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Wednesday, 03 May 2023

  1. बेटियां
  2. बढ़ा तक़रार से ही प्यार
  3. अकेलापन
  4. मुन्तजिर होता गया
  5. दस्तक देती मौत चुपके चुपके
  6. तुम अपने पास ही रक्खो फिलोसफी अपनी
  7. राष्टृ निर्माण हेतु मतदान
  8. संतुष्ट मन
  9. मजदूर हूँ मैं
  10. कोई नही

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बेटियां

21MON01984

Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 03 May 2023

बेटियां पिता के

बाग की वो

तितलियां है

जो एक दिन

उस बाग को

छोड़कर

दूसरे बागवां में

चली जाती है

उस बागवां को

महकाने के लिए

चमकाने के लिए

यही दस्तूर है

हमारा और

चाहिए हमें एक बेटी 

ये दस्तूर निभाने के लिए।।

Written By Manoj Bathre , Posted on 10.05.2021

 

किसी से हो गया है प्यार क्या कहने
तड़पता है दिले-बीमार क्या कहने

रहा करते थे जो चुपचाप महफ़िल में
वही करते हैं हमसे रार क्या कहने

कभी गुस्सा कभी नाराज़ हो जाना
बढ़ा तक़रार से ही प्यार क्या कहने

उसी पर छत टिकी थी आशियाने की
जुदा कर दी वही दीवार क्या कहने

मेरा जिसने वफ़ा का क़ाफ़िला लूटा
वफ़ा की उसको है दरकार क्या कहने

यक़ीनन आपकी मर्ज़ी चलेगी अब
बनी है आपकी सरकार क्या कहने

किसी को वो समझ आया नहींं `आनन्द`
पहेली सा था जो किरदार क्या कहने

 

Written By Anand Kishore, Posted on 11.05.2021

अकेलापन वही है,
जब कोई नजर ना आये,
अकेलापन वही है,
जब हर नजारा सूना हो जाये,
है अकेलापन वो भी
जब बहुत दूर साथ चलने के बाद
अकेले लौटना पड़ जाये,
है अकेलापन वो भी
जब बहुत से लोग घेरे हो,
फिर हौले से सब गायब हो जायें,
है अकेलापन वो भी
जब स्वावलंबन के नाम पर
आपको तन्हा छोड़ दिया जाये,
अकेलापन वो भी है
जब आपकी मजबूती के आधार पर
आपकी चिन्ता ही न की जाये,
अकेलापन वो भी है 
जब जरूरत से ज्यादा आपको
समझदार, समझ लिया जाये,
है अकेलापन वो निश्चित ही
जब कोई अपको तन्हा कर दिया जाये,
है अकेलापन वो भी
जब आपके दुख अपनों को
बस नाटक नजर आयें,
अकेलापन वो भी है
जब विश्वास करो बहुत किसी पर
और वो खंजर घौंप जाये,
अकेलापन वो भी है
जब आपकी तरक्की के नाम पर
कोई आप पर जिम्मेदारी सौंप जाये,
अकेलापन वो ही है
जब मस्तिष्क से तन तक की
गतिविधियाँ खुद महसूस की जायें,
अकेलापन वो ही है
जब आपकी खोखली हंसी में
उदासी साफ नजर आये ....।

 

Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 29.05.2021

तुम सर्द रात में अलाव सी जलती हुई
में मोम सा  आगोश में पिघलता गया।

हिज्र का दोर इस मुकाम पे ले आया
तेरे तसब्बुर का मुन्तजिर  होता गया।

कभी आ मेरी धड़कनो की सदायें सुन
में सेहरा में अश्खो का  समंदर बहाता गया।

मुझसे जुदा तुम कहा मशरूफ हो गये
शहर में चाँद भी बादलो में खोता गया।

तुम पास भी हो मेरे ओर मुझसे जुदा भी
इसी कश्मकश में ज़िन्दगी  गुजारता गया।

Written By Kamal Rathore, Posted on 02.11.2021

दूसरों की खुशी देख कर भी जो खुश नहीं हो पाता है
दूसरों के सुख दुख में कभी जो शामिल होने नहीं जाता है
बड़ों के पास जो नहीं बैठता मन ही मन जो घुटता जाता है
हमेशा रहता है बुझा सा संगीत भी जिसको नहीं सुहाता है

नई बातें जो नहीं सीखना चाहता 
बच्चों से मिलकर जो नहीं मुस्कुराता है
प्रकृति को देखकर भी खुश नहीं होता 
अकेले में रहकर समय बिताता है

भंवरे की गुंजन जो नहीं सुन पाता है
कोयल का गाना भी जिसको नहीं सुहाता है
बारिश की बूंदें भी जिसको अच्छी नहीं लगती
खुशी में जो कभी नहीं गुनगुनाता है

पुरानी यादों को याद करके भी
क्यों नहीं वह मुस्कुराता है
नन्हें शिशु का रोना भी बेचैन नहीं कर पाता जिसे
यारों से मिलकर भी जो नहीं खिलखिलाता है

पतझड़ की पत्तियों की वो सरसराहट
बसंत में हर तरफ फैली वो मुस्कुराहट
जड़बत सा बैठा रहता है जो एक कोने में
कानों पे उसके असर नहीं कर पाती कोई आहट

संवेदनहीन सा वो मौत के पास चला जा रहा
हर आने वाला पल उसे अपने पास बुला रहा
मौत दे रही दस्तक चुपके चुपके दरवाजे पर उसके
मर तो कब का चुका है अब तो बस लाश ढो रहा

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 17.12.2021

तुम अपने पास ही रक्खो फिलोसफी अपनी!
हमें तो जान से प्यारी थी दोस्ती अपनी!

