कुछ लब्ज़ जब ज़ुबान से निकल जाते हैं
जैसे कमान से निकल जाता है तीर
वैसा ही एक वाक्य निकला ज़ुबान से
और जाकर लगा उस शख्स के हृदय में
जो कभी उस कमान को चलाने वाले शख्स को
अपना सबसे करीबी मानता था
लड़ना- झगड़ना आम बात है रिश्तों में
फिर मनाना भी ज़रूरी है
पर! जब किसी की बातें हृदय को
छ्लन्नी कर दे तो क्या ?
उन बातों को भूल सकते हैं
या उस इंसान को भुलाना बेहतर रहता है
मन के किसी कोने में अनेकों प्रश्न उठते हैं
जब हृदय में बड़ी शिला रक्खकर सवाल के जवाब
ढूंढ लेते हैं हम बहुत सोच- विचार कर ही
हम निर्णंय के बेहद करीब पहुंच जाते हैं
और आखिर निर्णंय ये होता है कि?
उस शख्स से दूर रहना ही सही है
भूल जाते हैं फिर हम उनकी
हर अच्छाइयों को और साथ ही
उनके साथ बिताए हुए उन पलों को
जिनको साथ में बिताते हुए किये होते हैं
हमने हज़ारों वादे- कसमें और ना
जाने क्या- क्या ?
मोहब्बत में पड़े हुए जोड़े को
तोड़ने के लिए वक़्त भी
उन्हें कई इम्तिहानों से मिलाता है
ज़िन्दगी क्या है ?
और जीने का सलीका बताता है
पर वो शख्स फिर वैसा नहीं रहता
जैसे पहले रहता था अपने प्रेमी की
छाँव में.......दूर- दूर से निहारता रहता था
वो भी उसे
गाँव में
गाँवों में कुछ भी हो,
सबों में मनोरंजन समाहृत हो,
समाहृत हो या न हो,
परंतु वहाँ के लोगों की
हर अवलोकन का नजरिया ही है यही।
क्योंकि, मनोरंजन का सबसे अधिक
अभाव है, तो है- वहीं।
एक गाँव के युवकों ने,
नाट्य मंचन की योजना बनाई।
आपस में तय करके,
महाभारत पर आधारित
नाटक के मंचन की बात
सारे गाँव को बताई।
तिथि निश्चित हुई,
रिहर्सल जारी,
मंच की तैयारी
चन्दा-बिहरी शुरू हुई।
आखिरकार, नाटक की शाम आई।
बच्चे, बूढ़े, महिलायें,
सब-के-सब उमंग में थे,
पुलक रहे थे
मनोरंजन के खजाने लूटने को
हास्यवृष्टि से भींगने को।
सामने मंच पर पर्दे लहरा रहे थे,
अंदर निर्देशक, मेक-अप वाले को बता रहे थे,
द्रौपदी को ग्यारह साड़ियाँ पहनायी जाए,
चीरहरण दृश्य हेतु,
दुस्सासन को बता रहे थे-
आपके द्वारा गिन कर दस साड़ियाँ खींची जाएंगी
ग्यारहवीं द्रौपदी के बदन में ही रह जाएगी।
परंतु,
मेक-अप मैन जब मेक-अप में लगा था,
‘शकुनि’ के पगड़ी हेतु
वस्त्र नहीं मिल रहा था,
उसने ये समझ कर
कि एक साड़ी कम रहने पर
द्रौपदी के मान में थोड़े कमी आएगी
झटपट एक साड़ी की पगड़ी
शकुनि को बाँधी गई।
चीरहरण का दृश्य जब
मंच पर आया,
दुस्सासन ने गिन कर
द्रौपदी की दस साड़ियाँ खींचीं।
द्रौपदी का किरदार निभाता युवक
मंच पर लंगोट पहने,
गोल-गोल घूमते हुए
हक्का-बक्का हुआ
ग्रामीण दर्शकों में हँसी का फव्वारा छूटा।
नेपथ्य के लोग घबराए,
निर्देशक बिल्लाए,
पर्दा गिराने की सीटी बजी।
यहाँ तक कि
पर्दा गिराने वाले के चेहरे से
घबराहट भरी हँसी छूटी।
रस्सी खींची तो,
आगे का पर्दा गिरने की बजाय
पीछे का पर्दा उठा।
नेपथ्य में कृष्ण, सजे-सँवरे खड़े थे
माथे में मुकुट पहने
बगल में बंसी दबाए
बड़े ही इत्मीनान से
बीड़ी पी रहे थे।
Written By Lalan Singh, Posted on 30.05.2022
मेरे प्यारे उत्कृष्ट प्रतिमा वाले,
आप देश का तारणहार बने।
पुनः सम्राट अशोका के इतिहास को,
जग में दोहराने चल पड़े।
अखण्ड भारत ना सही,
पर भारत को-
पुनः विश्वगुरु बनाने चल पड़े।
आपने नोट बन्दी कर,
पहला उत्कृष्ट कार्य किया।
धारा 370 भी हटाकर,
देश को एक सूत्र में डलवाया।
तभी तो सार्थक हुआ यह नारा,
कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत-
एक है- एक है।
माना आपने देश हित में,
अतुलनीय उत्कृष्ट कार्य किए।
पर इतना बतला दें सबको,
हम गरीब मजदूरन के लिए क्या किए?
हम गरीबन को-
ना ही पटेल की स्मारक सुहाया,
ना हीं-
राम लला की मंदिर लुभाया।
हम गरीब दो जून की कमाने वाले,
सुखी रोटी खाने वाले।
पटेल की स्मारक देखने की क्या
कल्पना भी नहीं करने वाले।
ना ही राम मंदिर के चौखट से-
सावित्री, कल्पना, पी०टी०उषा,
बाबा भीम, राजेंद्र, कलाम
या आप सा उत्कृष्ट छवियुक्त बनने वाले।
बस! हम मजदूर किसानों पर,
इतना सा अहसान कर दें।
उचित मजदूरी का अधिकार दिला दें।
और तो और फिर-
अपने पास रखे कैन्टीन को,
हम गरीबन तक पहुंचा दें।
हम गरीब किसान के लिए भी वन्दे,
स्वमूल्यांकन का अधिकार दिला दें।
बस! इतना तो अहसान कर दें।
Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 08.06.2022पढ़लो बहनों पढ़लो भाई,
पढ़ना लिखना है सुखदाई। ...... पढ़लो
पढ़ने की कोई उमर नहीं,
पढ़ने में कोई शरम नहीं,
पढ़ने में ही है भलाई ..... पढ़लो
पढ़ना बहुत सरल होता है,
पढ़के जीवन सफल होता है,
अनपढ़ जीवन है दुखदाई .... पढ़लो
पढ़ने से डॉक्टर बनते हैं,
पढ़ने से मास्टर बनते हैं,
पढ़के बनते हैं अधिकारी .... पढ़लो
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.04.2023आज विश्व कविता दिवस है,
कविता मन की वेदना है,
कविता मन के गीत है,
कविता मन के मीत है,
कविता मन का संगीत है,
कविता भावों का तानाबाना है,
कविता साधना आराधना है,
कविता मन मीत को मिलाती है,
कविता जीवन की संगिनी है,
कविता राग तरंगिनी है,
कविता भावों की भंगिनी है,
कविता राग रागिनी है,
कविता आनंद है,
कविता परमानंद है।
Written By Kanhaiyalal Gupta, Posted on 21.03.2023
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