हसीन हादसों के संगीन परिणामों का बोझ
इस व्यस्त संसार में रोज़
नादानी से परिपक्वता की ओर
बढ़ती हुई उम्र
वहन किये हुए है, सहन किये हुए है
भविष्य को सपनों में तलाश करना छोड़कर
अतीत के धुँधले दर्पण को तोड़कर
जहाँ हर मुसाफ़िर है प्यासा
उसी मोड़पर
आज ज़िन्दगी माँगती है अपनी एक नई परिभाषा
अनुभव बेकार हो चुके हैं
अन्दाज़ा बूढ़ेपन की निशानी है
आँसू सिर्फ़ पानी है
और फिर ठोस हक़ीक़त को समझने के लिए
उसे कहने के लिए
उसे सहने के लिए
पैर आसमान में नहीं
ज़मीन पर होने आवश्यक हैं
काल के गर्त में
कितनी ही इच्छाएँ समा जाती हैं
महत्वपूर्ण दिनों की
कितनी ही निशानियाँ मिट जाती हैं
परन्तु इस अटल सत्य को कौन झुठलाए
कि मृत्यु अवश्य होगी
तब अपने परिवेश में
अपने दायरों की सीमाओं को पहचानकर
क्यों न पुरानी लीकों से हटकर चलें
क्यों न अवरुद्ध रास्तों को खोलें
किसी भी तरह से दूसरा अटल सत्य
समझा दें इस दुनिया को
कि हम सभी मानव हैं, इन्सान हैं
और मानवता / इन्सानियत ही है
हमारी परिभाषा
हमारी एकमात्र आशा
Written By Anand Kishore, Posted on 13.05.2021
उम्र भर दौड़ते रहे जिसके चक्कर में
वो दौलत शौहरत किसी काम न आई
छूट गए सब पीछे अपने कोई साथ न रहा
फिसल गया सब हाथ से जब तब होश आई
बचपन जवानी सब निकल गए जोश में
बुढ़ापे ने अब जो रूप शुरू किए दिखलाने
क्या खोया और क्या पाया हमने ज़िन्दगी में
अच्छी तरह लगा अब सब समझ आने
बहुत देर हो गई सच्चाई जीवन की न समझ आई
झूठी शान शौकत में हमने जवानी लुटाई
जी हजूरी में लगे रहे ताउम्र बड़े लोगों की
आखिर में उन्होंने भी अपनी औकात दिखाई
अपनी ख़्वाहिशों का दम घोंटकर
पेट काट कर हम लगे रहे बचाने में
ढंग के कपड़े नहीं पहने रूखी सुखी खाते रहे
अनथक लगे रहे बच्चों के सपने सजाने में
अब जीवन का रहस्य समझ आया
क्यों आदमी पूरी उम्र दिन रात कमाता है
अपने आप को दुखी रख कर
दूसरों के लिए क्यों बचाता है
कभी अपने लिए भी कुछ किया होता
तो नहीं पड़ता अब इतना पछताना
जमीन से कट गए थे जब थी शौहरत रुतबा
अब तो आम लोगों के साथ है जीवन बिताना
अंदाज़ में यूँ ही नादानी की खुमारी रहने दो
जमाने के लिए मूझमें भी कुछ दिलदारी रहने दो
याद तो आते होंगे याद को हम
लब्ज़ों में हमेशा दर्द बिछडन का भारी रहने दो
क्या करोगे तुम मेरा ईलाज कर? बचाने की कोशिश है मुझे!
