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Friday, 05 May 2023

  1. पलायन का कौन जिम्मेदार है?
  2. तलाश
  3. सफर जिंदगी का
  4. खुद से न मिल पाया
  5. गूंज हो तुम धूप हो तुम
  6. छत्रपति शिवाजी महाराज
  7. मेरी प्राणप्रिये
  8. कुछ इस तरह
  9. नारी बाधक है दूसरे नारी की
  10. कुछ मुक्तक

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गांव की आबादी आज घटती जा रही है। गांव के लोग शहरों की तरफ रुख़ कर रहे हैं।इसका कारण सबका अपना-अपना मत होगा।परंतु बेरोजगारी और सुविधाओं की कमी से गांव वाले ना चाहते हुए भी अपना घर छोड़ कर शहर के छोटे-छोटे कमरों में रहने को मजबूर हैं। क्योंकि हमारे गांव में बिजली,पानी, शिक्षा, रोजगार नहीं है। मैं सभी गांव की बात नहीं कर रही। परंतु बहुत गांवों में यह समस्या मौजूद है।शहरों का विकास तेजी से हो रहा है और गांव में जाकर देखो शिक्षा के नाम पर एक प्राइमरी या हाई स्कूल। वह भी सभी गांव में नहीं है।आगे बेचारे गरीब बच्चे कहां जाए पढ़ने?

गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए बहुत सारी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। यातायात -गांव में यातायात की सुविधा नहीं होती कैसे जाए पढ़ने के लिए बाहर।उनके पास दो विकल्प होते हैं या तो पढ़ाई छोड़ दे या फिर अपना गांव छोड़ शहर में पढ़ने जाएं। जिनके पास सुविधाएं हैं वे आसानी से शहर पढ़ने चले जाते हैं। पर जो गरीब है वह कैसे जाए पढ़ने के लिए। इसी कारण वह पीछे रह जाता।उसकी पढ़ाई छूट जाती है।

बिजली - बिजली की समस्या सबसे बड़ा कारण है अब चाहे कोई लाख दावे करे कि गांव-गांव तक बिजली पहुंची है गांव तक बिजली की तारें जरूर पहुंची है। परंतु गांव में पूरा दिन, पूरी रात बिजली नहीं रहती। गांव में घंटों का समय तय रहता है फिर उसके बाद लाइट कट जाती है।

गांव के बच्चों को घर के कामों के साथ-साथ खेती-बाड़ी के कामों में हाथ भी बंटाना होता है।पानी -पानी गांव में बहुत कम आता है प्रतिदिन तो आता नहीं दो या 3 दिन बाद आता है। किसी -किसी गांव में तो पानी की और भी गंभीर समस्याएं हैं।सुविधाओं की कमी के साथ-साथ ग्रामीण छात्रों को पानी की कमी को भी झेलना पड़ता है।

रोजगार -गांव में रोजगार के साधनों की बहुत कमी है अगर सरकार चाहे तो तीन-चार गांव के बीच कोई फैक्ट्री है किसी भी तरह का काम लगा सकती है।जिससे गांव के युवाओं को अपना घर ना छोड़ना पड़े और उन्हें आसानी से रोजगार मिल जाए।जिससे उन्हें अपना घर परिवार भी नहीं छोड़ना पड़े और गांव से युवाओं का पलायन भी रुक जाएगा। ऐसा कोई नहीं होगा जो सारी सुख -सुविधाओं के होते हुए अपने घर, गांव को छोड़कर बाहर जाए।

सड़के-अगर गांव की सड़कें,स्कूल और कॉलेज बना दिया जाए तो ग्रामीण बच्चे कदापि भी शहर की तरफ नहीं जाएंगे।बिजली सुविधा दे दी जाए जब शहर की सड़कों पर दोनों तरफ पेड़ पौधे लगा रखे तो गांव में क्यों नहीं? शहर में हर 5 मिनट के अंतराल पर एक पार्क मिल जाएगा क्या गांव के बच्चों को पार्क नहीं चाहिए।

जब ग्रामीण बच्चों को सुविधाएं कम मिलती है तो प्रतियोगी परीक्षाओं में बच्चों को एक सम्मान परीक्षा क्यों ? शहर में रोजगार के अवसर उपलब्ध है परंतु ग्रामीण लोगों को यह सुविधा से वंचित रखा था।

