हिन्दी बोल India ई-पत्रिका

Saturday, 30 September 2023

  1. हमारी ख्वाईश
  2. उसका घर है न कोई और ठिकाना है
  3. वतन के रखवाले
  4. वो लड़की हूँ
  5. मधुवन में बरसात
  6. जल्दी थी

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हमारी ख्वाईश

21FRI02214

Manoj Bathre
~ मनोज बाथरे चीचली

आज की पोस्ट: 30 September 2023

हमारी ख्वाईश

सबसे अहम है 

दो वक्त की रोटी

उसी की खातिर 

हम सब कामों को

बहुत ही खूबसूरत ढंग से

और 

अपने जीने के लिए

करते हैं 

तब कहीं जाकर हम 

अपनी जिंदगी बेहतर

तरीके से जी पाते हैं

और यही 

ख्वाईश हमारी जिंदगी है।।

Written By Manoj Bathre , Posted on 04.06.2021

 

उसका घर है न कोई और ठिकाना है
मुद्दत  से   तेरे  नाम  का   दीवाना  है

जिसने   मेरे   ख़्वाबों   को   दी  ताबीरें
उसकी ख़ातिर जीना औ`र मर जाना है

हमने आँखों को रक्खा है देहरी पर
इतना है मालूम कि उनको आना है

इश्क़ मोहब्बत प्यार वफ़ा  ये क्या जाने
नादाँ दिल को फिर से अब समझाना है

बिन बोले लब की जुम्बिश या आँखों से
हाले  दिल  अब   कैसे  भी  बतलाना है

उसको भी तो रिन्द कहा है लोगों ने
जिसके  हाथों  में  ख़ाली पैमाना  है

मिल जाना  है  इतना तो  हर हाल तुझे 
जितना किस्मत में जो लिक्खा दाना है

एक मुसाफ़िरख़ाना लगती ये दुनिया
सदियों से  इन्सां का  आना जाना है

`आनन्द` कोई कहता दिल में चुपके से
नेकी  करके  ही  दुनिया  से  जाना  है

 

Written By Anand Kishore, Posted on 09.06.2021

कहाँ ढूंढें तुमको कहाँ तुम मिलोगे
जहां भी रहो फूल बन कर खिलोगे

हमें तुमने पूरी आजादी दिला दी
गोरों की तुमने नींद उड़ा दी
गोरों की तुमने नींद उड़ा दी
मिलना भी चाहें नहीं तुम मिलोगे
कहाँ ढूंढें तुमको कहाँ तुम मिलोगे

जवां थे जवानी वतन पर लूटा दी
आज़ादी की दिल में आग जगा दी
आज़ादी की दिल में आग जगा दी
अमर हो गए तुम अमर ही रहोगे
कहाँ ढूंढें तुमको कहाँ तुम मिलोगे

जलियाँ वाला बाग में गोली चला दी
देशभक्तों की चिंताएं जला दी
देशभक्तों की चिंताएं जला दी
कसम खाई डायर तुम न बचोगे
कहाँ ढूंढें तुमको कहाँ तुम मिलोगे

भारत को छोड़ो बहुत ऐश कर ली
हमको लुटा झोलियां भर ली 
हमको लुटा झोलियां भर ली
सोने की चिड़िया को मुक्त तुम करोगे
कहाँ ढूंढें तुमको कहां तुम मिलोगे


लाखों शहीदों ने कुर्बानियां दी
देश की खातिर अपनी जबानियाँ दी
देश की खातिर अपनी जबानियाँ दी
हम तो चले हैं नहीं फिर मिलोगे
कहाँ ढूंढें तुमको कहां तुम मिलोगे

Written By Ravinder Kumar Sharma, Posted on 31.01.2022

वो लड़की हूँ

SWARACHIT6142

Rajiv Dogra
~ राजीव डोगरा 'विमल'