मैं जैसा भी हूँ खुश हूँ अपनी ज़िंदगी से ज़िंदगी
मुझे ना याद आने की बीमारी रहने दो
फ़िर मौसम बदलेगा, फ़िर खुमार आयेगा
फ़िर गिरूँगा फ़िर उठकर संभल जाऊंगा
यूँ ही उठते गिरते नादान कलम में
निखार आयेगा
आज समझ नहीं पाओगे तुम मन की वेदना को खेम
कल फ़िर उसकी बातों पर प्यार आयेगा
इंतज़ार और आखिरी तक इंतज़ार
तेरे जाने के बाद भी कुटुंब में कोई
तुझसा तुझसे बेहतर
कलाकार आयेगा,,,, कलाकार आयेगा
फ़िर आग लगी फ़िर से मेरा घर जला
फ़िर इश्क़ का नतीजा देखा
फ़िर परिंदा आज़ाद किया
बहुत बेशर्म होता है रिवाज़ इश्क़ का
फ़िर वो मिले गैरों से
फ़िर किसी ने हमें बर्बाद किया
मौत को बदनाम कर दिया है आत्महत्या करने वालों ने
मैंने फ़िर ज़हर को याद किया
खूब कितना होता है ना, रोना किसी के लिए
फ़िर इश्क़ ने कोई आबाद किया
चल वहाँ जाते हैं,
मन जिधर हो,उधर
कुछ वक्त बिताते हैं,
भूलते हैं कुछ पल जहाँ को
सुकूँ की तलाश में
कहीं घूम आते हैं....।
चल वहाँ जाते हैं,
बन्धनों का बोझ हल्का हो जहाँ
उस गठरी को वहीं
छोड़ आते हैं,
मैं देख सकूँ तुझमें जग सारा
ऐसी किसी जगह पर
चल पनाह पाते हैं.....।
चल वहाँ जाते हैं
बैठ सके कुछ पल साथ में
जहाँ अतीत के किस्से
नजर आते हैं,
मुस्कुरा सकें अपनी गलतियों पर
भविष्य का निर्माण
जहां पाते हैं....।
चल वहाँ जाते हैं,
तू सुन सके हर बो बात
जो लब मेरे
कह न पाते हैं,
स्पर्श ही संकेत की भाषा हो
मन जहां
कहकहा जाते हैं.....।
चल वहाँ जाते हैं,
सफर में मोहोब्बत या
मोहोब्बती सफर
जहां पाते हैं,
भागते पीछे उस पर्यावरण में
चल फिर से
खो जाते हैं....।
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 08.06.2021
मिली है चीज़ यहाँ पर बहुत भटक के मुझे!
तुम्हारे आँसू बयाँ कर रहे पलक के मुझे!
मिरा वजूद है उस के लिए मुअम्मा क्या,
वो लफ्ज़ लफ्ज़ है पढ़ता मगर अटक के मुझे!
ज़माना कहता है क़िस्मत सँवर गई तेरी,
वो दर मिला है सुनो जाबजा भटक के मुझे!
ख़ुदा ने यूँ ही बनाया नहीं है सूरज चाँद,
अज़ीज़ हैं ये सितारे भी इस फलक के मुझे!
किसी ने झूठ कहा जाके मेरे मालिक से,
खड़ा किया गया तब दायरे में शक के मुझे!
सुना नहीं कि अँधेरों से लड़ के आया हूँ,
ड़राते क्यों हैं उजाले सिसक सिसक के मुझे!
मैं आजतक वहीं ठहरा हुआ हूँ ऐ हमदम,
तुम्हीं तो छोड़ गए थे यहाँ तलक के मुझे!
अँधेरी रात में हम भी तो काम आते हैं,
यह एक जुग्नू ने समझा दिया चमक के मुझे!*
मिरा यक़ीन है तुमको लकी का होना है,
वही लगाए गले आके बेझिझक के मुझे!