जब तक ग्रामीण इलाकों में सुविधाओं नहीं होंगी तब तक हमारा देश कैसे तरक्की कर सकता है।

Written By Seema Ranga, Posted on 14.02.2023

तलाश

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Mahavir Uttaranchali
~ महावीर उत्तरांचली

आज की पोस्ट: 05 May 2023

``मैं तो खलील जिब्रान बनूंगा, ताकि कुछ कालजयी रचनाएं मेरे नाम पर दर्ज हों.`` एक अति उतावला होकर बोला. हम सब उसे देखने लगे. हम सबकी आंखों के आगे हवा में खलील जिब्रान की उत्कृष्ट रचनाएं तैरने लगीं.

दरअसल काफी समय बाद मुलाकात में हम पांच लेखक इकट्ठा हुए. सभी एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित. पांचों पांडवों की तरह हम सब लेखन के हुनर के धुरंधर योद्धा. अतः हम पांचों के मध्य समय-समय पर साहित्य के अलावा विविध विषयों पर आत्ममंथन, गहमा-गहमी, टकराव, गतिरोध, वाद-विवाद, आलोचना, टीका-टिप्पणी आदि का दौर चलता रहता था. आज का विषय बातों-बातों में यूं ही बनता चला गया. बात चली कि हम साहित्य कैसा रचें? हमारे इर्द-गिर्द साहित्य की भीड़ है. हम किनका अनुसरण करें. या किस शिखर बिंदु को छुएं?

``मैं ओ’ हेनरी बनना चाहूंगा! उसके जैसी कथा-दृष्टि अन्यत्र नहीं दिखती.`` पहले शख्स का उतावलापन देखकर दूसरे ने भी जोश के साथ अपने होने की पुष्टि कर दी. हम सभी का ध्यान अब उसकी ओर गया. ओ’ हेनरी की अमर कहानियां ‘बीस साल बाद’, ‘आखिरी पत्ती’, ‘उपहार’ और ‘ईसा का चित्र’ आदि हम सबके दरमियान वातावरण में घूमने लगीं.

``मुझे चेखव समझो.`` तीसने ने ऐसे कहा, जैसे चेखव उसका लंगोटिया यार हो. बड़े गर्व से हम तीसरे की तरफ देखने लगे. चेखव का तमाम रूसी साहित्य अब हमारे इर्द-गिर्द था.

``और आप...!`` मैंने सामने बैठे व्यक्ति से कहा.

``भारतीयता का पक्ष रखने के लिए मैं प्रेमचंद बनना चाहूंगा.`` उन चौथे सज्जन ने भी साहित्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया. 

मैं मन ही मन सोच-विचार में डूब गया, ‘काश! इन सबने दूसरों की तरफ देखने की जगह अपनी रचनाओं में खुद को तलाशने की कोशिश...’ अभी मैं इतना ही सोच पाया था कि भावी प्रेमचंद ने मुझे झकझोर कर मेरी तन्द्रा तोड़ी, ``और आप क्या बनना चाहोगे महाशय?``

``मैं क्या कहूं, अभी मेरे अंदर खुद की तलाश जारी है. जिस दिन पूरी हो... तब शायद मैं भी कुछ...`` आगे के शब्द मेरे मुख में ही रह गए और मैं भविष्य के महान साहित्यकारों की सभा से उठकर चला आया.

Written By Mahavir Uttaranchali, Posted on 20.02.2023

कभी-कभी सोच सपनों की धुंध से बाहर निकल जाती।
और जिंदगी के चेहरे पर धूप ठिठक जाती।।
ठिठकी इस  धूप में बढ़ती उम्र की लकीरें साफ नज़र आती।
और वे लकीरें साफ-साफ जिंदगी की कहानियां कह जाती।।

वह रास्ते जो मैं तय कर चुका हूँ।
जिंदगी से भर कर भी कितना खाली रहा हूँ।
 कितना भागा लेकिन आज भी मैं वहीं खड़ा हूँ।
कितना खोया और कितना पाता भी रहा हूँ।

