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Tuesday, 26 September 2023

  1. कुछ तो डर भगवान से
  2. हरामखोर कौन
  3. मेरे जीवन साथी
  4. उजड़ा कब का है घर मेरे हिस्से का
  5. एक के संग
  6. हकीकत से अनजान क्यों

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वो होकर भगवान भी, करे नहीं अभिमान।
कुछ तो डर भगवान से, ओ पापी इंसान।।

सर्व शक्ति के सामने, करता बढ़ चढ़ बात।
कुछ तो डर भगवान से, तेरी क्या औकात।।

रिश्वत लेता बेधड़क, करता पापाचार।
कुछ तो डर भगवान से, वो है पालनहार।।

दीन दुखी कमजोर को, करता क्या मजबूर।
कुछ तो डर भगवान से, नहीं घृणा दस्तूर।।

निकल जायगी हेकड़ी, निकल जायगा ज्ञान।
कुछ तो डर भगवान से, दिखा न झूठी शान।।

करता अत्याचार है, करे निबल पर घात।
कुछ तो डर भगवान से, कर अच्छे से बात।।

गले गले तक कर नशा, करता उल्टे कर्म।
कुछ तो डर भगवान से, कुछ तो कर ले शर्म।।

दो नम्बर की आय का, करता रहे उपाय।
कुछ तो डर भगवान से, क्यों करता अन्याय।।

उसकी लाठी जो कभी, करे नहीं आवाज।
कुछ तो डर भगवान से, गिरा न हरपल गाज।।

अपने कर्म सुधार ले, अपने पुण्य सुधार।
कुछ तो डर भगवान से, जिसका ये संसार।।

Written By Rupendra Gour, Posted on 01.06.2022

हरामखोर कौन

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Lalan Singh
~ ललन प्रसाद सिंह

आज की पोस्ट: 26 September 2023

कोहरा फटते ही रामजतन थानेदार के क्वार्टर की ओर हांफता हुआ बदहवास दौड़ता चला आ रहा था,

          ` बड़ा बाबू!बड़ा बाबू!! मेरे बाबू को बचा लीजिए!` 

          ` क्या हुआ रे रमजतना ?`

          ` क्या नहीं हुआ हुजूर?`

          ` अरे बता तो सही! थानेदार अत्यधिक उत्सुक होते हुए बोला,

        मेरे पड़ोस के सिरिकिसुन और जानकी मेरे बाबू पर बेवजह लाठी से तड़ातड़ प्रहार करने लगे.तभी मैं भागता हुआ........... `

          ` अच्छा तूं घबरा मत, मैं देखता हूं.`

          ` जल्दी जाइये हुजूर नहीं तो...........`

          ` चोप्प बेहूदा !......... जा अंदर तुं, सारा काम पड़ा है.` 

       रामजतन क्वार्टर के अंदर एक निश्चिंत सांस लेकर प्रवेश कर जाता है. एकदम निर्विकार भाव से बर्तन साफ करने में तल्लीन हो गया.बाद में अन्य छोटे-मोटे कार्यों से निपटकर,वह झाड़ू के लिए कमरे में घुसा. कमरे के सामने वाली दीवार के दूसरे तरफ बरामदे से, वह अपने बाबू की घिघियाई आवाज सुन विस्मय में पड़ गया. उसके पैर वहीं थम गए .

          ` हुजूर जब से मेरे बचवा को होश हुआ है तब से आप ही लोगों की सेवा में दिन रात देह खपा रहा है. इतनी भी मदद नहीं कर सकते हुजूर.............!........... वैसे मुझसे जो भी बन पाएगा दे दूंगा. अभी सौ रुपए से ज्यादा नहीं हो पाएगा,......... रख लीजिए हुजूर! 