अपराधी मुखिया बने, सब जनता बेहाल।
शय मिलती अपराध को, शातिर मालामाल।।
अपराधी मुखिया बने, नित लेते प्रतिशोध।
किसकी हिम्मत है यहाॅं, खुलकर करे विरोध।।
अपराधी मुखिया बने, अपने चारों ओर।
आगे पीछे घूमते, उनके शातिर चोर।।
अपराधी मुखिया बने, नहीं किसी की खैर।
अभी पालकर देखिए, जरा किसी से बैर।।
अपराधी मुखिया बने, कौन सुने फरियाद।
जरा जरा सी बात में, बढ़ता वाद विवाद।।
अपराधी मुखिया बने, पालें चमचे चार।
जनता के अधिकार को, ज्ञरपल रहे डकार।।
अपराधी मुखिया बने, करते अत्याचार।
कौन सुनेगा आपकी, किससे कहें गुहार।।
अपराधी मुखिया बने, जब से मेरे देश।
तब से दो कौड़ी के ये, चमचे करते ऐश।।
अपराधी मुखिया बने, जब जब हिंदुस्तान।
तब तब जनता ने उन्हें, पहुॅचाया शमशान।।
मिट्टी से सने हाथो से
मिट्टी में जान डालता हु
जमीन से जुड़ा इंसान हु
मिट्टी को ही खुदा मानता हूं।
हाँ में कुम्हार हूँ
पीढ़ी दर पीढ़ी
अपना कर्म करता हु
जग को रोशन करने को
दिवाली के दिये ढालता हु।
हाँ में कुम्हार हूँ
जल को जो शीतल कर दे
वो आकार मटको को देता हूं
सर्द शामों-सुबह में गर्म चाय को
कुल्हड़ में इतराने का मौका देता हूं।
हाँ में कुम्हार हूँ
मिट्टी को मिट्टी में मिलने से पहले
मिट्टी में जान फूंकता हु
दुनिया पहुच गई बहुत आगे
में मिट्टी की पहचान संजोता हु।
हाँ में कुम्हार हूँ
मेरे पसीने ओर मिट्टी की सोंधी महक
जिस घर मे महकती है
परदेश में भी अपनी मिट्टी
अपने देश की याद दिलाती है।
हाँ में कुम्हार हूँ
आसान लगा धवल कँवल,
कर ले वाद्य यंत्र।
संग मयूर, मराल भी रहते,
बंकिम जी विद्यादायिनी,
निराला जी वीणावादिनी कहते।
हम क्या कहें?
और कोई शब्द नहीं चहेते,
हाँ, ``माँ`` शब्द है मेरा प्यारा,
उसे कर श्रद्धा से श्रीचरणोर्पित।
चाहता है यह बेटा तेरा,
ज्ञान प्रकाश का सवेरा।
ज्योति से ज्योति जले,
दूर हो दुष्कर अँधियारा।
``माँ`` बस यही चाहता है।
बेटा तेरा ! तेरा।।
किसी तरह गुजरती है सुबह शाम,
जोड़ते हुए चावल दाल का दाम।
पसीने से होकर तर-बतर,
करते अपनी जिंदगी गुजर बसर।
धरती पर सोने में मिलता है आराम,
दो जून की रोटी में ही इनकी,
गुजर जाती है जिंदगी तमाम।
चाहे ले जाओ मंगल पर यान,
कितना भी बढ़ा लो अपनी शान।
इन गरीबों का भी रखो ध्यान,
ताकि बढ़े इनका भी सम्मान।
चला रहे हो सर्व शिक्षा अभियान,
फिर भी नहीं अपने अधिकार कर्तव्य का ज्ञान।
जुबान होते हुए भी होते बेजुबान,
कैसे बनेगा अपना भारत महान।
बिन मौसम बरसात हुई,
मन में उमंग की लहर हुई,
भागी - दौड़ी सी ज़िन्दगी,
फिर से गुलज़ार हुई।
उत्तराखंड के पहाड़ों ने भी
अपनी खुशियां जताई,
जब बारिश की बूँदें उन पर
धीमे-धीमे है आई।
हर शख्स ने खुशियां मनाई,
जैसे मई - जून में ज़िन्दगी ने ली अंगड़ाई,
नाचने को मन हुआ तो,
मैं खुद से ही शरमाई।
दिल भी कहता है झूम ज़रा और
बजा अपने दिल की शहनाई,
कदम मेरे डगमगाये जब
बिजली है कड़कड़ाई।
बिन मौसम बरसात हुई,
मन में उमंग की लहर हुई,
भागी - दौड़ी सी ज़िन्दगी
फिर से गुलज़ार हुई।
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