कितना सोया और कितना जागा भी रहा हूँ।
 कितना हंसा और कितना रोता रहा हूँ।
जिंदगी को कितना पिया और कितना प्यासा रहा हूँ।
 कितना भरा -पूरा और कितना अकेला रहा हूँ।

किस्मत की डोर और हाथ की सिलवटों से हर समय में जिंदगी की राह में कैसे-कैसे चला हूँ।
कभी ठिठक ....गया कभी दौड़ पड़ा सपनों के पीछे.... छोटे -बड़े सपनों में कैसे उलझा रहा हूँ।
 दिन- प्रतिदिन करवटें बदलती जिंदगी के साथ कितना कदम फूंक-फूंक के  चला हूँ।
 जिंदगी के तमाम दिनों को जिंदगी से काट -काट के मैं  हर दिन आगे बढ़ा हूँ।
 कितने आदर्श, जिम्मेदारियों के फर्ज  और कितने विचारों  -बातों के सफर करता ही रहा हूँ।

  इस बीच जिंदगी के किस मील पत्थर पर छोड़ आया खुद को,
मैं कौन हूँ... क्या हूँ....इन बातों से बेखबर सोचता बस सोचता ही रहा हूँ।
जिंदगी के सफर में जिंदगी जो थी हमसफर कितना समझा और कितना उससे अनजान रहा हूँ।
 मैं तो समझा था कई  तहों तक वही समझी नहीं मुझे  शायद अभी तक।
 साथ चलते- चलते खामोशियों से बातें  करता रहा हूँ।

बातें चली भी तो रुकी -रुकी सी। 
मैं खामोशियों में ढूंढता रहा जिंदगी के सवालों के जवाब।
खुद से पूछता रहा उसके शब्दों में छिपे सारे गहरे राज।
पास होकर भी जिंदगी मुझसे कितनी दूर थी।
एहसास था पर अहसास से अभी  भी दूर थी।
कोई शिकायत भी  तो नहीं थी।
गिला सिर्फ खुद से है मेरी तमाम कोशिशें अब तक भी कितनी नाकाम रही थी।

 जिंदगी की खामोशियों से मैं इतना भागता था।
सोचता था... और कितना जागता था।
खामोशियों को तोड़ती जब कभी जिंदगी की बातें मैं सोचता।
इससे परे जिंदगी है ....ही नहीं  शायद बार -बार यहीं सोचता।
फिर खामोशी दबे पांव आ जाती।
बस बात कुछ भी ना होकर सोचते-सोचते बढ़ जाती।
रात लंबी से और लंबी हो जाती।
मैं जागता जिंदगी किसी और ही सफर पर निकल जाती।

यह भी जानता हूँ जिंदगी को बहुत  प्यार है मुझसे।
मुझसे अलग तो जिंदगी भी नहीं रह सकती।
फिर यह सोच लहरों की तरह क्यों जिंदगी के समंदर को हिला जाती।
 क्या..... मैं गलत हूँ।
क्या ....मैं सही हूँ।
इन्हीं प्रश्नों में उलझ जाता और तय नहीं कर पाता।
कभी लगता है कि... सच है कभी सपना नजर आता।

 जिंदगी से जिंदगी का सफर कभी जिंदगी के साथ,
तो कभी अकेले होने का एहसास दे जाता।
 सोच की इस धुंध में अपना साया भी नहीं दिख पाता।
 मैं कितना साथ- साथ रहकर भी जिंदगी से बहुत पीछे रह जाता।

आईने में देखकर अपना चेहरा पहचान नहीं पाता।
 इन लकीरों में जिंदगी के कितने निशान पाता।
 सोच में चलते-चलते मैं सपनों के एक लंबे सफर पर निकल जाता।
जबकि बचपन, जवानी और बुढ़ापा कब कोई पकड़ पाया।
 जिंदगी का सफर इसी में उलझ कर उलझन और सुलझन का काफिला बन जाता।

धूप की सुनहरी किरणों से बचपन का सफर स्वर्णिम हो जाता।
 नन्ने- नन्ने कदमों से सूर्य तक जाना चाहता।
 लेकिन समय को बांध नहीं पाता।
जवानी को संघर्ष की गर्मी से जलाता।
सपनों की छाया में कई सपने आंखों में लिए सो जाता।

