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Saturday, 27 May 2023

  1. मुस्कान
  2. हिसाब
  3. ज़माना बदला पर बदली नहीं है सोच
  4. धनतेरस और भगवान धन्वन्तरि
  5. ग़मों से जब राब्ता हो गया
  6. तुम बिन
  7. घर को अब घर जैसा बनाएगा कौन 
  8. धर्मयुक्त जहर से फैल रहा उन्माद
  9. कांटे तो कांटे हैं
  10. मुक्कमल मुकाम

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मुस्कान

21WED02009

Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 27 May 2023

अधरों पर रहें

सदा बहारों सी 

पुलकित मुस्कान

जिसके खिलने से

हो जाए

हर जन

बेहद उत्साहित

और

गुंजायमान

न रहे जिंदगी में

दुखों का कोई

नामोनिशान

ऐसी फिजाओं में

बिखेरेंगे हम सब 

अनोखी प्यारी सी 

मुस्कान।।

Written By Manoj Bathre , Posted on 11.05.2021

हिसाब

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Sumit Singh Pawar
~ सुमित सिंह पवार "पवार"

आज की पोस्ट: 27 May 2023

हूँ हर शय पर मुक्कमल,
बजूद ये मेरा है.....।
फर्क खोजता नहीं मैं ज्यादा,
नजरिया ये मेरा है....।
क्या हुआ जो चल रहे हैं तन्हा,
कौन यहाँ हमेशा ठहरा है...।
हिसाब तो स्वतः ही होगा अब,
जो भी बाकी मेरा-तेरा है...।

चल पड़ता हूँ बिना कुछ सोचे
जानकर भी सामने अंधेरा है....।
है विश्वास यही कि रूकूँ कितना
इस अंधेरें के बाद सवेरा है...।
हिसाब तो स्वतः ही होगा अब,
जो भी बाकी मेरा-तेरा है...।

है मुश्किल जो समाने तेरे
ये बस तेरे वक्त का फेरा है...।
रख तसल्ली और सतत् हो जा
यही कामयाबी का चेहरा है...।
हिसाब तो स्वतः ही होगा अब,
जो भी बाकी मेरा-तेरा है...।

कौन हरा पायेगा उसे फिर यहाँ 
मुस्कुराहट का जहाँ बसेरा है...।
हिसाब तो स्वतः ही होगा अब,
जो भी बाकी मेरा-तेरा है...।

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 14.06.2021

हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान है
हेकड़ी दिखाना अब भी मर्दों की शान 
काबलियत से आगे बढ़ती है जब औरत
मर्द की खुदद्दारी को करती बहुत परेशान है

औरत के कपड़े पहनने में भी परेशानी है
आगे कैसे बढ गई होती सब को हैरानी है
कहीं दहेज के लोभ में जलाई जाती है
कहीं कोख में मिट जाती निशानी है

आज भी हो रहा नारी पर अत्याचार
पैदा होने से पहले मार दी जाती है
तन के भूखे भेड़िये बैठे हैं नज़र गड़ाए
मां बहन और बेटी नज़र क्यों नहीं आती है

अभी भी बेटी का आना समझते हैं बोझ
बदली नहीं है सोच पर बदल गया ज़माना
क्यों बेटे और बेटी में समझते हैं फर्क
शुभ होता है घर में बेटी का आना

रसातल में जा रही हमारी संस्कृति और संस्कार
अपने लहू को ही अपना समझते नहीं हैं
कैसे आगे बढ़ पाएंगे कैसे होगा हमारा उद्धार
जब हम बेटियों की कद्र करते नहीं हैं

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 18.12.2021

धनतेरस का महत्व हिंदू धर्म में बहुत उच्च माना जाता है. दिवाली से 2 दिन पहले मनाया जाने वाले इस पर्व को धनत्रयोदशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है और प्रदोष काल में यम के नाम से दीपदान किया जाता है। धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन, भूमि खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। 

कार्तिक माह ( पूर्णिमान्त ) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र - मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।शास्त्रों के अनुसार धनतेरस में भगवान धनवंतरी की पूजा से इस सृष्टि में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है. 

भगवान  धन्वन्तरि आयुर्वेद प्रवर्तक हैं। हिन्दू धर्म अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था।भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक व स्वास्थ्य के -अधिष्ठाता देवता होने से विश्व वंद्य हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु ने जगत त्राण हेतु 24 अवतार धारण किए हैं जिनमें भगवान धन्वंतरि 12 वें अंशावतार हैं अर्थात आप साक्षात् विष्णु अर्थात श्री हरि के रूप हैं। इनके प्रादुर्भाव का रोचक वृतान्त पुराणों में मिलता है। 

भगवान धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन ( वस्तु ) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग - बगीचों में या खेतों में बोते हैं।  धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चाँदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है,जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास सन्तोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी जी, गणेश जी,  की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।भगवान धन्वन्तरि  का जन्म मानव कल्याण  के लिये हुआ था. 

