अब न तू साहिबे किरदार की बातें करना
सिर्फ़ मज़बूर या लाचार की बातें करना
छोड़ दूँगा मैं भी व्यापार की बातें करना
तू दिखा छोड़ के बाज़ार की बातें करना
आ ज़रा फूल के ज़ख़्मों पे लगा दे मरहम
फिर कभी बाद में तू ख़ार की बातें करना
मशविरा तूने दिया सबको कि ख़ामोश रहो
तू भी तो छोड़ दे बेकार की बातें करना
बीच दरिया में पहुँच सोच न ऐसे पहले
तू किनारे पे न मंझधार की बातें करना
आज है अम्न के पैग़ाम की क़ीमत यारों
है ग़लत तीर या तलवार की बातें करना
चार बर्तन हों इकट्ठे तो खड़कते भी हैं
घर के आँगन में न दीवार की बातें करना
कोई `आनन्द` बता दे कि है कितना मुश्किल
जाँ के दुश्मन से कभी प्यार की बातें करना
हमारे जीवन में
हर दम
हर चीज के लिए
इंतजार ही इंतजार है
आखिर ये इंतजार
कब खत्म होगा
मैं नहीं जानता
परंतु इतना अवश्य
पता है कि
ये इंतजार
एक दिन हमारे जीवन में
कुछ अनोखा तौफा
अवश्य लाएगा।।
Written By Manoj Bathre , Posted on 03.06.2021अब मुहब्बत के न हमसे रोग पाले जाएँगे!
होश में कब आएँगे हम कब सँभाले जाएँगे!
चाँदनी सा रूप तेरा मख़मली सा है बदन,
गीत ग़ज़लों में मुहब्बत के हवाले जाएँगे!
दिल में हरदम ख़ौफ तारी और गम हैं बेशुमार,
तेरी यादों के हवाले कब निकाले जाएँगे!
चंद आँसू मेरी आँखों ने बहाए हैं अभी,
देखना इक दिन समुंदर भी उछाले जाएँगे!
आस्था हो जिसमें उनकी नास्तिक को छोड़कर,
हाँ यक़ीनन मस्जिदो,मंदिर,शिवाले जाएँगे!
हाज़िरी देते उजाले बनके वो दरबान क्या,
जिस तरफ फेरो गी नज़रें तब उजाले जाएँगे!
इब्तिदा से इंतिहा तक का न कोई ज़िक्र है,
ये बताओ किस क़दर पत्थर उबाले जाएँगे!*
इस तरह बेपरदा मत निकला करो जाने लकी,
वर्ना इक दिन चाहने वाले उठा ले जाएँगे!
2022 में यूपी के आखिरी चरण का चुनाव और ये जो सफर ``लो सफर सुरू हो गया`` से प्रारंभ हुआ था, वो अब समाप्ति की ओर है। दो जोड़ी वर्दी, गमछा, कुछ कपड़े, दाढ़ी बनाने का सामान, चप्पल, गर्म बिस्तर, दूरभाष सम्बन्धी उपकरण और अपनी सहभागीनी राइफल को कमर और कन्धे पर ढोते-ढोते जिला दर जिला भटकते हुये हमने पूरा माह गुजार दिया।
दूर से देखने पर आपको ये लाजबाब यात्रा ही लगेगी, मगर जब यह जिन्दगी जीनी होती है तब आपके विचार निश्चित ही बदल जाते है। वैसे भी कहा ही गया है की अपनी जगह छोड़ते ही आप की दिक्कतें प्रारंभ हो जाती हैं। मगर हम पुलिस वाले हैं, हमें इन्हीं दिक्कतों का सामना आजीवन करना होता है तो इसमें भी हम मजा खोज ही लेते हैं। फिर हमारे साथी जहाँ हमारे साथ हों वहाँ हमारे लिये स्वर्णयुग जैसा माहौल स्वतः ही बन जाता है।
खैर मुद्दे की बात पर आते हैं, अलीगढ से निकलते ही प्रथम चरण के चुनाव हेतु हम पहुँचे सम्भल। कुछ लोगों के लिये ये जिला नया हो सकता है मगर मेरे लिये नया नहीं है क्योंकि हमारी भार्या की तैनाती यहीं है तो अक्सर यहाँ आना-जाना लगा रहता है। बाकी सब यहाँ लाजबाब रहा। सम्भल के चुनाव के बाद अपना बोरिया बिस्तर बाँधें हम पहुँचे औरैया। औरेया हम लोगों ने थोड़ा सा भाषा में बदलाव देखा मगर व्यवस्थायें वहाँ भी ठीक रही और हम अपनी गृहस्थी लिये आगे बढ़ गये।
अब हम पहुँचे हरदोई। इस जिले को हम लखनऊ से ही पहचानते थे अब तक। मगर इस चुनावी मौसम में चार दिन यहाँ भी बिताये। कुछ ज्यादा बदलाव यहाँ भी नहीं दिखा। मगर शहर के हिसाब से ही परिवर्तन बढ़िया लग रहा था। हरदोई से अपना दाना-पानी उठाकर हम पहुँचें सुल्तानपुर। सुल्तानपुर का नाम काफी बार सुन रखा था पहले। की मित्र भी हैं यहाँ के। यहाँ आकर पूरब और पश्चिम का परिवर्तन नजर आने लगा था। क्षेत्रीय बोली में सत्तर प्रतिशत शब्द हमारी समझ में नहीं आ रहे थे। मगर लोगों के स्वभाव से लग रहा था कि काफी मिलनसार हैं। एक ही बात समझ न आने पर कई बार, वो लोग समझाने की कोशिश करते थे। रहने,खाने इत्यादि की सुविधा यहाँ उत्तम रही।