और जब शुरू होता है हकीकत का सफर।
 जिंदगी क्या ....है ???
जिंदगी की परख का सफर।
 सपने कहीं दूर छूट जाते हैं।
वक्त की चक्की में पिस के रह जाते हैं।
हकीकत की धरा पर पांव रखते ही सच्चाईयों के छाले ऊभर आते हैं।

 जिंदगी सपनों में नहीं हकीकत में चलती है।
चेहरे की सिलवटों में यह भाव साफ नज़र आते हैं।
जिम्मेदारियों के  सवाल उभर आते हैं।
जिंदगी खुद से परे एक नई राह पर चलती है।
उस राह पर सपने अपने लिए  नहीं अपने अंश के अस्तित्व  में गुजर जाते हैं।

मेहनत करते -करते ... खुद को भूल जाता है।
और यह सफर बुढ़ापे की दहलीज पर आकर जब थम जाता है।
 लकीरों से भरे चेहरे और गहरी आंखों में जिंदगी का एक लंबा सफर साफ-साफ नजर आता है।

 अपनी हार -जीत,आशा -निराशा,अपना -पराया।
सच- झूठ, हंसी -खुशी, आंसू -गम, पाना -खोना।।
जिंदगी के सफर में क्या-क्या मिला।
 सीढी-दर-सीढी  सब उन लकीरों में नज़र आता है।
जिंदगी को बसर कर उससे दूर जाकर,
 नाराज होकर भी जिंदगी पर सिर्फ प्यार आता है।
उस वक्त जिंदगी का मूल्य उन गहरी आंखों में,
 अपने लिए गहरा एहसास पाता है।
खुद को जिंदगी में आत्मा तक जुड़ा पाता है।

Written By Preeti Sharma, Posted on 24.03.2023

मैं खुद से  न  मिल पाया तुझे तु बनाने में  
तू कुछ तो तरस खा जिंदगी आजमाने में 

मैं  कितने  दुखों  से मुंह फेरूं,अकेला हूं
तुझे और मिल सकते हैं पागल जमाने में 

मैं सच बोलने में भी हिचकता रहा पर वो 
महारत  लिया  था  राज  सारे  छुपाने  में 

वो पहली कमाई  आज कुछ नहीं लगती
बड़ी  मेहनत  की थी  उसे  तब कमाने में

नज़र  से  उतारा  भी  नही  और संजोया 
नहीं  मुश्किलें क्या थीं  तुझे भूल जाने में 

Written By Amit Tyagi, Posted on 29.03.2023

ज्येष्ठ की तपती दोपहरी की थोड़ी धूप छँटे और 

सांझ की मद्धम रौशनी में गुनगुनाते हुए, 

नदियों के कल-कल में डूबती जो,

मधुर प्रकृति के संगीत और द्विज कलरव मिलाप से

प्रतिपल ह्रदय में समाहित वो गूँज हो तुम।

 

कंपन देती माघ की शीतलहर छँटे और 

भोर की शरद में बर्फ़ में से झाँकते हुए, 

उसमें नवजीवन घोलती जो 

नीरस वादियों को अलंकृत करे, 

कण-कण में उगती, सुरमई सी थोड़ी धूप हो तुम।

Written By Suhani Rai, Posted on 06.02.2023

मराठा साम्राज्य की नींव रखी छत्रपति शिवाजी ने,
औरंगजेब से लोहा लिया छत्रपति शिवाजी महाराज ने,
बहादुरी की अप्रतिम मुर्ति है, अराध्य है शिवाजी महाराज,
कुशल रणनीतिकार है हमारे वीर शिवाजी महाराज,
रायगढ़ में राज्याभिषेक हुआ हमारे शिवाजी महाराज का,
छत्रपति की उपाधि धारण किया हमारे शिवाजी महाराज ने,
हिन्दू धर्म के उद्धारक बने हमारे शिवाजी महाराज,
नई युद्ध शैली विकसित किया हमारे शिवाजी महाराज।।

Written By Kanhaiyalal Gupta, Posted on 20.02.2023

मेरी आंखें चाहे तुझे देखना,

मेरा कान चाहे तुझे सुनना,

बड़ी मीठी है तेरी ये बयना,

जादू भरी है तेरी ये नयना,

संग संग रहे सदा जब तक जीयें,

मैं तेरा प्रियतम तू मेरी प्राणप्रिये.