ज़माने वालो नए वक़्त का कन्हैया है,
अलग ही राग बजाता है बाँसुरी अपनी!

अगर पड़ेगी ज़रूरत अदू न माना बात,
लहू से उसके बुझा लेंगे तिश्नगी अपनी! 

यही तो रोना है सुनता नहीं है बात कोई,
ग़रीब किस से कहे जाके बेबसी अपनी!

न चाह जीने की थी कुछ न मरने का कुछ गम,
तमाम उम्र रहे ढो़ते ज़िन्दगी अपनी! 

हैं जैसे रोते यहाँ सब ही तू भी रोए गा,
तेरी ये काम न आएगी आशिक़ी अपनी!

फिर इसके बाद ही ग़ैरों से आप कुछ कहना,
तलाश ख़ुद में करें पहले हर कमी अपनी! 

तुम्हारी कट रही अच्छी तो शुक्र रब का करो,
यहाँ तो मौत से बदतर है ज़िन्दगी अपनी! 

ज़माने वालो ग़ज़ल इस लिए ही कहता हूँ,
किसी के काम तो आएगी शायरी अपनी!

ख़ुदा ने चाहा, लकी का नसीब जागे गा,
कभी तो होगी मदीने में हाज़री अपनी!

Written By Mohammad Sagheer, Posted on 18.01.2022
मतदान किसी भी लोकतांत्रिक समाज का एक अनिवार्य पहलू है। यह वह साधन है जिसके द्वारा नागरिक अपने राष्ट्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं। मतदान व्यक्तियों को अपने प्रतिनिधियों का चयन करने की अनुमति देता है जो उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने, उनके अधिकारों की रक्षा करने और समग्र रूप से राज्य के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए काम करेंगे। मतदान न केवल एक अधिकार है बल्कि एक जिम्मेदारी भी है जो एक लोकतांत्रिक समाज में रहने के साथ आती है। मतदान करके, व्यक्ति यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनकी आवाज सुनी जाए, और उनकी चिंताओं को निर्वाचित अधिकारियों द्वारा संबोधित किया जाए। इसके अलावा, मतदान यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि सरकार उन लोगों के प्रति जवाबदेह है जिनकी वह सेवा करती है। जब नागरिक चुनावी प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो उनके अपने राष्ट्र के शासन में शामिल होने की अधिक संभावना होती है, और वे अपने प्रतिनिधियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहरा सकते हैं। एक अच्छे राष्ट्र के लिए मतदान करने के लिए, मुद्दों और उम्मीदवारों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। कार्यालय के लिए चल रहे उम्मीदवारों के प्लेटफार्मों और नीतियों पर शोध करना आवश्यक है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन उनके मूल्यों और प्राथमिकताओं के साथ संरेखित है। मतदाताओं को उम्मीदवारों के ट्रैक रिकॉर्ड और अपने वादों को पूरा करने की उनकी क्षमता पर भी विचार करना चाहिए। विचार करने के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण कारक उम्मीदवारों की ईमानदारी और चरित्र है। ऐसे व्यक्तियों को वोट देना आवश्यक है जिनका नैतिक मानकों को बनाए रखने का इतिहास रहा हो और जिन्होंने जनता की भलाई के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित की हो। मतदान एक मौलिक अधिकार और जिम्मेदारी है जिसका प्रयोग एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक द्वारा किया जाना चाहिए। सही उम्मीदवारों के लिए मतदान करके, व्यक्ति यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि उनका राष्ट्र उन प्रतिनिधियों द्वारा शासित है जो आम भलाई के लिए काम करेंगे और सभी नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देंगे। इसलिए, हम सभी को एक जिम्मेदार मतदाता के रूप में अपनी भूमिका को गंभीरता से लेना चाहिए और एक बेहतर राष्ट्र के निर्माण में मदद करने के लिए चुनावी प्रक्रिया में भाग लेना चाहिए। Written By Sachin Bajpai, Posted on 03.05.2023

सच में ऐसा होता है क्या
होता है क्या कोई संतुष्ट मन
कहा होता है ऐसा मन
क्या भक्ति में होता है संतुष्ट मन?
जब भक्त ईश्वर की कामना करता है
उनके प्रेम से परिपूर्ण होता है तब
उन्हें समक्ष न पा वो संतुष्ट होता है क्या?
तब कहा होता है संतुष्ट मन

क्या शक्ति में होता है संतुष्ट मन?
जब शक्ति से सर्वस्व जीत लिया पर
खुद को कहीं हार दिया,या खो दिया
शक्ति से भी किसी को न पा पाएं
तब मन संतुष्ट होता है क्या?