            ` नहीं,नहीं उधार-पधार का दरबार नहीं है यह. पांच पूरा कर दो तभी यह केस दर्ज होगा!......... तुम अपने बचवा की बात करते हो!अरे मैं कहता हूं ........ कभी तनख्वाह का एक पैसा भी उधार रखा हूं क्या ?` 

          ` नहीं हुजूर यह कैसे कह दूं कि.........?`

          ` तब ! थोड़े ही मुफ्त में काम करता है .`

          ` मेरा मतलब है हुजूर कि कुछ और कम कर दें, तो देखता हूं........`

       उसके इंतजाम करने की बात सोच थानेदार, निश्चित ही और जल्दी में बाकी पैसे निकलवा लेने की ललक ने एक जोरदार वाक्य मुंह से उगला .

          ` च्चोप साला !......... घंटे भर से बता रहा हूं कि बिना पूरा लिए कुछ नहीं होगा. बेकार का टाइम खराब कर रहे हो. जाओ! भागो यहां से!! तुम पर तो दो सौ ग्यारह दफा चलाउंगा,तब होश ठिकाने आ जाएंगे. .....स्साला......., एक दम हरामखोर आदमी है............`

       रामजतन दरवाजे से बाहर झांका, यह सब देख सुन,अचानक वह सकते में आ गया. उसके बापू के सिर से ढेर सारा खून निकल कर कनपटी और कपड़े पर सूख रहा था .अचानक उसके रगों में गर्म खून प्रवाहित होने लगा .वह अपने आप को संतुलित रखने में असमर्थ हो रहा था. उसे लगा, अपने हाथ में लिए झाड़ू को उलटकर मजबूती से पकड़ ले और तेजी से थानेदार टूट पड़े.परन्तु समय और स्तिथि को देख वह उसका गुणा भाग करने लगा.कुछ पर पहले थानेदार द्वारा कहे गए हरामखोर शब्द उसके बापू के कानों में परावर्तित होकर उसके कानों में अब भी प्रति प्रतिध्वनित हो रहे थे.

 

Written By Lalan Singh, Posted on 06.06.2022

मेरे जीवन साथी,

तू है बड़ी मृदुभाषी।

मेरी चाहत के पन्नों पर,

मत बन मेरी उदासी।

मैं उसी पल जीत गया था,

जिस पल तुम पर नजर पड़ी थी।

खुद को भी भूल गया था,

जिस पल तुम पर नजर गड़ी थी।

तेरी भोली सी अदायें,

जब मुझपे छा गया था।

एक तरह से मानो,

मेरा समर्पण हो गया था।।

तुम्हारे प्रति मोहब्बत सा नशां,

कब का हो गया था।

नहीं जानता था कि तुमपे,

मेरा असर हो गया था।।

मुझ पर गौर किया जब तुमने,

और चाहता की नजर घुमायी।

तव्वजो तुम्हारी मेरे दिल में,

तेरे लिए प्रेम का असर हो गया।।

मन में कोई शंशय नहीं,

ना कोई अचंभित विचार आया।

मैं तो समस्त जीवन तेरे संग,

यूं ही बिताने का चाहत बनाया।।

नहीं चाहता था तुम भी,

किसी और का हो जाओ।

कभी वहम हुआ ना हुआ तुझे,

यह मुझे हरगिज ना पता।

पर जब नजर मेरी तरफ घुमाई,

मेरी सूखी कंठ को संजीवनी दे पाई।

इतना ही काफी हुआ मेरे लिए,

तू ता उम्र मेरे संग,

जिंदगी गुजारने को आई।।

प्रेम कोई चुकाने की चीज नहीं,

मेरे भाव से भाव मिलाई।

मेरा वजूद शून्य हुआ,

फिर भी ना कभी घबराई।।

तेरे प्यार के सामने,

मैं बड़ा हूं या छोटा।

इसे ना कभी तुम आंकी।

Written By Subhash Kumar Kushwaha, Posted on 18.06.2022

दिल की बातें हैं, दिल वालों को बताते हैं 
राज़ कई छिपे होते हैं, इसलिए सबसे छिपाते हैं

