कुछ हंस के लिखा है, कुछ रो के लिखा है,
कुछ जीत में लिखा है, कुछ हार में लिखा है,
लेकिन जो भी लिखा है, दिल से लिखा है,
कुछ खुशी में लिखा है, कुछ गम में लिखा है,
कुछ शांति में लिखा है, कुछ मातम में लिखा है,
लेकिन जो भी लिखा है दिल से लिखा है,
कुछ देख कर लिखा है, कुछ सीख के लिखा है,
कुछ गलत लिखा है, तो कुछ ठीक लिखा है,
लेकिन जो भी लिखा है दिल से लिखा है.
Written By Bharatlal Gautam, Posted on 23.04.2023दुनिया में दूजा माँ-सा हुआ नही कोई
माँ की सूरत से सूरत जुदा नही कोई।
जाग सारी रैना गुनगुनाती रही लोरियां,
माँ-सी मधुर निदिया सुलाता नही कोई।
सब समझ लेती देख हावभाव पल में
माँ से बढ़कर जग में खुदा नही कोई।
खोकर सारा चैन हुई न पलभर बैचेन
सिवाय माँ के दूजा सहारा नही कोई।
है चारों ही धाम जिस घर माँ रहती खुश
माँ की मुस्कराहट-सा सजदा नही कोई।
थामती रही उंगलियां गिरने से ही पहले
बिना माँ के दुनिया में मिला नही कोई।
माँ जन्नत है माँ मन्नत है माँ ही``मत्स्य``*है
``गोविमी``माँ जैसा पावन सिला नही कोई।
जिसका दर्द उदासी लेना चाहू वो मुझे देता नहीं है,
मेरा दिल मुहब्बत से भरा एक बूंद वो लेता नहीं है।
शायद जिस्मों को पाने नोचने को समझता इश्क वो,
तभी मेरी रूह में क़ैद पाक़ मुहब्बत वो लेता नहीं है।
जरूर मतलबी धोखेबाज लोगों से तंग आ चुका वो,
मेरा वफ़ा भरा सच्चा साथ शायद तभी वो लेता नहीं है।
मिलने को तो लाख मिलते होंगे उससे रोज़ झूठे लोग,
बाग़ी तभी तेरी ईमानदारी को सही मान वो लेता नहीं है।
रात रोज़ हुईं पर आज़ कुछ खास तजुर्बे का अंधेरा है,
बाग़ी परेशा उसके बिन,सांस पूरा एक वो लेता नहीं है।।
Written By Ajay Poonia, Posted on 15.07.2023
सियासत को ज़माने कीअभी,
भी न समझ सके तुम तो,
दर्द है सीने में मगर,
चहरे पर मुस्कान सजा ली मैं ने,
ज़माना आखिर मेरे क़दमों में
सारा आही गया देखो न,
खबर थी कि, दवा दर्दे दिल की
सच कोई आज बना ली मैं ने,
यादें तक़लीफ़ देती थीं, तस्वीर
ही तेरी दिलसे अपने हटा दी मैंने,
सब दबाने लगे दांतों में उंगलियां,
सच्चाई जो थीं वो बता दी मैं ने,
ज़ख्म सारे के सारे जो हैं वो,
तूने तो दिए हैं मुझको,न भुल,
और मैं नादान इनको खुद ही,
और रह रह के हवा दी मैं ने,
कहानी पढ़ कभी मेरी, तेरा उसमें,
भी एक किरदार नज़र आएगा,
आज सवाने हयात अपनी भी,
मुश्ताक देखो न छपा दी मैं ने,
माता का श्रृंगार करने ,
आज बैठें हैं शिवनंदन प्यारे
लेकर खड़े कार्तिक दर्पण,
गणेश जी उनके केश सँवारें
वात्सल्य गौरी के नयन से छलकें,
स्कंद मंद-मंद मुस्कायें..