ज्ञान में होता होगा शायद संतुष्ट मन
मगर कैसे?
ज्ञान अभिमान भी तो लाता है साथ में
अभिमान कब संतुष्ट हुआ कभी इस जग में
ज्ञान में भी अभिमान,धन में भी अभिमान
ज्ञान और धन से सब प्राप्त कर भी
मन खोजता रहता है संतुष्ट मन।।

माँ की ममता या पिता के दायित्व में
होता है क्या संतुष्ट मन मगर कैसे होगा
हर माँ बाप सोचते हैं कि कुछ और अच्छा दे पाएं अपने बच्चों को,
कुछ रह तो नहीं गया,होगा वहां संतुष्ट मन कहां है?

या फिर पत्नी के समर्पण में या पति के प्रेम में
नहीं नहीं ये परिकल्पना हीं असंभव है
ये तो शायद जग का सबसे असंतुष्ट नाता है
इसमें संतुष्ट मन कहा संभव है
कुछ न कुछ खाली रह जाता है यहाँ।।

शायद बच्चों में होता होगा संतुष्ट मन,
नहीं वो तो हर दूसरे पल नाराज हो जाते हैं
मुँह फुला लेते हैं और इस लाड़ को वो जीवन भर दिखाते हैं।

गुरु की शिक्षा में या शिष्य की दीक्षा में
नहीं आज के युग में इस रिश्ते में भी संतुष्ट मन नहीं होता
समाज के विकृत रूप में तो सब असंतुष्ट हैं
वहां पीटेंगे बस निज स्वार्थ का स्थान है
मित्रता की छॉंव में भी बस तब तक हीं होता है
संतुष्ट मन जब तक वहां प्रतिस्पर्धा घर नहीं करती
और कभी कभी अपने मित्र क़ी
किसी और के साथ मित्रता मन को स्वीकार नहीं होती
और फिर मिलता है वही असंतुष्ट मन।।

सच मानिये तो बस मन की मिथ्या में होता है "संतुष्ट मन"

Written By Namrata Chaurasia, Posted on 03.05.2023

मजदूर हूँ मैं

SWARACHIT4989

Anup Kumar
~ अनुप कुमार

आज की पोस्ट: 03 May 2023

काम हूँ करता, मेहनत कश हूँ
विश्वकर्मा का मैं आशीष हूँ
अभियंताओं की ऊंची पढ़ाई को
प्रत्यक्ष में लाता, जीवंत स्वरूप हूँ
कागज पर उकरी आकृतियों को
लाता धरा पर , वो भी मैं ही हूँ
नित शारीरिक श्रम को करता
मजे से दूर मजदूर वो मैं हूँ।।

तीखी धूप में जलता हूँ मैं
आंधी-वर्षा भी सहता हूँ
शोर-शराबा है ध्वनि प्रदूषण पर
ऐसे कितने ही प्रदूषणों में रहता हूँ
तर-वतर, लथ-पथ पसीनों में
तिरष्कार भी मैं सहता हूँ
ऊंचे सपने, वेवश आंखे
मैं ही मजदूर तो कहलाता हूँ।।

सेंट्रल विस्ता, राम का मंदिर
बन रहा है मजदूरों के, दम पर
ऊंची भवनें, पूल बड़े-बड़े
कारखानों का बोझ है हम पर
स्वच्छ्ता का हर जोर हमीं से
हम ही मिलतें हैं, हर खेतों पर
फिर भी मजदूर, मजबूर भला क्यों?
ये सवाल हम छोड़ें किस पर?
ये सवाल हम छोड़ें किस पर?

Written By Anup Kumar, Posted on 03.05.2023

कोई नही

SWARACHIT4990

Uma Kumari Rana
~ उमा राणा

आज की पोस्ट: 03 May 2023

नहीं चल सकते हम दो चेहरे लेकर,
बेशक अकेले रह जाएं गम नहीं
नहीं जी सकते दोहरी सोच लेकर,
भले ही सब छूट जाए गम नहीं
मिला यहां हर कोई हमदर्द बनकर,
दिल से दर्द को समझे, ऐसा यहां कोई नहीं
अब तो ये आलम है कि हर रिश्ता कारोबार है,
घाटा जहां जिसको दिख जाए, फिर वो साथ चलता नहीं
आपके बढ़ते कदमों के कायल हजारों यहां,
गहरी खामोशी को जो तोड़ पाए, खुद के सिवा कोई नहीं
बनाना है हमसफर तो खुद को बना लो वक्त रहते,
वर्ना उम्र ढल जाए, तो फिर वक्त का भी पता कोई नहीं

Written By Uma Kumari Rana, Posted on 03.05.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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