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Wednesday, 17 May 2023

  1. दिखाई देता समुंदर तो बे किनार बहुत
  2. भीगा मौसम
  3. मानवता घायल हुई
  4. माॅं द्वारा बेटी को शिक्षा
  5. सपने और पेट
  6. चुनमुन पर अत्याचार

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दिखाई देता समुंदर तो बे किनार बहुत!
नदी मिलन को तो रहती है बेक़रार बहुत!

किसी ज़माने में उनपर था ऐतबार बहुत!
हमारा भी कोई करता था इंतिज़ार बहुत!

मुहब्बतों का सिला उनको दे नहीं पाए,
हमारे ज़िम्मे तो बाक़ी रहा उधार बहुत!

कई वुजूह से अपना बना न पाए उसे,
हमारे बीच मसायल थे अपने यार बहुत!

जो बीते वक़्तों की आती है याद अक्सर ही,
दिल उनसे मिलने को होता है बेकरार बहुत!

किसी के इश्क़ पे उसको घमंड था बेहद,
बस एक बात यही गुज़री नागवार बहुत!

के बीते दिन तो कभी लौटकर नहीं आते,
वो ग़ल्तियों पे है आज अपनी शर्मसार बहुत!

नक़ाब है रुख़े रौशन पे जो हटा दो इसे,
तुम्हारे चाहने वाले हैं बेक़रार बहुत!

जो सीधी सच्ची ही राहों के चलने वाले हैं, 
हम ऐसे लोग हैं दुनिया में बावकार बहुत!

लकी ज़माने में तुम घूम फिर के देखो ना,
हैं क़ुदरती जो मनाज़िर व आबशार बहुत!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 18.01.2022

भीगा जो ये रास्ता आज,
पुराना वक्त याद आ गया,
बूँदों ने जो छुआ इस कदर
मोहोब्बती जमाना हो गया,
हवाओं की ये ठण्डक चित्त को छू गयी
और आँखों में सावन सा छा गया,
निकले जिसकी तलाश में हम शहरभर में
वो शक्स भीगते हुये घर आ गया,
अभी तो नजरों ने नजरों को छुआ है बस
ये पसीना कैसे माथे पर आ गया,
हमारे मन में तो आप ही हो हमेशा
फिर आज ये मयूर कैसे सकपका गया,
उस काली बदरी से कहो की जरा ठहर जाये
यार हमारा भी इश्क लेकर आ गया,
मौसम की नजाकत, कैसे नजरंदाज करे?
ये उनका चेहरा ही है जो दिल पर छा गया,
बारिशें जब रूकी और हवा जो लहरी
मन पत्तों की बूँदों में क्षणिक सावन पा गया,
बदलती उम्मीदों सा है ये मौसम
पलभर में आशा के दीप जला गया.....।

 

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 27.07.2021

मानवता घायल हुई, और हुई वीरान।
जलियांवाला बाग जब, बन बैठा शमशान।।

मानवता घायल हुई, वह बच्चा हर रोज।
कूड़े के वो ढ़ेर से, जूठन खाये खोज।।

मानवता घायल हुई, तथा बिकी बाजार।
जब पाया उस बृद्ध को, रोटी से लाचार।।

मानवता घायल हुई, देख देख हैरान।
प्यासा पंछी नीर बिन, तड़प तड़प दे जान।।

मानवता घायल हुई, देख बृद्ध माॅं बाप।
भीख माॅंगते माॅंगते, रहे हाथ पग काॅंप।।

मानवता घायल हुई, एक अबोली गाय।
रही तड़पती प्यास से, फिर भी लट्ठ जमाय।।

मानवता घायल हुई, देखा एक नबाब।
मात पिता मेहनत करें, बेटा पिए शराब।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 01.05.2022

कई बार बिटियाॅं का फोन आता,
चार माह उसकी शादी हुआ था। 
बिटियाॅं को आती जब भी याद, 
फोन करती वह आती जब याद।।

माँ ने प्यार से बेटी को समझाया,
बार-बार फोन ना करें समझाया।
अब बिटियाॅं तेरा वहीं है घर,
सास है माँ और पिता ससूर।।

घर में पति का दिल है जीतना, 
घर में सबकी सेवा तुम करना।
अच्छा बुरा अब वहाँ की सोचो,
फायदा नुकसान वहाॅं की सोचो।।

हमारा क्या हम भी जी लेगें,
घर में तेरी जैसी बहु लायेगें।
आगे से फोन कभी ना करना, 
पूछकर सास को फोन करना।।

मुझे जरुरत पर फोन में करुँगी,
लेकिन तेरी सास को ही करुँगी। 
सास तुझसे बात करवा देगी,
हाल-चाल तेरा में जान लूॅंगी।।

अपनें काम में दिल लगाओ,
घर का भेद मुझे ना सुनाओ।
ऐसा कभी भी कहती नहीं माँ,
लेकिन भला चाहती तेरा ये माँ।।

Written By Ganpat Lal, Posted on 08.05.2022

रोज निकल जाता हूँ
अपनी कलाई पर 
समय को बांधकर 
और शाम होने पर 
जब घर लौटता हूँ
तो मैं छोड़ आता हूँ
एक पूरे दिन को 
जो बिता सकता था 
मैं अपनों के साथ 
जी सकता था 
मैं अपनों के साथ 
उनके छोटे-छोटे 
मासूम सपनों को 
पूरा कर सकता था 
और भर सकता था 
एक नई ऊर्जा 
एक नई उड़ान के लिए 
उनके कोमल-कोमल 
और ताजे-ताजे निकल रहे  
विश्वास रूपी पँखों में 
बता सकता था 
उन्हें आसमान की 
उस ऊँचाई के बारे में 
जो नापी है 
मेरे अनुभव के पँखों ने 
शायद सपनों पर 
पेट भारी पड़ जाता है 
और इसी जद्दोजहद में 
हर रोज उड़ता चला जाता है
शेष रह जाते हैं तो बस 
केवल उसके अवशेष मात्र
जिन्हें कभी-कभार फुर्सत के 
क्षणों में याद कर लेता हूँ

Written By Manoj Kumar, Posted on 20.03.2022

क्यों खाली है मौदान?
क्यों नहीं उड़ती पंतग?
क्यों नहीं होती तारों की गीनती?
क्यों नहीं मिलती इन चुनमुन की टोली?

क्या बच्चे होते, ही है जवान?
क्या पृथ्वी बदल गई है?
क्या? हो गया पूरे पृथ्वी समशान,
क्या हुआ चुनमुन को?

कही मन तो बदल नहीं गई
या होने लगा है अत्याचार
क्यों है नजवान बेरोजगार,
क्या मिलने लगेंगे चुनमुन को रोजगार।
क्यों हो रहा है चुन मुन पर अत्याचार,
क्या भूल गई है सब सविधान

Written By Nishant Prakhar, Posted on 16.05.2023

Disclaimer

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