क्या- क्या नाम नहीं देते हैं मोहब्बत में लोग 
मोहब्बत में भी मोहब्बत को नाम दिलाते हैं

रूह तक जाने का और उसमें ही खो जाने का रस्ता है प्रेम
आजकल झूठे सपने जिस्मों के शौकीन  दिखाते हैं

क्या है इस मुहब्बत से बढ़कर, शायद कुछ भी नहीं ? 
चलो एक बार आखिरी सांस तक निभाते हैं

लोगों की बातें कई दफ़ा घर तोड़ देती है 
ये इर्ष्या की चादर परिवार पर चढ़ाते हैं

सम्भल कर रहना पड़ता है, अपने ही घर में आजकल बहुओं को 
सास- ससुर, ननद, बहु को ही आँखें दिखाते हैं

कहाँ खो गया वो बाबुल के आंगन सा प्यार अब 
अपने ही घर में बहु को बेगानों का अहसास कराते हैं

क्या करेगी लिख कर दर्द कल्पना करके नादाँ कलम
आजकल कहाँ संस्कार घर में पढ़ाते हैं 

दरवाज़े बड़े संकरे होते हैं जिम्मेदारियों के, लोक लाज़ के 
ये कहाँ ज्यादा उड़ान भरना सिखाते हैं

उजड़ा कब का है घर मेरे हिस्से का भी ``खेम``
बैठ आज यहीं कल तुम्हें किसी और ख्याल में छोड़ आते हैं

 

Written By Khem Chand, Posted on 19.07.2022

एक के संग

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Manoj Kumar
~ डॉ. मनोज कुमार "मन"

आज की पोस्ट: 26 September 2023

दोस्तों, जब-जब उसे आज़माने की सोचता हूँ।
मानो अपना ही दिल दुखाने की सोचता हूँ।।

बस वही-वही बेवकूफियां मैं हर बार करता हूँ।
जो जा चुका है उसे बचाने की सोचता हूँ।।

जो भीतर ही भीतर टूट रहा है एक अरसे से।
मैं नादां अक्सर उसको सजाने की सोचता हूँ।।

वो जो बैठे हैं बेतकल्लुफी से उन्माद में और नींद में।
उन सोए हुए लोगों को जगाने की सोचता हूँ।।

क्या हुआ जो लहरों को गुमान है समंदर पर।
मैं उस समंदर का मोती बचाने की सोचता हूँ।।

इतनी हाय तौबा मची है सब कुछ याद रखने की।
कभी-कभी सब कुछ भूल जाने की सोचता हूँ।।

जब-तब देखता हूँ फ़िज़ाओं में जहरीली हवा।
तब-तब नन्हें-नन्हें पौधे लगाने की सोचता हूँ।।

वो मन जो बेचैनी में है कब से तमाम होने पर।
उसको बस एक के संग लगाने की सोचता हूँ।।

Written By Manoj Kumar, Posted on 23.07.2022

कत्ल हो गया ख्वाबों का,
माली की बगिया उजाड़ बैठे,
पर्दे में राज दफ़न है,
ऐनवक्त पर ख्याल बदल बैठे,
छोड़ दिया जहान को उन्होंने,
जाते जाते सवाल कर बैठे,
बदलने होगी कुछ रस्में,
रस्में के खिलवाड़ मैं इंसान गंवा बैठे।।

Written By Chandraveer Garg, Posted on 26.09.2023

Disclaimer

कलमकारों ने रचना को स्वरचित एवं मौलिक बताते हुए इसे स्वयं पोस्ट किया है। इस पोस्ट में रचनाकार ने अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट किए हैं। पोस्ट में पाई गई चूक या त्रुटियों के लिए 'हिन्दी बोल इंडिया' किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। इस रचना को कॉपी कर अन्य जगह पर उपयोग करने से पहले कलमकार की अनुमति अवश्य लें।

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