अपने नन्हें हस्तों से गौरीनंदन,
माँ के केशों में पुष्प सजायें
खेल रहीं गौरी भी लल्ला संग,
लें मैया बालकों की बलायें,
मात-तनय का प्रेम ये अद्भुत
गणेश कार्तिक आज बाल-लीला रचायें
गणपति जी का विसर्जन
गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन की परंपरा के पीछे की कहानी क्या है?विसर्जन संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है पानी में विलीन होना। ये सम्मान सूचक प्रक्रिया है इसलिए घर में पूजा के लिए प्रयोग की गई मूर्तियों को विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है। विसर्जन की क्रिया में मूर्ति पंचतत्व में मिल जाती है और देवी-देवता अपने मूल स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं।
ऐसा माना जाता है कि त्योहारों के आखिरी दिन भगवान गणेश अपने माता पिता भगवान शिव और देवी पार्वती से मिलने के लिये कैलाश पर्वत पर लौटते है।हिन्दू धर्म के अनुसार गणेश उत्सव के आखिरी दिन मतलब अनंत चतुर्दशी को बप्पा के भक्त बड़ी धूमधाम से उनकी बिदाई करते है ताकि अगले साल एक बार फिर उनकी साधना अराधना का सौभाग्य प्राप्त हो।
भारतीय इतिहास के पन्नो में लिखा है कि महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक ने की थी यह परंपरा अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ आस्था के नाम पर देश को एकजुट करने के लिये की किया गया। गणपति बप्पा को 10 दिनो तक घर के सदस्य की तरह सेवा करने के बाद जल में विसर्जन किया जाता है। इसके पिछे कई कहानीयां है। गणेश विसर्जन की परंपरा,जिसे गणेश मूर्तियों के विसर्जन के रूप में भी जाना जाता है, एक हिंदू अनुष्ठान है जो गणेश उत्सव के अंत का प्रतीक है।
पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत जैसे महान ग्रंथ को गणेशजी ने लिखा था,कहा जाता है कि ऋषि वेदव्यास ने महाभारत को आत्मसात कर लिया था लेकिन वे लिखने में असमर्थ थे,इस ग्रंथ को लिखने के लिए किसी दिव्यआत्मा की आवश्यकता थी जो बिना रुके इस ग्रंथ को लिख सकें. इसका निवारण करने के लिए ऋषि वेदव्यास ने ब्रह्माजी से सुझाव लेकर गणेश (जी बुद्धि के देवता हैं) से से महाभारत लिखने की प्रार्थना की और उन्होंने अपने स्वीकृती दे दी, ऋषि वेदव्यास ने चतुर्थी के दिन से महाभारत का वृतांत सुनाया और गणेशजी बिना रुके लिखते रहें. 10 वें दिन जब ऋषि वेदव्यास ने अपनी आंखे खोली तो देखा की उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है. शरीर के तापमान को कम करने के लिए ऋषि वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगाया और सूखने के बाद ठंडक प्रदान करने के लिए नदी में गणेशजी को डुबकी लगवाई,उस दिन अनंत चतुर्दशी का दिन था, इसलिए गणेशजी को चतुर्थी के दिन स्थापित किया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन किया जाता है।
विसर्जन का नियम इसलिये भी हो कि मनुष्य यह समझ ले कि संसार चक्र के रूप में चलता है।जिसमें भी प्राण आया है वह अपने स्थान को लौटकर जायेगा समय आने पर फिर पृथ्वी पर लौट आयेगा।विसर्जन का अर्थ मोह से मुक्ति है। सभी देवी देवताओं का विसर्जन जल में होता है जल को नारायण का रूप माना जाता है।गीता के अनुसार संसार कि सभी (देवी देवता और प्राणी) और स्वयं कृष्ण भी सब को कृष्ण (परमात्मा) में मिलना है। जल में विसर्जन मतलब परमात्मा मे एकाकार होना है।