आज की पोस्ट: 30 September 2023

हाँ मैं एक लडक़ी हूँ
हाँ मैं वो ही लडक़ी हूँ
जो अपनी हो तो
चार दीवारी में कैद रखतें हो।
किसी ओर की हो तो
चार दीवारी में भी
नज़रे गड़ाए रखतें हों।

हाँ मैं एक लडक़ी हूँ
हाँ मैं वो ही लडक़ी हूँ
जो अपनी हो तो
घर की इज्जत समझते हो।
किसी ओर की हो तो
सरेआम चार लोगों के बीच
उसकी इज्जत उछालते हो।

हाँ मैं एक लडक़ी हूँ
हाँ मैं वो ही लडक़ी हूँ
जो अपनी हो तो
प्यार,मोहब्बत से दूर रखते हो
किसी ओर की हो तो
मोहब्बत के नाम से उसके
जिस्म की ख्वाहिश करते हो।

Written By Rajiv Dogra, Posted on 30.09.2023

मधुवन में बरसात

SWARACHIT6143

Jagdish Sharma
~ जगदीश शर्मा 'सहज'

आज की पोस्ट: 30 September 2023

मधुवन में बरसात न हो तो,सूना सावन रह जायेगा।
प्रेम सरोवर सूख गया तो, सूना सा मन रह जायेगा।।

संध्या आयी तारे चमके, बिजली दमकी, बादल फूटे।
गिरे नहीं बूँदों के छींटे, दादुर, मोर, पपीहा रूठे।।
प्रियतम के मधुमय वचनों से, शीतल हो जाता है तनमन।
साजन का संसार न हो तो, सूना आँगन रह जायेगा।।
मधुवन में बरसात न हो तो,सूना सावन रह जायेगा।

लड़ते-लड़ते जीवन बीता, जीने का सुख साधन रीता।
लूट लिये पानी के सागर, पृथ्वी का सारा धन रीता।।
नस नस में अब जहर घुला है, सम्बन्धों को कौन निभाये।
तलवारों से युद्ध हुआ तो , केवल तर्पण रह जायेगा।।
मधुवन में बरसात न हो तो,सूना सावन रह जायेगा।

नभ में पंछी उड़ते फिरते, हिल-मिलकर कलरव करते हैं।
सात सुरों के बाजे सारे, सुप्त हृदय में लय भरते हैं।।
इस दुनिया में प्रेम बड़ा है, प्रेम बिना सबकुछ सूना है।
चेहरे पर मुस्कान न हो तो, सूना जीवन रह जायेगा।
मधुवन में बरसात न हो तो,सूना सावन रह जायेगा।

Written By Jagdish Sharma, Posted on 30.09.2023

जल्दी थी

SWARACHIT6144

Wajid Husain
~ वाजिद हुसैन "साहिल"

आज की पोस्ट: 30 September 2023

उसे अह्दे मुहब्बत से मुकर जाने की जल्दी थी
थमा तुफां तो दरिया को उतर जाने की जल्दी थी

बिछड़कर उसको भी शायद नई दुनिया बसानी थी
मुझे भी टूटकर खुद ही बिखर जाने की जल्दी थी


तमन्ना रिन्द की थी जाम झलकाता रहूं, शब भर
मगर अफसोस के साक़ी को घर जाने की जल्दी थी

उसे भी शौक था हर बात पर नुक्ता बताने का
मुझे भी तंज सुन सुनकर निखर जाने की जल्दी थी

मदद के वास्ते जख़्मी की, रुकता कौन सड़को पर
वहां हर शख्स को बचकर गुज़र जाने की जल्दी थी

तबीबे शह्र के महंगे दवाखानों से घबराकर
गरीबे शह्र को बिस्तर पे मर जाने की जल्दी थी

तवक्को ही न कि मरहम की उनसे मैंने भी "साहिल"
मेरे ज़ख्मों को तो ऐसे ही भर जाने की जल्दी थी

Written By Wajid Husain, Posted on 30.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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