Written By Mushtaque Ahmad Shah, Posted on 18.01.2023

 

ग़मों से जब राब्ता हो गया
हर ख़ुशी से जुदा हो गया

सिर्फ़ झपकीं थीं पलकें मगर
जीतना हारना हो गया

रह गया मैं ठगा सा मगर
वो था ख़ुश्बू हवा हो गया

ज़ख़्म सीकर भुला हम चुके
आप आए हरा हो गया

जो न सोचा हुआ वो मगर
ये मरज़ ला-दवा हो गया

कह दिया बेवफ़ा है मुझे
ख़ुद से वो पारसा हो गया

आइना कर रहा है बयाँ
क्या था `आनन्द` क्या हो गया

 

Written By Anand Kishore, Posted on 16.05.2021

तुम बिन

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Kamal Rathore
~ कमल राठौर 'साहिल'

आज की पोस्ट: 27 May 2023

तुम बिन सूरज नही उगता
तुम बिन सबेरा नही होता।
तुम बिन रात में चाँद नही आता
तुम बिन मेरी रात नही कटती।

तुम बिन जठराग्नि में आग नही लगती
तुम बिन पानी से भी प्यास नही बुझती
तुम बिन घर, घर नही लगता
तुम बिन में घर पर नही टिकता।

तुम बिन बागों में फूल नही खिलते
तुम बिन भंवरे भी आवारा हो गए।
तुम बिन बागों में  फूल नही खिलते
तुम बिन ये धरा भी प्यासी लगती है।

तुम बिन ये शहर अजनबी लगता है 
तुम बिन सब चेहरे धुंधले दिखते है।
तुम बिन यारो में भी मन नही लगता
तुम बिन अपने भी पराये लगते है।

तुम बिन आँखे सुनी सुनी लगती है 
तुम बिन चेहरे पे नूर नही रहता।
तुम बिन बाल बिखरे बिखरे रहते हैं
तुम बिन जुबा भी खामोश रहती है।

तुम बिन सारे मौसम सुने सुने हो गए
तुम बिन मेरे दिन रात एक हो गए।
तुम बिन में, में ना रहा तेरे बिन
तुम बिन में बूत बन गया तेरे बिन।

Written By Kamal Rathore, Posted on 21.11.2021

घर को अब घर जैसा बनाएगा कौन 
घर को उत्सवों- त्योहारों में उनकी तरह सजाएगा कौन 
गलती करता रहता हूँ ज़िन्दगी में नादान हूँ ना 
मुझे डांट कर अब फिर गले लगाकर  समझाएगा  कौन 

प्रथम गुरु भी वोही और प्रथम मित्र भी वोही 
भटक जाऊं अब रास्ता कभी घर का 
मुझे घर का रास्ता दिखायेगा कौन 
थक जाता हूँ कभी चलते- चलते मंजिल की तलाश में 
पिता जी की तरह अब मुझे कंधों पर उठाएगा कौन 

ये खेत- खलिहान, पेड़- पौधे भी पहचानते नहीं मुझे 
मेरी पहचान अब इनसे करवाएगा कौन 
नाम कई मिलेंगे जमाने की भीड़ में तुझे 
पर पिता की तरह तुझे छटांकु कहकर बुलायेगा कौन 

अपने दौर में वो जितने भी पढ़े खूब पढ़े 
भाई- बहन को बहुत पढ़ाया पिता ने 
पर तुझे उनकी तरह अब उनके 
अंदाज़ में पढ़ाएगा कौन 

दर्द होने पर नींद से जाग जाती थी माँ 
अब दर्द होने पर तुझे दर्द सहना पड़ता है 
कमी बहुत खलती होगी माँ की ममता की 
अब तुझे अपने आँचल की छाँव में छुपायेगा कौन 

भूखा ना रह ले कहीं छोटा है अभी बेटा
घर पर माँ की तरह अब खिलायेगा कौन 
बेटा घर से दूर है पढने गया हुआ, रखना  है उसके हिस्से का घी 
अब घर पर माँ की तरह घी बचाएगा कौन 

अकेला हो गया हूँ पुराने खंडहरों की तरह 
धीरे- धीरे जगह- जगह से टूट रहा हूँ 
ज़िन्दगी की इस कश्मकश में गर कभी गिर गया तो 
मुझे उनकी तरह अब इस भीड़ में संभालेगा कौन 