जल का संबंध बुद्धी और ज्ञान से माना गया है।जिसके कारक स्वयं गणेश है ।विसर्जित होकर गणेश जी साकार से निराकार रूप में बदलते है। जल को पांच तत्वो में से एक माना गया है जिसमें घुलकर प्राण प्रतिष्ठा से स्थापित मुर्ति पंचतत्व मे समाहित हो जाती है।
अनंत चतुर्दशी के दिन जब महाभारत लेखन का काम पूरा हुआ तो गणेश जी का शरीर जड़वत हो चुका था. बिल्कुल न हिलने के कारण उनके शरीर पर धूल-मिट्टी जम गई थी. तब गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान करके अपना शरीर साफ किया इसलिये गणेश स्थापना 10 दिन के लिए की जाती है और फिर उनकी प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।गणेश का विसर्जन यह दिखाता है कि गणेश जी मिट्टी से जन्मे है और बाद में इस शरीर को मिट्टी में ही मिलना है। - गणेश जी की मूर्ति मिट्टी से बनती है और पूजा के बाद वो मिट्टी में मिल जाती है।
भगवान गणेश की मूर्तियों को विसर्जित करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है।हमारे पूर्वज सचमुच बहुत बुद्धिमान थे,सौर कैलेण्डर के अनुसार तमिल महीने आदि (जुलाई के मध्य - अगस्त के मध्य) के दौरान नदी का जल स्तर बढ़ जाएगा और किनारे की रेत बह जाएगी और इसके कारण नदी जमीन पर स्थिर हुए बिना समुद्र में पहुंच जाएगी और ऐसा होगा भूमि को कम उपजाऊ और शुष्क बनाना। इसलिए हमारे पूर्वजों के पास मिट्टी को विसर्जित करने का एक बहुत अच्छा विचार था। मिट्टी में पानी को अवशोषित करने और उसे जमीन में डुबाने का गुण होता है।यह नदी के पानी को समुद्र में जाने से पहले यथासंभव स्थिर कर देगा।
लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि हम इंसान, अगर यह ईश्वरीय नहीं है तो विश्वास नहीं करेंगे, इसलिए उन्होंने गणेश चतुर्थी का दिन चुना है क्योंकि यह आदि महीने के बाद आता है और उनसे अपने जीवन को अच्छे कार्यों से भरने के लिए गणेश मूर्ति को विसर्जित करने के लिए कहा है। उस समय सबसे सस्ता स्रोत भी मिट्टी ही था, उसके लिए किसी को अपना शिलिंग खर्च करने की आवश्यकता नहीं थी।
साथ ही, मिट्टी की मूर्ति को दो-तीन दिन बाद विसर्जित करने का कारण यह है कि गीली होने पर मिट्टी बह जाएगी, इसलिए उन्हें इसे सूखाने की जरूरत है, ताकि यह नदी के तल पर जम जाए और अधिक से अधिक मात्रा में अवशोषित हो जाए। भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए नदी का जल। आजकल लोग पागल हो गए हैं और उन्होंने प्लास्टिक और इनेमल पेंट का उपयोग करके मूर्तियाँ बनाना शुरू कर दिया है जिससे जलीय जीवन खतरे में पड़ गया है और अधिक प्रदूषक बन गया है।
प्राचीन काल में मूर्ति को 21 प्रकार की हर्बल पत्तियों, जिन्हें पथरा कहा जाता है, के साथ विसर्जित किया जाना चाहिए और आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार विसर्जन का नियम इसलिए है कि मनुष्य यह समझ ले कि संसार एक चक्र के रूप में चलता है भूमि पर जिसमें भी प्राण आया है वह प्राणी अपने स्थान को फिर लौटकर जाएगा और फिर समय आने पर पृथ्वी पर लौट आएगा। विसर्जन का अर्थ है मोह से मुक्ति, आपके अंदर जो मोह है उसे विसर्जित कर दीजिए। आप बप्पा की मूर्ति को बहुत प्रेम से घर लाते हैं उनकी छवि से मोहित होते हैं लेकिन उन्हें जाना होता है इसलिए मोह को उनके साथ विदा कर दीजिए और प्रार्थना कीजिए कि बप्पा फिर लौटकर आएं, इसलिए कहते हैं गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ।
Written By Anamika Agrawal, Posted on 28.09.2023कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।