ममतामयी तेरी सीरत है,

देवियों जैसी तेरी सूरत है,

तू बड़ी ही खूबसूरत है,

मुझे सदा तेरी जरूरत है,

एक दूजे बिन हम दोनों हैं अधूरे.

मैं तेरा प्रियतम तू मेरी प्राणप्रिये.

सदा बना रहे हमारा साथ,

जैसे साथ रहते उमानाथ,

हम पर सदा रहे उनका हाथ,

विनती करता नवा के माथ,

सदा बनी रहे जोड़ी जैसे रामसीये

मैं तेरा प्रियतम तू मेरी प्राणप्रिये.

Written By Bharatlal Gautam, Posted on 19.03.2023

कुछ इस तरह

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Manisha Kumari Jha
~ मनीषा कुमारी

आज की पोस्ट: 05 May 2023

आपकी याद भी आयेगी मेरे आंसू भी बहेंगे,
 रातों को उठ उठ कर रोयेंगे पर आपको ना भूल पायेंगे।

अपना  दर्द ना हम जमाने से कहेंगे,
और ना कभी किसी से कहेंगे।

बिना गुनाहों की सजा भी काटेंगे जो कभी किया ही नही,
 भुलाना तो आसान ना होगा, पर फिर भी भूला देंगें उस जख्म को,

 आपके बिना ना कोई सहारा होगा,
न कोई कभी अपना आपके जैसा,

न कोई  दिल को अजीज को होगा, 
खुद के अस्तित्व को भी भुला दी हमने आपके लिए,

क्या क्या नहीं किए मैंने तुझे अपना बनाने के लिए 
एक ऐसा तूफान भी मेरी जिंदगी मे आएगी,
सोची नही थी कभी भी हर एक ख़्वाब पल में टूट जाएगी,
 हम आपसे इस तरह बिछड़ जाएंगे,इस तरह आपसे हम दूर हो जाएंगे।।।

Written By Manisha Kumari Jha, Posted on 12.02.2023

हम उस समाज में रहते हैं
जहां नारी बाधक है दूसरे नारी की !

घर से लेकर बाहर तक द्वेष ही द्वेष भरा है
ज्यादा पढ़- लिख कर क्या करेगी
दादी से लेकर पड़ोस चाची का कहना है !
घर से बाहर रखते ही कदम
मानो चारो ओर की नज़रे हम पर टिक जाती है !

पंख फैलाकर उड़ना तो दूर
कदमों पर भी पहरा लग जाती है !
हर क्षेत्र मे ईर्ष्या भरा पड़ा है
आगे बढ़ने की होड़ ने 
मानवता को कहीं दूरस्थ किया है !

महिलाएं बाधा बन जाती है महिलाओं की
क्योंकि नहीं सहन होता उन्नति किसी नारी की !
पुरुष तो यूहीं कुख्यात है संसार में
वास्तविक शत्रु तो एक नारी है दूसरे नारी की !

Written By Mili Kumari, Posted on 16.03.2023

यह खुशियों का त्योहार ,
जीवन मे हरदम बना रहे .
पिता-पुत्र का प्यार ,
हम सबको खुशहाल करे .
आशीष मिले हम सबको ,
धरती के दोनो देवों का .
ममता का आंचल हम सब पर ,
सदा ही छायादार रहे .

गुमराह मुझको न इस तरह कीजिये ,
न हो प्यार दिल मे तो बता दीजिये .
आंखे पथरा गयी राह तकते हुये ,
किसी को न इस तरह सजा दीजिये .

बैठकर स्वर्ग में नजारा न देखो ,
मेरे उजड़े गगन में सितारा न देखो .
अब न है तबस्सुम वहां पर प्यार के ,
है गम का पतझड़ वहां अब सहारा न देखो .

ज़माने के सामने रहना जरूरी है ,
उसके मन मुताबिक़ बर्ताव जरूरी है .
हम हैं समाज का एक अहम हिस्सा ,
इसलिए उसके पालन करना नियम जरूरी है .

श्रवन रन्ध्र तव नाम सुनि ,
बही नयन की धार .
तन पुलकित मन हरष अति ,
जब निरखी छवि तुम्हार .

Written By Shivang Mishra, Posted on 19.03.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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