सुल्तानपुर से हमारा ये अनुभव का सफर पहुँचा बलिया। बलिया के बारे में इतिहास की किताबों में पढ़ रखा था। पहली बार चार दिन बलिया में बिताने का सुअवसर मिला। भूमिगत विभिन्नता और खान-पान में बदलाव से अब हमारा सीधा सामना हुआ। भाषा समझना हमारे लिये मुश्किल ही रहा। मगर लिट्ठी-चोखे का स्वाद लाजबाब रहा। हालांकि लखनऊ तैनाती के दौरान चोखा-वाटी से पहले ही प्यार हो गया था मुझे। बलिया में संगम पर गंगा जी स्नान से जो तन-बदन और मन को राहत मिली तो लगा जैसे कि ये इस सफर में कुछ वक्त चैन की साँस लेने का पड़ाव है।
विभिन्नताओं को स्वीकारते हुये हम बढ़े जौनपुर की तरफ मगर मध्य में पड़ा विश्व का सबसे पुराना शहर हमारा बनारस(काशी) और लगे हाथों हमने एक बार फिर गंगा मैया में अपनी किस्मत को दाद देते हुये डुबकी लगायी। 2017 में भी मैं काशी आ चुका हूँ मगर उन दिनों बाबा विश्वनाथ के दर्शन नहीं हो पाये थे। मगर इस बार भोर में ही दर्शन हो गये। काशी की महिमा तो लाजबाब है ही। क्या नगर है, सर्वोत्तम। मन भावनाओं से ओत-प्रोत हो जाता है। शम्भू की नगरी के क्या ही कहने। कभी वक्त मिले तो यहाँ जरूरत आइये। यहाँ की सुन्दरता अवर्णनीय है। अब हम चल पड़े जौनपुर की तरफ। 2017 के चुनाव में भी मेरा आखिरी पड़ाव जौनपुर ही था। तब हमने शाही किला भी घूमा था। इस बार हम थोड़ा आलस कर गये और कहीं घूमने नहीं गये। जौनपुर का आखिरी पड़ाव भी यादगार ही रहा।
चुनावी मौसम सम्पूर्ण यूपी के दर्शन करा ही देता है। वरना इस व्यस्ततम जीवन में कहाँ ही वक्त मिलता है घूमने को। अलग लोग, अलग संस्कृति, अलग विचार सबकुछ देखकर जीवन में और भी बदलाव आता है। जीवन को देखने का नजरिया बदल जाता है। चलिये इस चुनावी यात्रा को आगे बढ़ाते हुये ``आ अब लौट चले`` की तर्ज पर अपनी नियमित जिन्दगी में लौटते हैं और याद रखते हैं अलग-अलग नगरों को उनकी सुखद यादों के साथ।
Written By Sumit Singh Pawar, Posted on 07.03.2022ऐसे पकडो़ नहीं हमें कोई,
छल व कपट कर के कोई।
फैलाओ मत ना जाल तुम,
रखो ना पिंजरे में कैद तुम।।
क्यों चलते हो चाल कोई,
उड़ने दो हमको शान वहीीं।
हम प्यारे है सारे जहान के,
और परिंदे है हम प्यार के।।
करतें क्यों हो कोई ऐसा,
कैदी को कैद में रखें जैसा।
उड़ने दो हमें अपनी उड़ान,
भरने दो हमें ऊंची उडा़न।।
चूम लेने दो हमें अंबर गगन,
घूमनें दो सुख व चैन अमन।
हम प्यारे इस सारे जहान के,
और परिंदे है हम प्यार के।।
प्यार मिलेगा हम को जहाॅं,
आऍंगे-जाऍंगे उड़कर वहाॅं।
प्यार जताओ बच्चों जैसा,
न करो हम परिंदो से धोका।।
फिर रोज आऍंगे हम वहाँ,
चाहें तुम फिर रहो कहाँ।
हम प्यारे है सारे जहान के,
और परिंदे है हम प्यार के।।
जिस दिन माँ मेरे लिए कोई राजकुमारी लाएगी
सच कहता हूँ मुझको उस दिन याद तुम्हारी आएगी ।।
लफ्ज़ खामोश और सारे राज नयन मेरे खोल चुके थे
खुद से जो मैं बोल ना पाया वो भी तुमसे बोल चुके थे
नजरअंदाज कर हर बातों को तू सितम मुझपर ढ़ाई थी
भूल गई उस कसमों को तूने जो हाथ पकड़कर खाई थी
जिस दिन माँ उसको घर की दहलीज प्रवेश कराएगी
सच कहता हूँ मुझको उस दिन याद तुम्हारी आएगी ।।
जब तड़पाएगी मुझे तुम संग बीती वो शालीन हसीन लम्हें
घंटों बैठ बातें करना नजरों से कहना तुम्हारे शौकीन हम हैं
घर की रीत मान-मर्यादा, खातिर तेरे सबको मैंने छोड़ा था
इश्क में जात-पात ना होता कह नाता तुम संग जोड़ा था
`जेठानी हूँ तुम्हारी` कहकर जब भाभी उसपर हुक्म चलाएगी
सच कहता हूँ मुझको उस दिन याद तुम्हारी आएगी ।।
मेरे कथा की कथानक तुम थी मोल तुझे समझ ना आया
सौदागर थी तुम फरेब की मोहब्बत सच्ची तुमको ना भाया
अब माँ पसंद करेगी जिसको मेरे घर आएगी उसी की पालकी
छुपकर फेसबुक देखने वाली तब पढ़ लेना पन्ने अखबार की
जब उसको `जूनियर मिसेज रंजन` कहकर पुकारी जाएगी
सच कहता हूँ मुझको उस दिन याद तुम्हारी आएगी ।।
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