली की याद बहुत आती है
अकेला होता है जब कोई
तो यादें बहुत तड़फ़ाती हैं
इस नश्वर संसार का प्रत्येक जीवन्त नियम
आज के आधुनिक युग में
लिपट गया है
सुनहरे वर्तमान की नई युवा पीढ़ी के बलशाली कदमों से
एक लोहे की जन्ज़ीर बनकर
विद्रोह
हाँ! विद्रोह सिसक रहा है
विस्फोट करने को लावा उबल रहा है क्योंकि
ज्वालामुखी के मुख पर रख दिया गया है
प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का भारी पत्थर
हमारे समाज के मक्कार व धूर्त कर्णधारों के द्वारा
हलचल लेती जा रही है शोर का रूप
क्रांति का जन्म बग़ावत से ही होता है
सामने खड़ी है चक्रवात बनकर
जवान ख़ून की आँधी
इन नियमों को निगलने के लिए
आओ सबकुछ भूलकर
आज एक निर्णय लें
अपने विचारों के व्यास को बढ़ाकर
अपने मस्तिष्क रूपी घेरे को बड़ा करें
परिधि को तोड़ना नहीं है
पुरानी परिधि के अस्तित्व को नकारकर
स्वयं निर्माण में लग जाएँ
एक नई उज्जवल परिधि के
हाँ! नवनिर्माण में लग जाएँ।
Written By Anand Kishore, Posted on 17.05.2021
ता-उम्र श्री कृष्ण भक्ति में किया आपने व्यतीत
हिन्दी-साहित्य में सूर्य उपाधि से हुऐ है प्रसिद्ध।
सूरसागर सूर सारावली साहित्य लहरी यें रचित
महाकवि सूरदास से हुऐ आप बहुत ही प्रसिद्ध।।
मदनमोहन था बचपनें में कभी आपका ये नाम
सूरदास उपाधि देकर बढ़ाया है गुरुदेव ने मान।
महाप्रभु वल्लभचार्य के सबसे नेक शिष्य आप
वात्सल्य भाव के श्रेष्ठ कवि ऐसी आपकी शान।।
हिंदी काव्य में लिखी रचनाऍं व पद सवा-लाख
निर्धन पिता पं. रामदास और माता जमुनादास।
ब्रजभूमि पर ब्रज भाषा में रचा आपने इतिहास
नदी किनारें बैठकर पद लिखतें थे यह सूरदास।।
आगरा के रुनकता या फिर सीही में हुआ जन्म
गायन गातें लिखते सुनाते दोहे पदों को हरदम।
नहीं थे नैन फिर भी लिखते करतें सजीव वर्णन
श्री कृष्ण लीला और श्रृंगार रचनाओं में है दम।।
बिना देखें ही लिख दिया वास्तविकता की छवि
इसी लिए इनको कहते वात्सल्य सर्वश्रेष्ठ कवि।
१६ ग्रंथ लिखें इन्होंने श्रीकृष्ण भक्ति के रस पर
इस-दृष्टि से सूरदास को कहा जाता है ये कवि।।
कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।