बहुत कुछ है उनकी यादों का घर में 
घर की नींव से लेकर छत तक
मेरे लिए भी बहुत  कीमती वस्तुएं छोड़कर  गये हैं 
पर! अब उनकी तरह मेरे लिए पुरे घर को 
खंगालेगा कौन 

छोड़ दे ये महीनों तक नाराज़ रहना ``खेम``
मालूम है ना तुझे भी ?
जो ये संसार छोड़कर जाते हैं वो लौटकर आते नहीं 
रूठ जा बेशक वक़्त से, हालातों से, जमाने  से
पर याद रखना 
माता- पिता  की तरह  अब तुझे मनायेगा कौन 

Written By Khem Chand, Posted on 06.04.2022

धर्मयुक्त जहर से फैल रहा उन्माद,

आपस में ही लड़कर-

बना रहे सब गहरे गहरे घाव।

धर्मयुक्त जहर से गल रहे समाज,

आपस में ही बात बनाकर-

घोल रहे बिशाक्त।

धर्मयुक्त जहर से फैल रहे विद्वेष,

सदियों से सब झेल रहे -

धर्म-धर्म का विभेद।

धर्मयुक्त जहर से खत्म हुआ सद्भाव,

कोई नहीं ये कहता-

खत्म करो ये बर्ताव।

धर्मयुक्त जहर से हो रहा देश बर्बाद,

कोई नहीं यह कहता-

मत बढ़ाओ दूरियां, ना हीं करो विषाद।

धर्मयुक्त जहर से बढ़ रही शत्रुता,

कबतक समझेंगे मानव-

आपस में बढ़ाने मित्रता।

धर्मयुक्त जहर से नेता हो रहे खुशहाल,

हम आम जन ना जान पाएं-

इस नेतवन की कूटनीति चाल।

धर्मयुक्त जहर से दूषित हो रहा समाज,

कदम-कदम पे नेता सेके रोटियाँ-

फिर भी आम जन ना आए बाज।

धर्मयुक्त जहर से छुआ छूत है व्याप्त,

कोई क्यों नहीं कहता-

कैसे हो समाप्त।

धर्मयुक्त जहर से तवाह हो रही आवाम,

फिर भी नीज लोभ में

नेता लूट रहे सम्मान।

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 06.06.2022

जो लगी आग गुलिस्तां में,

फिर पेड़ सारे ही जलेंगे;

उजड़ गए हैं पलाश कुछ,

फिलहाल इस चमन के;

कांटों से अब ये गुलाब,

आखिर कब तक बचेंगे।

 

पेड़ तो होंगे उपवन में मगर,

पेड़ों पर फिर सुमन ना होंगे;

कांटे तो कांटे है साथी,

कब होता इनका साथ भला;

आज मुझे कल तुम्हे चुभे हैं,

ये आगे भी फिर हमें चुभेंगे।

Written By Suhani Rai, Posted on 06.02.2023

मुक्कमल मुकाम

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Anup Kumar
~ अनुप कुमार

आज की पोस्ट: 27 May 2023

मंगरू मेरा होशियार था
नेक नियति, ईमानदार था
मन का सच्चा, झूठ से परे
मेहनत में भी जानदार था
उम्र यही थी इक्कीस-बाबीस
दिखने में भी शानदार था।

ऊँचा कद और चौड़ी छाती
ये थी उसकी अपनी थाती
नया खून और नई उमंगे
ये सब अब थे उसके साथी
रंग उमंग का बड़ा हसीन था
जिसके इर्द-गिर्द रहता था।

इसी उमंग के वशीभूत हो
कर बैठा वो नादानी
आंखें दो से चार हो गयीं
शुरू हो गयी प्रेम कहानी
प्रेम के रस्ते पे पड़ मंगरू
पहले अपना सुध-बुध खोया
दुर्गुण, विकार का रुप लिए फिर
झूठ-फरेब का साथी पाया।

होने लगी गलतियाँ उससे
जोश में, अपना होश गवाया।
सुंदर भविष्य के रस्ते पर यूँ
पड़ गयी जैसे काली छाया
अभी तो मेहनत ही करना था
प्रेम बीच मे कहाँ से आया
बड़े-बुजुर्ग कह गये हैं भैया
ये सब है माया बस माया।

है उबाल अपने अंदर तो
तोड़ पहाड़ दशरथ बन जाओ
पर पहले अपनी मेहनत से
एक मुक्कमिल मुकाम बनाओ।।

Written By Anup Kumar, Posted on 27.05.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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